Thursday, September 27, 2007

दुनिया की सबसे सुरीली आवाज़ को समर्पित अदभुत कविता

भारत रत्न लता मंगेशकर दुनिया की सबसे सुरीली आवाज़ हैं. कुदरत ने उन्हे जिस तरह का हुनर अता किया है ; सोचकर , सुनकर और देखकर हैरत होती है. बिला शक उन्होने इस हुनर को अपनी कारीगरी से निखारा और सँवारा भी है.28 सितम्बर को उनका जन्म दिन है और हर साल उनके सम्मान में काफ़ी कुछ बोला और लिखा जाता है. मैं आज ब्लॉगर बिरादरी की ओर से लताजी के सम्मान में एक अदभुत कविता सहेज लाया हूँ. इसे लिखा है देश की सुविख्यात और वरिष्ठ कवयित्री श्रीमती माया गोविंद ने. मायाजी के क़लम का जादू भी देखिये किस ख़ूबसूरती से उन्होने इस कविता में शब्दों के रूपक गढ़े हैं.कविता का हर बंद संगीतमय शब्दों से थिरकता सुरभित होता सुनाई दे रहा हो जैसे.
आइये लताजी के चिरायु होने की कामना के साथ इस सर्वकालिक महान गुलूकारा को ये शब्द - गुलदस्ता भेंट करें


तुम स्वर हो, तुम स्वर का स्वर हो
सरल - सहज हो पर दुश्कर हो
हो प्रात: की सरस भैरवी
तुम बिहाग का निर्झर हो


चरण तुम्हारे मंद्र सप्तकी
मध्य सप्तकी
उर तेरा
मस्तक तार - स्वरों में झंकृत
गौरवांन्वित देश मेरा

तुमसे जीवन , जीवन पाये
तुम्ही सत्य-शिव-सुंदर हो


मेघ-मल्हार केश में बाँधे
भृकुटी ज्यों केदार सारंग
नयन फ़ागुनी काफ़ी डोले
अधर बसंत-बहार सुसंग

कंठ शारदा की वीणा सा
सप्त स्वरों का सागर हो

सोलह कला पूर्ण गांधर्वी
लगती हो त्रिताल जेसी
दोनों कर जैसे दो ताली
सम
जैसा है भाल साखी

माथे की बिंदिया ख़ाली सी
दुत लय हो गति मंथर हो


राग मित्र रागिनियाँ सखियाँ
ध्रुपद धमार तेरे संबंधी
ख़्याल तराने तेरे सहोदर
तान तेरी बहनें बहुरंगी

भजन पिता जननी गीतांजली
बस स्वर ही तेरा वर हो

ये संसार वृक्ष श्रुतियों का
तुम सरगम की लता सरीखी
कोमल शुध्द तीव्र पुष्पों सी
छंद डोर में स्वर माला सी

तेरे गान वंदना जैसे
ईश्वर में ज्यों ईश्वर हो

इस कविता पर अपनी प्रशंसाएँ ज़रूर भेजियेगा. मायाजी आजकल अस्वस्थ रहतीं सो आपकी प्रतिक्रियाएँ उन्हें बहुत आनंदित करेंगी. आपकी टिप्पणियाँ हिन्दी मंच की इस गरिमामयी काव्य हस्ताक्षर तक ज़रूर पहुँचाउंगा.आपका प्रतिसाद हमारी लता दीदी (इन्दौर उनकी जन्म-स्थली है सो उन्हें दीदी कहने का हक़ तो बनता ही है हमारा) के लिये दीर्घायु होने का भाव तो बनेगा ही. क्या ये हमारा भी सौभाग्य नहीं कि हम उस कालखंड में जी रहे हैं जिसमे स्वर-कोकिला लता मंगेशकर ने जन्म लिया है.

शब्दों के विलक्षण जादूगर और ख़ाकसार के उस्ताद श्री अजातशत्रुजी के वक्तव्य से इस प्रविष्टि को विराम देते हूँ...इसे पढ़े...गुने...और कल दिन भर प्रकृति के सबसे पवित्र स्वर को कानों के आसपास ही रखें और देखें दिन कितना सुखमय गुज़रता है.....

