सिर्फ़ उसे एक देह समझना नादानी है
दायित्व की याद दिलाते रहना मूर्खता है
पत्नी में पाई है मैने एक सखी
आत्मीयता को जिसने आचरण में ढ़ाला है
ज़िम्मेदारियों को जिसने आदत बना डाला है
वह उठती है तो सूरज को याद आता है
कि उसे भी काम पर जाना है
भोर से उसका रिश्ता क्योंकि सूरज से भी पुराना है
घर के और लोग जब बाँचते हैं अख़बार
तब तक वह सँवार चुकी होती है अपना घर-संसार
वह है तो न जाने क्यों ये आश्वासन है
कि सब कुछ निर्बाध है हमारे जीवन में
उसका होना उसके वजूद से भी बड़ा है
वह इसका मोल नहीं मागती
कभी जताती नहीं की उसी से सब कुछ
निश्चिंत होकर है चलायमान हमारे जीवन में
पत्नी लिखने में चाहे इ की मात्रा भले ही बड़ी लगती हो
वह मेरी ज़िन्दगी में हमेशा अपने को छोटा बनाए रखती है
उसने घर-आँगन और मेरे प्यारे बच्चों को दिया है
एक अपनापन,परम्परा और संस्कार
वह होती है हर वक़्त मेरे आसपास हवा की तरह
लेकिन उसका कोई रंग , आकार नही होता
मैं हूँ यदि सफ़ल
तो उसमें उसका मौन त्याग
और प्रार्थना है प्रबल
वह मधुरता और सरसता की है बानी
उसी से कुछ तसल्ली भरी है ज़िन्दगानी
(आज जीवन संगीनी के जन्म दिन पर )