Friday, August 17, 2007

मालवा की काव्य सुरभि को समृद्ध करने वाले सुमन का जन्मदिन


डाक्टर शिवमंगल सिंह सुमन को मालवा में याद करना यानी उस शख्सियत को याद करना है जिसने अपने साहित्य कर्म से पूरे परिवेश को सुरभित किया. तिथि के अनुसार नागपंचमी के शुभ दिन सुमनजी का जन्मदिन आता है.१८ अगस्त को सुमनजी का जन्म दिन जब मना रहे हैं वे हमारे बीच नहीं है. उत्तरप्रदेश के उन्नाव से बनारस,ग्वालियर होते हुए सुमन जी मालवा की सांस्कृतिक राजधानी औरपुण्य सलिला शिप्रा के किनारे बसे विक्रमादित्य और कालीदास की नगरी उज्जैन के विक्रम विश्वविद्यालय के कुलपति बन कर क्या आ गए...पूरा मालवा निहाल हो गया. उनकी ओजपूर्ण वाणी,भव्य व्यक्तित्व और प्रवाहपूर्ण लेखन मालवा को जैसे एक पुण्य प्रसाद का सुख दे गया.मानो मालव वासियों की साध पूरी हो गई॥जीवन की अंतिम बेला तक डाँ.सुमन को उज्जैन और उज्जैन को डाँ. सुमन को अपने प्रेमपाश में बांधे रखा.महादेवी,प्रसाद,निराला,तुलसीदास,ग़ालिब,मीर,जायसी,सूरदास, आचार्य रामचन्द्र शुक्ल,प्रेमचंद ,मैथिलीशरण गुप्त पर धाराप्रवाह बोलने वाले डाँ.शिवमंगल सिंह सुमन ने मालवा ही नहीं पूरे हिन्दी साहित्य जगत को अपनी अभूतपूर्व मेधा से स्पंदित किया. सुमनजी आज मालवा में नहीं हैं लेकिन शिप्रा,चंबल,नर्मदा,उज्जैन और इन्दौर का पूरा साहित्यजगत उन्हें अब भी कहीं अपने करीब महसूस करता है. उन्होने अपने काव्य वैभव से पूरे हिन्दी जगत को अप्रतिम स्नेह दिया है..इस स्नेह से मिली उर्जा से उनके रोपे कई काव्य और साहित्य हस्ताक्षर लहलहा रहे हैं.यकी़नन सुमनजी जिस भी लोक में है ..अपनी उसी छटा से काव्य पाठ में व्यस्त होंगेजो न केवल रसपूर्ण थी बल्कि विलक्षण भी. आत्मकथ्य के रुप में उन्ही की काव्य पंक्तिया पढते हुए उन्हें आदरान्जली देते हैं ....

मैं शिप्रा सा ही तरल सरल बहता हूँ
मैं कालीदास की शेष कथा कहता हूँ

मुझको न मौत भी भय दिखला सकती है


मैं महाकाल की नगरी में रहता हूँ


हिमगिरि के उर का दाह दूर करना है


मुझको सर,सरिता,नद,निर्झर भरना है


मैं बैठूं कब तक केवल कलम सम्हाले


मुझको इस युग का नमक अदा करना है


मेरी श्वासों में मलय - पवन लहराए


धमनी - धमनी में गंगा-जमुना लहराए


जिन उपकरणों से मेरी देह बनी है


उनका अणु-अणु धरती की लाज बचाए





Wednesday, August 15, 2007

एक प्यारी नीति कथा....पिल्लू का हमदर्द


एक दुकान पर एक साईन बोर्ड लगा था...'पिल्लै' (कुत्ते के बच्चे ) बेचना है। एक बच्चा बोर्ड पढ़कर दुकान में आया और उत्सुक्तापुर्वक पिल्लों की कीमत पूछी । दुकानदार ने एक पिल्लै की कीमत ३० डॉलर बताई। बच्चे ने अपनी जेब टटोली तो उसमे सिर्फ दो डॉलर निकले। बच्चा बोला क्या दो डॉलर लेकर दुकानदार पिल्लों को देखने और प्यार करने की इजाज़त दे सकता है। दुकानदार बच्चे की मासूमियत देख कर निरुत्तर हो गया।