ओ लता के गवाहों ! गंगा के नीर सा निर्मल स्वर , मोगरे के फ़ूलों सी ताज़गी आने वाली सदियों को भला कहाँ नसीब होगी.ध्यान रखना क़ुदरत ने लता की टेर फ़िल्मों के लिये,निर्माता के नोटों के लिये,पात्र या सिचुएशन के लिये नहीं....ज़माने को राहत बख्शने के लिये बनाई है.जब तक टिमटिमाते तारों की रात होगी,झील की हवाओं में उदास गुमसुमी रहेगी,बादलों के पीछे चाँद धुंधलाता रहेगा,चिर-किशोरी लता की निष्पाप आवाज़ हम पर सुखभरी बदली बरसाती रहेगी.आमीन.



Wednesday, September 26, 2007

फ़ब्तियाँ कसने वाले भूल जाते हैं कि जीत दिलाने वाला एक मुसलमान भी है

ट्वेंटी 20 वर्ल्ड कप की जीत ने पूरे देश को उस रात उन्माद में भर दिया था. जश्न मने,पटाख़े फ़ूटे,नारे लगे...अच्छा लगा. लेकिन मेरे शहर में कुछ अति-उत्साही भी थे.मुसलमान बस्तियों के पास से गुज़रे और फ़ब्तियाँ कसने लगे. मानो जताना चाहते हों कि देखो आज मुसलमान हार गए. अरे भाई पाकिस्तान हार गया तो ऐसा कैसे समझ लें कि वही एक राष्ट्र है जो मुसलमानों की नुमाइंदगी करता है. बस मकसद इतना भर था कि ज़हर फ़ैले.हम भूल जाते हैं कि ऐसा कर के हम पूरी दुनिया को कौन सा अच्छा संदेश दे रहे हैं. फ़ब्तियों पर बात रूक जाती तो ठीक था. पत्थरबाज़ी पर बात आ गई...इधर से भी ...उधर से भी. ऐसा थोड़े ही है कि भारत जीत गया तो हिन्दू जीत गए. ये तय करने का हक़ हमें कौन सा संविधान देता है.



वक़्त रहते हमें इन छोटी मानसिकताओं से उबरना पड़ेगा. उस्ताद बिसमिल्लाह ख़ान साहब मुसलमान बाद में थे..सबसे पहले इस देश और उसकी तहज़ीब के नुमाइंदे थे. पं.रविशंकर हिन्दू बाद में हैं सबसे पहले भारत के सर्वकालिक महान सितारवादक हैं . जिस हिन्दू लता मंगेशकर को हम जानते हैं उन्होने नौशाद , गु़लाम मोहम्म्द, सज्जाद हुसैन,ख़ैयाम के संगीतबध्द और शकील बदायूँनी,मजरूह सुल्तानपुरी,राजा मेहंदी अली ख़ाँ,साहिर लुधियानपुरी,हसरत जयपुरी जैसे मुसलमान गीतकारों के साथ गाये है. मन रे तू काहे न धीर धरे,वृंदावन का कृष्ण कन्हैया सबकी आँखों का तारा,मन तरपत हरि दरशन को आज,बड़ी देर भई , कब लोगे ख़बर मोरे राम जैसे भक्ति पद मुसलमान मोहम्मद रफ़ी से बेहतर कौन हिन्दू गा सकता था. उस्ताद विलायत ख़ाँ के साथ पं.किशन महाराज तबला संगति देते है और पं हरिप्रसाद चौरसिया के साथ उस्ताद ज़ाकिर हुसैन जैसा महान तबलानवाज़ छा जाता है. कैसी अदभुत गंगा जमनी तहज़ीब है हमारी जो सारी मान्यताओं को आत्मसात करती है.



ये सारे उदाहरण साबित करते हैं कि हमारी धर्म-निरपेक्ष छवि ही भारत की पहचान है. दुनिया अचरज करती है कि कैसे जुदा जुदा धर्म ओ मज़हब यहाँ साथ साथ रह लेते हैं. कैसे इस देश मीरा,गोरख,ग़ालिब,मीर,नज़ीर अकबराबादी,तुलसीदास,कबीर का निबाह एक साथ हो जाता है.



मैं यह नहीं कहता कि फ़िज़ाँ बिगाड़ने वाले एक ही तरफ़ हैं.दोनो मुहानो पर मौक़े को भुनाने वाले लोग हैं लेकिन एक नये सोच के साथ सभी को आगे आना होगा. दुनिया करवट ले रही है जनाब..बड़ी उम्मीद से भारत की ओर पूरा विश्व देख रहा है. साठ साल पहले बँटे थे....फ़िर भी जैसे तैसे चल गये....अब बँटे तो कहीं के नहीं रहेंगे.



