
कई मित्रों से जब शास्त्रीय संगीत सुनने का इसरार करता हूँ तो वे पूछते हैं ऐसा क्या सुनें जिससे क्लासिकल म्युज़िक के प्रति रूझान बढ़े ? एक सूची थमाता हूँ अक्सर जिसमें ये बंदिश ज़रूर होती जिसे आज पोस्ट कर रहा हूँ.आपको सुनाने का मक़सद तो है ही साथ ही लगातार बरस रहा मेह भी कुछ सुनने को विवश कर रहा है. सो सुनते सुनते ही आपको सुनाने का मन बना है.पं.भीमसेन जोशी का गाया राग मिया मल्हार उनकी हस्ताक्षर रचनाओं में से एक है.ये बहुत पुरानी रेकॉर्डिंग है जिसमें पंडितजी का दिव्य स्वर दमक रहा है.
जो शास्त्रीय संगीत कम सुनते हैं उन्हें बता दूँ कि जहाँ से एक दम ये बंदिश (बंदिश यानी कविता) शुरू हो रही है वह है एक संक्षिप्त सा आलाप.यानी गायक एक डिज़ाइन तैयार कर रहा है कि वह अपने गायन को कहाँ कहाँ ले जाएगा.एक तरह का प्लानिंग कह लीजिये इसे. फ़िर जहाँ तबला शुरू हो गया है वह विलम्बित है यानी धीमी गति है और पंडितजी इस विलम्बित के ज़रिये आपको बता रहे हैं कि किराना घराना गायन में मिया मल्हार को बरतते हैं.हर राग में कुछ स्वर ज़रूरी होते हैं और कुछ वर्जित . इसी से रागों में भिन्नता बनी रहती है. जब विलम्बित से राग का पूरा स्वरूप तय हो जाता है तब पंडितजी द्रुत गाएंगे.तबले की लयकारी तेज़ होगी और बंदिश भी बदलेगी.अमूमन विलम्बित और द्रुत बंदिशें अलग अलग रचना होतीं हैं यानी उनके बोल अलग होते हैं.ताल भी बदल जाती है. विलम्बित एक ताल में गाया जा रहा हो तो द्रुत तीन ताल में .
भीमसेनजी की गायकी में सरगम और तान का जलवा विलक्षण होता है. किराना घराने में बंदिश के शब्द कई बार साफ़ नहीं मिलते. शास्त्रीय संगीत सुनते वक़्त इसकी ज़्यादा चिंता न पालें.बस स्वर पर अपना ध्यान बनाए रखें.सुनें गायक किस तरह से एक ही बात को अलग अलग स्वरमाला में कैसे पिरोता जा रहा है. ध्यान रहे यह सब कॉपी-बुक स्टाइल में नहीं हो सकता. यानी शास्त्र तो अनुशासन में होता है , मशीनी भी कह लीजिये लेकिन रियाज़(जो शास्त्रीय संगीत का अभिन्न अंग है) सध जाने के बाद गायक ख़ुद अपनी कल्पनाशीलता का इस्तेमाल करत हुए अपना गान-वैभव सिरजता है.पंडितजी की गायकी का एक ऐसा शिखर हैं जहाँ वे किसी भी तरह के मैकेनिज़्म को भी धता बता देते हैं.उन्हें सुन कर (यहाँ द्रुत बंदिश में भी सुनियेगा और महसूस कीजियेगा)एक रूहानी भाव मन में उपजता है जिससे आप आनंद के लोक में चले जाते है. मियाँ मल्हार प्रकृति-प्रधान राग है लेकिन इसे किसी भी मौसम में सुना जा सकता है. और हाँ जब पं.भीमसेन जोशी मिया मल्हार गा रहे हों तो तपते वैशाख में भी बारिश का समाँ बन जाता है.
मैं संगीत का कोई बड़ा जानकार नहीं हूँ लेकिन सुन सुन कर ही शास्त्रीय संगीत का मोह मन में उपजा है. निश्चित ही इस शास्त्रीय संगीत धीरज मांगता है लेकिन एक बार आप इस ओर आ जाएँ तो आपको दीगर संगीत भी और अधिक सुरीला जान पड़ेगा. इस बंदिश को सुन लेने के बाद आप फ़िल्म चश्मेबद्दूर का गीत कहाँ से आए बदरा (संगीत:राजकमल/गायक:येशुदास+हेमंती शुक्ला/शब्द:स्व.इंदु जैन)सुनिये और महसूस कीजिये आपको वह गीत भी कितना सुहावन लगता है.यह भी साबित करता है कि लगभग सभी संगीत रचनाओं का आधार शास्त्रीय संगीत ही है.बल्कि फ़िल्म संगीत रचने वाले समय की मर्यादा में कितनी ख़ुबसूरत बात कह जाते हैं.
उम्मीद है पं.भीमसेन जोशी की यह रचना आपको निश्चित ही आनंद देगी.
मल्हार अंग का एक और राग पिछले दिनों कबाड़खाना पर भी सुना गया है.