आज यानी 14 जुलाई को अपने संगीत से जादूगरी करने वाले अज़ीम मौसिकार
मदन मोहन जी की बरसी है (निधन वर्ष : 1975) मदन जी का संगीत तो हम
वर्ष भर सुनते ही रहते हैं क्योंकि वह किसी तारीख़ या कालखण्ड का मोहताज
नहीं है ; आपको मदन मोहन के संगीत नियोजन में लता मंगेशकर
के गाये कई गीत सुनने को मिल जाते हैं ; लेकिन आज कोई नई चीज़ परोसी
जाए आपको.
हमने कई बार महसूस किया है कि किसी भी गीत की ताक़त होती है उसकी
धुन (हालाँकि संगीतकार को क्रेडिट देने के मामले में हम आज भी थोड़े कंजूस ही हैं)
इसी बात को साबित करने के लिये आज आपके लाया हूँ मदन मोहन का संगीत
लेकिन उसमें शब्द नहीं हैं. गीत हम सुनेंगे बाँसुरी पर , मेरा दावा है कि
शब्द स्वत: ही आपके होठों पर आकर थिरकने लगेंगे.इसे बजाया है
मेरे बाल सखा और मध्य-प्रदेश के जाने माने कलाकार सलिल दाते ने.
सलिल दाते को शास्त्रीय संगीत की तालीम देश के जानी मानी वॉयलिन
वादिका डॉ.एन.राजम और बाँसुरी वादक पं.रोनू मुजुमदार से मिली है.
सलिल वॉयलिन और बाँसुरी दोनो ही वाद्यों मे निष्णांत हैं.
सलिल बेहतरीन संगीतकार भी हैं और तलत महमूद और
संगीतकार मदन मोहन के अनन्य मुरीद.बेहद कोमल और भावुक
सलिल दाते एक राष्ट्रीयकृत बैंक मे कार्यरत हैं
लेकिन उनका पहला प्यार है संगीत और सिर्फ़ संगीत.
हाँ ये भी बता दूँ कि सलिल दाते के वादन को मदन मोहन जी के सुपुत्र संजीव कोहली ने भी बहुत सराहा और प्रतिक्रियास्वरूप एक पत्र में लिखा कि मेरे पिता के संगीत की ख़ूबियाँ बाँसुरी जैसे क्लिष्ट वाद्य में आपने जिस तरह से उभारीं हैं वह तो उल्लेखनीय है ही ; साथ ही आपकी निजी सांगीतिक सोच भी वादन के सुरीलेपन में इज़ाफ़ा करती है.यदि आप भी सलिल को अपना प्रतिसाद देना चाहें तो उनका मोबाइल नम्बर नोट कर लें 09425346188
सुनते हैं बाँसुरी पर मदन मोहन के ये जो एक धुन के रूप में आप से मुलाक़ात
करने जा रहे हैं फ़िर भी उनका प्रभाव यथावत है.पहले ट्रेक में सलिल दाते के
एलबम मेरा साया साथ देगा का परिचय ख़ाकसार की आवाज़ में है. हाँ ये एलबम
विशुध्द रूप से लताजी और मदन मोहन जी के गीतों पर ही एकाग्र है.
नैनों मे बदरा छाये ये आख़िरी पेशकश है सलिल दाते की जो सवेरे पूरी नहीं सुनाई दे रही थी.अब इसे फ़िर से लगाया है . आशा है राग भीमपलासी का पूरा रंग आपको मदन मोहन जी की यादो मे भिगो देगा.
चलते चलते ये भी बता दूँ कि बाँसुरी वादक सलिल दाते और संगीतकार मदन मोहन जी पर एकाग्र इस पोस्ट को आज कई संगीतप्रेमियों ने पढ़ा जिनमें से एक थे मदन मोहन जी के सुपुत्र श्री संजीव कोहली. उन्होंने ईमेल के ज़रिये अपनी जो बात कही वह भी इस पोस्ट को संपादित कर यहीं शुमार किये दे रहा हूँ
Dear Sanjayji
Thank you so much for remembering our dear father on this day.
It is admirers like you who keep him alive through the appreciation of his work even after 33 years of his leaving us.
I read and enjoyed your blog as well as the Shrota Biradari blog.
pl. once again convey my regards to Salil Dateji
All the best
Sanjeev Kohli