Saturday, July 31, 2010

मोहम्मद रफ़ी;कुछ ऐसी बातें जो अब सच लग रहीं हैं.




बहुत मुख़्तसर में अपनी बात कहना चाहता हूँ क्योंकि आज रफ़ी साहब पर कुछ पढ़ने से ज़्यादा बेहतर होगा उन्हें सुना जाए. तीस बरस पहले गुज़र चुका यह सुरीला दरवेश आज भी यदि हमारे दिलोदिमाग़ में मौजूद है तो उसकी वजह बस इतनी भर है कि वह बहुत नेक इंसान थे और इस दुनिया ए फ़ानी से दुआओं का दौलत बटोर कर ले गए.रफ़ी साहब की बरसी के दिन दिल में छटपटाहट हो रही है और कुछ विचार आ रहे हैं जो आपके साथ बाँट कर हल्का हो जाना चाहता हूँ.

-रफ़ी साहब ज़िन्दा होते हुए जितने थे , उससे कहीं ज़्यादा हैं हमारे बीच.

-वे गुज़र जाने के बाद एक घराना बन गए हैं.तो जो भी उनके अंदाज़ में गा रहा है और उन्हें दोहरा है वह रफ़ी घराने का चश्मे-चिराग़ है.

-रफ़ी को दोहराया नहीं जा सकता,उनके अहसास को अपनी आवाज़ में समो कर गाया जा सकता है.

-रफ़ी साहब के गीतों को सुनकर ही हमें पता लगता है कि समकालीन समय का बेसुरापन क्या है और कितना ख़तरनाक़ भी.

-रफ़ी साहब ने सुगम संगीत की विधा में अपना काम कर के बता दिया कि शब्द प्रधान गायकी किस बला का नाम है और कविता/शायरी का निबाह क्या होता है.

-रफ़ी और लता हमारे समय के दो ऐसे बेजोड़ गायक हैं जिन्हें सुनकर इस बात की तसल्ली होती है कि फ़लाँ शब्द ऐसे ही बोला जाता है. इस लिहाज़ से मैं उन्हें तलफ़्फ़ुज़ की डिक्शनरी कहना चाहूँगा.

-दुनिया में हिन्दी चित्रपट गीतों की बात चले और रफ़ी साहब ख़ारिज कर दिये जाएँ ऐसा संभव ही नहीं.

-रफ़ी साहब जैसी गुलूकारी के लिये एक नेक तबियत होना बहुत ज़रूरी है वरना आपकी गायकी से सचाई का पता नहीं मिलेगा.

-रफ़ी साहब अपनी आवाज़ से जिस तरह के करिश्मे गढ़ गए हैं उन्हें सुनकर अंदाज़ लगाना मुश्किल है (बल्कि इस तरह का मतिभ्रम जायज़ भी है) कि रफ़ी साहब ने इन गीतों को गाया है ये गीत रफ़ी साहब की गायकी के लिये लिखे गए.

-जो रफ़ी ने गाया है उसे काग़ज़ पर लिख कर पढ़िये आपको समझ में आ जाएगा कि रफ़ी का दैवीय स्वर क्या है.उन्होंने किस बुलन्द अहसास के साथ शब्दों को जिया है.

-रफ़ी साहब शब्द को शून्य तक ले जाते थे...तब शून्य की गायकी बुलन्द हो जाती थी...भाव गाने लगता था.

-रफ़ी साहब गाते-गाते ख़ुद ग़ायब हो जाते थे..अभिनेता,सिचुएशन या दृश्य साकार हो जाता था, यही वजह है कि उनके गीतों का ऑडियो सुनने पर तस्वीर साकार हो जाती है.

आख़िरी बात...रफ़ी जैसा गायक फ़िर नहीं होगा..शर्तिया.रफ़ी जैसा गाने के लिये,गुनगुनाने के लिये शब्द के पार जाकर अहसास के समंदर में गोता लगाना होगा...गाते गाते गायक ग़ायब हो जाए तो समझिये वहीं मोहम्मद रफ़ी गा रहे हैं.

7 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

रफी साहब की गायकी अन्दर तक गूँजती है।

Unknown said...

"...रफ़ी साहब के गीतों को सुनकर ही हमें पता लगता है कि समकालीन समय का बेसुरापन क्या है और कितना ख़तरनाक़ भी..."
- संजय भाई, इसे कहते हैं "सौ बात की एक बात"।

इस महान आत्मा को श्रद्धा के सहस्त्र सुमन अर्पित हैं…

VIMAL VERMA said...

सत्य वचन, रफ़ी साहब के बहुत से गीत तो ऐसे है जिनके बजते ही हम खु़द ब खुद साथ साथ गाने लग जाते हैं और जब गाना खत्म होता है तो थोड़ा सोच में पड़ जाते हैं कि वाकई ये गाना मुझे पूरा याद है ...कोई अकेले कहे गाने को तो दो लाईन के आगे दिमाग साथ ने देता। इससे कह सकते है कि रफ़ी साहब हमारे दिल में ही रहते हैं। अच्छी पोस्ट के लिये संजय भाई आपका शुक्रिया ।

यारा said...

सच्ची बात है...

यारा said...

- awdhesh p singh

daanish said...

आज तक के
और
आने वाले हर समय के
महान गायक रफ़ी साहब को
मेरी श्रद्धांजली ...

Vijay Sohni said...

Bhaiya, pehli baar aapke blog per aaya. Bahut achcha laga. Rafi Sh. ke baare me bilkul sahi likha hai