मन को पतंग बना लो
उड़ती है वह बेख़बर
जैसा उड़ाने वाला चाहे
कितना समर्पण है उसमें
न कोई चाहना
न कोई शर्त
हवा के रूख़ को
हमसफ़र बना कर
उड़ती रहती है
वह अनंत आकाश में
हम मन को भी पतंग
बना लें तो कितना अच्छा हो
अनंत में उड़ते रहें
बिना किये परवाह
कौन उड़ा रहा है
कौन काट डालेगा
क्या होगा मेरा अस्तित्व
क्या होगा मेरा मुस्तक़बिल
बस उड़ते रहें बेख़बर
अपनी शर्तों और पूर्वग्रहों
से कितना बिगाड़ लिया है
हमने अपने शुध्द,मासूम मन को
अपने आग्रहों से,
अपने अहंकार से
अपनी मनमानी से
जानते हैं कि हो जाना है
एकदिन अनंत में विलीन
तो भी सच से मुँह फ़ेर कर
हम अड़े हैं अपनी बात पर
आओ बेख़बर उड़ने का शऊर
पतंग से सीख लें.
8 comments:
"उड़ती है वह बेख़बर
जैसा उड़ाने वाला चाहे
कितना समर्पण है उसमें
न कोई चाहना
न कोई शर्त
हवा के रूख़ को
हमसफ़र बना कर
उड़ती रहती है
वह अनंत आकाश में"
बहुत अच्छा लगा संजयजी, कविताएं भी आप अच्छी लिखते हैं ...लिखते रहें ....मन तो पतंग हुआ जा रहा है....
धन्यवाद विमल भाई...
उर्दू वाले कहते हैं शे’र हो गया...
मैं इस जुमले और रिवायत का मुरीद हूँ
बस ये कविता भी हो गई...
ऑगलाइन ही लिखी है...
आपका शुक्राना..
आपका मन तिल-गुड़ बना रहे...
आदाब
गोया यही कहेगे .आमीन !!
kya baat hai bhai !! hum aapke pankhe to hai hi ...........ab shagird banna chahte hai !! great !!!
gaagar me saagar bhar diya he aapne is kavita me .Patang ki tarah hame apne jivan ki dor uparvale ke haath me chod deni chahiye .isa se man ka purvagrah,anhkar kam hota he .jivan kobehtar tarike se jine ke lie nayi udanchi deti he aapki kavita.
Sanjay Bhayya
Kuchh shabd nahi hai. Patang aur man ko aapne adbhut joda hai.
Jai Shree Krishna
Rajesh
Sanjay ji,
Bahut din baad patang par achha padane ko mila.Dhanyavaad.Patang dil ke kaafi najdeek hai.Man aaj bhi Patango ke saath rahane ko karata hai.Kaash jo hum chaahate hain sab sambhav ho paataa, shaayad hum bade hi nahi hote.
Dr.rakesh Gupta.
हम मन को भी पतंग
बना लें तो कितना अच्छा हो
अनंत में उड़ते रहें
बिना किये परवाह
कौन उड़ा रहा है
कौन काट डालेगा
क्या होगा मेरा अस्तित्व
क्या होगा मेरा मुस्तक़बिल
बस उड़ते रहें बेख़बर
kaash ki man patang ban nirmal hawa ke saath nishchhal ud sake. bahut sunder bhav.
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