Thursday, June 21, 2007

राष्ट्रपति चुनाव और मै...

देखिये साहेबान मै इस देश का एक आम नागरिक हूं।इन दिनों ज़माने भर में इस विषय को लेकर ऐसी चर्चा चली हुई है देश का अगला राष्ट्रपति कौन बनेगा. जहाँ देखिये जैसे अपने घर में ही कोई मांगलिक उत्सव होने वाला है।वैसे मै अपनी औकात जानता हूं और मानता हूं कि मीडिया जिस विषय की हाइप क्रिएट कर रहा है उसमें दम नहीं है।सारे देशवासी और मै राष्ट्रपति के लिये तय किये जाने वाले नाम को लेकर वैसे ही चिंतित नज़र आ रहे हैं जैसे हम क्रिकेट को लेकर हो जाते हैं। हम जानते हैं कि पिच पर सहवाग कुछ कर नहीं पा रहा है और हम इसमें कुछ कर नहीं सकते लेकिन हम इस विषय पर ऐसे बतियाते हैं जैसे हमारे पूरा खा़नदान ही क्रिकेट सिलक्टर रहा हो जबकि हालत ये हैकि हमें नो बाँल और वाइड बाँल होने पर अंपायर द्वारा दिये जाने वाले सिगनल का फ़र्क़ नहीं मालूम।राष्ट्रपति चुनाव में भी हम डायनिंग टॆबल और दफ़्तर में चाय के इंटरवल में ऐसे चर्चालीन हैं जैसे हमारे ही वोट से प्रतिभा ताई या कलाम साहब की जीत सुनिश्चित होने वाली है।दर-असल हमारा नेशनल कल्चर ही कुछ ऐसा बना है कि हमें बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना बनना सार्थक लगता है।अभी आप कहिये कि काँलोनी में इस संडे को श्रम दान कर के सड़क के आसपास जमा हो गई मिट्टी को तेज़ बारिश आने के पहले हटाना है तो हमें झट सुनाई देगा कि मुझे तो आजकल बैक पेन रहता है और मेरे फ़ेमिली डाँक्टर नें मुझे आगे झुकने से ही मना किया है ...या इसी रविवार को तो हमारी साली की शादी की सालगिरह है सो हमें तो उनके यहाँ लंच पर जाना है...आप प्रतिप्रश्न कीजिये की अभी पिछले महीने ही तो आपकी साली की शादी की सालगिरह थी तो जवाब मिलेगा वो तो वाइफ़ की कज़िन हैं अब तो इनकी रियल सिस्टर का मामला है।हम जानते हैं कि जैसे शरद पँवार साहब क्रिकेट टीम चुनने के लिये नामज़द हैं वैसे ही सोनियाजी को राजनैतिक दलों ने बड़ी सह्रदयता से राष्ट्रपति पद के लिये नाम चयन की ज़िम्मेदारी दे रखी थी सो उन्होने बेहतरीन तरीके़ से निभा दी है। बाकी़ दल और हम फ़िज़ूल में ही समय नष्ट कर रहे हैं कि प्रमिला ताई को रातों रात कैसे तलब किया गया इस पद के लिये॥अरे भैये क्या आपके घर आकर मैडम पूछें कि इस पद के लिये सुयोग्य नाम के लिये आपके क्या विचार हैं । राष्ट्रपति पद कोई गणेश-उत्सव के मुख्य-अतिथि का पद है क्या ?यह राष्ट्र के सर्वोच्च पद की गरिमा का सवाल है।तुम्हे तुम्हारे घर में बीवी - बच्चे तो पूछते नहीं और तुम सोनिया जी से उम्मीद कर रहे हो कि वो तुम से आकर पूछें कि बाबू साब आपका क्या कहना है।क्यों बुरा लग गया न ? अच्छा बताओ बॆटे ने नया मोबाइल ले लिया तुम से पूछा ? बेटी के अपनी मनपसंद का वर चुन लिया ... तुमसे पूछा...श्रीमती जी अगले महीने अपनी किटी की सहेलियों के साथ ऊटी जा रहीं हैं ....तुम्हे मालूम है।भैया तुम तो इस देश के वह सामान्य नागरिक हो जिसे हेड आँफ़ द फ़ेमिली के उच्च पद से नवाज़ा जाए और जब जिसके मन में आए वो करता जाए और बाद में तुम्हे पता पडे़ कि ये सब कुछ हुआ है। श्रीमान हैसियत और औकात से काम लो और अपनी ड्यूटी ईमानदारी से निभाते जाओ...कल तुम पढ़ ही लोगे कि कौन बना/बनी हमारे देश का राष्ट्रपति...इसमें इतना दुबला होने की ज़रूरत नहीं है॥काम से काम रखो और काम पर लगे रहो॥मै तो चौराहे पर जा रहा हूं सुबह के लिये सब्ज़ी लेने ...तुम चलते हो क्या ?

