Thursday, October 25, 2007

प्रिय शरद की झिलमिलाती रात ; पूरा चाँद पहली बार ऊगा !


प्रिय शरद की झिलमिलाती रात

पूरा चाँद पहली बार ऊगा.


आज पहली बार कुछ पीड़ा जगी है

प्रिय गगन को चूम लेने की लगी है

वक्ष पर रख दो तुम्हारा माथ

भोला चाँद पूरी बार ऊगा.


सो गये हैं खेत मेढ़े गाँव गलियाँ

कुछ खिलीं सी कुछ मुँदी सी शुभ्र कलियाँ

नर्मदा का कूल छूता वात

कोरा चाँद पहली बार .



थरथराती डाल पीपल की झुकी है

रात यह आसावरी गाने रूकी है

सुन भी लें कोई न आघात

गोरा चाँद ऊगा आज पहली बार


हाथ कुछ ऐसे बढ़ें आकाश बाँधें

साँस कुछ ऐसी चले विश्वास साधें

प्रीत के पल में करें दो बात

प्यारा चाँद ऊगा आज पहली


ये गीत मेरे पिताश्री नरहरि पटेल का लिखा हुआ है जो एक वरिष्ठ कवि रंगकर्मी,मालवा की लोक-संस्कृति के जानकार,रेडियो प्रसारणर्ता हैं।ये गीत उन्होने पचास के दशक में अपनी युवावस्था में लिखा था।आज जब हिन्दी गीत लगभग मंच से गुम हैं इस गीत को पढ़ना और हमारे भोले जनपदीय परिवेश को याद करना रोमांचित करता है। मैने बहुत ज़िद कर ये गीत पिताजी से आज ढ़ूंढवाया है और ब्लॉगर बिरादरी के लिये इसे जारी करते हुए अभिभूत हूँ।सत्तर के पार मेरे पूज्य पिताश्री को आपकी भावुक दाद की प्रतीक्षा रहेगी।


गीत गुनगुनाइये.......चाँद निहारिये और मेरी भाभी या दीदी खीर बनाए तो उसका रसपान भी कीजिये। पूरा चाँद आपके जीवन में शुभ्र विचारों और प्रेम की किरणे प्रवाहित करे.


Thursday, October 18, 2007

बताइये अमेरिकी होशियार हैं या भारतीय ?

दोस्तो गंभीर बातों का सिलसिला तो ब्लॉग्स पर चलता ही रहता है ; आइये आज कुछ हँस लें।
कहते हैं अमेरिकी बहुत होशियार होते हैं ; अच्छे बिज़नेसमेन भी। विगत दिनो एक भारतीय ने इस बात को झुठला दिया। हुआ ये कि हमारी परिचित और अमेरिका में कार्यरत मित्र की माँ गुज़र गईं।शव पेटिका (कॉफ़िन) में माताजी का शव भारत भेजा गया। पेटिका एकदम खचाखच बंद। भारत पहुँचने पर परिजनों ने ध्यान से देखा तो शव पेटिका पर एक लिफ़ाफ़ा चिपका हुआ था। खोला गया तो एक चिट्ठी निकली ज़रा ग़ौर से पढ़ लीजिये आप भी।नितांत हल्के फ़ुल्के अंदाज़ में इस चिट्ठी को दिल पर मत लीजियेगा.

बडे़ भैया,मझले भैया,छोटू भैया,भाभी...जै श्रीकृष्ण।

आख़िर माँ चली ही गईं... सो उनका शव इस पेटिका में भेज रही हूँ।सम्हाल लेना और हमारे पारिवारिक स्मशान गृह में ही उनका अंतिम संस्कार करना। ऐसी माँ की ख़ास इच्छा थी। मैं भी इस अवसर पर भारत आना चाहती थी लेकिन पेड छुट्टियाँ ख़त्म होने से ऐसा संभव न हो पाया।

माँ के शव के साथ कुछ ज़रूरी सामना सम्हाल लेना जिसका विवरण इस प्रकार है...

