Friday, April 17, 2009
लिखावट को सुन्दर बनाने वाला एक जुनूनी हिन्दी प्रेमी
इसे कोई दैवीय प्रेरणा कहें या जुनून; श्याम शर्मा नाम का ये शख्स है बहुत फ़ितरती.
मेरे शहर के नगर पालिक निगम का यह युवा इंजीनियर यूँ तो भवनों के निर्माण की अनुमति जारी करता है लेकिन इसके साथ ही एक और ख़ास काम वह बीते कई बरसों से कर रहा है और वह है हिन्दी की लिखावट यानी हैण्डराइटिंग को सँवारने का काम.वह सैकड़ों कि.मी.की दूरी की परवाह किये बग़ैर अपनी कार में सवार हो जाता है और दूरस्थ अंचलों में जाकर हिन्दी सुलेख का प्रशिक्षण देने लगता है. श्याम शर्मा जिसे हम मित्र श्याम भाई कहते हैं कई हुनर जानते हैं.वे कविता लिखते है, अभिनय करते हैं, गाना गा सकते हैं और सुधार सकते हैं आपकी हैण्डराइटिंग.श्याम भाई इस काम के लिये किसी तरह की व्यावसायिक अपेक्षा नहीं रखते . आप उन्हें याद भर कर लीजिये और श्याम भाई चले आएंगे आपके शहर/गाँव में.
श्याम भाई हिन्दी लिखावट की दुर्दशा पर बहुत दु:खी रहते हैं और मानते हैं कि यह इसलिये है कि हम सुलेख के प्रति बहुत लापरवाह होते हैं.उनका मानना है कि चूँकि धीरज नाम की चीज़ ज़िन्दगी से गुम ही हो गई है तो यह अधीरता हमारे अक्षरों में भी प्रतिध्वनित होती रहती है. वे हिन्दी सुलेख की तकनीक बेहद आसान तरीक़े से सिखाते हैं और कुछ दो-तीन फ़ामूलों के ज़रिये आपकी लिखावट में चमत्कारिक सुन्दरता ला सकते हैं. आपको जानकर ख़ुशी होगी कि शयाम भाई को मध्य-प्रदेश शासन उनके इस कारनामे के लिये साक्षरता पुरस्कार से भी नवाज़ चुका है और आउटलुक जैसी नामचीन पत्रिका उन पर पूरे पेज की स्टोरी भी कर चुकी है.
प्रचार प्रसार से बेख़बर श्याम भाई की इस हिन्दी सेवा के मद्देनज़र इन्दौर में स्थापित हुई नई-नकोरी सांस्कृतिक संस्था मोरपंख 18 अप्रैल को श्याम भाई का अभिनंदन करने जा रही है. इसी अवसर पर हिन्दी – उर्दू की दोस्ती के नाम एक शानदार कवि-सम्मेलन की आयोजना भी है जिसमें मुनव्वर राना, डॉ.राहत इन्दौरी, अशोक चक्रधर ,ओम,व्यास,जगदीश सोलंकी,देवल आशीष और माणिक वर्मा और प्रो.राजीव शर्मा जैसे जानेमाने काव्य हस्ताक्षर शिरक़त करने जा रहे हैं.इसी आयोजना में श्याम भाई की पुस्तिका तुरतं सीखो – सुन्दर लिखो का विमोचन भी होगा. श्याम भाई इस पुस्तिका को नि:शुल्क वितरित करेंगे. इसी पुस्तिका पर एकाग्र एक वैबसाइट हिन्दी-सुलेख के नाम से भी जारी कर दी गई है जिसकी सैर कर आप अपनी हिन्दी लिखावट सुधार सकते हैं,सुन्दर बना सकते हैं.
हिन्दी को निश्चित रूप से ऐसे ही सेवियों की ज़रूरत है. अंग्रेज़ी और बॉलपेन ने वाक़ई हमारी लिखावट को बिगाड़ा है. स्कूलों में भी अब बच्चों की लिखावट के प्रति कोई चिंता नहीं जताई जा रही है.श्याम भाई ने जीवन में बहुत संघर्ष किया है वे मानते हैं कि कन्यादान,विद्यादान और अग्निदान में से कोई भी एक काम कर लेने से मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है अत: वे हिन्दी सुलेख की सीख देकर पुण्य कमाना चाहते हैं.
माँ हिन्दी को ऐसे ही सपूतों की ज़रूरत है. सलाम श्याम शर्मा.
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