इतने में कुतिया अपने पांच पिल्लों के साथ वहाँ से निकली ...पांचवा पिल्ला लचककर सबसे आख़िर में धीरे धीरे चल रहा था। बच्चे ने इसका कारण पूछा ...दुकानदार बोला इसके कूल्हे में पैदायशी खराबी है इसी वजह से ये बड़ा होने पर भी लंगडा ही चलेगा .बच्चा चहककर बोला मुझे यही पिल्ला चाहिए ...दुकानदार बोला इस पिल्लै के लिए तुम्हे पैसे चुकाने की ज़रूरत नहीं है इसे मैं मुफ़्त में ही दे दूंगा.
बच्चा मायूस हो गया । दुकानदार की आँखों में आखेँ डालकर बोला...नहीं मैं इसकी पूरी कीमत अदा करूंगा और ध्यान रखना मेरे इस पिल्लू को कभी किसी से कम मत आँकना . अभी पेशगी ये दो डॉलर रख लो मैं बाद में आकर किश्तों मे इसका भुगतान भी कर दूंगा। दुकानदार बोला ...क्या तुम जानते नहीं कि ज़िंदगी भर ये कुत्ता तुम्हारे साथ नहीं खेल पायेगा ..कभी कूद नहीं पायेगा ...




तब बच्चे ने अपनी पतलून को घुटने के ऊपर तक चढाया और दुकानदार अपना बाँया लंगडा पतला और पोलियोग्रस्त पतला पैर दिखलाया ...उसने अपने शरीर को सीधा और संतुलित रखने के लिए कैलीपर्स लगा रखे थे .बहुत विनम्रता से दुकानदार से बोला अंकल मैं भी अच्छी तरह से खेल नही सकता ...कूद नही सकता भाग नहीं सकता ...आख़िर इस नन्हे पिल्लू का दर्द समझने के लिए कोइ तो दोस्त होना चाहिए.




बहुत सुस्त था मेरे शहर का मंज़र...आपके ?

रोज़मर्रा सा ही था दिन आज का।कुछ ने सो कर गुज़ारा ... किसी ने खा पी कर लिया मज़ा...कोई था थका हारा....कोई फ़िल्म देखता रहा...कोई मिठाई बेचता रहा...कोई आप और मेरे जैसा था जो ब्लाँग लिखता रहा...किसी ने झंडा चढा़ किसी ने शाम को उतारा....साठ के हो जाने की कहीं कोई खुशी नज़र नही आई...सड़कों पर सुस्त दिखे बहन भाई....रोज़ी के लिये सब्ज़ी बेचती बूढ़ी माई...बदस्तूर जारी था मेरे शहर में गाडियों का कारवाँ...फ़िर हो गए लाल क़िले से कुछ नये वादे...देखते रहें आप और हम क्या हैं नेताओं के इरादे...कवियों ने लिखी देश के सूरते हाल की कविताएं...जिन्होनें देखा था सन सैंतालीस का पन्द्रह अगस्त वे सोचते रहे अब किससे क्या बतियाएँ...चलो रोटी खाओ...रात हो गई...आप और मै भी सो जाएँ...मन गया आज़ादी का जश्न...मन गई छुट्टी...कल से फ़िर काम पर लग जाएँ.

जानबूझकर भुला दिए जा रहे हैं सुभाष बाबू

पूरा देश आज़ादी की सालगिरह मनाने में व्यस्त है। पोस्टर लगे हैं.. .अभी कल पैदा हुए नेताओं के ...हाथ में झंडा लिए खड़े हैं और बड़े बड़े अक्षरों में लिखा है ये स्लोगन ...ज़रा याद करो कुरबानी . ज़रा पूछे कोई इनसे इन्होने कौन सी कुरबानी दी है...किसे फ़ुरसत है महानायक नेताजी सुभाषचंद्र बोस को याद करने की मन व्यथित था सोचा चलो यू ट्यूब पर देखा जाए...यू ट्यूब को तलाशा तो तसल्ली हुई और मिली ये लिंक जिसमे आज़ाद हिंद फ़ौज का तराना नेपथ्य में सुनाई दे रहा है और दिखाई दे रही है नेताजी के जीवन की चित्रमय झांकी .नीचे दिए लिंक कोकाँपी कर पेस्ट कीजिये ब्राउज़ ....जगाईए अपने मन में इस सर्वकालिक महान जननायक के असीम आदर भाव ...
http://www.youtube.com/watch?v=uSyGjun_tgc



जय हिन्द .....नेताजी ज़िंदाबाद !