माँ ने जो छह टी शर्ट पहन रखी है उसमें से सबसे बडी़ वाली बड़े भैया के लिये है...
बाक़ी बराबर बाँट लेना।

माँ ने दो जींस की पेंट पहन रखी है एक मेरे भतीजे अमरीश और दूसरी मेरी भांजी श्वेता के लिये है।

शांता मासी बहुत दिनो से माँ से स्विस वॉच लाने को कह रहीं थीं सो उनके दाएँ हाथ पर पहना दी है।

बाएँ हाथ पर जो ब्रेसलेट है वह मझली भाभी के लिये है।

बड़ी भाभी , छोटी भाभी और मेरी प्यारी शकु बहन के लिये माँ को गले में तीन नेकलेस पहना दिये हैं।

मेरे प्रिय भानजे संजय के लिये माँ ने रीबॉक शूज़ पहने हुए है... नम्बर दस है ...देख लेना साइज़ ठीक ही होगा।

माँ के नीचे बादाम,काजू और चॉकलेट फ़्लेवर के शानदार कुकीज़(बिस्किट) रखे हुए हैं ....एहतियात से निकाल कर मिलजुल कर खाना।

बाक़ी सब ठीक ही है...सबको मेरा प्यार ...

आपकी बहन

स्मिता।

पुन:श्च > वैसे मैने सब ठीक से याद रख कर पैक किया है लेकिन फ़िर भी कुछ रह गया तो बताना ;
बापूजी की तबियत भी ठीक नहीं रहती है.

Wednesday, October 17, 2007

मेरे शहर में गरबा इन दिनों चौंका रहा है

ज़रा एक नज़र तो डालिये मेरे शहर के गरबे के सूरते हाल पर....

चौराहों पर लगे प्लास्टिक के बेतहाशा फ़्लैक्स।

गर्ल फ़्रैण्डस को चणिया-चोली की ख़रीददारी करवाते नौजवान

देर रात को गरबे के बाद (तक़रीबन एक से दो बजे के बीच) मोटरसायकलों की आवाज़ों
के साथ जुगलबंदी करते चिल्लाते नौजवान

घर में माँ-बाप से गरबे में जाने की ज़िद करती जवान लड़की

गरबे के नाम पर लाखों रूपयों की चंदा वसूली

इवेंट मैनेजमेंट के चोचले

रोज़ अख़बारों में छपती गरबा कर रही लड़के-लड़कियों की रंगीन तस्वीरें

देर रात गरबे से लौटी नौजवान पीढी न कॉलेज जा रही,न दफ़्तर,न बाप की दुकान

कानफ़ोडू आवाज़ें जिनसे गुजराती लोकगीतों की मधुरता गुम

फ़िल्मी स्टाइल का संगीत,हाइफ़ाई या यूँ कहे बेसुरा संगीत

आयोजनों के नाम पर बेतहाशा भीड़...शरीफ़ आदमी की दुर्दशा

रिहायशी इलाक़ों के मजमें धुल,ध्वनि और प्रकाश का प्रदूषण

बीमारों,शिशुओं,नव-प्रसूताओं को तकलीफ़

नेतागिरी के जलवे ।मानों जनसमर्थन के लिये एक नई दुकान खुल गई

नहीं हो पा रही है तो बस:

वह आराधना ...वह भक्ति जिसके लिये गरबा पर्व गुजरात से चल कर पूरे देश में अपनी पहचान बना रहा है। देवी माँ उदास हैं कि उसके बच्चों को ये क्या हो गया है....गुम हो रही है गरिमा,मर्यादा,अपनापन,लोक-संगीत।

माँ तुम ही कुछ करो तो करो...बाक़ी हम सब तो बेबस हैं !




Monday, October 15, 2007

देह और दायित्व से कहीं कुछ अधिक है पत्नी.

