Wednesday, February 27, 2008

अनजाने कवि की हिन्दी ग़ज़ल...सदभावों से काम करें


नाम है इनका श्याम झँवर 'श्याम। रहते नीमच में हैं जो राजस्थान की ओर मध्य-प्रदेश का सीमावर्ती शहर है. पाँच काव्य संकलन प्रकाशित हो चुए हैं.स्वांत सुख के लिये लिखते हैं और सबसे अच्छी बात ये है कि अपने प्रियजनों /मित्रों को पोस्टकार्ड पर लिख कर भेजते भी हैं। खु़शक़िस्मती है हमारी कि हम भी उनकी फ़ेहरिस्त में हैं.उनका सुलेख लाजवाब है. आज जब लिखने-पढ़नेऔर ख़तोकिताबत का काम एस.एम.एस. और ई-मेल तक सिमट गया है ऐसे में झंवर जी के पत्रों में लिखी नीतिपरक ग़ज़लों को पढ़ना सुखद होता है. हाल ही में उनकी ग़ज़ल अपने ब्लॉग पर जारी करते हुए प्रसन्नता का अनुभव कर रहाहूँ . आप उनके सुलेख का आनंद भी ले सकें इस उद्देश्य से पत्र की मूल प्रति भी देख सकें.दु:ख ये है कि झँवरजी कंप्यूटर युग से दूर हैं अत: यदि उनकी ग़ज़ल पसंद आए तो प्रतिक्रियास्वरूप टिप्पणी लिख दीजियेगा अन्यथा पत्र द्वारा उन्हें अपना प्रतिसाद दीजियेगा.उनका पता:

श्याम झँवर 'श्याम' ,581,विकास नगर,नीमच (मालवा) 458441

दूरभाष :07423-230423


सदा भलाई को अपनाएँ,सदभावों से काम करें

एक लक्ष हो मानवता का,कभी नहीं विश्राम करें


कभी समझना चाहो यदि तुम, जीवन के संघर्षों को

घर की सुविधा छोड़,पाँच दिन, फ़ुटपाथों के नाम करें


काम-वासना,पाप-भ्रष्टता,सबसे दूरी सदा रखें

नहीं छिपाने जैसा हो कुछ, अपना जीवन 'आम'करें


बहुत बड़ा आनन्द छिपा है, सेवा के सदकर्मों में

यही मार्ग अपनाकर अपना,जीवन तीरथधाम करें


मानवता - सदभाव क्षेत्र में इस जग में है काम पड़ा

लगे रहें इन सब कामों में,कभी नहीं आराम करें















Monday, February 25, 2008

पं.शिवकुमार शर्मा...जिनके व्यक्तित्व में भी है करिश्माई सुरीलापन


पण्डित शिवकुमार शर्मा का नाम हम उन सब संगीत-प्रेमियों के लिये उतना ही जाना पहचाना है जितना उनका बाजा संतूर।शिवजी जिन्हें पद्म-विभूषण से नवाज़ा जा चुका है अपने जीवन काल में ही एक जीनियस के रूप में जाने जाते है. सभी जानते हैंकि संतूर दर-असल कश्मीर का लोक वाद्य है और इसे वहाँ की लोक धुनों के साथ सफ़ी संगीत में भी बजाया जाता रहा है. संतूर का उद्भवषड़तंत्री वीणा से हुआ है और इसमें सौ से अधिक तार होते हैं.


पं।शिवकुमार शर्मा के परिवार में संगीत ख़ासकर क्लासिकल संगीत का वातावरण रहा है यही वजह है कि संतूर की ओर आने के पहले वे शास्त्रीय गायऔर तबला वादन बाक़ायदा तालीम ले चुके थे. संतूर की ओर उन्हें उनके पिता लेकर आए.नया और अलोकप्रिय वाद्य होने के कारण शिवजी इस वाद्य को लेकर सशंकित थेलेकिन वे बताते हैं कि वह ज़माना ऐसा था कि पिता का आदेश ईश्वर का आदेश हुआ करता था. सो तालीम शुरू हो गई.कई परिवर्तनों के बाद शिवजी को इस बाजे में आनंद आने लगा.उन्होंने रोज़ी-रोटी के तलाश मेंमुम्बई का रूख़ किया और फ़िल्मी दुनिया में काम करने वाले कई संगीतकारों के गीतों के इंटरल्यूड्स में संतूर के तारों को पिरोया. अभी जब ये ब्लाँग लिख रहा हूँ तब भी विविध भारती से ओ.पी नैय्यर का संगीतबध्द किया हुआ गीतबज रहा है ...दीवाना हुआ बादल ...सावन की घटा छाई...ये देख के दिल झूमा...(रफ़ी-आशा)॥ख़ैर फ़िल्म जगत ने शिवजी को आर्थिक सुरक्षा दी और ज़िन्दगी की गाड़ी चल पड़ी.