ट्वेंटी 20 विश्व कप में जीत दिलाने वाले सिर्फ़ महेंद्रसिंह धोनी या युवराज अकेले नहीं ...मत भूलिये फ़ायनल में आपको महत्वपूर्ण विकेट दिलाने वाला खिलाड़ी इरफ़ान पठान है जो एक सच्चा मुसलमान है जो सामने वाली टीम को सिर्फ़ और सिर्फ़ अपना प्रतिद्वंदी मान कर अपना 100% प्रदर्शन दे रहा है और तीन महत्वपूर्ण विकेट्स लेकर मैन आँफ़ द मैच बन रहा है.थूँक डालनी चाहिये हमें ये नफ़रत.होना तो ये चाहिए कि हम हिन्दू भाई मुसलमान बस्तियों में जाकर इरफ़ान पठान ज़िन्दाबाद ! के नारे बुलंद करें और साबित करें कि हम कितने सह्र्दय हैं...ज़ोर ज़ोर से चिल्लाएँ धोनी तुम्हारा है...इरफ़ान हमारा है ये सब हैं भारत माता के लाल....इन्होने मान बढ़ाया है पूरी खिलाड़ी बिरादरी का. अब भी समय है हम चेतें....ऐसे मंज़र बनने लगे तो फ़िरक़ापरस्ती के लिये कोई जगह नहीं रह जाएगी दोस्तो.खेल,संगीत,कविता और साहित्य इस महान देश को जोड़ कर ही दम लें तो ठीक है वरना इसकी विरासत अपने पर आँसू बहाती नज़र आएगी.

Monday, September 24, 2007

इसलिये हारा पाकिस्तान

-शाहिद अफ़रीदी की लापरवाह बल्लेबाज़ी.

-युनिस ख़ान द्वारा मिसटाइम किया गया शॉट जिस पर वे कैच आउट हुए

-रॉबिन उथप्पा द्वारा इमरान नज़ीर को शानदार डायरेक्ट थ्रो द्वारा आउट किया जाना

-इमरान पठान का बहुत सधा हुआ बॉलिंग स्पैल.

-आख़िरी ओवर हरभजन सिंह के स्थान पर जोगिंदर शर्मा द्वार फ़ैंका जाना

-मिसबाह द्वारा बेहद लापरवाही से खेला गया शॉट जिस पर वे श्रीसंथ द्वारा कैच किये गए.

-और सबसे महत्वपूर्ण बात.....

एक ठंडे दिमाग़ के कप्तान के रूप में महेन्द्रसिंह धोनी द्वारा अपने पत्ते न खोलना,अपने गेंदबाज़ों को सही समय पर काम पर लगाना और अपनी देहभाषा से विरोधी टीम को ये ज़ाहिर न होने देना कि हम किसी तरह के तनाव में हैं. भारत को एक लम्बे समय के बाद विचारवान कप्तान मिला है.अच्छी बात ये है कि धोनी की टीम के ज़्यादातर खिलाड़ी भारत के छोटे शहरों से आए हैं और मध्यमवर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं.

आइये तहेदिल से देश की इस शूरवीर टीम का भाव-अभिषेक करे....

भारत जीत जाएगा....यदि ?

- भारत के खिलाड़ी क्षेत्ररक्षण में जान लगा दें

- वाइड बॉल्स पर नियंत्रण रखा जाए.

- कप्तान गेंदबाज़ों का चतुराई से इस्तेमाल करे.

- भारत के कम से कम तीन बल्लेबाज़ टिक कर खेलें

- पाकिस्तान के दो बल्लेबाज़ों मिसबाह और युनिस खा़न पर चैक रखा जाए.

- यदि भारत पहले बैटिंग करे तो रन औसत सात से दस प्रति ओवर रखे.

-यदि अतिरिक्त गेंदबाज़ के रूप में युवराजसिंह का इस्तेमाल किया जाए तो बहुत अच्छा.

- प्रत्येक ओवर के बाद कप्तान धोनी अपने गेंदबाज़ों से बात करें

- और आख़िर में सबसे महत्वपूर्ण बात.....
सारे खिलाड़ी अपना सहज खेल खेलें,विरोधी टीम की ताक़त और कमज़ोरी पर नज़दीकी निगाह रखे
और अपने ऊपर फ़ानयल मैच जैसा कोई अतिरिक्त तनाव न ओढ़े.

