Sunday, August 3, 2008

फ़्रेंडशिप डे-मित्र हो तो ऐसा

दोस्त ऐसा
जिसे कहो कुछ नहीं
समझ जाए

लिखो कुछ नहीं
पढ़ ले

आवाज़ दो
उसके पहले सुन ले

मुझे गुण-दोष सहित
स्वीकार करे

ग़र चोट लगे उसे
दर्द हो मुझे

कमाल मैं करूँ
गर्व हो उसे

अवसाद से उबार दे
स्नेह दे , सत्कार दे
आलोचना का अधिकार दे
रिश्तों को विस्तार दे

दु:ख में पीछे खड़ा नज़र आए
सुख का सारथी बन जाए

सिर्फ़ एक दिन फ़्रेंड न रहे
दिन-रात प्रति पल
धड़कता रहे सीने में

हैसियत और प्रतिष्ठा से सोचे हटकर
वही मित्र मुझे लगे प्रियकर.

16 comments:

कामोद Kaamod said...

दोस्त ऐसा
जिसे कहो कुछ नहीं
समझ जाए

क्या बात कही है आपने..
बहुत कम होते है ऐसे दोस्त.

मीनाक्षी said...

ऐसा एक भी दोस्त भी मिल जाए वह बेशकीमती है...करोड़ो के बराबर फकत एक ....

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

ऐसी दोस्ती अरसपरस बनी रहे ..
यही दुआ है सँजय भाई :)
- स्नेह
लावण्या

रंजू भाटिया said...

वाह यदि ऐसा कोई दोस्त मिल जाए तो सब मुश्किल आसन हो जाए और जिनको ऐसा मिला है दोस्त तो यह सबसे अच्छा है... बहुत अच्छी लगी आपकी यह रचना ..

पारुल "पुखराज" said...

aameen

अजित वडनेरकर said...

सुंदर रचना ...

Sajeev said...

मैं हूँ न भाई ....

समयचक्र said...

सुंदर रचना,,,

डॉ. अजीत कुमार said...

संजय जी,
आपने दोस्ती की क्या खूब व्याख्या की है.
हमें कोई ऐस दोस्त मिले ना मिले, हम खुद गुने कि क्या हम किसी के ऐसे मित्र हैं. क्या हम अपने मित्र की कसौटी पर खरे उतरते हैं?

sanjay patel said...

आप सभी भाई/बहनों को प्रकट किये गए सखा भाव के लिये आभार.

दिलीप कवठेकर said...

मित्रता पर इतना सारा लिखा जा चुका है पर यह खयाल निराला और नितांत मौलिक है. संजु इसे दिल में तो मढ लिया है, मगर अगर एक प्ले कार्ड बन जाये तो सहेज कर रखुंगा.

यहां यह बात ज़्यादा मौज़ूं है, की क्या आप ऐसे मित्र है?

मैं तो कोशिश कर रहा हूं,(खुद ही चेक कर लिजीये!) और मेरे मित्र से मुझे कोई अपेक्षा नही.

" Friend is never to say sorry to"

sanjay patel said...

आज ही एक गुजराती पत्रिका में पढ़ा ....
मित्रता मापवानी नथी ..आपवानी वस्तु छे...
मित्रता मापने की नहीं देने (आपवानी) में है.

sunilsolanki said...

likha aapne mitrata par
mujhe Mohan Bhai ki yaad aai

kismat wale hain aaap
jo unki mitrata pai

man me garv hai ki
mitra jaisa hi mujhe guru mila
mujhe apneaap ko badhai ....

sunilsolanki said...

likha aapne mitrata par
mujhe Mohan Bhai ki yaad aai

kismat wale hain aaap
jo unki mitrata pai

man me garv hai ki
mitra jaisa hi mujhe guru mila
mujhe apneaap ko badhai ....

Unknown said...

संजय दादा ,
आपकी कविता नें एक quote की याद दिलाई जिसे इन दिनों मैंने signature quote बना रखा है |
A true friend knows your weaknesses but shows you your strengths; feels your fears but fortifies your faith; sees your anxieties but frees your spirit; recognizes your disabilities but emphasizes your possibilities.

दिलीप कवठेकर said...

लगता है जो बात मैने अपने परिपेक्ष्य में लिखि थी , उसे उलटा पढ लिया गया है.

मैं अपने आप से मुखातिब था, और तभी यह पाया की आप को तो देना है, दूसरे को मापने या नापने दें, और इसीलिये आगे लिखा है, की मुझे यह अपेक्षा नहीं की मेरा दोस्त कैसा हो, यह ज़रूर अपने तंई कोशिश करूंगा की मै अपने मित्र की अपेक्षा के अनुरूप अपने आप को बदल सकूं.यह तभी संभव है की आप हमेशा ऐसी अवस्था में रहे की

a. try to put yourself to others shoes first, rather than other way round.

b. you behave first the way you would like others to behave with you.

c. समर्पण मित्रता की पहली सीढी है.

(सनद रहे की यह बात भी अपने से, मित्र से अपेक्षित नही)

तभी तो इस पोस्ट मे आपने लिखी हर पंक्ति यही भावना परिलक्षित कर रही है.इसिलिये Hats Off!!