Monday, December 31, 2007

कैलेण्डर की मुस्कुराहट के लिये !


साल तो बीतेगा ही

दिन,हफ़्ते और घंटे भी


कोशिश करें की न बीते मनुष्यता,

जज़बात,भावनाएँ और संवेदनशीलता


कहने को एक तारीख़

आएगी नई सी


लेकिन मैं जानता हूँ कि

कोई रूपांतरण न कर पाएगी बेचारी


कितनी बेबस है न तारीख़

उससे मनुष्य चलता है

ऐसा वह सोचती है

लेकिन मनुष्य चलाने लगा है अब उसे


कैलेण्डर में बीतती तारीख़ से कोई सबक़ नही लेता

कि हम भी तो बीत रहे हैं इसके साथ


सबके लिये यह जोड़ - घटाव का

सिलसिला जो ठहरा


जानते नहीं कि हम जोड़ने में

कितना घट गए हैं


कितने छोटे हो गए हैं

यह छोटापन कुछ कम कर सकें

तो शायद हम पर

नये साल का कैलेण्डर मुस्कुराने लगे

Thursday, December 20, 2007

हरिओम शरण के बिन....सूनी भजनों की भोर

भारत के किसी भी कोने में सुबह आप अपना रेडियो सैट आँन कीजिये ...निश्चित रूप से कहीं न कहीं आपको हरिओम शरण की रूहानी आवाज़ सुनाई दे ही जाएगी। आज बड़े भारी मन से लिख रहा हूँ कि भक्ति-पदों का यह अनूठा गायक हमारे बीच नहीं है। लगभग चालीस बरसों तक अपनी खरज में डूबी आवाज़ से प्रभु-प्रार्थना का अलख जगाने वाले हरिओम शरण घर-घर में लोकप्रिय नाम थे।लाहौर में एक बार उन्होने अपने मोहल्ले में एक फ़कीर को गाते हुए सुना और बस हरिओम शरण को जीवन का पथ मिल गया। बाद में दिल्ली में आकाशवाणी के सुपरिचित स्वर विद्यानाथ सेठ से मुत्तासिर हुए और भक्ति संगीत को ही अपना जीवन लक्ष बना बैठे।

विविध भारती के लोकप्रिय कार्यक्रम रंग-तरंग जिसके प्रस्तोता अशोक आज़ाद हुआ करते थी ने सत्तर और अस्सी के दशक में हरिओम शरण के कई भक्ति पद प्रसारित किये। वह एक ऐसा दौर था जब कैसेट्स और सीडीज़ परिदृष्य पर उभर ही रहे थे लेकिन संगीतप्रेमियों का सच्चा आसरा तो रेडियो ही था। दोपहर दो बजे प्रसारित होने वाले रंग-तरंग ने ही हरिओम शरण,शर्मा बंधु, जगजीत सिंह,पंकज उधास,अनूप जलोटा,युनूस मलिक,मुबारक़ बेगम,मन्ना डे,महेन्द्र कपूर,सुमन कल्याणपुर,अहमद हुसैन-मोहम्म हुसैन,राजेन्द्र मेहता-नीना मेहता,राजकुमार रिज़वी की सुगम संगीत में पगी रचनाओं को देश के कोने कोने तक पहुँचाया। हरिओम शरण जी भी इस कार्यक्रम के नियमित गायक हुआ करते थे। मुरलीमनोहर स्वरूप जिन्होने बेगम अख़्तर के साथ हारमोनिय संगति की और अनेक सुगम संगीत रचनाओं की ध्वनि-मुद्रिकाएँ कंपोज़ की हरिओम शरण जी की रचनाओं को धुनो में बांधते थे।

मुझे दो बार इन्दौर में हरिओम शरण के कार्यक्रमों के सूत्र - संचालन का सौभाग्य हासिल हुआ। आखिरी बार वे लता अलंकरण में कार्यक्रम प्रस्तुत करने आए थे। मैने उन्हे बहुत ही सादा तबियत और भक्ति कें रंग में डूबा पाया। वे भगवा वस्त्र पहनते ही नहीं थे वैसी साधुता भी अपने स्वभाव में रखते से। हनुमान चालिसा उनका सबसे ज़्यादा बिकने वाला कैसेट रहा लेकिन प्रेमांजली और पुष्पांजली नाम के एलबम भी बहुत लोकप्रिय हुए। कबीर उनके चहेते कवि थे । जिन भजनों के अंतिम पद में आपको शरण शब्द सुनाई दे तो सजझ लीजियेगा कि ये हरिओम शरण जी का ही लिखा हुआ है।

दाता एक राम भिखारी सारी दुनिया,मैली चादर ओढ के कैसे द्वार तिहारे आऊँ,निरगुन रंगी चादरिया ओढे संत-सुजान, ये गर्व भरा मस्तक मेरा प्रभु चरण धूल तक झुकने दे,श्री राधे गोविंदा मन भज ले हरि का प्यारा नाम है और जगदंबिके जय जय जग जननि माँ जैसे भजन दुनिया भर में उतने ही लोकप्रिय हैं जैसे ओम जय जगदीश हरे या हनुमान चालीसा । कविता और चित्रकारी में मन का आनंद ढूँढने वाले हरिओम शरण ऐसे गायक के रूप में याद किये जाएँगे जिन्होंने भक्ति संगीत को आदर दिलवाया।
पंचतत्व में विलीन हो जाने वाले हरिओम शरण का आत्म-तत्व आज भी शायद यही गुनगुना रहा होगा...
क्या है तेरा ...क्या हे मेरा
सब कुछ है भगवान का
धरती उसकी,अंबर उसका
सब कुछ उसी महान का।

हरि की शरण में जा चुके इस महान गायक को विनम्र भावांजली.