Monday, February 25, 2008

पं.शिवकुमार शर्मा...जिनके व्यक्तित्व में भी है करिश्माई सुरीलापन


पण्डित शिवकुमार शर्मा का नाम हम उन सब संगीत-प्रेमियों के लिये उतना ही जाना पहचाना है जितना उनका बाजा संतूर।शिवजी जिन्हें पद्म-विभूषण से नवाज़ा जा चुका है अपने जीवन काल में ही एक जीनियस के रूप में जाने जाते है. सभी जानते हैंकि संतूर दर-असल कश्मीर का लोक वाद्य है और इसे वहाँ की लोक धुनों के साथ सफ़ी संगीत में भी बजाया जाता रहा है. संतूर का उद्भवषड़तंत्री वीणा से हुआ है और इसमें सौ से अधिक तार होते हैं.


पं।शिवकुमार शर्मा के परिवार में संगीत ख़ासकर क्लासिकल संगीत का वातावरण रहा है यही वजह है कि संतूर की ओर आने के पहले वे शास्त्रीय गायऔर तबला वादन बाक़ायदा तालीम ले चुके थे. संतूर की ओर उन्हें उनके पिता लेकर आए.नया और अलोकप्रिय वाद्य होने के कारण शिवजी इस वाद्य को लेकर सशंकित थेलेकिन वे बताते हैं कि वह ज़माना ऐसा था कि पिता का आदेश ईश्वर का आदेश हुआ करता था. सो तालीम शुरू हो गई.कई परिवर्तनों के बाद शिवजी को इस बाजे में आनंद आने लगा.उन्होंने रोज़ी-रोटी के तलाश मेंमुम्बई का रूख़ किया और फ़िल्मी दुनिया में काम करने वाले कई संगीतकारों के गीतों के इंटरल्यूड्स में संतूर के तारों को पिरोया. अभी जब ये ब्लाँग लिख रहा हूँ तब भी विविध भारती से ओ.पी नैय्यर का संगीतबध्द किया हुआ गीतबज रहा है ...दीवाना हुआ बादल ...सावन की घटा छाई...ये देख के दिल झूमा...(रफ़ी-आशा)॥ख़ैर फ़िल्म जगत ने शिवजी को आर्थिक सुरक्षा दी और ज़िन्दगी की गाड़ी चल पड़ी.


पं।शिवकुमार शर्मा के कई कार्यक्रमों को एंकर करने का मौक़ा ख़ाकसार को मिलता रहा है सो उनसे एक निजता सी भी हो गई है. अभी कुछ दिनों पहले शिवजी इन्दौर के एक प्रतिष्ठित स्कूल के वार्षिक समारोह में बतौर ख़ास मेहमान तशरीफ़ लाए.ये विद्यालय श्री सत्य साई बाबा (पुट्टपर्ती) द्वारा संचालित है और इसी स्कूल के परिसर में एक अत्याधुनिक ऑडियो-वीडियो स्टुडियो स्थापित किया गया है. मुझे इसी स्टुडियो के प्रथम विशिष्ट अतिथि के रूप में पं.शिवकुमार शर्मा को इंटरव्यू करने सौभाग्य प्राप्त हुआ.


सत्तर के पार जा चुके शिवजी से मिलने पर समझ में नहीं आता कि उनका संतूर वादन सुंदर है या वे स्वयं।न जाने क्यों लगता है कि उनके करिश्माई व्यक्तित्व में भी एक सुरीलापन स्पंदित हो रहा है.वे आपके नज़दीक हों तो ख़ूबसूरती और फ़िटनेस लगभग लजा सी जाती है. गोरे चिट्टे चेहरे पर चेहरे पर घुंघराले चाँदी के रंग वाले बालों का तानाबाना मोहित सा कर देता है.शिवजी ने इस साक्षात्कार में कहा कि हर कालखण्ड में संगीत समाज,मनुष्य और उसके संस्कारों से प्रभावित हुए बिना नहीं रहा है. कई दौर आए...चले जाएंगे लेकिन क्लासिकल मौसीक़ी की ताक़त कम नहीं होगी.उन्होंने ये हक़ीक़त बता कर चौका दिया कि उनके कंसर्ट में आज युवाओं की संख्या में लगाता बढोत्तरी होती जा रही है और युवा-पीढ़ी के पास आज संतूर,तबला,बाँसुरी के सीडीज़बड़ा कलेक्शन मिलेगा.शिवजी ने कहा कि हल दौर में अच्छा-बुरा दोनो तरह का संगीत रहा है और हर दौर में संगीत के अस्तित्व को लेकर कुछ ख़तरे भी रहे हैं.उन्होंने भारी मन से कहा कि मुझ जैसे तमाम कलाकारों के प्रयासों के बावजूद यदि नई पीढ़ी को यह संदेश जाए कि बुरा संगीत ही अल्टीमेट है और शोर ही सुरीलापन तो इसे समय का दुर्भाग्य ही कहना होगा.


पं।शिवकुमार शर्मा ने कहा कि हमारे संघर्ष काल में कई चुनौतियाँ रहीं हैं और उन हालातों ने हम्रें मज़बूत बनाया है. शिवजी ने बताया कि उन्होंने ऐसी कई यात्राएं याद हैं जिनमें पूरी रात बाजा और बैग लेकर ट्रेन में खडे़ खड़े सफ़र किया है और सुबहदूसरे शहर पहुँच कर एक घंटे बाद अपनी प्रस्तुति दी है. शिवजी अपनी नीली आंखों को थिरकाते हुए जब बात कर रहे थे तो लग रहा था जैसे संतूर पहाड़ी धुन बज रही है.उनसे जब भी मिलें तो वे युवतर नज़र आते हैं.....कहने को जी चाहता है...


खू़बसूरती भी लजाने आई

जब वो सुरीले ज़माने आए

4 comments:

मीनाक्षी said...

पंडित जी के बारे में पढ़कर आनन्द आ गया. आप उनसे मिलते रहे हैं..यह जानकर तो हमें और भी अच्छा लगा ...

Manish Kumar said...

शुक्रिया एक महान वादक के जीवन के इन पहलुओं से हमें परिचित कराने का...

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

इस सदी के सबसे सुरीले संतूर के जादूगर पंडितजी को प्रणाम !
nICE POST sANJAY BHAI --

डॉ. अजीत कुमार said...

संजय जी, पहली बार आपके blog पर आया हूँ. यह कहते हुए थोड़ी झिझक तो हो रही है, पर कहते हैं न जब से जागो तभी सवेरा.
अपना पहला cd album जब मैने खरीदा तो वो पंडित जी का ही था. उन महान हस्ती से मुलाक़ात प्रस्तुत करने का मैं तहे दिल से शुक्रिया अदा करता हूं.