Tuesday, April 17, 2007

मीडिया ट्रायल ....समय से पहले निर्णय

टीवी चैनल्स पर आप इन दिनों आप देख रहे हैं कि कुछ important issuses पर न्यायाधीश की भूमिका निभाई जा रही है...ऐसा समाज का एक वर्ग मानता है। अभी पिछले दिनों IBN 7 के आनंद पाण्डेय , आजतक की रितुल जोशी और ndtv के अभिसार के साथ एक लाइव टॉक शो एंकर करने का मौका मिला . इन्दौर शहर के मध्य में प्रेस क्लब द्वारा आयोजित यह टॉक शो बहुत जीवंत था। इसमें भाग लेने वाले लोगों मे आम आदमी था, प्रेस के लोग थे वकील थे और थे पत्रकारिता के बहुत से युवा विद्यार्थी ...सभी ने ये माना कि कभी कभी टीवी चैनेल्स अपनी trp के चक्कर में खुद अपनी ओर से कुछ मुद्दों दो थोपने की कोशिश करती है..जैसे कि अभिषेक और एश्वर्या की शादी ..क्यों electronic channels चाहती हैं कि हम ये देखें कि एश्वर्या और जया बच्चन बाज़ार में कौन सी साडी खरीद रहीं हैं ...प्रतिभागियों का ये भी मानना था चैनेल्स वही दिखा रहे हैं जो दर्शक चाह रहा है। युवा पत्रकारों का अभिमत था कि निश्चित रुप से अब ये ना मना जाये कि टीवी चैनेल्स सिर्फ किसी मिशन भाव या समाज सेवा के लिए परिदृश्य पर हैं। सबको अपने अस्तित्व की लडाई लड़ना है trp हर लम्हा एक शैतान की तरह आप के सर पर सवार है और telecasters / journalists की एक अहम जिम्मेदारी है कि वे दर्शक संख्या के लिए बाख़बर ही नहीं ..सचेत भी रहें.कई लोगों ने इस बात पर भी सहमति जताई कि टीवी चैनेल्स ने कई बार एक हमदर्द की भूमिका भी निभाई है...कई लोगों ने माना कि अपराध के उन्मूलन मे टीवी चैनेल्स का एक जागरूक रोल रहा है थाने में जाने से पहले पीड़ित चैनेल में जाकर अपना दर्द बताने के लिए ज़्यादा बेसब्र है.उसे उम्मीद रहती है कि उसे न्याय मिलेगा या न्याय मे तेज़ी आएगी .एक अन्य मंच से यह बात भी सुनाई दीं कि यदि आपातकाल के ज़माने में टीवी चैनेल्स होते तो शायद emergency लगती ही नहीं। इस शो को आयोजित कराने में इन्दौर प्रेस क्लब के जुझारू साथी श्री प्रवीण खारीवाल की सक्रिय भुमिका रही .सवाल वाकई ज्वलंत है और आप दोस्तों की राय की दरकार करता है.अपनी ओर से ये ज़रूर कहना चाहूँगा कि टीवी चैनल्स (खासकर न्यूज़ चैनेल्स ) आने के बाद आम आदमी कि हिम्मत बढ़ी है और उसे लगता है कि न्यायपालिका के अलावा एक और संगठन है जो उसके दर्द से सरोकार रखता है ; या उसकी परेशानी में पीछे खड़ा है या उसकी जिल्लत की घड़ी मे उसके साथ आवाज़ मिला रहा है.

