Tuesday, November 13, 2007

कुमार गंधर्व को मालवा में बसाने वाले मामा साहेब.


समय अपनी रफ़्तार से चलता रहता है। देखिये न ये साल यानी सन २००६-२००७ यानी एक ऐसे स्वर साधक की जन्म शताब्दी जिसने एकांत में अपना संगीतमय जीवन जिया और कभी पद,प्रतिष्ठा और पुरस्कारों की परवाह नहीं की। नाम पण्डित कृष्णराव मुजुमदार,मैरिस कालेज,लख़नऊ में संगीत का गहन शिक्षण और कालांतर में देवास के मरहूम उस्ताद रज्जबअली ख़ाँ साहब के गंडाबंद शाग़िर्द कहलाए।गुणीजनो के संगसाथ के बावजूद संगीत से रोटी नहीं कमाई ज़िन्दगी की गुज़र-बसर के लिये इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल की। पं।श्रीकृष्ण रातनजनकर,वी जी जोग और पण्डित भीमसेन जोशी जैसे महान संगीतकारों का स्नेह पाया। अपने परिजनों,मित्रों और संगीत बिरादरी में मामा साहेब के संबोधन से ज़्यादा जाने गए।इन्दौर के होलकर राज दरबार के गायक भी रहे और इज़्ज़त पाई।सुरों की प्यारी इंजीनियरिग भी करते रहे और इंजीनियरिंग को भी सुरीला बनाते रहे। गर्म तबियत के उस्ताद रज्जब अली खाँ साहब के तेज़-तर्रार स्वभाव के बावजूद उनके कृपापात्र बने रहे।


मामा साहेब इन्दौर के पास बसी छोटी सी रियासत देवास में इंजीनियर के रूप में पदस्थ रहे और इसी दौरान उन्होने क्षय रोग से पीडि़त अपने अनन्य सखा युवा कुमार गंधर्व को मालवा में बसने का न्योता दे डाला। न्योता ही नहीं दिया बल्कि कुमार जी को अपने घर में अपने परिजन से अधिक सम्मान और सार-सम्हाल दी। क्षय रोगी को उन दिनों घर में रखने के बारे में पारंपरिक सोच था। घर में छोटी बच्चियाँ होने के बावजूद मामा साहेब ने अपनी पत्नी की उलाहना से अधिक अपने सखा कुमार की सुध ज़्यादा ली।


पंद्रह बरस पहले मामा साहेब इस दुनिया से विदा हो गए।मामा साहेब मुजुमदार संगीत समारोह के रूप में उनकी गायिका पुत्री और शिष्या सुश्री कल्पना मुजुमदार अपने पिता का सुरीला तर्पण कर रहीं हैं।इस नेक काम में इन्दौर के अनेक सह्र्दय लोगों और संस्थाओं का सौजन्य मिल रहा है। जाने माने गायक पं अजय पोहणकर जो मामा साहेब के दामाद भी हैं ; इस सुकार्य में लगातार सेतु बनते आ रहे हैं और उन्हीं के प्रयासों से इस समारोह में वसुंधरा कोमकली,शिवकुमार शर्मा,रोनू मुजुमदार,शाहिद परवेज़,आरती अंकलीकर टिकेकर,मालिनी राजुरकर,अश्विनी देशपाँडे,संजीव अभ्यंकर,कला रामनाथ,शुभा मुदगल,शोभा गुर्टू,पदमा तलवलकर,राम देशपांडे,प्रभाकर कारेकर,अजय पोहणकर आदि अनेक कलाकारों की आत्मीय शिरकत हो चुकी है। इसी माह में मामा साहेब की याद में स्वर शती मंसूब है जिसमें दो दिवसीय संगीत समारोह का आयोजन किया जा रहा है।


मामा साहेब मुजुमदार को याद करना यानी एक ऐसी शख्सियत का वंदन करना है जिसने ज़माने की रफ़्तार के मुताबिक संगीतफ़रोशी नहीं की। वे एक साधक बने रहे।सूफ़ीयाना तबियत के मामा साहेब के बारे में आकाशवाणी इन्दौर के जाने माने प्रसारणर्ता और संगीतकार श्री स्वतंत्रकुमार ओझा का यह संस्मरण अपने आप में इस दिवंगत संगीत मनीषी की तासीर को अभिव्यक्त कर देता है....