सिर्फ़ उसे एक देह समझना नादानी है
दायित्व की याद दिलाते रहना मूर्खता है

पत्नी में पाई है मैने एक सखी
आत्मीयता को जिसने आचरण में ढ़ाला है
ज़िम्मेदारियों को जिसने आदत बना डाला है

वह उठती है तो सूरज को याद आता है
कि उसे भी काम पर जाना है
भोर से उसका रिश्ता क्योंकि सूरज से भी पुराना है

घर के और लोग जब बाँचते हैं अख़बार
तब तक वह सँवार चुकी होती है अपना घर-संसार

वह है तो न जाने क्यों ये आश्वासन है
कि सब कुछ निर्बाध है हमारे जीवन में

उसका होना उसके वजूद से भी बड़ा है
वह इसका मोल नहीं मागती
कभी जताती नहीं की उसी से सब कुछ
निश्चिंत होकर है चलायमान हमारे जीवन में

पत्नी लिखने में चाहे इ की मात्रा भले ही बड़ी लगती हो
वह मेरी ज़िन्दगी में हमेशा अपने को छोटा बनाए रखती है

उसने घर-आँगन और मेरे प्यारे बच्चों को दिया है
एक अपनापन,परम्परा और संस्कार


वह होती है हर वक़्त मेरे आसपास हवा की तरह
लेकिन उसका कोई रंग , आकार नही होता

मैं हूँ यदि सफ़ल
तो उसमें उसका मौन त्याग
और प्रार्थना है प्रबल

वह मधुरता और सरसता की है बानी
उसी से कुछ तसल्ली भरी है ज़िन्दगानी

(आज जीवन संगीनी के जन्म दिन पर )

Thursday, October 11, 2007

क्या कल से आपकी बेटी भी गरबा खेलने जाने वाली है


आपको आपकी बिटिया पर पूरा भरोसा है और वह है भी दबंग लेकिन अब ज़माना भलमनसात का रहा नहीं जनाब।हो सकता है आपको मेरे ख़याल थोड़े दकियानूसी जान पड़ें।सच जान लें कि नवरात्र का आराधना पर्व और उसके साथ जुड़ा गुजरात का विश्व-विख्यात गरबा अब सभ्रांत परिवारों और गरिमामय और युवक-युवतियों का दस दिवसीय जमावड़ा अब आपराधिक गतिविधियों का केन्द्र बनता जा रहा है। कॉलोनियों और गली-मोहल्लों की धूम के पीछे अब कुछ ऐसे कुचक्र भी चल पड़े हैं जो हमारे घर की बहन-बेटियों को मुश्किल में डाल देते हैं। देर रात चलने वाले इस उत्सव में हमारे घर की बच्चियाँ अनंत उल्लास से शिरकत करतीं हैं । मैं चाहूँगा कि यदि आपके घर की बहनें,बच्चियाँ और महिलाएँ इस बार गरबा करने जा रहीं हो तो कुछ बातों का विशेष ख़याल रखें :


-महंगे और असली आभूषण पहन कर न जाएँ।


-मेक-अप वैसा ही करें जो आपको सुन्दर ज़रूर दिखाए...उत्तेजक नहीं .


-जिसके साथ गरबा करने जा रहे हों उस मित्र का मोबाइल या फ़ोन नम्बर ज़रूर घर पर नोट करवाए।


-कार की चाबी,घर की चाबी , अपना मोबाइल और पर्स यदि साथ है तो गरबा खेलते समय किसी विश्वस्त परिचित के पास यह सामग्री छोड़ दे।


-अपरिचित युवकों से सतर्कता से पेश आएँ। नाहक ही किसी से बोल-व्यवहार न बढ़ाए।


-देर रात को घर जब लौट रहे हों तब अपना वाहन धीमी गति से चलाएँ।


माँ दुर्गा से कामना करता हूँ कि आपके परिवार के लिये ये नवरात्र उत्सव आनंदमय हो।

आप भी गरबा करें लेकिन यदि अपने घर की बहू-बेटियाँ अकेले जा रहीं हो तो उपर लिखी बातों पर ज़रूर ग़ौर करे।आस्था , संस्कृति और परंपरा का यह पावन पर्व दर-असल अब अपनी लोक समवेदनाओं के परे जाकर नैन-मटक्का ज़्यादा बनता जा रहा है। इसमें छुपी भक्ति-भावना और परस्पर समभाव की अभिव्यक्ति समूल से नष्ट होती जा रही है । मेरा काम था चेताना...परेशानी से सतर्कता भली...थोड़ी लिखी ....पूरी जानना...जय माता दी.


