कवि प्रदीप का नाम हम सबके लिये अनजाना नहीं है. प्रदीप जी का जन्म मालवा के छोटे से गाँव बड़नगर में हुआ.बड़नगर इन्दौर - उज्जैन के बीच स्थित है और यदि रेल्वे की मीटरगेज लाइन से आप रतलाम का सफ़र कर रहे हैं तो बड़नगर भी एक स्टेशन के रूप में आता है. इसी बड़नगर ने कवि प्रदीप के अलावा श्रीनिवास जोशी के रूप में मालवी बोली के अनन्य गद्य - लेखक (संभवत: पहले भी) एक और क़लम सपूत की जन्म-स्थली होने का सौभाग्य पाया.
श्रीनिवास जोशी के लेखन और जीवन शैली में हास्य स्थायी भाव था. वे ७ अप्रैल १९२० को जन्मे.यही ज्न्म तिथि भारत-रत्न पं.रविशंकरजी की भी है. श्रीनिवास जी हास्य करते हुए कहते थे कि यदि एक ज्योतिषी की बात पर यक़ीन करूं तो यदि मै अपने जन्म समय से आधा घंटा पहले पैदा होता तो किसी नगर का राजकुमार होता.लेकिन सच मानिये वे माँ सरस्वती के वरदपुत्र और माय-मालवी(माय:माँ) के राजकुमार तो थे ही.
श्रीनिवासजी ने अल्पायु में ही क़लम से दोस्ती कर ली थी. सन १९४७-४८ में उनकी मालवी रचना हिन्दी के अस्सी बरस पुरानी पत्रिका वीणा (इसके बारे में अपने इसी ब्लाँग पर लिख चुका हूँ)में छपी थी.जोशी जी ने कहानी,कविता ,निबंध और हास्य प्रसंगों को आधार बनाकर रचनाओं ने प्रशस्ति पाई . १९४८ में श्रीनिवासजी प्रभात फ़िल्म कंपनी,पुणे से संवाद और पटकथा लेखक के रूप में जुड़ गए और यहाँ उनके हिन्दी लेखन का जादू सर चढ़ कर बोला.
श्रीनिवास जोशी ने गोकुल,मेरे लाल ,अहिल्या,सुहाग,सजनी,सीधा रास्ता,सीता हरण,माया बाज़ार,मैं अबला नहीं हूँ,आदि फ़िल्मों के लिये अपने क़लम का जलवा दिखाया.जिस फ़िल्म ने उन्हे बहुत यश दिया वह थी बलराज साहनी - मीना कुमारी अभिनीत भाभी की चूडियाँ. श्रीनिवास जी ने इस चर्चित फ़िल्म के संवाद लिखे थे.इसी फ़िल्म में पं.नरेन्द्र शर्मा का गीता ज्योति कलश छलके तो आपको याद होगा ही.पं शर्मा,संगीतकार सुधीर फ़ड़के और श्रीनिवासजी की की त्रयी दोस्ती की मिसाल बनी और तीनों परिवारों के बीच आज भी जीवंत संपर्क हैं (लावण्याबेन ने विश्व हिन्दी सम्मेलन,२००७-न्यूयार्क की तस्वीरों में श्रीमती वंदना श्रीनिवास जोशी की तस्वीर जारी की ही थी)
श्रीनिवास जोशी का सबसे महत्वपूर्ण अवदान उन २०० से ज़्यादा वृत्त-चित्रों का स्क्रिप्ट लेखन डिवी़ज़न द्वारा बनाई गई थीं और जिन्हें हम अमूमन हिन्दी फ़िल्मों के इंटरवल में या फ़िल्म शुरू होने के पहले देखा करते रहे हैं.आकाशवाणी और दूरदर्शन के लिये भी जोशीजी ने एकाधिक रूपकों और प्रहसनों लेखन किया. लोक जीवन की झाँकी को समेटते हुए उन्होंने किस्सागोई के अंदाज़ में कई निबंध लिखे जिनमें हास्य का लाजावाब पुट था. मालवी में वारे पठ्ठा भारी करी और सासुजी रिसाएगा उनकी प्रतिनिधि रचानाएं हैं. इनमें मालवी जनजीवन की अदभुत छटा है (इन रचनाओं को शीघ्र ही में मालवी ब्लाँग http://www.malvijajam.blogspot.com/) जारी करूंगा.