"मामा साहेब भी आकाशवाणी का सलाहकार समिति के सम्माननीय सदस्य हुआ करते थे। मालवा हाउस (आकाशवाणी इन्दौर परिसर का नाम) की बात है। सलाहकार समिति की बैठक थी और उसमें औपचारिक बातों के बात हल्की फ़ुल्की बातों के साथ इधर उधर की बातें चल रहीं थीं।एक सज्जन बोल उठे क्यों साहब ? गायक और गवैये में क्या अंतर होता है...फ़िर खु़द ही बोले.....क्या अंतर होता होगा ...नाम अलग अलग होते हैं ...बात तो एक ही है....


तभी एक धीर-गंभीर स्वर गूँजा...बेशक बोलने वाले मामा साहेब ही हो सकते थे....

मामा साहेब कह रहे थे....अतंर है हुज़ूर ...अतंर है....वही अंतर है जो एक आर्किटेक्ट और काँट्रेक्टर में होता है। गायक तो ईश्वर स्वरूप है,दे क्रिएटर ...गवैया तो परफ़ॉरमर है।दोनो में एकरूपता तभी होगी जब परफ़ॉरमर रचनाधर्मिता की सुक्ष्म प्रक्रिया को भी आत्मसात करने का प्रयास करेगा।


मामा साहेब की पावन स्मृति को प्रणाम.....

7 comments:

पुनीत ओमर said...

मामा साहेब मजूमदार को हमारा भी नमन. एक बात का आशय पूरा स्पष्ट नहीं हुआ: "गुणीजनो के संगसाथ के बावजूद संगीत से रोटी नहीं कमाई ज़िन्दगी की गुज़र-बसर के लिये इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल की।" कला के प्रयोग से जीविकोपार्जन करना क्या अनुचित है?

sanjay patel said...

क़तई नहीं पुनीत भाई...लेकिन मामा साहब सूफ़ियाना तबियत के जो ठहरे..उस युग के साधक गायक जब समझा जाता था कि संगीत क़ुदरत से आया है और उससे मिला हुनर आनंद के लिये पहले होता है गुज़ारे के लिये बाद में.क्या ये अदभुत संयोग नहीं कि उन्होने आजीविका के लिये इंजीनियरिंग की और आनंद के लिये संगीत.इनाम , इक़राम के लिये वे कभी विचलित नहीं हुए..बस तसल्ली से अपना काम करते रहे..लाजवाब परफ़ारमिंग आर्टिस्ट हो सकते लेकिन शायद अपने सखा पण्डित कुमार गंधर्व के लिये ख़ाली रखा हो ..क्योंकि ऐसी सदाशयता का ज़माना था वह और ऐसे यारबाज़ थे मामा साहेब !

परमजीत सिहँ बाली said...

मामा साहब को हमारा भी नमन! बहुत अच्छी जानकारी मिली।धन्यवाद।

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

अरे वाह सँजय भाई...
दीपावली के जाने के बाद ,इतनी अच्छी प्रस्तुति
आपने पूज्य मामाजी के बारे मेँ ये जानकारी देते हमेँ बतलाई ..
पढकर बहुत प्रसन्नता हुई ...क्या कलाकार थे वे लोग भी ..
सभी को श्रध्धापूर्वक, नमन !
स स्नेह,
-- लावण्या

अनामदास said...

प्रिय संजय भाई
अच्छा लगा मामा जी के बारे में पढ़कर. मैं उनके बारे में नहीं जानता था, उनको मेरा सादर नमन जिन्होंने कुमार गंधर्व जैसे महान गायक को मुसीबत में संभाला.

बालकिशन said...

मामा साहेब की पावन स्मृति को मेरा भी प्रणाम. इतने बड़े कलाकार और अच्छे व्यक्ति
के बरे मे जानकारी देने के लिए धन्यवाद.

Priyankar said...

क्या जमाना था और कैसे आदमकद लोग थे . गुण और संस्कारों से भरेपूरे -- समृद्ध .