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Saturday, June 28, 2008

देर रात को जग रहें हों तो सारंगी पर सुनिये ये मांड

केसरिया बालम पधारो म्हारे देस ये बंदिश आपके लिये अपरिचित नहीं हैं।राजस्थान के लोक संगीत में तो ये सुनी ही जाती रही है लेकिन भारतीयशास्त्रीय संगीत में भी ये एक प्रमुख राग है. मांड कई रंगों की होती हैं.पं.अजय चक्रवर्ती ने इस पर ख़ासा शोध किया है और जाना है कि तक़रीबन सौ तरह की माँडें गाई बजाई जातीं रहीं हैं।

Maand - Sarangi.wm...



सांरगी शास्त्रीय संगीत का प्रमुख संगति वाद्य है ।लेकिन एकल वाद्य के रूप में भी सारंगी बहुत मनोहारी सुनाई पड़ती है। पं.रामनारायण,साबरी ख़ाँ,लतीफ़ख़ाँ और सुल्तान ख़ाँ जैसे कई उस्ताद सारंगी के ज़रिये क्लासिकल मौसिक़ी की ख़िदमत करते रहे हैं।और हाँ रावण हत्था नाम का लोक वाद्य भी सारंगी का पूर्ववर्ती स्वरूप रहा है। आपने कई मांगणियार या लांगा गायकों के साथ में सारंगी बजती सुनी होगी.सुल्तान ख़ाँ साहब की बजाई इस माँड में बस बोल नहीं हैं लेकिन सुनिये तो इसमें दीन - दुनिया की कितनी सारी खु़शियाँ और ग़म पोशीदा हैं.