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पं.कुमार गंधर्व अपनी विशिष्ट गायकी के साथ मालवा के लोक-संगीत और निरगुणी पदों के गायन के लिये हम सब संगीतप्रेमियों के चहेते हैं. 8 अप्रैल को उनके जन्मदिन से विविध भारती द्वारा अपने लोकप्रिय कार्यक्रम संगीत-सरिता में एक नई श्रंखला प्रारंभ हो रही है जिसमें कुमारप्रेमियों को कुछ अनमोल और अनसुनी बंदिशे सुनने को मिलेंगी. यह कार्यक्रम इसलिये भी विशेष बन पड़ा है क्योंकि इसे प्रस्तुत करने जा रहीं हैं कुमार जी सुपुत्री और शिष्या कलापिनी कोमकली. 21 अप्रैल तक चलने वाली इस प्रस्तुति में जानेमाने गायक और रंगकर्मी शेखर सेन कलापिनी से कुमारजी की स्वर यात्रा पर बतियाएंगे. कार्यक्रम का प्रसारण समय वही है यानी प्रात:7,30 बजे।कलापिनी बतातीं हैं कि इस कार्यक्रम में अल्पायु से संगीत परिदृष्य पर बालक कुमार की आमद कैसे हुई इसका ज़िक्र तो है ही साथ में उन रागों की बानगी भी है जो कुमारजी ने स्वयं रचे थे. उल्लेखनीय है कि पं.कुमार गंधर्व मूल रूप धारवाड़ अंचल में पैदा हुए, मुम्बई आकर प्रो.देवधर के शिष्य बने और अपनी रूण्गावस्था के दौरान मालवा के देवास क़स्बे में आकर बसे. यह वही देवास है जहा उस्ताद रज्जब अली ख़ा साहब भी हुए और जिनकी गायकी का असर उस्ताद अमीर ख़ाँ की गायकी में भी सुनाई दिया.
कलापिनी ने ये भी बताया कि कुमार गंधर्व एकमात्र ऐसे संगीतज्ञ हुए हैं जिन्होंने मालवांचल की बोली मालवी और उसके लोकगीतों को बंदिशों का स्वरूप दिया. उत्तरप्रदेश की अवधि का असर तो कई उत्तर भारतीय संगीत की बंदिशों में सुनाई दिया है जैसे बाजूबंद खुल खुल जाए,बाबुल मोरा नैहर छूटो ही जाए,लागी लगन, बरसन लागी सावन बूंदिया लेकिन मालवी का शुमार कुमारजी ने ही किया. गीत-वर्षा एलबम में कई मालवी लोकगीत बंदिश का आकार लिये हुए हैं.
कार्यक्रम में बातचीत कर रहे शेखर सेन ने मुझे बताया कि पं.कुमार गंधर्व पूरे शास्त्रीय संगीत परम्परा में ऐसे स्वर साधक हैं जिनकी हर एक प्रस्तुति में रचनाधर्मिता के दर्शन होते हैं. उनके बारे में बात करना और कुछ दुर्लभ बंदिशों को सुनना अपने आप में एक अविस्मरणीय अनुभव है. उम्मीद करें कि संगीत-सरिता में स्वरों का यह झरना तपते वैशाख में हम सब संगीतप्रेमियों के लिये एक अदभुत अनुभव होगा.