Wednesday, April 7, 2010

कुमार गंधर्व के जन्मदिन पर विविध भारती की सुरीली सौग़ात.


पं.कुमार गंधर्व अपनी विशिष्ट गायकी के साथ मालवा के लोक-संगीत और निरगुणी पदों के गायन के लिये हम सब संगीतप्रेमियों के चहेते हैं. 8 अप्रैल को उनके जन्मदिन से विविध भारती द्वारा अपने लोकप्रिय कार्यक्रम संगीत-सरिता में एक नई श्रंखला प्रारंभ हो रही है जिसमें कुमारप्रेमियों को कुछ अनमोल और अनसुनी बंदिशे सुनने को मिलेंगी. यह कार्यक्रम इसलिये भी विशेष बन पड़ा है क्योंकि इसे प्रस्तुत करने जा रहीं हैं कुमार जी सुपुत्री और शिष्या कलापिनी कोमकली. 21 अप्रैल तक चलने वाली इस प्रस्तुति में जानेमाने गायक और रंगकर्मी शेखर सेन कलापिनी से कुमारजी की स्वर यात्रा पर बतियाएंगे. कार्यक्रम का प्रसारण समय वही है यानी प्रात:7,30 बजे।कलापिनी बतातीं हैं कि इस कार्यक्रम में अल्पायु से संगीत परिदृष्य पर बालक कुमार की आमद कैसे हुई इसका ज़िक्र तो है ही साथ में उन रागों की बानगी भी है जो कुमारजी ने स्वयं रचे थे. उल्लेखनीय है कि पं.कुमार गंधर्व मूल रूप धारवाड़ अंचल में पैदा हुए, मुम्बई आकर प्रो.देवधर के शिष्य बने और अपनी रूण्गावस्था के दौरान मालवा के देवास क़स्बे में आकर बसे. यह वही देवास है जहा उस्ताद रज्जब अली ख़ा साहब भी हुए और जिनकी गायकी का असर उस्ताद अमीर ख़ाँ की गायकी में भी सुनाई दिया.

कलापिनी ने ये भी बताया कि कुमार गंधर्व एकमात्र ऐसे संगीतज्ञ हुए हैं जिन्होंने मालवांचल की बोली मालवी और उसके लोकगीतों को बंदिशों का स्वरूप दिया. उत्तरप्रदेश की अवधि का असर तो कई उत्तर भारतीय संगीत की बंदिशों में सुनाई दिया है जैसे बाजूबंद खुल खुल जाए,बाबुल मोरा नैहर छूटो ही जाए,लागी लगन, बरसन लागी सावन बूंदिया लेकिन मालवी का शुमार कुमारजी ने ही किया. गीत-वर्षा एलबम में कई मालवी लोकगीत बंदिश का आकार लिये हुए हैं.

कार्यक्रम में बातचीत कर रहे शेखर सेन ने मुझे बताया कि पं.कुमार गंधर्व पूरे शास्त्रीय संगीत परम्परा में ऐसे स्वर साधक हैं जिनकी हर एक प्रस्तुति में रचनाधर्मिता के दर्शन होते हैं. उनके बारे में बात करना और कुछ दुर्लभ बंदिशों को सुनना अपने आप में एक अविस्मरणीय अनुभव है. उम्मीद करें कि संगीत-सरिता में स्वरों का यह झरना तपते वैशाख में हम सब संगीतप्रेमियों के लिये एक अदभुत अनुभव होगा.

Sunday, April 4, 2010

आज से उजाले अपनी यादों के लेकर आ रहे हैं सलीम ख़ान


विविध भारती एफ़.एम. सेवा पर ’उजाले अपनी यादों के’श्रोताओं का बेहद पसंदीदा कार्यक्रम रहा है. हाल ही में हुए कार्यक्रम परिवर्तन के मुताबिक अब यह कार्यक्रम प्रत्येक रविवार को अपराह्न ४ बजे प्रसारित होगा. कार्यक्रम की समय सीमा भी एक घंटे की कर दी गई है.४ अप्रैल से प्रारंभ होने वाली नई श्रंखला में अतिथि कलाकार के रूप में इस कार्यक्रम में आ रहे हैं मशहूर संवाद लेखक जोड़ी सलीम-जावेद के सलीम ख़ान.विविध भारती के लोकप्रिय उदघोषक यूनुस ख़ान ने सलीम ख़ान से यह लम्बा इंटरव्‍यू उनके बांद्रा स्थित गैलेक्सी अपार्टमेंट में रेकॉर्ड किया है

उल्लेखनीय है कि इन्दौर में जन्मे और पढ़े-लिखे सलीम ख़ान संवाद लेखन के पहले अभिनय की दुनिया में क़िस्मत आज़माने मुम्बई तशरीफ़ लाए थे. उजाले अपनी यादों के कार्यक्रम में सलीम ख़ान ने गुज़रे ज़माने के अपने उस शहर इन्दौर की बेशुमार यादों को ताज़ा किया है. जिसमें मालवा का खानपान,पहनावा,रीति-रिवाज और रहन-सहन शामिल हैं.याद किया है अपनी उन माशूकाओं को जो अब दादी-नानी बन चुकीं हैं.और जानकारी दी है अपनी तेज़ रफ़्तार से भागने वाली उस मोटरसायकल की जो उन दिनों शहर इन्दौर में चर्चा का केन्द हुआ करती थी. हाँ इन्दौर के फ़्लाइंग क्लब का स्मरण भी आया है इस बातचीत में; जहाँ एक प्रशिक्षित पायलेट के रूप में सलीम ख़ान हवाई जहाज़ उडाया करते थे.यूनुस ख़ान से हुई इस गुफ़्तगू में रतलाम, जावरा,देवास,उज्जैन जैसे गावों और क़स्बों का ज़िक्र भी आया है.


कई कड़ियों में प्रसारित होने वाली इस बातचीत में इंदौर के मोहल्ले, सिनेमाघर, स्कूल और कॉलेजों की यादें भी सम्मिलित हैं.रेकॉर्डिंग की लम्बाई के मद्देनज़र हो सकता है कि विविध भारती के श्रोताओं को पूरा एक एपिसोड इन्दौर पर सुनने को मिले.एक ख़ास कड़ी में सलीम ख़ान अपने साहबज़ादे और अभिनेता सलमान पर बतियाएंगे.दो कडियों में उनकी पत्नी सलमा और अभिनेत्री हेलन पर भी चर्चा हुई है.


ग़ौरतलब है कि सलीम ख़ान एक शानदार किस्सागो हैं और उनके ज़हन में साठ के दशक से लेकर आज तक के सिनेमा,उसकी निर्माण प्रक्रिया,कहानी लेखन, अदाकारी,संगीत और निर्देशन को लेकर सैकड़ों क़िस्से ताज़ा हैं.तो विविध भारती एफ़.एम.पर सुनना न भूले ..उलाले अपनी यादों के...