Thursday, June 14, 2007

सावन आ रहा है...क्या आप स्वागत के लिये तैयार हैं ?

समझ लीजिये कि अब बरस ही गये हैं बादल।मेरे वतन मालवा में मेघ बरसते देखने का अलग ही सुख है।बस फ़र्क़ इतना भर है कि बरसती बारिश में सड़क पर निकलने वाले नज़र नहीं आते अब.एक तो कार वाले बहुत हो गये हैं.मेरे छोटे से शहर (मुंबई-दिल्ली-चैन्ने की तुलना में)इन्दौर में भी सुना है छोटी-बडी़ सात लाख कारें हो गयी हैं.अभी जब ये ब्लाग लिख रहा हूं तो मेरे कमरे की खिड़की के सायबान पर बारिश की बूंदो की टप-टप शुरू हो गई है.

ये आवाज़ें कान में आते ही मुझे अपने दादाजी की याद याद आने लगी है जो अब इस दुनिया में नहीं हैं . वे रह्ते तो थे सैलाना में जो रतलाम जंक्शन से बीस कि.मी.दूर बसी एक प्यारी सी रियासत थी.वे संगीत और खा़सकर क्लासिकल मौसीकी़ में बहुत निष्णांत थे.आसमान में बादलों की घिरावट शुरू होते ही उनका गुनगुनाना शुरू हो जाता आए री बदरा..मोतियन लारा(साथ) लाए...गाओ री मंगल आए री बदरा.इसी आलम में वे मेरी दादी के ज़रिये मेरी मां से भजियों की फ़रमाइश भी कर डालते और इस बहाने हम बच्चों को भी मौसमी व्यंजन का आनन्द मिल जाता.इस मामले आप मुझसे सहमत होंगे कि जो मज़े आपने - मैने अपने बचपन में लिये खानेपीने के वे आजकल के रेडीमेड कल्चर में कहां ? कुरकुरे और अंकल चिप्स खाने वाली पीढी़ उस मज़े से निश्चित ही मरहूम है मो गुज़रे दौर के शान हुआ करते थी.

हां तो मै दादाजी के गायन की बात कर रहा था....उनकी गाई एक और बंदिश याद आ गई....नन्ही नन्ही बूंदन मेहा बरसे...मल्हार के रागों में बंधी ये बंदिशें मन को झकझोर देतीं थी.हां रफ़ी साहब और आशाजी का गाया वह गीत भी तो याद आ गया सावन आए या न आए ..जिया जब झूमें
सावन है...
और हां लताजी और रफ़ी साहब की वो जुगलबंदी....झूले में पवन के आई बहार..(बैजूबावरा) भी याद आ गई.और याद आ गए किशोर भारत भूषण और कमसिन मीनाकुमारी..नौशाद साहब का जादू जगाता संगीत और शकील बदायूंनी के मासूम शब्द.