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Wednesday, October 10, 2007

महानायक के जन्मदिवस की पूर्वसंध्या पर आपसे साझा कर रहा हूँ ये प्रसंग


कविवर हरिवंशराय बच्चन के यशस्वी सुपुत्र अमिताभ बच्चन 11 अक्टूबर को अपना जन्मदिन मनाने जा रहे हैं. 1998 में ख़ाकसार को फ़्री-प्रेस अख़बार के एक विशिष्ट आयोजन में अमिताभजी से मिलने का दुर्लभ अवसर मिला. कार्यक्रम में हज़ारों लोग मौजूद थे और मंचासीन थे पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजयसिंह,स्व.प्रमोद महाजन,चिंतक और लेखक स्व.रफ़ीक़ ज़कारिया.श्रोतावृंद अमिताभ बच्चन को सुनने को बेताब. मुझे कार्यक्रम संचालन की ज़िम्मेदारी सौंपी गई थी. अपने भाषण के पूर्व बोल रहे श्री महाजन के वक्तव्य के बीच अमितजी ने इशारे से मुझे पास बुलाया. पूछा मुझे कितनी देर बोलना है (उनकी शराफ़त और सलीक़े से मेरा ये पहला और संभवत: आख़िरी सा वास्ता था) मैं सहमा सा बोला..अमितजी आपके के लिये कौन सी समय मर्यादा...लोग तो आपके लिये ही आए हैं...नहीं नहीं...अमितजी बोले...आप बताईये कितनी देर बोलूँ मैं...मैने कहा कम से कम पंद्रह मिनट तो बोलिये..अमिताभजी ने कहा अच्छा ठीक है.


मैं अपनी जगह पर आ गया.प्रमोद जी बोल रहे थे और सुनने वाले हो रहे थे बेसब्र.मैंने फ़िर मौक़ा ताड़ा सोचा अमितजी से बातचीत की शुरुआत तो हो ही गई है..फ़िर पहुँचा उनके पास और बताया की जब बाबूजी (बच्चन जी) की मधुशाला को लेकर देश में कुछ विवादास्पद स्थिति बनाने की कोशिश की जा रही थी और प्रचारित किया जा रहा था कि कवि बच्चन देश शराबख़ोर बनाने जा रहे है.

पचास के दशक में ही बच्चनजी की आना इन्दौर हुआ ..वे यहाँ श्री म.भा.हिन्दी साहित्य समिति (जो पुरातन साहित्य पत्रिका वीणा का प्रकाशन कर रही है पिछले अस्सी बरसों से..चाहें तो मेरे विगत ब्लॉग में उसका ब्यौरा पढ़ लें) द्वारा आयोजित कार्यक्रम में शिरकत के लिये आए थे. इस आयोजन के ख़ास मेहमान थे राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी...पूज्य बापू तक भी बच्चन जी की शिकायत पहुँचाई गई.बापू ने बच्चन जी को तलब किया...बच्चन जी ने अपनी मधुशाला में से कुछ पद बापू को सुनाए (ख़ासकर मदिरालय जाने को घर से चलता है पीने वाला) इसमें कहीं धर्म-निरपेक्षता का मौन संदेश भी था.बापू बडे़ प्रसन्न हुए और मधुशाला के बारे में किये जा रहे कु-प्रचार का खंडन किया.


अमिताभजी ने ये पूरा वाक़या ध्यान से सुना और मुस्कराते हुए कहा कि आपने बहुत अच्छा किया जो ये प्रसंग मुझे बताया ( इसका ज़िक्र क्या भूलूँ क्या याद करूँ में भी है) मैं वैसे ही अमिताभ बच्चन जैसे महानायक के कार्यक्रम को एंकर करते हुए अभिभूत था और इस पर अमित जी से मिली प्रशंसा ने तो जैसे मेरी ख़ुशी दोहरी ही कर दी.


