Thursday, October 25, 2007
प्रिय शरद की झिलमिलाती रात ; पूरा चाँद पहली बार ऊगा !
Thursday, October 18, 2007
बताइये अमेरिकी होशियार हैं या भारतीय ?
कहते हैं अमेरिकी बहुत होशियार होते हैं ; अच्छे बिज़नेसमेन भी। विगत दिनो एक भारतीय ने इस बात को झुठला दिया। हुआ ये कि हमारी परिचित और अमेरिका में कार्यरत मित्र की माँ गुज़र गईं।शव पेटिका (कॉफ़िन) में माताजी का शव भारत भेजा गया। पेटिका एकदम खचाखच बंद। भारत पहुँचने पर परिजनों ने ध्यान से देखा तो शव पेटिका पर एक लिफ़ाफ़ा चिपका हुआ था। खोला गया तो एक चिट्ठी निकली ज़रा ग़ौर से पढ़ लीजिये आप भी।नितांत हल्के फ़ुल्के अंदाज़ में इस चिट्ठी को दिल पर मत लीजियेगा.
बडे़ भैया,मझले भैया,छोटू भैया,भाभी...जै श्रीकृष्ण।
आख़िर माँ चली ही गईं... सो उनका शव इस पेटिका में भेज रही हूँ।सम्हाल लेना और हमारे पारिवारिक स्मशान गृह में ही उनका अंतिम संस्कार करना। ऐसी माँ की ख़ास इच्छा थी। मैं भी इस अवसर पर भारत आना चाहती थी लेकिन पेड छुट्टियाँ ख़त्म होने से ऐसा संभव न हो पाया।
माँ के शव के साथ कुछ ज़रूरी सामना सम्हाल लेना जिसका विवरण इस प्रकार है...
माँ ने जो छह टी शर्ट पहन रखी है उसमें से सबसे बडी़ वाली बड़े भैया के लिये है...
बाक़ी बराबर बाँट लेना।
माँ ने दो जींस की पेंट पहन रखी है एक मेरे भतीजे अमरीश और दूसरी मेरी भांजी श्वेता के लिये है।
शांता मासी बहुत दिनो से माँ से स्विस वॉच लाने को कह रहीं थीं सो उनके दाएँ हाथ पर पहना दी है।
बाएँ हाथ पर जो ब्रेसलेट है वह मझली भाभी के लिये है।
बड़ी भाभी , छोटी भाभी और मेरी प्यारी शकु बहन के लिये माँ को गले में तीन नेकलेस पहना दिये हैं।
मेरे प्रिय भानजे संजय के लिये माँ ने रीबॉक शूज़ पहने हुए है... नम्बर दस है ...देख लेना साइज़ ठीक ही होगा।
माँ के नीचे बादाम,काजू और चॉकलेट फ़्लेवर के शानदार कुकीज़(बिस्किट) रखे हुए हैं ....एहतियात से निकाल कर मिलजुल कर खाना।
बाक़ी सब ठीक ही है...सबको मेरा प्यार ...
आपकी बहन
स्मिता।
पुन:श्च > वैसे मैने सब ठीक से याद रख कर पैक किया है लेकिन फ़िर भी कुछ रह गया तो बताना ;
बापूजी की तबियत भी ठीक नहीं रहती है.
Wednesday, October 17, 2007
मेरे शहर में गरबा इन दिनों चौंका रहा है
चौराहों पर लगे प्लास्टिक के बेतहाशा फ़्लैक्स।
गर्ल फ़्रैण्डस को चणिया-चोली की ख़रीददारी करवाते नौजवान
देर रात को गरबे के बाद (तक़रीबन एक से दो बजे के बीच) मोटरसायकलों की आवाज़ों
के साथ जुगलबंदी करते चिल्लाते नौजवान
घर में माँ-बाप से गरबे में जाने की ज़िद करती जवान लड़की
गरबे के नाम पर लाखों रूपयों की चंदा वसूली
इवेंट मैनेजमेंट के चोचले
रोज़ अख़बारों में छपती गरबा कर रही लड़के-लड़कियों की रंगीन तस्वीरें
देर रात गरबे से लौटी नौजवान पीढी न कॉलेज जा रही,न दफ़्तर,न बाप की दुकान
कानफ़ोडू आवाज़ें जिनसे गुजराती लोकगीतों की मधुरता गुम
फ़िल्मी स्टाइल का संगीत,हाइफ़ाई या यूँ कहे बेसुरा संगीत
आयोजनों के नाम पर बेतहाशा भीड़...शरीफ़ आदमी की दुर्दशा
रिहायशी इलाक़ों के मजमें धुल,ध्वनि और प्रकाश का प्रदूषण
बीमारों,शिशुओं,नव-प्रसूताओं को तकलीफ़
नेतागिरी के जलवे ।मानों जनसमर्थन के लिये एक नई दुकान खुल गई
नहीं हो पा रही है तो बस:
वह आराधना ...वह भक्ति जिसके लिये गरबा पर्व गुजरात से चल कर पूरे देश में अपनी पहचान बना रहा है। देवी माँ उदास हैं कि उसके बच्चों को ये क्या हो गया है....गुम हो रही है गरिमा,मर्यादा,अपनापन,लोक-संगीत।
माँ तुम ही कुछ करो तो करो...बाक़ी हम सब तो बेबस हैं !
