Thursday, October 18, 2007

बताइये अमेरिकी होशियार हैं या भारतीय ?

दोस्तो गंभीर बातों का सिलसिला तो ब्लॉग्स पर चलता ही रहता है ; आइये आज कुछ हँस लें।
कहते हैं अमेरिकी बहुत होशियार होते हैं ; अच्छे बिज़नेसमेन भी। विगत दिनो एक भारतीय ने इस बात को झुठला दिया। हुआ ये कि हमारी परिचित और अमेरिका में कार्यरत मित्र की माँ गुज़र गईं।शव पेटिका (कॉफ़िन) में माताजी का शव भारत भेजा गया। पेटिका एकदम खचाखच बंद। भारत पहुँचने पर परिजनों ने ध्यान से देखा तो शव पेटिका पर एक लिफ़ाफ़ा चिपका हुआ था। खोला गया तो एक चिट्ठी निकली ज़रा ग़ौर से पढ़ लीजिये आप भी।नितांत हल्के फ़ुल्के अंदाज़ में इस चिट्ठी को दिल पर मत लीजियेगा.

बडे़ भैया,मझले भैया,छोटू भैया,भाभी...जै श्रीकृष्ण।

आख़िर माँ चली ही गईं... सो उनका शव इस पेटिका में भेज रही हूँ।सम्हाल लेना और हमारे पारिवारिक स्मशान गृह में ही उनका अंतिम संस्कार करना। ऐसी माँ की ख़ास इच्छा थी। मैं भी इस अवसर पर भारत आना चाहती थी लेकिन पेड छुट्टियाँ ख़त्म होने से ऐसा संभव न हो पाया।

माँ के शव के साथ कुछ ज़रूरी सामना सम्हाल लेना जिसका विवरण इस प्रकार है...

माँ ने जो छह टी शर्ट पहन रखी है उसमें से सबसे बडी़ वाली बड़े भैया के लिये है...
बाक़ी बराबर बाँट लेना।

माँ ने दो जींस की पेंट पहन रखी है एक मेरे भतीजे अमरीश और दूसरी मेरी भांजी श्वेता के लिये है।

शांता मासी बहुत दिनो से माँ से स्विस वॉच लाने को कह रहीं थीं सो उनके दाएँ हाथ पर पहना दी है।

बाएँ हाथ पर जो ब्रेसलेट है वह मझली भाभी के लिये है।

बड़ी भाभी , छोटी भाभी और मेरी प्यारी शकु बहन के लिये माँ को गले में तीन नेकलेस पहना दिये हैं।

मेरे प्रिय भानजे संजय के लिये माँ ने रीबॉक शूज़ पहने हुए है... नम्बर दस है ...देख लेना साइज़ ठीक ही होगा।

माँ के नीचे बादाम,काजू और चॉकलेट फ़्लेवर के शानदार कुकीज़(बिस्किट) रखे हुए हैं ....एहतियात से निकाल कर मिलजुल कर खाना।

बाक़ी सब ठीक ही है...सबको मेरा प्यार ...

आपकी बहन

स्मिता।

पुन:श्च > वैसे मैने सब ठीक से याद रख कर पैक किया है लेकिन फ़िर भी कुछ रह गया तो बताना ;
बापूजी की तबियत भी ठीक नहीं रहती है.

5 comments:

सुनीता शानू said...

संजय भाई आपने तो हँसते-हसँते बहुत गहरी बात कह दी है...आज यही कुछ रह गया है...

सुनीता(शानू)

Udan Tashtari said...

हा हा, ब्लैक लेबल स्कॉच नहीं भिजवाई?

खैर, बाबू जी की तबियत का सुना. अगली बार भिजवा देना.

हद है भाई...कहाँ कहाँ तक विचार दौड़ सकते हैं. हल्के में ही लिया है.

Sanjeet Tripathi said...

क्या कहूं पता नही!

Rajeev (राजीव) said...

किस्से के तौर पर तो मज़ेदार है। इसके अलावा भी और कुछ। एक ओर आज की भौतिकता वादी मानसिकता पर करारा व्यंग्य और दूसरी तरफ माँ के नि:स्वार्थ प्रम और ममता का भी दर्शन। सभी कुछ एक में पिरोया हुआ।

Unknown said...

संजय जी क्या ब्लॉग आप स्वयं बनाते है और इंडी टाइपिंग भी कर लेते है