पं।शिवकुमार शर्मा के कई कार्यक्रमों को एंकर करने का मौक़ा ख़ाकसार को मिलता रहा है सो उनसे एक निजता सी भी हो गई है. अभी कुछ दिनों पहले शिवजी इन्दौर के एक प्रतिष्ठित स्कूल के वार्षिक समारोह में बतौर ख़ास मेहमान तशरीफ़ लाए.ये विद्यालय श्री सत्य साई बाबा (पुट्टपर्ती) द्वारा संचालित है और इसी स्कूल के परिसर में एक अत्याधुनिक ऑडियो-वीडियो स्टुडियो स्थापित किया गया है. मुझे इसी स्टुडियो के प्रथम विशिष्ट अतिथि के रूप में पं.शिवकुमार शर्मा को इंटरव्यू करने सौभाग्य प्राप्त हुआ.


सत्तर के पार जा चुके शिवजी से मिलने पर समझ में नहीं आता कि उनका संतूर वादन सुंदर है या वे स्वयं।न जाने क्यों लगता है कि उनके करिश्माई व्यक्तित्व में भी एक सुरीलापन स्पंदित हो रहा है.वे आपके नज़दीक हों तो ख़ूबसूरती और फ़िटनेस लगभग लजा सी जाती है. गोरे चिट्टे चेहरे पर चेहरे पर घुंघराले चाँदी के रंग वाले बालों का तानाबाना मोहित सा कर देता है.शिवजी ने इस साक्षात्कार में कहा कि हर कालखण्ड में संगीत समाज,मनुष्य और उसके संस्कारों से प्रभावित हुए बिना नहीं रहा है. कई दौर आए...चले जाएंगे लेकिन क्लासिकल मौसीक़ी की ताक़त कम नहीं होगी.उन्होंने ये हक़ीक़त बता कर चौका दिया कि उनके कंसर्ट में आज युवाओं की संख्या में लगाता बढोत्तरी होती जा रही है और युवा-पीढ़ी के पास आज संतूर,तबला,बाँसुरी के सीडीज़बड़ा कलेक्शन मिलेगा.शिवजी ने कहा कि हल दौर में अच्छा-बुरा दोनो तरह का संगीत रहा है और हर दौर में संगीत के अस्तित्व को लेकर कुछ ख़तरे भी रहे हैं.उन्होंने भारी मन से कहा कि मुझ जैसे तमाम कलाकारों के प्रयासों के बावजूद यदि नई पीढ़ी को यह संदेश जाए कि बुरा संगीत ही अल्टीमेट है और शोर ही सुरीलापन तो इसे समय का दुर्भाग्य ही कहना होगा.


पं।शिवकुमार शर्मा ने कहा कि हमारे संघर्ष काल में कई चुनौतियाँ रहीं हैं और उन हालातों ने हम्रें मज़बूत बनाया है. शिवजी ने बताया कि उन्होंने ऐसी कई यात्राएं याद हैं जिनमें पूरी रात बाजा और बैग लेकर ट्रेन में खडे़ खड़े सफ़र किया है और सुबहदूसरे शहर पहुँच कर एक घंटे बाद अपनी प्रस्तुति दी है. शिवजी अपनी नीली आंखों को थिरकाते हुए जब बात कर रहे थे तो लग रहा था जैसे संतूर पहाड़ी धुन बज रही है.उनसे जब भी मिलें तो वे युवतर नज़र आते हैं.....कहने को जी चाहता है...