Tuesday, August 14, 2007

फ़िर आ गया स्वतंत्रता का सरदर्द

ये भी है एक नुक्ता ए नज़र .... ऐ मेरे वतन के आम इन्सान ज़रा ग़ौर कर.

हैलो हाय न बोलिये...वंदेमातरम फ़िज़ाँ में घोलिये !

कल यानी १५ अगस्त के दिन इतना तो कर ही सकते हैं हम सब। अपने रिश्तेदार/ दोस्तो को फ़ोन कर के आज़ादी की ६० वीं वर्षगाँठ की मुबारकबाद तो दे ही सकते है। मिठाई भी बाँटे तो मुझे कोई ऐतराज़ नहीं । हैप्पी न्यू ईयर और हैप्पी दिवाली/हैप्पी होली/हैप्पी ईद के साथ एक दूसरे को वंदेमातरम बोलने का सिलसिला भी तो हम शुरू कर सकते हैं...कहते हैं न बाँटने से बढ़ता है प्यार...तो इस बार क्यों न बाँटें उस प्यार जो हमें वतनपरस्त होने का सुक़ून देता है। आख़िर इसी प्यारे मुल्क ने ही तो है हमें पहचान दीं है कि हम गर्व से कह सकें कि हम हैं भारतीय....और हाँ ये भी किजीये कि आपको आने वाले हरा एक फोन पर हैलो न बोल कर (अजी जनाब आज से ही प्रारंभ कर दें तो कौन से छोटे हो जाएंगे) वंदेमातरम बोल कर देखिये तो सही ! आपकी आवाज़ सुनने वाला भी प्रसन्न होगा और प्रेरित भी।
तो चलिये शुरूआत आप और मैं ही करते हैं...अभी से....नेक काम में देरी कैसी...
वं दे मा त र म !

Monday, August 13, 2007

अच्छा हुआ भगतसिंह..राजगुरू..सुखदेव तुम चले गए

अच्छा हुआ तुम चले गए ..भगतसिंह..राजगुरू...सुखदेव
तुम आज़ाद भारत के आम आदमी को देखकर क्या करते



किसे देखते ?

उस हिन्दुस्तानी को जो भ्रष्टाचार में धँसा हुआ है


जो बहन-बेटियों की अस्मत पर हाथ डाल रहा है



जो बेरोजगारी और भुखमरी से जूझ रहा है
जो अपनी तहज़ीब को भूल कर अफ़ीमची बन बैठा है

जो पडौसी का दर्द नहीं बाँटता
जिसने ज़ुबान को हल्का बना रखा है

उसे जो लोन लेकर चादर के बाहर पैर निकालना सीख गया है

जिसे दूसरों के आँसू देखकर पीड़ा नहीं होती

क्या अपने मुल्क के उन नौनिहालों को देखना पसंद करते जों

कंधे पर बस्ते बोझ उठा कर मज़दूर की तरह घर लौटते हैं



या उन्हें जों बरतन मांज रहे हैं

और धो रहे हैं कप-बसी और लगा रहे हैं ढा़बे में झाड़ू

क्या उन बूढ़े माँ-बाप को देखकर खु़श होते

जो दो दो बेटों के होने के बावजूद वृध्दाश्रम में रहने को मजबूर हैं

मिलना चाहते उस मास्टर से जो हर लम्हा अपमानित हो रहा है
ये हिन्दुस्तानी बेशर्म हो गए मेरे प्यारे भगत,राजगुरू,सुखदेव



ये महान भारतवासी सैंसेक्स के उतार-चढाव पर घंटों बतिया लेंगे

लेकिन शहीदों की दास्तान सुनने - सुनाने में शर्माएंगे

शराब और शबाब में डूबी पार्टियों में पूरी पूरी रात नाचते रहेंगे

लेकिन तिरंगे और राष्ट्रगीत के सम्मान में तीन मिनट खडे नहीं रह सकेंगे


क्या देखना चाहते उन शहरों को जो माँल कल्चर में बौरा गए हैं

देखना चाहोगे उन नौजवानों से जो क्लब्स में बैठे शराबख़ोरी कर रहे हैं

चाहते हो उन बेटियों से मिलना जो देह उघाड़ने को अपना सौभाग्य मान रहीं

देखना चाहते उन सड़कों को जिन पर से हज़ारों पेड़ विकास के नाम पर काट दिये गये हैं
क्या देखना चाहते हो इस देश की उस व्यवस्था को जो ग़रीब के लिये फ़राहम नहीं

