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Saturday, November 17, 2012

जिन्दादिली का एक बेहतरीन स्ट्रेट ड्राइव

कुछ लोग होते हैं जो अपनी पंसद से जिन्दगी का इंतेखाब करते हैं और खरामा खरामा उसे ऐसी जगह ले आते हैं जहाँ से पीछे मुड़कर देखा जाए तो एक रुहानी इत्मीमान आपके दिल में आकार ले लेता है. प्रो.सूर्यप्रकाश चतुर्वेदी उन चंद इन्दौरियों में हैं जिन्होंने होलकरयुगीन क्रिकेट के सुनहरे दौर के सितारों को देखा और लिखा. कविता और शायरी से मुहब्बत की और उससे अपनी तासीर और तबियत को खुशमिजाज बनाया.अंग्रेजी पढ़ाई लेकिन हिन्दी खेल पत्रकारिता में नये नये मुहावरे गढ़े. रेखांकित करने योग्य तथ्य है कि हिन्दी खेल पत्रकारिता की शुरुआत नईदुनिया से हुई थी और राजेन्द्र माथुर,अभय छजलानी,प्रभाष जोशी,सुरेश गावड़े के साथ प्रो.चतुर्वेदी ने इस काम में व्यक्तिगत रुचि ली थी. सत्तर के दशक में टोनी ग्रेग की रहनुमाई में भारत आई इग्लैण्ड (तब एमसीसी) टीम से दिल्ली में हुए टेस्ट मैच की रिपोर्टिंग के लिये रज्जू बाबू ने प्रो.चतुर्वेदी को भेजा था.
प्रो.चतुर्वेदी बताते हैं कि बाळा साहब जगदाले ने उन्हें हिन्दी में लिखने के लिये प्रेरित किया और कहा कि अंग्रेजों के इस खेल को जनता में पहुँचाने के लिये हिन्दी में लिखा जाना बेहद जरूरी है. बाळा साहब क्रिकेट की कई तकनीकी बातों को हमें समझाया और नईदुनिया ने ही सबसे पहले क्रिकेट की कई नई इबारतें हिन्दी में रचीं.प्रो.चतुर्वेदी खुद स्कूली और क्लब क्रिकेट खेले हैं और दस से ज्यादा पुस्तके क्रिकेट पर लिख चुके हैं.इन्दौर स्पोर्ट्स राइटर्स एसोसिएशन (इस्पोरा) के संस्थापक रहे प्रो.चतुर्वेदी ने एक लम्बा समय शासकीय कला एवं वाणिज्य महाविद्यालय में प्राध्यापन किया और इन्दौर डिस्ट्रीक्ट क्रिकेट एसोसिएशन को उन दिनों में चलाया जब इन संस्थाओं के पास कोई वित्तीय कोष ही नहीं होते थे.वे कर्नल सी.के.नायडू,केप्टन मुश्ताक अली और मेजर जगदाले के मुरीद रहे हैं. गुजरे जमाने के इन्दौर को हर लम्हा जिन्दा रखने वाले प्रोफेसर साहब से बतियाना और उन्हें जानना यादों की अलमारी में रखे इत्र की महक का आनंद उठाने जैसा है.
क्रिकेट यदि उनका पहला प्यार है तो शायरी और कविता दूसरा.सन सत्तावन में गुजराती कॉलेज के छात्र के रूप में उन्हें एक कवि सम्मेलन की निजामत का मौका भी मिला था जिसमें नीरज,वीरेन्द्र मिश्र और रामकुमार चतुर्वेदी चंचल ने शिरकत की थी. शायरों में खुमार बाराबंकवी उनके चहेते रहे हैं और वे नब्बे के दशक में नीरज-खुमार की यादगार नशिस्त की मेजबानी भी कर चुके हैं.मल्हारगंज,जिमखाना,नेहरू स्टेडियम,नईदुनिया,यशवंत क्लब प्रो.एस.पी.चतुर्वेदी के खास ठिकाने रहे हैं.गौरवर्ण के मालिक,होठों में एक मासूम स्मित सजाकर रखने वाला यह शख्स कलम,किताब,क्रिकेट में रमा रहा है और जीवन के पिच पर आने गेंद पर एक खूबसूरत स्ट्रेट ड्राइव लगा कर ७५ अविजित है.एक बेहतरीन किस्सागो और जिन्दादिल इंसान को जीवन-शतक मुकम्मल करते देखना सुखकारी होगा;आमीन ! (पहले चित्र में प्रो.चतुर्वेदी केप्टन मुश्ताक अली और इग्लैण्ड के ख्यात क्रिकेटर ट्रेवर बैली के साथ.दूसरे में कविवर नीरज के साथ आत्मीय गुफ़्तगू)