Saturday, August 2, 2008

सखाराम बाइंडर,विजय तेंडुलकर और प्रिंटिंग प्रेस.


28 से ज़्यादा पूर्णाकार नाटक,7 एक-पात्रीय,6 बच्चों की नाटिकाएँ,लघु-कथाओं के 4 संकलन,3 निबंध संग्रह और 17 फ़िल्मों की पटकथाएँ रचने वाले ख्यात नाटककार विजय तेंडुलकर विगत 19 मई को हमसे बिछुड़े थे. अपने बेहतरीन कथानकों के लिये तेंडुलकरजी खासे चर्चित रहे और मूल मराठी मे लिखे गये नाटकों को हिन्दी और दीगर भाषाओं में अत्यधिक सराहा गया.

नाटककार जो भी अपने परिवेश,समाज और स्वाध्याय में महसूस करता है वही नाटक की शक्ल में क़लमबध्द होता है. यही बात विजय तेंडुलकर जैसे समर्थ लेखक पर भी लागू होती है. चूँकि एडवरटाइज़िंग और प्रिंटिंग के कारोबार से जुड़ा हूँ तो इन विधाओं पर भी प्रकाशित हो रहा साहित्य पढ़ता रहता हूँ.बस इसी वजह से प्रिंटिंग तकनीक पर प्रकाशित एक अंग्रेज़ी पत्रिका के पन्ने पलटा रहा था तो एक शीर्षक पर नज़र गई
विजय तेंडुलकर इन प्रिंट-वर्ल्ड ...एक लम्हा चौंक गया मैं.ज़रा इत्मीनान से जब वह ख़बर पढ़ी तो एक नई जानकारी मिली.

1960 में तेंडुलकर जी मराठा और लोकसत्ता दैनिक में काम करते थे. वे इन अख़बारों के प्रिंटिंग सैक्शन में घंटो बिताते...क़ाग़ज़ का आता , छपकर अख़बार बनता देखते रहते.उनके पिता भी एक छोटी प्रिंटिंग प्रेस चलाते थे.ख़बर में लिखा है कि सखाराम बाइंडर चरित्र इसी प्रेस अनुभव की उपज थी. अपनी भाषा शैली के लिये सखाराम बाइंडर अपने समय का सबसे विवादास्पद नाटक था. इस नाटक ने नैतिकता के नाम पर किये जाने वाले छदम व्यवहार पर भी कई प्रश्न-चिह्न उठाए थे. अख़बार और प्रेस के परिवेश का मंज़र संभवत: तेंडुलकरजी के अवचेतन में रहा हो और उसी से सखाराम का क़िरदार साकार हुआ हो.

1 comment:

Gyan Dutt Pandey said...

मैं तेन्दुळकर जी को घासीराम कोतवाल और सखाराम बाइण्डर के लिये याद करता हूं।
यह मेरा दुर्भाग्य है कि उन्हे पढ़ा नहीं है; केवल इधर उधर विवरण देखा है।
उनको श्रद्धांजलि - यद्यपि उनके निधन को दो महीने से ज्यादा हो गया है; पर उनकी याद आपकी पोस्ट के माध्यम से आई।
धन्यवाद।