खू़बसूरती भी लजाने आई

जब वो सुरीले ज़माने आए

Sunday, February 24, 2008

यशस्वी कवि बालकवि बैरागी श्रीनिवास जोशी सम्मान से नवाज़े गए


इंदौर में आज २४ फ़रवरी की फ़ागुनी दोपहर में श्री बालकवि बैरागी को दूसरा श्रीनिवास जोशी सम्मान हिन्दी की अनथक सेवा करने वाली संस्था श्री म.भा.हिन्दी साहित्य समिति के तत्वावधान में दिया गया. बड़ी संख्या में मालवीप्रेमियों ने इस कार्यक्रम में शिरकत की. नईदुनिया के प्रबंध संपादक श्री अभय छजलानी के मुख्य-आथिथ्य में आयोजित इस कार्यक्रम की अध्यक्षता जाने माने कवि पं.सत्यनारायण सत्तन ने की.श्रीयुत श्रीनिवास जोशी की धर्मपत्नी श्रीमती वंदना जोशी एवं समिति के पदाधिकारियों ने बालकविजी का स्वागत किया. बालकविजी ने भरे गले इस सम्मान पर प्रतिभावना व्यक्त करते हुए अपने अग्रजों को याद किया. आपने कहा कि ये सम्मान मेरे अकेले का नहीं पं.सूर्यनारायण व्यास,डाँ श्याम परमार,बसंतीलाल बम, आनंदराव दुबे,भावसार बा,हरीश निगम,गिरिवरसिंह भँवर,नरेन्द्रसिंह तोमर,नरहरि पटेल जैसे सभी मालवी-सेवियों का है. आपने कहा कि जब हिन्दी के सामने ही अस्तित्व का संकट है तो बोलियों की सुरक्षा के लिये तो हमें ही आगे आना होगा. आपने कहा कि निराश होने की ज़रूरत नहीं है .एक नई पीढ़ी तैयार है जो मालवी में अच्छा काम कर रही है. आपने नईदुनिया के साप्ताहिक स्तंभ थोड़ी घणी की भूरि भूरि प्रशंसा की और कहा कि ऐसे सार्थक प्रयत्नों से ही बोली बचेगी. आपने कहा कि ये मेरा संकल्प रहा है कि हिन्दी काव्य - पाठ के समय कम से कम एक मालवी रचना तो सुनाऊं ही. आपने कहा कि मालवी कविता पढ़ते पढ़्ते आपका ये बैरागी इनकमटैक्स भरने के लायक भी हो गया. उल्लेखनीय है कि बैरागी जी अपने बचपन में भीषण अभाव और ग़रीबी का सामना पूरे जुझारूपन के साथ किया है. मंगते से मंत्री और बैरागी की डायरी में उन्होंने बड़ी बेबाकी से अपने अभावों को व्यक्त किया है. लम्बे समय के बाद इन्दौर में मालवी परिवार का ऐसा भरा पूरा जमावड़ा नज़र आया और आस बंधी कि अभी भी मालवी के चाहने वालों की कमीं नहीं है.बालकविजी नें अपने वक्तव्य के अंत में कुछ मालवी गीत सुनाकर उपस्थित श्रोता समुदाय को अपनी कहन के फ़ागुनी छींटों से भीगो दिया। ख़ाकसार ने कार्यक्रम का सूत्र - संचालन किया.


Friday, February 22, 2008

कवि प्रदीप की जन्म-भूमि के एक और क़लम सपूत श्रीनिवास जोशी.




कवि प्रदीप का नाम हम सबके लिये अनजाना नहीं है. प्रदीप जी का जन्म मालवा के छोटे से गाँव बड़नगर में हुआ.बड़नगर इन्दौर - उज्जैन के बीच स्थित है और यदि रेल्वे की मीटरगेज लाइन से आप रतलाम का सफ़र कर रहे हैं तो बड़नगर भी एक स्टेशन के रूप में आता है. इसी बड़नगर ने कवि प्रदीप के अलावा श्रीनिवास जोशी के रूप में मालवी बोली के अनन्य गद्य - लेखक (संभवत: पहले भी) एक और क़लम सपूत की जन्म-स्थली होने का सौभाग्य पाया.




श्रीनिवास जोशी के लेखन और जीवन शैली में हास्य स्थायी भाव था. वे ७ अप्रैल १९२० को जन्मे.यही ज्न्म तिथि भारत-रत्न पं.रविशंकरजी की भी है. श्रीनिवास जी हास्य करते हुए कहते थे कि यदि एक ज्योतिषी की बात पर यक़ीन करूं तो यदि मै अपने जन्म समय से आधा घंटा पहले पैदा होता तो किसी नगर का राजकुमार होता.लेकिन सच मानिये वे माँ सरस्वती के वरदपुत्र और माय-मालवी(माय:माँ) के राजकुमार तो थे ही.




श्रीनिवासजी ने अल्पायु में ही क़लम से दोस्ती कर ली थी. सन १९४७-४८ में उनकी मालवी रचना हिन्दी के अस्सी बरस पुरानी पत्रिका वीणा (इसके बारे में अपने इसी ब्लाँग पर लिख चुका हूँ)में छपी थी.जोशी जी ने कहानी,कविता ,निबंध और हास्य प्रसंगों को आधार बनाकर रचनाओं ने प्रशस्ति पाई . १९४८ में श्रीनिवासजी प्रभात फ़िल्म कंपनी,पुणे से संवाद और पटकथा लेखक के रूप में जुड़ गए और यहाँ उनके हिन्दी लेखन का जादू सर चढ़ कर बोला.