कु़दरत और संगीत का साथ भी कितना विचित्र है न कि बिना किसी काग़ज़ का सहारा लेकर लिखा जा रहा ये ब्लाग मानो मेरे ज़हन में यादों के हर-सिंगार बन कर झर रहा है.इन्दौर और बैजूबावरा की बात चली है तो देखिये तान - सम्राट उस्ताद अमीर ख़ां साहब भी तो याद आ गए है या यह भी कह सकता हूं कि वो हमारी यादों की महफ़िल में नमूदार हो गए हैं ..उस्ताद का गाया मेघ तो क्लासिकल मौसीकी़ की एक अनमोल धरोहर है.घनन घनन घन बरसो रे..(२) विविध भारती के सुबह साढे़ सात बजे बजने वाले लोकप्रिय कार्यक्रम संगीत सरिता की ह्स्ताक्षर धुन भी मल्हार रंग में ही डूबी हुई है.वह धुन दर-असल बहुत ही लोकप्रिय गीत गरजत बरसत सावन आयो रे..लायो न संग में हमरे बिछरे बलमवा..सखी का करूं हाय..का प्रील्यूड (गीत शुरू होने के पहले बजने वाला संगीत; जो बीच में बजे सो इंटरल्यूड) गायक स्वर हैं..सुधा मल्होत्रा और कमल बारोट के.हाय! क्या मीठी आवाज़ें हैं दोनो की ...मानो एक गुड़ तो दूसरी मिश्री.

तो मै शुरू हुआ था इस बात से कि हुज़ूर मेघराज आ रहे हैं हम सब के द्वारे तो उनका स्वागत कीजिये...भजिये बनाईये ..खाइये..घर में झूला हो तो क्या बात है...अच्छा संगीत सुन सकते हों तो ज़रूर सुनिये ..हां आपके पास पं.भीमसेन जोशी के पहाडी़ स्वर मे निबद्ध मियां की मल्हार की वो चर्चित बंदिश हो तो बरसते पानी में ज़रूर सुनिये..घूम ..अति घूम आई बदरिया..या बादरवा बरसन लागी...

सच मानिये आप पानी में बाहर आकर भिगना नहीं चाहते तो ये बंदिशें आपके मन को ज़रूर भिगो देने की ताक़त रखतीं हैं.तो मेरी बात पर इस बार ग़ौर करियेगा ..बच्चों या मित्र को लेकर बाहर निकलिये तो ..ये सावन बड़ा नखराला है ..यूं ही सबको थोड़े ही भिगोता है...मोटर-बाइक (हैल्मेट अवश्य साथ लीजियेगा) हो तो वह उठा लीजिये और कार हो तो उसे लेकर निकल लीजिये...देखिये तो सही क़ुदरत किस तरह मालामाल है और आपको भी तो करना चाहती है..होली पर गाते हैं न ..फ़ागुन के दिन चार रे ..होली खेल मना रे..अब इसे यूं भी गाया जा सकता है..सावन के दिन चार रे ..सावन खेल मना रे...भीगते हुए कैसा लगा मुझे ज़रूर बताइयेगा...मै तो चला भई ..मेरे हिस्से के भजिये कहीं ख़त्म न हो जाएं.

आप जावेद अख़्तर साहब और ए.आर.रहमान की संगीतमय कारीगरी और आमिर खा़न की खूबसूरत तस्वीर के बरसात में नहाये गीत...घनन घनन घिर आए बदरा का आनंद लीजिये.





