tag:blogger.com,1999:blog-3319406515610187250.post706455394831240842..comments2023-09-28T18:16:39.823+05:30Comments on जोग लिखी संजय पटेल की: प्रिय शरद की झिलमिलाती रात ; पूरा चाँद पहली बार ऊगा !sanjay patelhttp://www.blogger.com/profile/08020352083312851052noreply@blogger.comBlogger6125tag:blogger.com,1999:blog-3319406515610187250.post-72562555854856545252007-10-26T17:07:00.000+05:302007-10-26T17:07:00.000+05:30संजय जी आपका सम्मान पत्र रखा हुआ है पर आपका इा मे...संजय जी आपका सम्मान पत्र रखा हुआ है पर आपका इा मेल पता उपलब्ध नहीं हो पाने के कारण भेजा नहीं जा पा रहा है कृपया आपका ई मेल पता दे दें ताकि आपका सम्मान पत्र भेजा जा सके । पंकज सुबीरपंकज सुबीरhttps://www.blogger.com/profile/16918539411396437961noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3319406515610187250.post-89756481070847839732007-10-26T08:08:00.000+05:302007-10-26T08:08:00.000+05:30सो गये हैं खेत मेढ़े गाँव गलियाँकुछ खिलीं सी कुछ मु...सो गये हैं खेत मेढ़े गाँव गलियाँ<BR/><BR/><BR/>कुछ खिलीं सी कुछ मुँदी सी शुभ्र कलियाँ<BR/><BR/><BR/>नर्मदा का कूल छूता वात<BR/>श्रद्धेय पिताश्री को मेरा प्रणाम कहें कल एक कवि सम्मेलन में जाने के कारण नहीं देख पाया किंतु आज देखा तो कविता अद्भुत है । ये उस दौर की कविता है जो हिंदी का अंतिम दौर था । मैं पूरे मन से कह रहा हूं कि नरहरि जी और उनके दौर के कवि शायद हिंदी के अंतिम दौर के कवि हैं । हम लोग तो कविता के नाम पर केवल शब्दों से खेल रहे हैं और कुद नहीं कर रहे । न रस है न भाव । मेरा प्रणाम कहें आदरणीय को और मेरी कविता की ये पंक्तियां उनके चरणों में अर्पित करें <BR/>आदमी का नाम यहां सिर्फ एक प्यास है<BR/>हंस रहे हैं चेहरे और जिंदगी उदास है<BR/>आती है नज़र नहीं कोई खुशी दूर तक <BR/>और दर्द देखिये हमेशा आस पास हैपंकज सुबीरhttps://www.blogger.com/profile/16918539411396437961noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3319406515610187250.post-77605476793342285842007-10-26T00:02:00.000+05:302007-10-26T00:02:00.000+05:30वडील कवि श्री नरहरि जी,प्रणाम - कितनी सुँदर शारदीय...वडील कवि श्री नरहरि जी,<BR/>प्रणाम - कितनी सुँदर शारदीया चाँदनी सी ही मधुरम कविता है ये ...<BR/>पढ कर आह्लादित हूँ आपकी अन्य कविताएँ भी , आपके होनहार सुपुत्र भाई सँजय जी हमेँ पढवायेँगे इसी आशा सहित,<BR/>स - स्नेह,<BR/>-- लावण्यालावण्यम्` ~ अन्तर्मन्`https://www.blogger.com/profile/15843792169513153049noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3319406515610187250.post-52449494371579594512007-10-25T23:50:00.000+05:302007-10-25T23:50:00.000+05:30आपके पिता जी को प्रमाण ! बहुत सुन्दर कविता और वैसे...आपके पिता जी को प्रमाण ! बहुत सुन्दर कविता और वैसे भी प्रकृति में मानवीकरण हमारा दिल मोह लेता है.मीनाक्षीhttps://www.blogger.com/profile/06278779055250811255noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3319406515610187250.post-91274135840606323412007-10-25T22:45:00.000+05:302007-10-25T22:45:00.000+05:30पिता जी का लिखा यह गीत बहुत ही पसंद आया. आप मेरा न...पिता जी का लिखा यह गीत बहुत ही पसंद आया. आप मेरा नमन उन तक पहुँचायें. उनकी और भी रचनायें पढ़ने की उत्सुक्ता रहेगी. आप को आभार इस प्रस्तुति के लिये.Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3319406515610187250.post-88096247417168568492007-10-25T22:44:00.000+05:302007-10-25T22:44:00.000+05:30संजय भाई वास्तव में आज पूरा चाँद अपनी गर्म-जोशी से...संजय भाई वास्तव में आज पूरा चाँद अपनी गर्म-जोशी से निकल आया है...हमारे यहाँ राजस्थान में भी शरद पूर्णिमा के दिन खीर बना कर छत पर छिके में रख दी जाती है कि रात भर वह अमृत बन जायेगी कल खायेंगे...और वह सचमुच इतनी स्वादिष्ट लगती है कि जैसे अमृत ही हो( अमृत के समान) आपकी कविता और खीर दोनो ही स्वादिष्ट लगी...:)<BR/><BR/>सुनीता(शानू)सुनीता शानूhttps://www.blogger.com/profile/11804088581552763781noreply@blogger.com