श्रीनिवास जोशी ने गोकुल,मेरे लाल ,अहिल्या,सुहाग,सजनी,सीधा रास्ता,सीता हरण,माया बाज़ार,मैं अबला नहीं हूँ,आदि फ़िल्मों के लिये अपने क़लम का जलवा दिखाया.जिस फ़िल्म ने उन्हे बहुत यश दिया वह थी बलराज साहनी - मीना कुमारी अभिनीत भाभी की चूडियाँ. श्रीनिवास जी ने इस चर्चित फ़िल्म के संवाद लिखे थे.इसी फ़िल्म में पं.नरेन्द्र शर्मा का गीता ज्योति कलश छलके तो आपको याद होगा ही.पं शर्मा,संगीतकार सुधीर फ़ड़के और श्रीनिवासजी की की त्रयी दोस्ती की मिसाल बनी और तीनों परिवारों के बीच आज भी जीवंत संपर्क हैं (लावण्याबेन ने विश्व हिन्दी सम्मेलन,२००७-न्यूयार्क की तस्वीरों में श्रीमती वंदना श्रीनिवास जोशी की तस्वीर जारी की ही थी)




श्रीनिवास जोशी का सबसे महत्वपूर्ण अवदान उन २०० से ज़्यादा वृत्त-चित्रों का स्क्रिप्ट लेखन डिवी़ज़न द्वारा बनाई गई थीं और जिन्हें हम अमूमन हिन्दी फ़िल्मों के इंटरवल में या फ़िल्म शुरू होने के पहले देखा करते रहे हैं.आकाशवाणी और दूरदर्शन के लिये भी जोशीजी ने एकाधिक रूपकों और प्रहसनों लेखन किया. लोक जीवन की झाँकी को समेटते हुए उन्होंने किस्सागोई के अंदाज़ में कई निबंध लिखे जिनमें हास्य का लाजावाब पुट था. मालवी में वारे पठ्ठा भारी करी और सासुजी रिसाएगा उनकी प्रतिनिधि रचानाएं हैं. इनमें मालवी जनजीवन की अदभुत छटा है (इन रचनाओं को शीघ्र ही में मालवी ब्लाँग http://www.malvijajam.blogspot.com/) जारी करूंगा.




श्रीनिवास जोशी को बालकृष्ण शर्मा 'नवीन' , डाँ शिवमंगल सिंह सुमन,कुसुमाग्रज जैसे कई साहित्य-मनीषियों का स्नेहपूर्ण संगसाथ मिला. जोशी जी के बारे में दो और महत्वपूर्ण बात बता कर लम्बे समय बाद लिखे गए इस ब्लाँग को विराम दूँगा.......चालीस और पचास के दशक में वे अपना वतन मालवा छोड़ कर पुणे और मुंबई की ओर गए और नौकरी कर सुरक्षित जीवन -यापन के मोह को छोड़ कर ताज़िन्दगी फ़्री-लांसर बने रहे.जीवन का सबसे बड़ा जोखिमपूर्ण कार्य उन्होंने फ़िल्म मालती माधव(प्रमुख भूमिका:दुर्गा खोटे,गीत:पंनरेन्द्र शर्मा,संगीत:सुधीर फ़ड़के-लताजी के गाए इस फ़िल्म के गीत कहीं सुनने को मिलें तो ज़रूर सुनियेगा और महसूस कीजियेगा कविता,संगीत और गायकी का जादू) के निर्माण के रूप में किया और लाखों का घाटा उठाया. २४ फ़रवरी २००६ को मुंबई में इस मालवीमना का निर्वाण हुआ.




श्रीनिवास जोशी की स्मृति को अक्षुण्ण रखने के लिये जोशी परिवार और श्री म.भा.हिन्दी साहित्य समिति द्वारा एक सम्मान की स्थापना की गई है . इसी रविवार २४ फ़रवरी को श्रीनिवास जोशी सम्मान से हिन्दी के यशस्वी कवि श्री बालकवि बैरागी को नवाज़ा जा रहा है.




उम्मीद है मालवा के इस छुपे हुए हीरे के बारे में ये शब्द चित्र बाँच कर आप ज़रूर आनंदित होंगे.