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Friday, March 5, 2010

मुझे कौन चाहता है ?

मेरे बच्चे और पत्नी
जिनके लिए मैं हमेशा एक बेयरर चैक हूँ
ख़ुशियों का, उल्लास का या अपनेपन का.


कुछ परिजन ?
जो चाहते हैं कि मैं उनसे हमेशा सहमत हो जाऊँ
वे कुछ भी कहें; मैं उनकी हाँ में हाँ मिलाऊँ

कुछ मित्र
जो मुझे ज्ञानमार्गी,ज़िद्दी,अपनी बात पर
अड़ा रहने वाला शख़्स मानते हैं..सामने तारीफ़ करते हैं;
पीछे एक दूसरे से खुसफ़ुसाहट करते हैं;
ये बड़ा सनकी सोल्जर है …!

कुछ कलाकार
जो फ़ुसफ़ुसाते हैं कि ये माइक
पर आया तो इवेंट खा जाता है और पूरा माइलेज लूट लेता है
सामने मिलूँ तो कहते हैं वाह क्या आवाज़ दी है भगवान ने आपको
और क्या कमाल का अंदाज़ है आपका,क्या स्वर और शब्द फ़ूटते हैं मुख से !

मेरे ग्राहक
जो काम निकले तो गुण-ग्राहक हो जाते हैं मेरे
और जब उनकी शर्तों पर न बिकूँ तो बिना मुझे बताए
किसी और को दे देते हैं सारा काम

कुछ पाठक
जो पढ़ते ही कहते हैं …लिखता तो
ठीक है लेकिन बहुत ठसके से लिखता है,
कहाँ से लाता है ज़ुबान की ऐसी रवानी
सामने मिल जाए वही पाठक तो कहेगा
आह ! क्या ग़ज़ब का लिखा था आपने
पूरा चित्र खड़ा कर दिया !

कभी कभी सोचता हूँ कि मैं ही चाहता हू मुझे
इन सारे दोषों के साथ जो मुझमें मेरे आसपास
के लोग देखते हैं मुझमें..
उन सबका ऐसा सोचना मुझे और बेहतर करने की
हिम्मत जो देता है,लड़ने की जज़्बा देता है अपने आप से .


और इन लोगों की तारीफ़.
.तारीफ़ का क्या है हुज़ूर …
ये सभागार की वह तालियाँ हैं
जो बजती हैं थोड़ी देर के लिये
और फ़िर ख़ामोश हो जातीं हैं.
इनके भरोसे कोई ज़िन्दगी कटती है;
या फ़िर कोई कुछ कर सकता है ;
बातें हैं ये;बातों का क्या.