जीतेगा वही जो आज अच्छा खेलेगा.भाग्य उसी का साथ देता है जो अदम्स साहस का परिचय देते हैं

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Sunday, September 23, 2007

बेटियों के लिये मुनव्वर राना के अ श आ र

जाने माने शायर जनाब मुनव्वर राना ने रिश्तों को लेकर हमेशा अतभुत काव्य रचा है. उनकी ग़ज़लों में रिश्तों की महक का रंग कुछ ख़ास ही रहा है. डॉटर्स डे पर मुलाहिज़ा फ़रमाइये मुनव्वर भाई के चंद अशआर:

घरों में यूँ सयानी लड़कियाँ बेचैन रहती है
कि जैसे साहिलों पर कश्तियाँ बेचैन रहती हैं

ये चिड़िया भी मेरी बेटी से कितनी मिलती जुलती है
कहीं भी शाख़े-गुल देखे तो झूला डाल देती है

रो रहे थे सब तो मै भी फ़ूटकर रोने लगा
वरना मुझको बेटियों की रूख़सती अच्छी लगी

बड़ी होने लगी हैं मूरतें आँगन में मिट्टी की
बहुत से काम बाक़ी हैं सम्हाला ले लिया जाए

तो फ़िर जाकर कहीं माँ-बाप को कुछ चैन पड़ता है
कि जब ससुराल से घर आ के बेटी मुस्कुराती है

ऐसा लगता है कि जैसे ख़त्म मेला हो गया
उड़ गईं आँगन की चिड़िया घर अकेला हो गया.

बेटी दुनिया का सबसे पाक़ रिश्ता है. आज जब ज़माने की तस्वीर बदल रही है बेटियों ने भी अपने वजूद और हुनर की साख मनवा ली है. सानिया मिर्ज़ा,कल्पना चावला, सुनीता विलियम्स,बेछेंद्री पाल,किरन बेदी,पी.टी.उषा,अंजू बॉबी जॉर्ज , आदि कई नाम ऐसे हैं जिन्होने बदलती दुनिया में लड़की की पहचान को नई इज़्ज़्त बख्शी है.आइये हमारे आपके आँगन की तमाम बेटियों की ख़ुशहाली की दुआ करें क्योंकि स्वामी विवेकानंद ने कहा थी कि बेटा सिर्फ़ एक कुल को तारता है बेटी जहाँ जन्म लेती है वहाँ भी सबसे ज़्यादा समर्पित रहती है और जहाँ उसका घर बसाया जाता है वहाँ जाकर भी अपनी रचनात्मक भूमिका निभाती है.दुनिया भर की बेटियों को सलाम !

ओस की बूँद होती है बेटियाँ
स्पर्श खुरदुरा हो तो रोती है बेटियाँ
रोशन करेगा बेटा तो बस एक ही कुल को
दो दो कुलों की लाज होती हैं बेटियाँ
कोई नहीं एक दूसरे से कम
हीरा अगर है बेटा
सच्चा मोती है बेटियाँ

विधि का विधान है यही
दुनिया की रस्म है
मुठ्ठी भर नीर सी होती है बेटियाँ

Thursday, September 20, 2007

एक क्षमा पर्व हमें भी मनाना चाहिये !

भगवान महावीर के अनुयाइयों द्वारा वर्ष में एक बार पर्युषण पर्व के रूप में एक अदभुत पर्व मनाया जाता है. मैं जैन नहीं लेकिन कई जैन परिवारों से मित्रता है. उनके कार्ड,एस.एम.एस.और फ़ोन आते हैं और हाँ अब ई-मेल भी आने लगे हैं जिसमें क्षमा की भावुक अभिव्यक्ति होती है. मुझे यह पर्व विशेष रूप से इसलिये अच्छा लगता है कि जाने-अनजाने हुए तमस,तनाव,क्रोध और त्रुटी के लिये एक मौका मिल जाता है हम अपने मित्रों और परिजनों से अपने द्वारा हुई त्रुटियों के लिये माफ़ी मांग लें. इस बार भी कई संदेश मिले जिनमें क्षमा का भाव व्यक्त था.

मुझे लगता है ब्लागर बिरादरी में भी इस तरह का क्षमा पर्व मनाना चाहिए . साल भर में एक बार मनाए जाने इस पर्व में दिल की सफ़ाई भी हो जाएगी और मन भी हल्का हो जाएगा.जो यह मानता है कि उससे कोई ग़लती हो ही नहीं सकती उसके लिये तो मेरे सुझाव फ़िजूल ही हैं लेकिन जो विनयशील हैं और संजीदगी से अपनी ग़लतियों का अहसास करते हैं उनका ध्यान नीचे लिखी बातों की ओर ले जाना चाहूंगा. निम्नांकित बातो के लिये हम ब्लाग बिरादरी से क्षमा मांग सकते हैं....

