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Monday, June 8, 2009

आइये कविवर ओम व्यास के स्वास्थ्य लाभ की कामना करें



वह मालवा का ऐसा सशस्त काव्य हस्ताक्षर है जिसने इन दिनों हिन्दी काव्य मंचों को अपनी अनूठी कहन और शिल्प से ठहाकों से लबरेज़ कर रखा है. एक विशष्ट स्वांग और अभिव्यक्ति का कवि पं.ओम व्यास ओम भोपाल के एक निजी नर्सिंग होम में जीवन और मृत्यु के बीच संघर्षरत है. जब मैं यह बात लिख रहा हूँ तब तक पूरे देश को मालूम पड़ चुका है कि विदिशा (म.प्र) से एक कवि-सम्मेलन से कार द्वार लौटते हुए देश के तीन कवि;ओमप्रकाश आदित्य,नीरज पुरी और लाड़सिंह गुर्जर एक भीषण सड़क दुर्घट्ना में ८ जून की अलसुबह काल कवलित हो गए. प.व्यास और युवा कवि जॉनी बैरागी इसी कार में थे. कवि अशोक चक्रधर,विनीत चौहान और प्रदीप चौबे भोपाल में व्यास और बैरागी की देखरेख में लगे रहे.इधर इन्दौर,उज्जैन,रतलाम,खण्डवा,भोपाल, जैसे प्रदेश के दीगर शहरों के अलावा देश भर के काव्य-प्रेमियों के बीच इस ह्रदयविदारक घटना का समाचार मोबाइल फ़ोन्स और एस.एम.एस के ज़रिये फ़ैलता रहा. इसी सुबह कला-प्रेमियों को रंगकर्मी हबीब तनवीर के इंतक़ाल की ख़बर भी मिली थी.
पं.ओम व्यास ओम ने विगत पाँच वर्षों में अपनी हास्य कविताओं से न केवल देश में वरन विदेशों ख़ासकर अमेरिका के हिन्दी काव्य-प्रेमियों के बीच अपनी एक विशिष्ट पहचान बनाई है. वे अपने परिवेश,परिवार और संबंधों से निराले काव्य-बिम्ब तलाशने में माहिर रहे हैं.जैसे मज़ा ही कुछ और है शीर्षक कविता की ये पंक्तियाँ देखिये:

दाँतों से नाख़ून काटने का
छोटों को ज़बरद्स्ती डॉटनें का
पैसे वालों को गाली बकने का
मूँगफ़ली के ठेले से मूँगफ़ली चखने का
कुर्सी पर बैठकर कान में पेन डालने का
और रोडवेज़ की बस की सीट से स्पंज निकालने का
मज़ा ही कुछ और है


कभी नहीं उन्वान से एक रचना में पं.व्यास कहते हैं:
साले की बुराई
शक्की की दवाई
उधार प्रेमी को अपने दोस्त से मिलाना
पत्नी को अपनी असली इनकम बताना
कुत्ते के नवजात पिल्ले को सहलाना
और पहलवान की बहन से इश्क़ लड़ाना
कभी नहीं-कभी नहीं


हास्य कविताओं के अलावा माँ और पिता शीर्षक से रची अपनी कविता से पं.ओम व्यास ने पूरे देश के कविता प्रेमियों को लगभग सिसकने पर विवश किया है.
बानगी देखें:

माँ
चिन्ता है,याद है,हिचकी है
बच्चे की चोट पर सिसकी है
माँ चूल्हा,धुँआ,रोटी और हाथों का छाला है
माँ ज़िन्दगी की कड़वाहट में अमृत का प्याला है
माँ त्याग है,तपस्या है,सेवा है
माँ फूँक से ठंडा किया हुआ कलेवा है


पिता
रोटी है,कपड़ा है,मकान हैं
पिता छोटे से परिंदे का बड़ा आसमान हैं
पिता से ही बच्चों के ढ़ेर सारे सपने हैं
पिता हैं तो बाज़ार के सब खिलौने अपने हैं


आज जब हास्य के नाम पर कविता लतीफ़े में तब्दील होती जा रही है,ओम व्यास जैसे कवियों ने अपने समर्थ क़लम से काव्य की आन में बढोत्तरी की है. पं.ओम व्यास के लिये चिकित्सकों का कहना है कि आगामी 24 घंटे उनके लिये बेहद चुनौतीपूर्ण हैं.आइये हम सब मिल कर प्रार्थना करें कि इस यशस्वी और लाड़ले कवि के सर से ये ख़तरा भी टल जाए. प.ओम व्यास ने घर-घर में हँसी बाँटी है;लाखों मुरीदों की दुआएं उनके साथ हैं.

हाँ बात ख़त्म करते करते बता दूँ कि पं.ओम व्यास बी.एस.एन.एल.में कार्यरत हैं और उज्जैन उनका शहर है लेकिन पूरे देश में उनके मित्रों और चाहने वालों की लम्बी फ़ेहरिस्त है.इन दिनों ओम भाई कविता पाठ शुरू करने के पहले दाद बटोरने के लिए एक नवेला रूपक गढ़ रहे हैं.वे कहते हैं मैं आपके शहर में काव्यपाठ से आने के पहले उज्जैन के विश्व्व प्रसिध्द महाकाल मंदिर गया था . वहाँ भगवान महाकाल से भेंट हो गई.तो मुझे बोले ओम जो तेरे कविता पाठ में सुमड़ा जैसा बैठा रहे और दाद न दे तो उज्जैन आकर मुझे सिर्फ़ उसके शर्ट का रंग बता देना, बाक़ी मैं देख लूंगा.ऐसा कहते ही पं.ओम व्यास की बात पर तालियों और ठहाकों की धूम मच जाती है.

महाकाल को काल को टालने वाला देव कहा गया है,आइये उन्हीं महाकाल भगवान से प्रार्थना करें कि अपने नगर के इस युवा कवि के सर से काल को टालें और पूरे व्यास परिवार की ख़ुशियों को लौटा दें.