tag:blogger.com,1999:blog-3319406515610187250.post8037772969240642885..comments2023-09-28T18:16:39.823+05:30Comments on जोग लिखी संजय पटेल की: ग्रामोफ़ोन रेकाँर्डस के नयानाभिराम आवरणsanjay patelhttp://www.blogger.com/profile/08020352083312851052noreply@blogger.comBlogger6125tag:blogger.com,1999:blog-3319406515610187250.post-8461254858421988322007-07-30T16:04:00.000+05:302007-07-30T16:04:00.000+05:30सचमुच आपने पुराने दिनो की याद दिला दी.:)सचमुच आपने पुराने दिनो की याद दिला दी.:)रवि रतलामीhttps://www.blogger.com/profile/07878583588296216848noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3319406515610187250.post-47710941526618878192007-07-30T12:37:00.000+05:302007-07-30T12:37:00.000+05:30वाह भाई साहब बडा़ ही नेक काम किया है आपने, कई लोगो...वाह भाई साहब बडा़ ही नेक काम किया है आपने, कई लोगों ने देखना तो दूर नाम भी नहीं सुना होगा कई कलाकारों का, इनके चित्र देखना एक मिठाई की तरह है जो मुँह में घुलती रहती है, काफ़ी समय तक, एक बात और चिठ्ठे पर लगाने के लिये "लोगो" का कोड क्या है ?Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/02326531486506632298noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3319406515610187250.post-33384923100304254312007-07-30T11:01:00.000+05:302007-07-30T11:01:00.000+05:30बैरागीजी,अजितभाई,युनूस भाई आप यक़ीन करें मेरी एड एज...बैरागीजी,अजितभाई,युनूस भाई आप यक़ीन करें मेरी एड एजेंसी के सभी कलाकार साथी इन रचनाओं को देख कर रोमांचित हो गए.अतीत कितना ख़ूशबूदार होता है ये आपके प्रतिसाद से महसूस हुआ. बचपन में गाँव जाता था तो मेरी दादी जिसे मै बाई कहता था पहुँचते ही माथे पर बोसा लेती थी.वो हाथ की पिसी तम्बाख़ू खाती थीं और उस वक्त उनके ओठों से वह तम्बाख़ू महकती थी.अब दादी नहीं; गाँव नहीं..लेकिन मेरे माथे पर उस तम्बाख़ू की महक बरक़रार है.वैसे इन रेकाँर्ड कवर से गुज़रा ज़माना ज़ाफ़रान की ख़ूशबी की तरह दिलोदिमाग़ में उतर आता है.sanjay patelhttps://www.blogger.com/profile/08020352083312851052noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3319406515610187250.post-14688474987651689462007-07-30T07:33:00.000+05:302007-07-30T07:33:00.000+05:30संजय भाई थोड़े दिन पहले इरफान ने भी कुछ आवरण प्रस्...संजय भाई थोड़े दिन पहले इरफान ने भी कुछ आवरण प्रस्तुत किये थे । सच बताऊं तो ये मेरे मन का काम है । विविध भारती में हम रिकॉर्डों के आवरण से बहुत प्रेम करते हैं । एक तो उन्हें फटने नहीं देते और अगर फट भी जाएं तो उनकी पूरी मरम्मत करते हैं । और उन्हें बाक़ायदा संभालते संजोते हैं । पहले तो कोई ठीक ठाक ज़रिया नहीं था पर आज कैमेरा मोबाईल बड़ी सुविधा देता है । पिछले दिनों अपनी पोस्ट पर छाया गांगुली की तस्वीर मैंने उनके ग़ज़लों के रिकॉर्ड से ही दी थी । मैं भी कुछ अनूठे रिकॉर्डों के आवरण जमा कर रहा हूं अपने मोबाईल पर । जल्दी ही प्रस्तुत करूंगा । सुमन चौरसिया के सहयोग से तो आप संगीत की क्रांति भी कर सकते हैं । अगली कड़ी का इंतज़ार रहेगा । वैसे पिछले सप्ताह मैं एच एम वी के स्थानीय ऑफिस गया था और शंकर जयकिशन के एक दुर्लभ रिकॉर्ड जैज़ स्टाईल का सी0डी0 रूपांतरण ले आया । विविध भारती के लिए भी हमने कुछ दुर्लभ सी डी खरीदीं । मुझे शंकर जयकिशन वाली इस सी डी से अपार प्रेम है । इसका आवरण भी कमाल का है । हालांकि सीडीज़ के कवर अकसर बेहूदे से होते हैं । पर कुछ में तो कलात्मकता भी होती है । हो सकता है कि हमसे बाद वाली पीढ़ी आगे चलकर सी डी के आवरण प्रस्तुत करे ।Yunus Khanhttps://www.blogger.com/profile/12193351231431541587noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3319406515610187250.post-26023565370108820242007-07-30T01:48:00.000+05:302007-07-30T01:48:00.000+05:30बहुत खूब संजय भाई। सचमूच अतीत के आंगन में पहुंचा द...बहुत खूब संजय भाई। सचमूच अतीत के आंगन में पहुंचा दिया आपने। अभी कुछ दिनों पहले ही मैं गौहरजान की एक सदी से भी पहले रिकार्ड हुई ग्रामोफोन ज़माने की बंदिश अपने बेटे(१३)को सुनवा रहा था, तब उसे यही सब जानकारियां दी थीं कि एलपी, इपी वगैरह होते थे। डिस्क को चढ़ाना और उस पर सुई टिकाना। फिर रिकार्ड का मन्द गति से घूमना बड़ा दिलचस्प था।अजित वडनेरकरhttps://www.blogger.com/profile/11364804684091635102noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3319406515610187250.post-1307902371367717962007-07-30T00:30:00.000+05:302007-07-30T00:30:00.000+05:30संजय भाई, आपने तो अतीत का समूचा काल खण्ड प्रस्तु...संजय भाई, आपने तो अतीत का समूचा काल खण्ड प्रस्तुत कर दिया । सीडी और डीवीडी के प्लास्टिकिया कवरों पर मुग्ध मेरे बच्चों के लिए आपकी यह प्रस्तुतति किसी अजूबे से कम नहीं है । मेरे तई यह सब, सूर्यभानु गुप्त के इस शेर की तरह रहा -<BR/><BR/>यादों की इक किताब में कुछ खत दबे मिले<BR/>सूखे हुए दरख्त का चेहरा हरा हुआविष्णु बैरागीhttps://www.blogger.com/profile/07004437238267266555noreply@blogger.com