-किसी का ब्लाग पढ़ा ...अच्छा भी लगा लेकिन मैने ऐसा क्यों नहीं लिखा ऐसा ईर्ष्या भाव मन में आए तो क्षमा मांगना चाहिये.

- किसी को बताए बिना किसी की सामग्री का उपयोग किया ..ऐसा करने के लिये क्षमा मांगना चाहिये.

- किसी ने आपके लिखे की प्रशंसा की लेकिन आपने ई-मेल के ज़रिये या अपने ब्लाग पर टिप्प्णीकारों के प्रति साधुवाद नहीं प्रकट किया ...इस बात के लिये क्षमा प्रार्थना करना चाहिये.

- किसी के लिखे पर अर्नगल टिप्पणी की और उससे किसी का दिल दुखा और यदि हमें इस बात का भान बाद में भी आया है तो हमें उसके लिये विनम्रतापूर्वक मुआफ़ी मांग लेनी चाहिये.

हो सकता है मेरा सुझाव भावुकता भरा हो लेकिन ब्लागर बिरादरी में मेरे संपर्क में आए ऐसे कई संजीदा मित्र हैं जो मेरी इस बात को तवज्जो देंगे. इस काम के लिये किसी मुहूर्त , पंचांग और चोघडिये की ज़रूरत नहीं . मै स्वयं जाने अगजाने में हुई त्रुटी के लिये मेरी इस पोस्ट से आप सभी से करबध्द क्षमा याचना करता हूँ...हाल फ़िलहाल ऐसी कोई त्रुटी ध्यान तो नहीं आ रही लेकिन अवचेतन मन भी तो कई तरह की चोरी और अपराध करता है.अंग्रेज़ी में कहा भी तो है...चैरिटी बिगिन्स एट होम !.


(ब्लाग शब्द लिखते समय ब्ला के उपर चंद्र लगना चाहिये लेकिन ये कैसे होता है मुझे मालूम नहीं
विग्यापन में ग्य भी लिखना नहीं आता ...इसलिये कई बार इश्तिहार या एडवरटाइज़मेंट लिखता हूँ..ऐसा न कर पाने के लिये भी क्षमा करें..और हाँ कोई ब्लागर मित्र ऐसा कर पाना बता सकें तो बड़ी मेहरबानी...कृपया sanjaypatel1961@gmail.com पर एक ई-मेल भेजने की कृपा करें.

Tuesday, September 18, 2007

लिखने वाले का ख़ामोश रहना भी है ज़रूरी !

ब्लॉगर का ख़ामोश रहना है ज़रूरी
जितना बोलना,लिखना और गुनना
ब्लॉगर को चाहिये की वह अंतराल का मान करे

वाचालता को विराम दे

चुप रहे कुछ निहारे अपने आसपास को
ब्लॉगर का दत्तचित्त होना है लाज़मी

वाजिब बात है ये कि जब लिख चुके बहुत
तो चलो कुछ सुस्ता लो

सफे पर उभरे हाशिये की भी अहमियत है
चुप रहना सुस्त रहना नहीं है

चुप्पी में चैतन्य रहो
अपने आप से बतियाओ

नज़र रखो उस पर जो लिखा जा रहा है
सराहने का जज़्बा जगाओ
पढ़ो उसे जो तुमने लिखा
दमकता दिखाई दे अपना लिखा
तो सोचो और कैसे दमकें तुम्हारे शब्द

पढ़ो उसे जो तुमने लिखा
दिखना चाहिये वह नये पत्तों सा दमकता
कुछ सुनहरी दिखें तुम्हारे शब्द
तो अपने में ढूँढो कुछ और कमियाँ

कमज़ोर नज़र आए अपने हरूफ़
सोचो मन में क्या ऐसा था जो जो गुना नहीं
आत्मा ने क्या कहा जो ठीक से सुना नहीं
विचारो कि कहाँ हुई चूक,कहाँ कुछ गए भूल
क्या अपने लिखे शब्दों से ठीक से नहीं मिले थे तुम

ब्लॉगर बनना आसान नहीं
लिखे का सच होना है ज़रूरी
वरना कोशिश है अधूरी

कविता नहीं है ये ; है अपने मन से हुई बात
बहुत दिनों बाद अपने से मुलाक़ात