Thursday, June 7, 2007

इंसान से बडा़ नज़र आता है हमारा श्वान

मेरे बच्चे बहुत दिनों से ज़िद कर रहे थे डैडी घर में एक कुत्ता पाल लेते हैं।मैने अपने पिताजी से बात की तो वे राज़ी नहीं हुए।कुछ ऐसा हुआ इसके बाद कि मै संयुक्त परिवार से अलग बसेरे में आ गया जो मेरे कार्य-स्थल के ठीक ऊपर है। यानी पहली मंज़िल पर।यहां आते ही बेटी और ख़ासकर बेटे ने घर में श्वान लाने की ज़िद को आंदोलन का रूप दे दिया।संयोग कहूं या मेरी औलादों की क़िस्मत बहुत जल्द ही घर में श्वान आ गया।काला,बड़ा प्यारा सा,दस दिन का था जब हमारे परिवार में शरीक हुआ वो।बेटी का नाम दिशा है और बेटे छोटू कहते हैं॥ यानी दो शब्द मिल गये हमें .सी छोटू के लिये और डी दिशा के लिये॥श्वान को नाम मिल गया सीडी । उसके पंजों पर सुनहरी रंग के निशान है आंखों पर भी और छाती पर भी।पिछ्ले दिनों उसने हमारी गृहस्थी में आने के तीन साल पूरे कर लिये हैं।वो हमारे बहुत से इशारे और शब्द समझ गया है इन सालों में।उसने घर में अपने निशान बना रखे हैं कि वह कहॉ कहाँ तक और किस किस कमरे में आ - जा सकता है।वह डेशुंड प्रजाति का श्वान है॥अब सच मानिये उसे कुत्ता कहने में संकोच होता है॥वह हम सबका प्यारा सीडी जो ठहरा।वह एक छोटे क़द का श्वान है...बहुत भोला , समझदार और सतर्क। हमारे पडौसी के घर की मुंडेर पर देर रात ख़ामोशी से जा रही बिल्ली भी सीडी की नज़रों से ओझल नहीं हो सकती। सीडी बहुत मिलनसार और दोस्ती निभाने वाला श्वान है।वह एक बार आपसे मिल ले तो आपको भूलता नहीं।दिन भर दुम हिलाना उसका सबसे खा़स शग़ल है।उसे घर की रसोई,मंदिर और शयन-कक्ष में जाने की इजाज़त नहीं है तो वो वहां नहीं जाता।आप ज़िक्र भर कर दें कि सीडी तुम्हारा बेल्ट कहां है॥यकी़न जान लें सीडी बाक़ायदा कहीं से भी अपना बेल्ट ढूंढ ही लाते हैं।सीडी बहुत संवेदनशील भी है...हम जब भी प्रवास पर जाते हैं तो उसे हमारे सामान यानी बैग्स से मालूम पड़ जाता है कि घर के लोग कहीं बाहर जाने वाले हैं। अपनी खु़राक़ के मामले में सीडी बिल्कुल भी चटोरा नहीं है।उसे तो हमारी श्रीमतीजी (जिन्हें मेरे अलावा सीडी भी घर की मालकिन ही मानता है ) डरा-धमकाकर ही भोजन खिला पाती हैं।सीडी से में स्वामी-भक्ति का गुण तो सीखने जैसा है ।उससे सबसे प्यारी और महत्वपूर्ण बात सीखने की है उसका अपने परिवार यानी हम सबके लिये सत्कार भाव।हममें से कोई भी या हम सब बाहर से किसी भी वक़्त घर लौटे सीडी सो रहा हो या अपना भोजन कर रहा हो ॥तुरंत दरवाज़े पर आपके स्वागत के लिये तत्पर मिलेगा और कूद-कूद कर पूंछ ज़ोर ज़ोर से हिलाते हुए जताएगा कि वह आपके घर लौटने से कितना खु़श है।वह सिर्फ़ बोलना नहीं जानता लेकिन अपने आपको व्यक्त तो कर ही देता है।उसका हर वक़्त इस तरह हमारी बाट जोहना संदेश और नसीहत देता है कि मेहमाननवाज़ी एक संस्कार है जिसे मनुष्य तक़रीबन भूलता जा रहा है। उसकी अपनी प्राथमिकताएं हैं , बिज़नेस कमिट्मेंट्य हैं,अभिरुचियां हैं और हैं स्वार्थ से जुडे़ कुछ सरोकार जिससे वह तय करता है कि किससे मिलना है...किससे नहीं आपके घर का चौपाया आप पर निर्भर है लेकिन तहज़ीब के नाम पर उसने अपनी प्रतिबध्दताएं नहीं बदलीं हैं।सीडी हमारा श्वान ही सही लेकिन वह कभी कभी एक पाठशाला बन जाता है...इंसान से बडा़ नज़र आता है सीडी.Technorati Profile