देखना चाहते उन योजनाओं को जो बनती ग़रीबों के लिये हैं और जिनके फ़ायदे उठाते हैं रईस


अच्छा हुआ भगतसिंह...राजगुरू ...सुखदेव

हँसते हँसते तुम झूल गए फ़ाँसी के फ़ंदे पर



भारत का सूरते हाल देखकर तुम जीते जी मर जाते
साठ साल का बूढा़ होकर ये चिट्ठी लिखने को मजबूर हूँ..

ये वही भारत है जिसके लिये तुम सब ने भरी जवानी में दीं शहादतें,क़ुरबानियाँ



मिला क्या तुम्हे ...तुम्हारे घर वालों को
अच्छा हुआ ये दिन देखने को नहीं रहे भगतसिंह...राजगुरू...सुखदेव

ना कोई पद्मभूषण...ना कोई भारत-रत्न

अब तो आँखों का पानी भी सूख गया है

क्योंकि नज़रों के लिहाज़ ही मर गए

अच्छा हुआ तुम चले गए...

भगतसिंह..राजगुरू...ु

Wednesday, August 8, 2007

बामुलाहिज़ा होशियार...महान राष्ट्रीय प्रसंगों के लिये नेताजी तैयार

आपके हमारे लिये स्वतंत्रता दिवस की 60 वी वर्षगाँठ और प्रथम स्वातंत्र्य संग्राम के 150 वर्ष पूर्ण होना अपने आप में जीवन की किसी पूरी साध पूरी होने से कम नहीं है। लेकिन एक और प्राणी है जो इस पुण्य प्रसंग के नज़दीक आने से विशेष रूप से प्रसन्न है। वे हैं हमारे नेताजी...वे अभी से इस उत्सव को भुनाने की मानसिक तैयारी किये बैठे हैं. वैसे समय भी तो कर रह गया है.काम कितने सारे करना है.


सबसे पहले तो उन्होने अपने ड्रेस डिज़ाइनर को काम पर लगा दिया है कि वह जल्द से जल्द उनके लिये सादे मगर ड्रेस डिज़ाइनर कुर्ते पज़ामे तैयार कर रखे.अपने सेकेट्री को ताकीद भी कर दिया है कि भले ही ये कहने को ड्रेस डिज़ाइनर हो गए हों पर समय की फ़ितरत तो वही अपने टेलर माड़्साब वाली है सो फ़ैब इण्डिया से भी चार पाँच रेडीमेड जोड़ी भी लाकर तैयार रखे.



नेताजी ने अपने इवेंट मैनेजर को इस काम पर लगा रखा है कि वह तलाशे कि कौन कौन से प्रीमियम आयोजक हैं जो अपने आयोजनों में भीड़ और मीडिया का लाजवाब जमघट कर लेते हैं। नेताजी चाहते हैं ऐतिहासिक होने जा रहे प्रसंग का अपना महत्व है और सारा देश इसका ध्यानपूर्वक नोटिस लेने वाला है. पार्टी हाइकमान भी नज़र रखे कि है कि किस कार्यकर्ता ने अपने आपको इन आयोजनों में सक्रिय रखा है. तो इवेंट मैनेजर इज़ आँल सैट ...फ़ेहरिस्त लगभग तैयार है कि नेताजी कहाँ-कहाँ जाने वाले हैं.