ये खु़शी सातवें आसमान पर पहुँच गई जब मेरे द्वारा दी गई जानकारी से ही अमितजी ने अपने संबोधन को शुरू किया..और कहा कि मुझे खु़शी है कि मेरे पूज्य पिता के जीवन में इन्दौर का ख़ास महत्व है और यह कहते हुए अमितजी ने बच्चन जी और बापू की भेंट का खु़लासा अपने भाषण में किया. मीडिया ने भी दूसरे दिन इस प्रसंग का ख़ास नोटिस लिया.


ब्लॉबर बिरादरी के साथ इस प्रसंग को साझा करने एक मक़सद ये भी है कि मैं ये भी बताना चाहता हूँ कि अमितजी को निकट से देखते हुए और उनसे बतियाते हुए मैंने उन्हें निहायत सादा तबियत इंसान पाया . देश का सर्वकालिक बड़ा सेलिब्रिटी होने का कोई नामोनिशान उनमें नज़र नहीं आया. तब लगा कि कोई बड़ा तब बनता है जब वह इंसानी तक़ाज़ों से संजीदा सरोकार रखता है. उनमें नज़र आई एक विशिष्ट भद्रता का मैं क़ायल हो गया.उनके जन्मदिन की बेला में कामना करें कि उनमें संस्कारों की अनुगूँज बनी रहे...वे स्वस्थ रहें ...चैतन्य रहें और भारतीय चित्रपट उद्योग की महती सेवा करते रहें.


चित्र में ख़ाकसार अमिताभ बच्चन से बतिया रहा है ...मेरी शक्लो-सूरत तो ढल गई है लेकिन माशाअल्लाह ! महानायक का जलवा तो दिन दूना रात चौगुना दमक रहा है.

Tuesday, October 9, 2007

अपनी आवाज़ से जगत जीतने वाले जगजीत जल्द लौटेंगे माइक्रोफ़ोन पर

जी हाँ जगजीतसिंह की ही बात कर रहा हूँ. 8 अक्टूबर को जीते जी महान हो चुके जगजीत सिंह को फ़ालिज का दौरा पड़ा है. निश्चित ही हम सब संगीतप्रेमियों के लिये ये चिंता की ख़बर है. मैने उनके आठ शो एंकर किये हैं सो उन्हे निकट से देखने और जानने का मौक़ा मिला है. जितनी मुलायम ग़ज़लें वो गाते हैं उतने ही मज़बूत हैं वे . अपने बेटे विवेक को खोने के बाद भी जगजीत जी ने जिस तरह की पारी मंच और एलबम्स के ज़रिये खेली है वह विलक्षण है. यदि गुज़रे दस बरसों पर नज़र डालें तो बता सकता हूँ कि उन्होने हर हफ़्त कम से कम दो कंसर्ट किये हैं. निश्चित रूप से इन मंचीय प्रस्तुतियों ने उनके शरीर को थकाया है. लगातार यात्रा...लगातार गाना...लेकिन मैं आपको बता दूँ कि जगजीतजी ये शोज़ पैसे से ज़्यादा इसलिये करते रहे हैं कि संगीत उनके लिये ऑक्सीजन है. अपने वाद्यवृंद कलाकारों की टीम जिसमें तबला बजाने वाले मेरे मित्र श्री अभिनव उपाध्याय भी हैं बताते हैं कि अंकल (जगजीतजी) जिस ज़िंदादिली से हमारे साथ शोज़ का मज़ा लेते रहे हैं वह शायद ही आज का कोई कलाकार ले रहा हो.

पूरी श्रोता-बिरादरी जगजीत सिंह के शीघ्र स्वास्थ्य लाभ की कामना करती है . और एक मन की बात बता दूँ आपको ...मैने जगजीत सिंह को जितना जाना है ; दावे से कह सकता हूँ जगत को जीतने वाले जगजीत सिंह मंच पर लौटेंगे...और मज़बूती से लौटेगे...उनका अदम्य आत्म-विश्वास उन्हें एक बार फ़िर उनकी खरज भरी आवाज़ के साथ करोडों चाहनेवालों से रूबरू करवाएगा.