श्रीनिवास जोशी को बालकृष्ण शर्मा 'नवीन' , डाँ शिवमंगल सिंह सुमन,कुसुमाग्रज जैसे कई साहित्य-मनीषियों का स्नेहपूर्ण संगसाथ मिला. जोशी जी के बारे में दो और महत्वपूर्ण बात बता कर लम्बे समय बाद लिखे गए इस ब्लाँग को विराम दूँगा.......चालीस और पचास के दशक में वे अपना वतन मालवा छोड़ कर पुणे और मुंबई की ओर गए और नौकरी कर सुरक्षित जीवन -यापन के मोह को छोड़ कर ताज़िन्दगी फ़्री-लांसर बने रहे.जीवन का सबसे बड़ा जोखिमपूर्ण कार्य उन्होंने फ़िल्म मालती माधव(प्रमुख भूमिका:दुर्गा खोटे,गीत:पंनरेन्द्र शर्मा,संगीत:सुधीर फ़ड़के-लताजी के गाए इस फ़िल्म के गीत कहीं सुनने को मिलें तो ज़रूर सुनियेगा और महसूस कीजियेगा कविता,संगीत और गायकी का जादू) के निर्माण के रूप में किया और लाखों का घाटा उठाया. २४ फ़रवरी २००६ को मुंबई में इस मालवीमना का निर्वाण हुआ.
श्रीनिवास जोशी की स्मृति को अक्षुण्ण रखने के लिये जोशी परिवार और श्री म.भा.हिन्दी साहित्य समिति द्वारा एक सम्मान की स्थापना की गई है . इसी रविवार २४ फ़रवरी को श्रीनिवास जोशी सम्मान से हिन्दी के यशस्वी कवि श्री बालकवि बैरागी को नवाज़ा जा रहा है.
उम्मीद है मालवा के इस छुपे हुए हीरे के बारे में ये शब्द चित्र बाँच कर आप ज़रूर आनंदित होंगे.
5 comments:
संजय भाई बहुत दिनों के बाद
आप प्रकट हुए हो :)
और वो भी मेरे ...
श्रीनिवास जोशी चाचा जी की याद लेकर,
इस विस्तृत आलेख के साथ !
जिसमें
हिन्दी , मालवी के गंगा जमुनी संग लिए
३ साहित्य के जादूगरों का उल्लेख भी आपने कुशलता से कर दिया -
स्व. प्रदीप जी, बालकवि बैरागी जी और हास्य सम्राट जोशी चाचा जी --
( बहु ज सारू काम कर्युं आप श्री ऐ ! आशा छे मारी वंदना आंटी जी आ वान्ची ने प्रसन्न थाशे
आशा छे, सर्वे कुशल मँगल हशे ) ~~~
स स्नेह,
लावण्या
बड़नगर में मेरे रेलकर्मियों ने प्रदीप जी की चर्चा की थी। एक ने मुझे उनका केसेट भी दिया था। आपने वहां के दूसरे रत्न श्रीयुत श्रीनिवास जोशी के बारे में बता कर उपकृत किया है मुझे।
बढ़िया लगी यह जानकारी!!
एक दूसरी बात-
मुझे याद नही इंदौर से किस तरफ़ के रेल मार्ग पर एक बहुत छोटा स्टेशन है शायद 'पालिया"।
यह गांव है एक स्वतंत्रता सेनानी श्यामकुमार आज़ाद का। 89-90 में स्वर्गीय पिताजी के साथ इंदौर प्रवास के समय उनके घर दो तीन दिन रहना हुआ था तब ही इंदौर से सेनानियों से मुलाकात भी हुई थी, यथा भागवत साबू, जौहरीमल झांझरिया और भी बहुत से!!
संजीत भाई;
पालिया इन्दौर से दूसरा स्टेशन है और उसके बाद इसी लाईन पर तीन स्टेशन बाद बड़नगर है.इसी के पहले चंद्रावतीगंज (फ़तेहाबाद:किसी ज़माने में यहाँ के गुलाब जामुन बहुत मशहूर थे) आता है . चंद्रावतीगंज से ही एक और जुझारू स्वतंत्रता सेनानी और पं नेहरू के क़रीबी रहे वरिष्ठ काँग्रेसी स्व.कन्हैयालाल खादीवाला की याद भी जुड़ी हुई है.पालिया का केसरिया दूध बहुत लोकप्रिय रहा है.
बढ़िया रसमयी, सुरीली जानकारियां...
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