Monday, October 15, 2007
देह और दायित्व से कहीं कुछ अधिक है पत्नी.
दायित्व की याद दिलाते रहना मूर्खता है
पत्नी में पाई है मैने एक सखी
आत्मीयता को जिसने आचरण में ढ़ाला है
ज़िम्मेदारियों को जिसने आदत बना डाला है
वह उठती है तो सूरज को याद आता है
कि उसे भी काम पर जाना है
भोर से उसका रिश्ता क्योंकि सूरज से भी पुराना है
घर के और लोग जब बाँचते हैं अख़बार
तब तक वह सँवार चुकी होती है अपना घर-संसार
वह है तो न जाने क्यों ये आश्वासन है
कि सब कुछ निर्बाध है हमारे जीवन में
उसका होना उसके वजूद से भी बड़ा है
वह इसका मोल नहीं मागती
कभी जताती नहीं की उसी से सब कुछ
निश्चिंत होकर है चलायमान हमारे जीवन में
पत्नी लिखने में चाहे इ की मात्रा भले ही बड़ी लगती हो
वह मेरी ज़िन्दगी में हमेशा अपने को छोटा बनाए रखती है
उसने घर-आँगन और मेरे प्यारे बच्चों को दिया है
एक अपनापन,परम्परा और संस्कार
वह होती है हर वक़्त मेरे आसपास हवा की तरह
लेकिन उसका कोई रंग , आकार नही होता
मैं हूँ यदि सफ़ल
तो उसमें उसका मौन त्याग
और प्रार्थना है प्रबल
वह मधुरता और सरसता की है बानी
उसी से कुछ तसल्ली भरी है ज़िन्दगानी
(आज जीवन संगीनी के जन्म दिन पर )
Thursday, October 11, 2007
क्या कल से आपकी बेटी भी गरबा खेलने जाने वाली है
Wednesday, October 10, 2007
महानायक के जन्मदिवस की पूर्वसंध्या पर आपसे साझा कर रहा हूँ ये प्रसंग
Tuesday, October 9, 2007
अपनी आवाज़ से जगत जीतने वाले जगजीत जल्द लौटेंगे माइक्रोफ़ोन पर
पूरी श्रोता-बिरादरी जगजीत सिंह के शीघ्र स्वास्थ्य लाभ की कामना करती है . और एक मन की बात बता दूँ आपको ...मैने जगजीत सिंह को जितना जाना है ; दावे से कह सकता हूँ जगत को जीतने वाले जगजीत सिंह मंच पर लौटेंगे...और मज़बूती से लौटेगे...उनका अदम्य आत्म-विश्वास उन्हें एक बार फ़िर उनकी खरज भरी आवाज़ के साथ करोडों चाहनेवालों से रूबरू करवाएगा.
जगजीत सिंह जैसे कलाकार बिस्तर पर लेट कर ये दुनिया नहीं छो़ड़ने वाले.
वे हैं सुरीले गुलूकार... लाडले फ़नकार
माइक्रोफ़ोन पर है आपका इंतजार
मुझे आपकी दुआओं पर पूरा यक़ीन है...इंशाअल्ला !
Saturday, October 6, 2007
कलाम को नहीं मिला कोई सलाम !
पूर्व राष्ट्रपति होने के नाते शहर को उम्मीद थी कि उनका ज़ोरदार ख़ैरमकदम होगा.
वे आए थे आई.आई.एम और एक स्कूल के आयोजन मे. पद की महिमा कहिये या राजनेताओं की देख कर टीका लगाने की आदत, एक भी राजनैतिक व्यक्ति एयरपोर्ट कलाम साहब का स्वागत करने नहीं पहुँचा.यहाँ तक की भाजपा शासित नगर पालिक निगम की महापौर भी नहीं . वही भाजपा जिसने डॉ कलाम को उम्मीदवार बना कर राष्ट्रपति पद तक पहुँचाया था. डॉ.कलाम को कोई फ़र्क नहीं पड़ा.वे तो निस्पृह भाव से एक साधारण सी एम्बेसेडर गाड़ी में घूमते हुए आयोजनों में शरीक होते रहे. जिस स्कूल के कार्यक्रम में उन्होने शिरक़त की उसमें दस हज़ार बच्चे जुटे.भारत के भावी नागरिकों के बीच चाचा कलाम खूब घुले-मिले , बात की, ठहाके लगाए , बच्चों के सवालों का जवाब दिये.मंच पर चाँदी की कुर्सी लगाई गई थी जिसे डॉ.कलाम ने ह्टवाया और साधारण सी मोल्डेड चेयर पर बैठ कर पूरे आयोजन का मज़ा लिया.
जिन साधारण से नेताओं के सम्मान में शहर के नेता रैलियों से सड़को और कामकाजी इलाक़ों को लगभग हाईजैक ही कर लेते हैं उनका अंतरराष्ट्रीय ख्याति के सांइटिस्ट और भारत रत्न अलंकरण से नवाज़े जा चुकी शख़्सियत से इस तरह का असम्मानजनक व्यवहार मन को असीम कष्ट देता है.
