Saturday, October 6, 2007

कलाम को नहीं मिला कोई सलाम !

दो दिन पूर्व भारत रत्न डॉ.ए.पी.जे.अब्दुल कलाम मेरे शहर इन्दौर पधारे.
पूर्व राष्ट्रपति होने के नाते शहर को उम्मीद थी कि उनका ज़ोरदार ख़ैरमकदम होगा.
वे आए थे आई.आई.एम और एक स्कूल के आयोजन मे. पद की महिमा कहिये या राजनेताओं की देख कर टीका लगाने की आदत, एक भी राजनैतिक व्यक्ति एयरपोर्ट कलाम साहब का स्वागत करने नहीं पहुँचा.यहाँ तक की भाजपा शासित नगर पालिक निगम की महापौर भी नहीं . वही भाजपा जिसने डॉ कलाम को उम्मीदवार बना कर राष्ट्रपति पद तक पहुँचाया था. डॉ.कलाम को कोई फ़र्क नहीं पड़ा.वे तो निस्पृह भाव से एक साधारण सी एम्बेसेडर गाड़ी में घूमते हुए आयोजनों में शरीक होते रहे. जिस स्कूल के कार्यक्रम में उन्होने शिरक़त की उसमें दस हज़ार बच्चे जुटे.भारत के भावी नागरिकों के बीच चाचा कलाम खूब घुले-मिले , बात की, ठहाके लगाए , बच्चों के सवालों का जवाब दिये.मंच पर चाँदी की कुर्सी लगाई गई थी जिसे डॉ.कलाम ने ह्टवाया और साधारण सी मोल्डेड चेयर पर बैठ कर पूरे आयोजन का मज़ा लिया.

जिन साधारण से नेताओं के सम्मान में शहर के नेता रैलियों से सड़को और कामकाजी इलाक़ों को लगभग हाईजैक ही कर लेते हैं उनका अंतरराष्ट्रीय ख्याति के सांइटिस्ट और भारत रत्न अलंकरण से नवाज़े जा चुकी शख़्सियत से इस तरह का असम्मानजनक व्यवहार मन को असीम कष्ट देता है.
मैं संभवत: पहली बार अपने ब्लॉग की इस प्रविष्टि में इस विषय शब्द नहीं ख़र्चना चाहता. मै चाहता हूँ कि ब्लॉगर बिरादरी के संजीदा लेखक - पाठक अपनी ओर से इस ह्र्दयहीनता पर कुछ लिखें.

3 comments:

एक पंक्ति said...

राजनीति के इन दुकानदारों की क्या औक़ात की डॉ.कलाम के अवदान का मान करें.

Shastri JC Philip said...

प्रिय संजय

जिस देश में खलनायकों को नायक के लिये उचित आदर दिया जाता है वहां फिर नायकों के लिये कोई आदर नहीं रह जाता. नायकों को किसी कार्यक्रम में बुलाया जाता है तो वह सिर्फ इसलिये कि खलनायक इस तरह के कार्यक्रमों में जाना या सामाजिक निर्माण का कार्य करने के लिये समय देना पसंद नहीं करते.

उदाहरण के लिये क्रिकेट को ले लीजिये. ये खिलाडी एक साल में हिन्दुस्तानियों के करोडों घंटे बर्बाद करते है, कबड्डी खोखो जैसे खेलों को लुप्त करते है, एवं न खेलें तो भी करोडो बना लेते हैं. इनको हर कोई सम्मान देता है, जबकि ये समाज के असली नायक नहीं है. ये तो समाज को बर्बाद कर रहे हैं. लेकिन जो किसान, जो सैनिक, जो अध्यापक, जो समाजसेवी अपना जीवन, अपने रक्त का बूंद बूंद, देश को अर्पित करता है उसे करोडों छोडिये, कई बार खाना खरीदने के लिये एवं कपडा खरीदने के लिये पैसा नहीं मिलता है.

आपमुझ जैसे लोगों को जन जन के मन को जगाना होगा कि वे देश के सही नायकों का आदर करना सीखें -- शास्त्री जे सी फिलिप

हिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है

सागर नाहर said...

डॉ कलाम का अपमान होना कोई नई बात नहीं है, मैने कुछ महीनों पहले अपने एक ब्लॉग में एक जालस्थल का जिक्र किया था। यह जालस्थल भारत सरकार का है । इस जाल स्थल पर कलाम साहब के लिये प्रयोग किये गये शब्दों का नमूना देखिये-
अव्‍वल पकीर जेनुलाब्‍दीन अब्‍दुल कलाम को आमतौर पर डॉ. ए.पी.जी. अब्‍दुल कलाम के नाम से जाना जाता है। वह रामेश्‍वरम, तमिलनाडु के एक कम पढ़े लिखे नाविक का बेटा है और भारत गणराज का 11वां राष्‍ट्रपति है। भारत के पूर्व राष्ट्रपतियों के नाम है: डॉ. राजेन्‍द्र प्रसाद, एस.राधाकृष्‍णन, ज़ाकिर हुसैन, फ़खुरूद्दीन अली अहमद, वी.वी गिरि, नीलम संजीव रेड्डी, ज्ञानी जैल सिंह, आर.वेंकटारमन, डॉ. शंकर दयाल शर्मा और के.आर नारायणन। हमारे कई राष्‍ट्रपति तो डॉ. कलाम से भी बहुत ग़रीब घरों से आये थे। यह अत्‍यन्‍त महत्‍वूपर्ण है कि राष्‍ट्रपति भवन को सुशोभित करने वाला वह पहला वैज्ञानिक है। वह ऐसा व्‍य‍क्ति है जिसने भारत की तक़दीर बदलने का काम अपने जिम्‍मे लिया है। वह एक कल्‍पनाशील व्‍य‍क्ति है और उसकी कल्‍पना है कि भारत को एक विकसित देश बनाया जाए। अपनी कल्‍पना को अमली रूप देने के लिए उसने अपनी कार्रवाई योजना और मार्ग-नक्‍शा दिया है। अपनी तीन पुस्‍तकों में उसने अपना विचारों को सुस्‍पष्‍ट किया है: भारत 2020 नई सहस्राब्दि के लिए एक दृष्टि, विंग्‍स ऑफ फ़ायर: एपीजी अब्‍दल कलाम की आत्मकथा और इग्नाइटेड माइंड्स : अनलीशिंग दि पावर विदइन इंडिया। भारत ने प्रेरणा और मार्गदर्शन के लिए डॉ कलाम की ओर देखना आरंभ कर दिया है।

एक छोटी सी भूल आपसे भी हो गई है क्रुपया उसे सुधार लें। लेख की पहली लाईन में गलती से पूर्व भारत रत्न टाइप हो गया है। भारत रत्न तो वे आज भी है और शायद यह पुरुस्कार उन्हें ना मिला तब भी होते। :)
सही शब्द होना चाहिये- पूर्व राष्ट्रपति, भारत रत्न....