नेताजी ने समय रहते एक दक्ष फ़ोटोग्राफ़र भी बुक कर लिया है क्योंकि मालूम है कि ऐन वक़्त पर ये धोका देगा और पैसा भी ज़्यादा लेगा.नख़रा करेगा सो अलग.उसे अभी से एक लम्बी मीटिंग कर के समझा दिया गया है कि वह किस किस एंगल का ध्यान रखे और किस किस हाईप्रोफ़ाइल नेता के तस्वीरें ले....विशेष रूप से ये भी बता दिया गया है कि जिन आयोजनों में फ़िल्म स्टार शिरकत करने वाले हैं उनमें फ़ोटो अविस्मरणीय आना चाहिये ..स्पेशली तारिकाओं के साथ।

नेताजी की बिटिया पिताश्री की बाँडी लैंग्वेज पर काम कर रही है। बता रही है कि आप इन दिनों बस मुस्कुराते तब तो ज़्यादा ही जब पार्टी के बड़े नेता कार्यक्रमों में मौजूद हों . बिटिया ने ये भी बताया है और टिप दी है कि विपक्ष के नेता की मौजूदगी में तनाव लाने की ज़रूरत नहीं है. बल्कि उस समय तो ज़्यादा खु़शनुमा माहौल क्रिएट कीजिये डैड..इस मामले मे नेताजी को लालूजी को रोल-माँडल बनाने की सीख भी दी है बॆटी ने.


नेताजी की टास्कफ़ोर्स ने मीडिया मैनेजमेंट पर विशेष सतर्कता बरती है इस बार.मीडियाकर्मियों को आयोजन तक आने-जाने और आयोजनों को बेहतर और इत्मीनान से कवर करने के लिये वाहन,लैपटाँप और कालांतर में आ रहे त्योहारों के लिये स्पेशल गिफ़्ट वाउचर्स का इन्तज़ाम अभी से कर दिया है. मीडिया को बता दिया गया है कि यह राष्ट्रीय पर्व अपनी जगह है लेकिन असली टारगेट हैं आनेवाले चुनाव.आज़ादी की साठवीं और प्रथम स्वातंत्र्य पर्व की डेढ़ सौं वीं जयंती सब चोचले हैं भावनात्मक रूप से भारतीय जनमानस को भुनाने के..मुद्दा इतना भर है कि इस बडे़ इवेंट के ज़रिये नेताजी की साख और प्रोफ़ाइल में इज़ाफ़ा होना चाहिये.


झण्डे,डंडे,तिरंगे,बैनर,बैजेज़,पोस्टर्स,होर्डिंग्स,टीवी एड्स,इंटरव्यूज़,बुकलेटस की आकर्षक छपाई और उसके वितरण के प्रबंध को समझदार लोगों को सौंपा गया है जिससे कुछ इस तरह की बात बने कि रानी लक्ष्मीबाई,तात्या टोपे,भगतसिंह,सरदार पटेल या आज़ाद से बड़ा योगदान नेताजी का दिखाई दे।निष्णांत और नामचीन इश्तिहार प्रबंध एजेंसी को सारा काम दिया गया है कि वह अपने हुनर का ध्यान रखते हुए बस इस इवेट मे जान डाल दे.लोग भूल जाएं कि अमर सेनानी कौन जो कुछ हो रहा है ..या होने वाला है वह नेताजी के कर-कमलों से ही संभव है..वे ही हैं सुनहरे भविष्य के कर्णधार.


भाषणों की तैयारी के लिये एक राष्ट्रीय ख्याति के साहित्यकार और कवि को इंगेज कर लिया गया है। ये श्रीमान भी खादी पहनते हैं और फ़ाइव स्टार होटलों में विचरते है... और जैसा चाहिये वैसा भाषण नेताजी के लिये मौके और दस्तूर को मन मस्तिष्क में रखते हुए रचते। हैं ...इलाक़ा,श्रोता और आयोजन का प्रोफ़ाइल देखकर भाषा रचना करने में इनका कोई सानी नहीं कविराज ने अपना काम लगभग पूरा कर लिया ..और आजकल नेताजी की स्कूलिंग कर रहे हैं कि किस जगह कौन सा शब्द किस वज़न के साथ बोला जाना चाहिये.


नेताजी के भाषणों के दस्तावेज़ीकरण के लिये एक अलग टीम बनाई गई है जिसमें दो वीडियोग्राफ़र और दो आँडियो रेकाँर्डिंग करने वाले एक्सपर्ट्स हैं।सारे भाषणों को अविकल रेकाँर्ड करने का निर्देश जारी किया गया है. बाद में सक्षम एडीटर की मदद लेकर एक सीडी जारी करने का मानस बना है जिसे अंतत: चुनाव में इस्तेमाल किया जा सके.