जगजीत सिंह जैसे कलाकार बिस्तर पर लेट कर ये दुनिया नहीं छो़ड़ने वाले.
वे हैं सुरीले गुलूकार... लाडले फ़नकार
माइक्रोफ़ोन पर है आपका इंतजार

मुझे आपकी दुआओं पर पूरा यक़ीन है...इंशाअल्ला !

Saturday, October 6, 2007

कलाम को नहीं मिला कोई सलाम !

दो दिन पूर्व भारत रत्न डॉ.ए.पी.जे.अब्दुल कलाम मेरे शहर इन्दौर पधारे.
पूर्व राष्ट्रपति होने के नाते शहर को उम्मीद थी कि उनका ज़ोरदार ख़ैरमकदम होगा.
वे आए थे आई.आई.एम और एक स्कूल के आयोजन मे. पद की महिमा कहिये या राजनेताओं की देख कर टीका लगाने की आदत, एक भी राजनैतिक व्यक्ति एयरपोर्ट कलाम साहब का स्वागत करने नहीं पहुँचा.यहाँ तक की भाजपा शासित नगर पालिक निगम की महापौर भी नहीं . वही भाजपा जिसने डॉ कलाम को उम्मीदवार बना कर राष्ट्रपति पद तक पहुँचाया था. डॉ.कलाम को कोई फ़र्क नहीं पड़ा.वे तो निस्पृह भाव से एक साधारण सी एम्बेसेडर गाड़ी में घूमते हुए आयोजनों में शरीक होते रहे. जिस स्कूल के कार्यक्रम में उन्होने शिरक़त की उसमें दस हज़ार बच्चे जुटे.भारत के भावी नागरिकों के बीच चाचा कलाम खूब घुले-मिले , बात की, ठहाके लगाए , बच्चों के सवालों का जवाब दिये.मंच पर चाँदी की कुर्सी लगाई गई थी जिसे डॉ.कलाम ने ह्टवाया और साधारण सी मोल्डेड चेयर पर बैठ कर पूरे आयोजन का मज़ा लिया.

जिन साधारण से नेताओं के सम्मान में शहर के नेता रैलियों से सड़को और कामकाजी इलाक़ों को लगभग हाईजैक ही कर लेते हैं उनका अंतरराष्ट्रीय ख्याति के सांइटिस्ट और भारत रत्न अलंकरण से नवाज़े जा चुकी शख़्सियत से इस तरह का असम्मानजनक व्यवहार मन को असीम कष्ट देता है.
मैं संभवत: पहली बार अपने ब्लॉग की इस प्रविष्टि में इस विषय शब्द नहीं ख़र्चना चाहता. मै चाहता हूँ कि ब्लॉगर बिरादरी के संजीदा लेखक - पाठक अपनी ओर से इस ह्र्दयहीनता पर कुछ लिखें.

Tuesday, October 2, 2007

बापू आज होते तो क्या कहते ?

जुदा जुदा विषयों को लेकर हमारे मन में भी नई नई विचारधारा बहती है.यकायक ही मन ने पूछा कि इस ज़माने में जब असहिष्णुता,आतंक और बे - ईमानी पूरे शबाब पर है ; इन हालात में राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी यानी हमारे प्रिय बापू कैसे प्रतिक्रिया देते या क्या आचरण करते . उनके भव्य व्यक्तित्व को देखते हुए मैने ये रूपक गढ़ने की कोशिश की है.मैने बापूजी को देखा नहीं ; सत्य के प्रयोग किशोरावस्था में पढ़ी थी जिसने बहुत कुछ सिखाया..हो सकता है इन समकालीन परिस्थियों और बापू को लेकर मेरी अवधारणा यदि ठीक न हो तो इसे मेरी कुमति जानकर नज़र-अंदाज़ कर दें

20 x 20 क्रिकेट में भारत जीत गया बापू !

तो क्या हुआ ऐसा खेल तो कर्नल सी.के.नायडू तीस के दशक में खेल चुके हैं
इतना इतराने की क्या ज़रूरत है.देश का नाम हुआ है ..चलो अब फ़िर जुट जाओ मेहनत में !

बापूजी ..हिन्दी सप्ताह आ गया ..आपको शुभारंभ करना है !