Sunday, April 15, 2007

अल्लाह के बन्दे हैं कैलाश खेर


कैलाश खेर जैसे कलाकार को सुनाना एक अनुभव गुजरना है . सोचकर हैरत होती है कि तथाकथित celebrity culture में ये बन्दा इतना simple and modest कैसे रह सकता है.आवाज़ में बला का सा तूफ़ान और संगीत की लाजवाब पकड़ इस artist को भीड़ से अलग बनाती है.कैलाश खेर जिनका अल्बम कैलासा इनदिनों चर्चा में है ;यूँ ही कामयाबी नही हासिल कर ली है.उत्तरप्रदेश के मेरठ में जन्मे कैलाश ने छोटी सी ज़िंदगी में बहुत संघर्ष किया है.दिल्ली में रहकर कैलाश ने पं मधुप मुदगल जैसे गुणी कलाकार से तालीम हासिल की । वैसे कैलाश को सुनाने की बाद लगता नहीं कि उन्हें किसी तालीम की ज़रूरत पड़ी होगी। वे तो मास्टर मदन, कुमार गन्धर्व या लता मंगेशकर की तरह ऊपरवाले द्वारा बना कर भेजे गये हैं। advertising jingles गाकर मुम्बई में अपने career का आगाज़ करने वाले कैलाश का संगीत और स्वर आज फ़िज़ाओं में महक रह है तो इसके पीछे उनकी ईश्वर के प्रति अगाध आस्था और स्वभाव की विनम्रता है। फिल्म मंगल पांडे और सलाम इश्क मे गाये गीतों से मिली शोहरत के अलावा कैलाश खेर के प्रायवेट एलबम उन्हें खासी लोकप्रियता दीं है। अल्ला के बन्दे जैसे गीत के बाद कैलाश खेर संगीतप्रेमियों का दुलारा कलाकार बन गया है.सफलता के बावजूद कैलाश खेर अतीत भूले नहीं हैं और स्वीकार करते हैं कि श्रोताओं से मिला प्यार ही उनकी आवाज़ से झरता है.

गुम होते जा रही रिश्तों की खुशबू


गुम होती जा रही ब्याह शादियों की आत्मीय महक
शादी ब्याह का सीजन बहार पर है...क्या रौनक है भाई.डेकोरेशन देखिए,फैशन देखिए,लटके- झटके दिखिये,वैभव और दिखावे की धूम है इन दिनों .सारा काम टर्न की बेसिस वाला हो गया है आजकल .फ़ोन घुमाईये सारा इंतजाम हो जाएगा.आप तो बस चैक बुक साथ रखिये अपने पास.जज्बा होना चाहिए खर्च करने का.बस दूल्हा - दुल्हन ही बाज़ार मे नहीं मिल पा रहे हैं....बाकी तो सब तैयार है हुज़ूर। बोलो जी तुम क्या क्या खरीदोगे ?गुम है तो बस भावनाएं ..आत्मीयता ...सब कुछ रस्मी हो चला है...और तो और...घर में गाये -बजाने वाले गीते भी अब इवेंट मैनेजर को सौंपे जा रहे हैं.बड़ी धूम मची है संगीत आयोजनों की...नाचे जा रहे हैं क़मर हिला हिला के...एक उन्माद है ...होड़ है ...हमारा जलसा सबसे महंगा...सबसे चमकीला ...सबसे चर्चित और सबसे ज़्यादा रौनक वाला हो...पर भाई एक बात पूछना चाहता हूँ आपसे ये सारा दिखावा कर के आप अपने से छोटी हैसियत वालों को क्या संदेश दे रहें हैं .सचाई ये है कि competition के इस दौर में हम बताना चाहते हैं कि हम दूसरों से कितने आगे हैं.दिल कि रिश्तों से हमे क्या लेना-देना .हमारी झांकी हो जाये बस ...जो नहीं कर पाते वो जलते हैं ...आप सहमत होंगे कि इन महंगी रस्मों में से वो खुशबू गुम है जिनसे झलकता तो असीम स्नेह ..प्यार और ख़ुलूस .हम क्या थे ...क्या हो गए ...क्या होंगे....हां याद आई एक बात...पिछले दिनों एक मराठी लेख मे पढा कि इन्सान कि फितरत क्यों बदलती जा रही है....लिखनेवाले बड़ी पते की बात कही....हम भोजन करने का अच्छा काम घर में करते थे...अब इस काम के लिए होटल जाने लगे ....शौच जैसा कार्य बाहर करते थे .....वो अब सिरहाने लगे attached bathroom में करने लगे......ज़माना आगे जाए किसे बुरा लगता है ...सोच को आगे ले जाने मे कोइ हर्ज़ नहीं लेकिन परम्पराओं से मिली अच्छाईयों को भी मत बिसराइये.नये से नया लीजिये ...पुराने को खारिज मत कीजिये.अच्छे बने रहने में अच्छाई है जैसे दूध में मलाई है.जय हो.

ab kahoge the ....ek thaa paanee.