तैयारियाँ पूरी है ..जोश पूरा है और पूरी तरह से नेताजी तैयार हैं. बस ऐतिहासिक तथ्यों ,तिथियों और महापुरूषों के नाम आदि को याद करने में थोड़ा वक़्त लग रहा है.आपसे निवेदन है कि यदि आपके मोहल्ले , काँलोनी,नगर या कार्यालय में स्वाधीनता दिवस की साठवीं वर्षगाँठ और प्रथम स्वातंत्र्य संग्राम को लेकर किसी आयोजन की भावभूमि बन रही हो तो कृपापूर्वक मुझे सूचित करें (हाँ हाँ बंदे ने भी नेताजी को प्रमोट करने की फ़ेंचाइज़ी ले ली है..आप भी इंटरेस्टेड हैं क्या ?) आपसी समझबूझ से नेताजी को आपके यहाँ ले आएंगे जनाब...देखिये तो सही एक प्रोफ़ेशनली मैनेज्ड नेता को राष्ट्रीय कलेवर और मूड के आयोजन में बुलाने का क्या मज़ा है.आप तो मेरे ब्लाँग पर टिप्पणी लिख दें ..मै समझ जाऊंगा कि आपसे संपर्क करना है.

Sunday, August 5, 2007

दोस्त ज़िन्दगी का नमक है


दोस्ती के नाम मनाया जा रहा है आज का दिन यानी अगस्त महीने का पहला रविवार ।

मुझे लगता है ..दोस्त के नाम या दोस्ती के नाम एक पूरी ज़िंदगी भी की जाए तो कम है।

दोस्त की कोइ वैश्विक परिभाषा बनाना नामुमकिन है क्योंकि दोस्ती बनने का आधार हर इन्सान की ज़िन्दगी में

अलग होता है। न जाने कैसे हालात (अच्छे / बुरे दोनों ही ) बनाते हैं कि दोस्त नाम का शख्स आपकी ज़िन्दगी में आ जाता है.सनद रहे दोस्त बनाए नहीं जाते...बन जाते हैं।


दोस्त ज़िन्दगी का नमक है ..एक ज़रूरी तत्व है जिसके बिना सुख-दु:ख नाम की सारी हलचलें बेस्वाद हैं ।


दोस्त वैसी ही एक ज़रूरत है जैसे जीवन को चाहिये हवा,पानी,सूरज,चांद,और धूप।


आप दोस्त को याद करें और वो सामने खड़ा हो जाए..वो है सच्चा दोस्त...उसे फोन क्या करना...एस.एम्.एस। क्या करना कि तुम्हारी याद आ रही है या तुम्हारी ज़रूरत आना पड़ीं है ।


दोस्त की तस्वीर फ्रेम में नहीं दिल में जड़ी होती है। उसकी तरफ़ नज़रें ले जाने की ज़रूरत ले जाना नहीं पड़ती; वह खुद नज़रों के सामने बना रहता है।


दोस्त एक पार्ट - टाइम बहलावा नहीं ...ज़िन्दगी में महकने वाली ऎसी खुशबू जो हर लम्हा , हर पल, हर घड़ी आपके पास महकती है।

दोस्त सिर्फ आपसे नहीं आपके पूरे परिवार,आपके परिवेश,आपके कामकाज और आपके सामाजिक सरोकारों का साझीदार होता है..आपके जीवन में ऐसा कुछ नही होता जो आपका दोस्त खारिज करे।


दोस्त यानी जीवन का एक ऐसा साथी जो आपको समस्त गुण-दोषों के साथ स्वीकार करता है।


और सबसे आख़िरी बात....बताता ...जताता नहीं कि वह है...वह होता ही है...वह वस्त्रों पर ढोला हुआ परफ्यूम नही....हल्की हल्की महक वाला इत्र है ...


आपकी ज़िन्दगी में भी दोस्ती का इत्र महकता रहे.....शुभकामना.


Saturday, August 4, 2007

टेलीफोन/मोबाइल पर ...बोलिये सुरीली बोलियाँ




सुमधुर संवाद के
मधुर टिप्स
....
-हमेशा संवाद की शुरूआत करें आदर/प्रेमपूर्ण अभिवादन से.

