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मुनव्वर राना का घर पूरा हिन्दुस्तान है.हम इन्दौरी भरम पाल लेते हैं कि इन्दौर उनका दूसरा घर है जबकि हक़ीकत यह है कि मुनव्वर भाई जहाँ जाते हैं अपना परिवार-दोस्त बना लेते हैं.उर्दू शायरी में रिश्तों को लेकर मुनव्वर भाई जो बातें कहीं हैं वे न केवल बेमिसाल हैं बल्कि एक लम्हा आपको अपनी ज़ाती ज़िन्दगी में झाँकने पर मजबूर भी करतीं हैं.दोस्त बनाने में मुनव्वर भाई का जवाब नहीं;और यक़ीनन वे दोस्ती निभाते भी हैं.अच्छा खाना मुनव्वर भाई की क़मज़ोरी है.वे कहते हैं ...जहाँ अच्छा खाना;वहाँ मुनव्वर राना.मुनव्वर भाई की सालगिरह पर उन्हीं की ग़ज़ल मुलाहिज़ा फ़रमाएँ:
हमारा तीर कुछ भी हो,निशाने तक पहुँचता है
परिन्दा कोई मौसम हो ठिकाने तक पहुँचता है
धुआँ बादल नहीं होता,कि बचपन दौड़ पड़ता है
ख़ुशी से कौन बच्चा कारख़ाने तक पहुँचता है
हमारी मुफ़लिसी पर आपको हँसना मुबारक हो
मगर यह तंज़ हर सैयद घराने तक पहुँचता है.
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राजकुमार केसवानी की पहली पहचान अख़बारनवीस के बतौर है और दिसम्बर महीना नज़दीक़ आते ही राजभाई की पूछ-परख कुछ ज़्यादा ही हो जाती है क्योंकि यही वह पहला शख़्स है जिसने भोपाल गैस त्रासदी के लिये भारत सरकार को बहुत पहले चेताया था. राजकुमार केसवानी एक भावुक कवि भी हैं और उनकी रचनाओं में परिवेश और ज़िन्दगी के कई कलेवर नज़र आते हैं.वे दैनिक भास्कर के रविवारीय परिशिष्ट रस-रंग का सफल संपादन कर चुके हैं और देश के अख़बारों में हर हफ़्ते शाया होने वाले रविवासरीय पन्नों से रस-रंग को बहुत आगे निकाल चुके हैं.वे एक संजीदा इंसान इसलिये भी हैं कि हर तरह का वह संगीत जिसमें सुर की रूह मौजूद है राजभाई सुनना और गुनना पसंद करते हैं.स्वयं उनके निजी संकलन में कई बेमिसाल बंदिशें मौजूद हैं जिनमें फ़िल्म संगीत,ग़ज़ले और क्लासिकल रचनाओं का शुमार है.वर्ल्ड क्लासिक फ़िल्में भी राजभाई की कमज़ोरी रही हैं.सूफ़ी परम्परा के पुरोधा बाबा रूमी पर राजकुमार केसवानी के मजमुए में झर रहीं रूहानियत महसूस करने की चीज़ है. राजभाई की एक कविता आपके साथ बाँटना चाहता हूँ
बचपन में
मेरे पास
सिर्फ़ बचपन था
और वह
सबको
अच्छा लगता था
बुढ़ापे मे अब
मेरे पास
रह गया है
सिर्फ़ बचपना
और वह
किसी को
अच्छा नहीं लगता.
तो लीजिये दोस्तो,आज उर्दू-हिन्दी की शब्द-सेवा करने वाले दो प्यारे इंसानों को उनके जन्मदिन की बधाई देत हुए मैं अपनी बात को विराम देता हूँ.
बधाई....मुनव्वर राना....राजकुमार केसवानी.