Sunday, February 10, 2013

समाज-सेवा का निराभिमानी सुमेरू-बाबूलाल बाहेती


जीवन में उन्हें सब मिला.कारोबारी सफलता,भरापूरा परिवार,नामचीन हस्तियों का संगसाथ लेकिन एक खास किस्म की बैचैनी उनके मन में हर लम्हा रहती थी और वह ये कि मेरे शहर को मैं क्या दे सकता हूँ.प्रचार से परे रह कर उन्होंने एकाधिक प्रकल्पों को सहयोग दिया.पद्मश्री बाबूलाल पाटोदी,हरिकिशन मुछाल के तीसरे मजबूत मित्र बाबूलाल बाहेती का समाज सेवा के निर्विवाद,निर्विकारी और निराभिमानी सुमेरू कहा जाना कतई अतिशयोक्तिपूर्ण नहीं है. बाबू दादा,बाहेतीजी,काका साब,बाबूजी जैसे एकाधिक संबोधनों से सुशोभित होने वाले बाबूलाल बाहेती आजादी के पहले से मालवा के सिरमौर शहर से बेहद स्नेह रखते थे और यही वजह कि उनकी शख्सियत में एक आत्मीय देसी मालवीपन हमेशा बरकरार रहा. परिवार में नई सोच और प्रगतिशीलता के बावजूद वे पहनावे,बोल-व्यवहार और तबियत से खालिस मालवी थे और उसके सार्वजनिक आचरण में उन्हें कभी कोई झिझक भी नहीं थी. काका साब पचास से सत्तर के दशक में इन्दौर के कपड़ा उद्योग के सुनहरे कालखण्ड के साक्षी थे और पाटोदीजी और मुछालजी को साथ लेकर उन्होंने गाँधीजी की उस ट्रस्टीशिप की कल्पना को साकार करने किया. आज इन्दौर को जिस एज्युकेशनल हब के रूप में राष्ट्रीय पहचान मिली है उसके मूल में बाहेतीजी के अवदान को रेखांकित किया जाना आवश्यक है.इधर कुछ बरसों में गीता भवन बाहेतीजी का प्रिय स्थल बन गया था और वे शारीरिक व्याधि के बावजूद भी नियमित रूप से इस परिसर में अपना समय बिताते रहे. बाबू घनश्यामदास बिडला,आर.सी.जाल,सर सेठ हुकुमचंद जैसे सेवा-भावी लोगों से उन्होंने जीवन व्यवहार की एकाधिक बारीकियाँ सीखीं वैसा जीवन जिया भी. नब्बे पार जाकर बाहेतीजी शरीर से जरूर थके थे लेकिन संकल्पों के नये-नये सिलसिले उनके मन में आकार लेते रहते थे. वे जिद की हद तक जाकर क्लॉथ मार्केट,वैष्णव ट्रस्ट और गीता भवन की गतिविधियों में संलग्न रहे. उनके अंतिम संस्कार में बड़ी संख्या में हर तबके के व्यक्ति का मौजूद होना बाहेतीजी के दातापन का विनम्र वंदन ही तो है. शहर अपनी तासीर और तेवर से दौड़ रहा है लेकिन जब भी हमें कुछ ऐसे समर्थ लोगों की फेहरिस्त बनाने का मौका मिलेगा जिन्होंने पूरे शहर को अपना परिवार माना तो बाबूलाल बाहेती की स्मृति हमारे मन में सबसे पहले उभरेगी.मालवी में कहना चाहूँ तो यही कहूँगा “काका साब आप मालवा का मान था ने रेवोगा”

5 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

अभिमान पुरुष को विनम्र श्रद्धांजलि..

संजय जोशी "सजग " said...

बहुत बड़िया ...दादा

Yogi Saraswat said...

बेहतर जानकारी देत हुआ लेखन ! ऐसे नगीनों को हम भूल जाते हैं और अधकचरे , कीचढ़ से सने लॉगऑन को अपने रोल मॉडल बना लेते हैं

Shilpakar Nandeshwar said...

Nice Blog ...........Nice Informatin


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Prabodh Kumar Govil said...

Achchha lagaa!