हिन्दी को बढ़ाने के लिये भी सप्ताह मनाने की ज़रूरत पड़ रही है ? आश्वर्य है.

पहले ठीक से बोलना और लिखना तो सीख लो.पब्लिक स्कूलों के नाम पर क्या धांधली

मचा रखी है आपने ? बच्चे अड़तीस,रेजगारी,आधा किलो,तरकारी जैसे शब्द भूल चुके हैं

पहले माता-पिता बच्चों को मम्मी डैडी बुलवाना तो छुड़वाएँ..फ़िर हिन्दी सप्ताह मनाएँ.

बापूजी..इंटरनेट पर खूब फ़लफ़ूल रही है हिन्दी . क्या आप कंप्यूटर सीखना चाहेंगे ?

हाँ...हाँ...चलो चलो अभी देखूंगा...सुना है ब्लॉग्स के ज़रिये अच्छी हिन्दी लिखी जा रही है...चलो नवजीवन के नाम से मेरा ब्लॉग बनाओ.

मज़हब के नाम पर दुकानदारियाँ चल रहीं हैं बापूजी...क्या करें ?

देखो बच्चों...मज़हब,धर्म ये सब नितांत निजी आस्थाओं के विषय हैं.जो करना चाहते हो

अपने घर में करों..देश को मज़हबी आँधी से बचाना चाहते हो तो सार्वजनिक रूप से ऐसी गतिविधियों

पर प्रतिबंध लगाओं जिससे किसी भी दूसरे धर्म के मानने वाले भाई-बहन की भावना को ठेस पहुँचे.

बापूजी आपने तो अपना काम पोस्ट कार्ड से चलाया..अब हम तो मोबाईल से चिपके हैं..आपकी प्रतिक्रिया ?

मोबाइल लेकर तुम लोगों ने अपनी चलायमान ताक़त को ख़त्म कर लिया है; अब भी वक़्त है...बचो इससे...कितना बोलते हो...अच्छा मोबाइल पर बात करते हो वह तो ठीक है...सुनते सुनते खु़द क्यों मोबाइल होने लगते हो.चिठ्ठी का अपना मज़ा है...लिखी...पोस्ट की....चिठ्ठी चली...पहुँची..बँटी...बाँची...सबकुछ कितना लयबध्द है इसमें...त्वरित के चक्कर मे भटक गए हो तुम.

बात तो कर रहे हो...पहुँच कहीं नहीं रहे हो ...ये सत्य जान लो.

बच्चे नहीं सुनते हमारी..क्या करें ?

तुमने कहाँ सुनी तुम्हारे अपने पिता की.सुनो चिल्लाने से कुछ नहीं होगा...उन्हे अपने मित्र बनाओ..देखो कैसे मानते हैं तुम्हारी बात.

परिवार टूट रहे हैं...कैसे बचाएँ इसे ?

परिवार नाम की संस्था भारतीय दर्शन की शक्ति है.बिखरो मत...जुड़े रहने में ही सार है.

त्याग का भाव मन में रखो...देखना कभी नहीं बिखरोगे.बडे़ का किया अच्छा मानो और छोटे का किया अपना ही किया जानो ..देखो कैसे टलते हैं परिवारों के विभाजन.

परमाणु संधि पर आपके क्या विचार हैं बापू ?

बम से मानवता अपने लिये समाप्ति का साज़ोसामान जुटा रही है.ये आत्मघाती है .बचो इनसे.भारतीय दृष्टिकोण से ही बचेगा विश्व..सबको अहिंसा के रास्ते पर आना होगा.

कल मै न रहूँगा पर मेंरी बात याद रखना...आतंक..आक्रमण और अपराध आपके ज़माने के विषधर हैं...अपनी अगली पीढियों को बचाना चाहते हो तो पूरे विश्व को अस्त्र विहीन करना होगा.इसी से बचेगी मानवता ...इसी से बचेगा भारत.

गाँधीजी यानी आप जैसी लोकप्रियता के लिये क्या करें ?

जो बोलते हो वैसा पहले कर के दिखाओ..ये है सच्ची गाँधीगिरी.