Saturday, May 1, 2010
ले लो, ले लो झुमके अमलतास के
इन दिनों सुबह सैर पर निकल रहा हूँ तो रास्ते में जगह जगह अमलतास फूला हुआ है.
चटख़ रंगो वाले गुलमोहर की बहार भी छाई हुई है लेकिन अमलतास का शबाब कुछ और ही है. हरे पत्तों से लदा पेड़ तपती धूप में कब पीले झुमकों में तब्दील हो जाता है मालूम ही नहीं पड़ता. एक झूमर की शक्ल में कई झूमर लटके हैं अमलतास के. सिंथेटिक रंगों की दुनिया में रहने वाले हमारी नस्ल इस ख़ालिस पीलेपन को निहारने का वक़्त ही नहीं निकाल पाती है. सुबह के घुमन्तुओं में भी कुछ ही ऐसे मिले जो ठिठक कर अमलतास या गुलमोहर के नीचे खड़े हो जाएं और देखें तो कि कुदरत क्या खेल रच रही है. परमात्मा को देखा नहीं मैंने और न ही इस तरह की मान्यता भी है मन में लेकिन जब भी कु़दरत के इन करिश्मों को निहारता हूँ तो लगता है कि इन्हीं पेड़ों में बसा होगा वह.
अमलतास का एक फूल नहीं होता बल्कि पूरा एक कंदील पेड़ पर लटकता है.रात में पूर्णिमा के पूरे चाँद में अमलतास को देखा तो लगा जैसे किसी ने दीवाली की रात में पीले कंदील रोशन कर दिये हैं. तेज़ धूप में मेरे मालवा में दीगर दरख्तों को जहाँ झुरझुरी सी आ रही है और शाख़ें सूखी सी हैं वहीं अमलतास के पत्ते हरे कच्च हैं और फूल के इन झुमकों के तो क्या कहने.निसर्ग के लिये जिस तरह की बेपरवाही है और नई पीढ़ी में बेख़बरी का भाव है ऐसे में सोचता हूँ बहुत से पेड़ों के बीच ये अमलतास बड़ा वीराना और अकेला सा ही है . इसके झुमकों की ख़ास बास यह भी है कि वह बड़े हल्के वज़न के हैं और ज़रा सी हवा चलने पर झूमने लगते हैं .चूँकि ये झूमना भी दाएँ-बाएँ न होकर ऊपर-नीचे है तो उसमें एक ख़ास तरह की लयकारी दीखती है.
दिन में जैसे जैसे धूप बढ़ती है...अमलतास के झुमके कुछ और पीले होकर दमकने लगते हैं. इनके चटकीलेपन की वजह यह भी है कि फूलों के अनुपात में अमलतास के पत्ते भी नये-नकोरे और ज़्यादा हरे हरे हो गए हैं यूँ ये हरापन तो नैपथ्य में चला गया है और सर्वत्र फूलों का साम्राज्य ही नज़र आने लगता है. इस दौरान मुझे अमलतास कुछ इतराता नज़र आता है मानो आसपास के पेड़ों को संदेश देना चाहता हो कि मैं तो तुम्हारे मुक़ाबले ज़्यादा भरा-पूरा हूँ.हम ग्राफ़िक डिज़ाइनिंग वाले कांट्रास्ट रचने के लिये रंगों को एकाकार और विलग करते ही रहते हैं लेकिन क़ुदरत के सामने तो हमारा कम्प्यूटरी कांट्रास्ट क़मज़ोर ही दिखाई देता है.
इस अमलतास आख्यान को कविवर सरोजकुमार की कविता से विराम देते हैं;
अमलतास की रंगत का कितना अनूठा भान देते हैं न उनके शब्द:
बीत गए केशरिया
दिन पलाश के
ले लो, ले लो, झुमके अमलतास के
ओ पीपल,नीम, बड़,सुरजना
कौन जिसे नहीं है मुरझना ?
डलिया में दो दिन की
सौ दिन फूल के
कोई फ़िर क्यों मुरझे बिन हुलास के ?
झूल रहे चमकीले सौ-सौ फ़ानूस
इंक़लाब ? पीली तितलियों के जुलूस
सूरज के घोड़े बहके
ऐसी आग,
धूप निकल भागी है,बिन लिबास के
मौसम के हाथों पर मेहंदी के चित्र
धू धू दोपहरी,ये तपस्वी विचित्र
किसकी विरूदावलि के
स्वर्ण मालकौंस
कोई तो बतलावे, ये तलाश के
ले लो, ले लो, झुमके अमलतास के
(चित्र ख़ाकसार ने अपने मोबाइल से लिया है)
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