मैं संभवत: पहली बार अपने ब्लॉग की इस प्रविष्टि में इस विषय शब्द नहीं ख़र्चना चाहता. मै चाहता हूँ कि ब्लॉगर बिरादरी के संजीदा लेखक - पाठक अपनी ओर से इस ह्र्दयहीनता पर कुछ लिखें.
Tuesday, October 2, 2007
बापू आज होते तो क्या कहते ?
20 x 20 क्रिकेट में भारत जीत गया बापू !
तो क्या हुआ ऐसा खेल तो कर्नल सी.के.नायडू तीस के दशक में खेल चुके हैं
इतना इतराने की क्या ज़रूरत है.देश का नाम हुआ है ..चलो अब फ़िर जुट जाओ मेहनत में !
बापूजी ..हिन्दी सप्ताह आ गया ..आपको शुभारंभ करना है !
हिन्दी को बढ़ाने के लिये भी सप्ताह मनाने की ज़रूरत पड़ रही है ? आश्वर्य है.
पहले ठीक से बोलना और लिखना तो सीख लो.पब्लिक स्कूलों के नाम पर क्या धांधली
मचा रखी है आपने ? बच्चे अड़तीस,रेजगारी,आधा किलो,तरकारी जैसे शब्द भूल चुके हैं
पहले माता-पिता बच्चों को मम्मी डैडी बुलवाना तो छुड़वाएँ..फ़िर हिन्दी सप्ताह मनाएँ.
बापूजी..इंटरनेट पर खूब फ़लफ़ूल रही है हिन्दी . क्या आप कंप्यूटर सीखना चाहेंगे ?
हाँ...हाँ...चलो चलो अभी देखूंगा...सुना है ब्लॉग्स के ज़रिये अच्छी हिन्दी लिखी जा रही है...चलो नवजीवन के नाम से मेरा ब्लॉग बनाओ.
मज़हब के नाम पर दुकानदारियाँ चल रहीं हैं बापूजी...क्या करें ?
देखो बच्चों...मज़हब,धर्म ये सब नितांत निजी आस्थाओं के विषय हैं.जो करना चाहते हो
अपने घर में करों..देश को मज़हबी आँधी से बचाना चाहते हो तो सार्वजनिक रूप से ऐसी गतिविधियों
पर प्रतिबंध लगाओं जिससे किसी भी दूसरे धर्म के मानने वाले भाई-बहन की भावना को ठेस पहुँचे.
बापूजी आपने तो अपना काम पोस्ट कार्ड से चलाया..अब हम तो मोबाईल से चिपके हैं..आपकी प्रतिक्रिया ?
मोबाइल लेकर तुम लोगों ने अपनी चलायमान ताक़त को ख़त्म कर लिया है; अब भी वक़्त है...बचो इससे...कितना बोलते हो...अच्छा मोबाइल पर बात करते हो वह तो ठीक है...सुनते सुनते खु़द क्यों मोबाइल होने लगते हो.चिठ्ठी का अपना मज़ा है...लिखी...पोस्ट की....चिठ्ठी चली...पहुँची..बँटी...बाँची...सबकुछ कितना लयबध्द है इसमें...त्वरित के चक्कर मे भटक गए हो तुम.
बात तो कर रहे हो...पहुँच कहीं नहीं रहे हो ...ये सत्य जान लो.
बच्चे नहीं सुनते हमारी..क्या करें ?
तुमने कहाँ सुनी तुम्हारे अपने पिता की.सुनो चिल्लाने से कुछ नहीं होगा...उन्हे अपने मित्र बनाओ..देखो कैसे मानते हैं तुम्हारी बात.
परिवार टूट रहे हैं...कैसे बचाएँ इसे ?
परिवार नाम की संस्था भारतीय दर्शन की शक्ति है.बिखरो मत...जुड़े रहने में ही सार है.
त्याग का भाव मन में रखो...देखना कभी नहीं बिखरोगे.बडे़ का किया अच्छा मानो और छोटे का किया अपना ही किया जानो ..देखो कैसे टलते हैं परिवारों के विभाजन.
परमाणु संधि पर आपके क्या विचार हैं बापू ?
बम से मानवता अपने लिये समाप्ति का साज़ोसामान जुटा रही है.ये आत्मघाती है .बचो इनसे.भारतीय दृष्टिकोण से ही बचेगा विश्व..सबको अहिंसा के रास्ते पर आना होगा.
कल मै न रहूँगा पर मेंरी बात याद रखना...आतंक..आक्रमण और अपराध आपके ज़माने के विषधर हैं...अपनी अगली पीढियों को बचाना चाहते हो तो पूरे विश्व को अस्त्र विहीन करना होगा.इसी से बचेगी मानवता ...इसी से बचेगा भारत.
गाँधीजी यानी आप जैसी लोकप्रियता के लिये क्या करें ?
जो बोलते हो वैसा पहले कर के दिखाओ..ये है सच्ची गाँधीगिरी.