पानी के लिए अभी से चेतना होगा।
अभी तो मौसम ने अपने तेवर दिखाना शुरू ही किया है..पानी की किल्लत बहुत जल्द नज़र आने वाली है.दरअसल होता ये है कि जब पानी समुचित होता है तब तो ख़ूब पानी बहाते हैं ...तब भूल जाते हैं कि आने वाले दिनों मे स्थितिया बहुत विकट होने वाले हैं ....जब मानसून आता है तब तो बहुत खुश होते हैं हम......ढोले जाओ ढोले जाओ......तब पानी बहुत मामूली चीज़ होती है हमारे लिए। कार धोते वक़्त याद नहीं कि पानी कि किल्लत पडने वाली है......बगीचे में बेतहाशा पाने डालते वक़्त भूल जाते हैं कि आने वाले दिनों में पानी की ये बर्बादी मुश्किलें पैदा कराने वालीं हैं....बेखबर से हम पाने को व्यर्थ किये जाते हैं ......और जब गर्मियां आतीं हैं तब हमारे पास निराशा कि अलावा और कुछ नहीं होता.......लोग कह रहे हैं...आने वाला विश्व युद्ध पानी के लिए लड़ा जाएगा ...शायद ठीक ही कहते हैं........जैसे हम अपने पैसे,परिधान,व्यक्तित्व और सम्पत्ति के लिए चिंतित रहते हैं ....पानी के लिए भी वैसा ही सोच बनाने कि ज़रूरत है....खास कर नई पीढी में तो पानी की बचत की बात को एक संस्कार के रुप में स्थापित करने की शुरूआत करनी पडेगी.....बाद में तो हम यही कहते रह जाएंगे .........................एक था राजा ...एक थी रानी.....एक दिन कहना एक था पानी .

Saturday, April 7, 2007

पं ह्रदयनाथ मंगेशकर को लता अलंकरण-२००६

इन्दौर में जन्मी महान गायिका लता मंगेशकर के नाम से मध्य प्रदेश की सरकार ने सुगम संगीत विधा में काम करने वाले गायकों और संगीतकारों के लिये लता मंगेशकर अलंकरण स्थापित किय था सन १९८४ में. २००६ का सम्मान पं.ह्र्दयनाथ मंगेशकर को दिया गया है.पं मंगेशकर लताजी के छोटे भाई और जानेमाने संगीतकार हैं.फ़िल्म लेकिन में उनका संगीतबद्द किया हुआ गीत ...यारा सिली सिली तो आपने सुना ही होगा...फ़िल्म धनवान में भी पं.मंगेशकर का एक गीत बहुत लोकप्रिय हुआ था....ये आंखें देखकर हम सारी दुनिया भूल जाते हैं. संगीतरसिकों के लिय ह्र्दयनाथजी का सबसे बडा कारनामा है..लताजी कि आवाज़ में कम्पोज़ किये गये दो बेशकीमती एलबम...गालिब और मीरा(चाला वाही देस )
ये एलबम तब आए थे जब प्रायवेट एलबम्स के लिय कोई बडा बाज़ार नहीं था.पं.ह्र्दयनाथ जी ने मराठी संगीत की दुनिया में भी अप्रतिम काम किया है...मी डोलकर डोलकर..डोलकर दरिया चा राजा.
उनकी हस्ताक्षर रचना है. अपनी महान बहन लता के नाम से स्थापित सम्मान सिर्फ़ पं.मंगेशकर का नहीं पूरे परिवार का सम्मान है जिसमें ह्रदयनाथजी कि पिता पं दीनानाथ जी,लताजी,आशाजी,उषाजी और मीनाजी शामिल हैं. सनद रहे पं.ह्रदयनात मंगेशकर स्वयं एक बेहतरीन गायक हैं और इंदौर घराने के मशहूर उस्ताद अमीर खां साहब के शागिर्द है.