-जिस व्यक्ति का फ़ोन आया हो या जिसे फ़ोन कर रहे हों उसके परिवार में यदि कोई दुखद घटना हुई हो तो सबसे पहले अपनी सहानुभूति प्रकट करें.


- जब भी बात करें, नोटिंग के लिए अपने पास पेंसिल या कोरा काग़ज़ अवश्य रखें.

-मोबाइल या टेलीफ़ोन पर हमेशा संक्षिप्त बात करें
-यदि व्यावसायिक चर्चा कर रहे हैं तो बातचीत का जो भी सार हो, उसे पत्र या ई-मेल के द्वारा दूसरे व्यक्ति तक स्मरण पत्र के रूप में पहुँचाने की आदत डालें


- जो बात व्यक्तिगत मुलाक़ात में होने वाली हो उसे टेलीफ़ोन या मोबाइल पर न करें

-जन्म दिवस एवं विवाह वर्षगॉंठ दो ऐसे प्रसंग हें
जिन पर संवाद स्थापित कर आप संबंधों का नवीनीकरण कर सकते



-टेलीफ़ोन या मोबाइल पर होने वाली बातचीत के दौरान
आपको यदि किसी तनाव का पूर्वानुमान हो तो कृपया

कॉल को आधे घण्टे के लिए टालें। आप निश्चित रूप से राहत और शांति अनुभव

-वाहन चलाते समय एवं भोजन के समय मोबाइल/फ़ोन का प्रयोग न करें।
-स्मृतियों को मधुर बनाने के लिए हमेशा मीठा ही बोलें;
आपको कभी भी कड़वा सुनने को नहीं मिलेगा !

इन सब बातों के बारे में अपने बच्चों से ज़रूर चर्चा करें; स्कूल काँलेजों में सबकुछ सिखाया जा रहा है;ज़िन्दगी से जुड़ी व्यवहारिक बातें नहीं.आपकी इस सीख से नई पीढ़ी का फ़ायदा जुड़ा है.

Friday, August 3, 2007

आइये ...शहादत देने वालों को सेलीब्रिटी बनाएं


नज़दीक आ रहा है स्वाधीनता दिवस ...इस बार ये विशेष है ..दो वजहों से। एक : प्रथम स्वातंत्र्य संग्राम( १८५७ ) की १५० वीं वर्षगांठ मनाने का साल है ये । दो: स्वाधीन भारत (१९४७) के साठ वर्ष वर्ष भी पूर्ण हो रहे हैं इसी पन्द्रह अगस्त को .ब्लाँग के साथ एक डिज़ाइन डिसप्ले की शक्ल में जारी कर रहा हूँ ..उम्मीद है आप सब इसे संक्रामक बनाएंगे ..कोई रोक-टोक नहीं है ..कॉपी कीजिये और वापरिये इसे.ईमेल कीजिये ..प्रिंट निकाल कर घर- दफ्तर प्रदर्शित कीजिये। ये समय है उन शहादतों को याद करने का जिनकी वजह से हम आज़ाद वतन में खुली साँस ले रहे हैं.हमें तय करना होगा कि हमारे दिल में हमें किस सितारों को जगह देनी चाहिये.उन्हें जो करोड़ों में खेल रहे हैं या उन्हे जिन्होने देश की आज़ादी के लिये अपनी जान की परवाह नहीं की.मेरी क्रिएटिव टीम की रचना-प्रक्रिया और मेरे दिल से निकले स्फ़ूर्त विचार या जज़बात को आपकी तवज्जो की सख़्त ज़रूरत है.आपके प्रतिसाद से ये भी तय होगा कि क्या मैं ठीक सोच रहा हूँ या ये मेरी अति-भावुकता है.

दोस्तो ! वक़्त कुछ ऐसा चल रहा है कि हर माँ-बाप अपने बेटे-बेटी को सचिन - सानिया बनाना चाह रहे हैं और यदि देश के लिये क़ुरबान होने वाले भगतसिंह की ज़रूरत हो तो कहने लगते हैं हमारे पडौसी का बेटा है न पींटू उसे देख कर लगता है कि जन्मजात फ़ौजी है.दोहरे मानदंण्डों की हमारी भारतीयता कहाँ खडी़ है सोचिये.मुझे ब्लाँगर बिरादरी की संजीदगी पर अपने से ज़्यादा विश्वास है..भारत माता की जय !