Sunday, January 11, 2009

शब्दों से कहीं बेहतर और कुछ ज़्यादा ही कहते हैं चित्र

पहले भी कहीं लिखा था कि इन्दौर में जनसत्ता एक दिन बाद मिलता है. उसके बाद भी उसका समाचार संकलन,ले-आउट और भाषा संस्कार मन को लुभाता है. मेरा शहर तो बाक़ायदा अख़बारों की मण्डी बन चला है और तमाम कौतुक रचते अख़बार रोज़ सुबह निगाहों के सामने होते हैं.कुछ बाक़ायदा ख़रीद कर पढ़ता हूँ और कुछ मुझे पटाने के लिये सौजन्य प्रति के रूप में मेरे आँगन में तशरीफ़ ले आते हैं. समकालीन समाचार पत्र परिदृष्य में चटकीले,रंगीन और बिना मतलब के चित्रों की भरमार नज़र आ रही है. कुछ चित्र तो ऐसे होते हैं कि लगता है कि एकदम पोज़ देकर तैयार किये गए हैं.ये निश्चित ही चिढ़ाने का काम करते हैं.

जनसत्ता के चित्रों की बात ही निराली है. मेरे मालवा में भी इन दिनों कोहरा,मावठा (ठंड के दिनों में हुई बारिश) और कड़ाके की ठंड का आलम है और इन सब से जुड़े कुछ डिस्पैच अख़बारों में नमूदार भी हो रहे हैं . इसी बीच जनसत्ता में तीन चित्र कड़कड़ाती ठंड के हवाले से छ्पे और देखने में भी आए. आप भी नज़र डाले कि छायाकार ने कितनी सतर्कता,रागात्मकता और रचनात्मकता से इन चित्रों को खींचा है.

मुझे पूरा यक़ीन है कि ये चित्र आपको भी कंपकपा देंगे.


(रज़ाई और हाथ तापने वाले चित्र विशाल श्रीवास्तव के हैं)






14 comments:

दिनेशराय द्विवेदी said...

हाँ, युद्ध की तैयारी शत्रु की भीषणता का अहसास दिलाती है।

Gyan Dutt Pandey said...

देख कर ही ठण्ड बढ़ जा रही है।
अच्छी ब्लॉगिंग का उदाहरण। धन्यवाद।

Unknown said...

संजय भाई क्या पहली वाली तस्वीर जया भादुड़ी की है?

shelley said...

do chitra dekhar thand badgi ortisaro ko dekh kar kam ho gai. sach hai ki ek chitra hajar shabdo par bhari padta hai.

महेन said...

हर instant चीज़ अच्छी हो ज़रूरी नहीं, अखबार को मिलाकर. खूबसूरत तस्वीरें.

राकेश जैन said...

kuchh shabd kahte hain,
kuchh tasveer kahti hai..
kismat ka fasana, to dekho,
sari zindgi ka falsafa,
hath ki lakeer kahti hai..

expressions!! chitron me sahjta se parh pate hain. badhai

एस. बी. सिंह said...

सच कहा संजय भाई । अखबारी कागज़ की बरबादी कर पर्यावरण को भी नुकसान पहुंचाते ५० पन्नों के व्यर्थ चित्रों वाले अखबारों को सबक जैसे हैं ये रचनात्मक चित्र।

sanjay patel said...

जी सुरेश भाई,
ठीक पहचाना आपने;
ये नाक पोंछतीं जया भादुड़ी ही हैं.

आपका और सुरेश भाई सभी मित्रों को आभार.

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

इस चित्रमय पोस्ट को पढवाने का
बहुत शुक्रिया सँजय भाई :)
ठँड को क्या खूब दर्शाया है आपने !!
-लावण्या

नितिन | Nitin Vyas said...

वाह!

Unknown said...

पहली फोटो में मेरे दोस्त tarun cumar दिखाई पड़े जो जुकाम की दवा के असर न करने पर होम्योपैथी के डाक्टर से झगड़ रहे हैं।

Ashok Pande said...

बढ़िया तस्वीरें दद्दा!

सुनीता शानू said...

शानदार चित्र...तस्वीरें बोलती हैं..

आपको व आपके समस्त परिवार को होली की शुभकामनाएं...

पोलखोल said...

http://4polkhol.blogspot.com/

इसे भी देखो भाई