Sunday, July 6, 2008

शहर को चलाना है;सियासत को नहीं;रहम खाओ-सियासत न चलाओ

कर्फ़्यू के साये में बेहोश मेरे प्यारे शहर के दिन-रात
इसकी लय और गति को बाधित कर रहे हैं.बच्चे,बूढ़े
हिन्दू,मुसलमान,बड़े –छोट,अमीर-ग़रीब...सब दुआ कर रहे
हैं अरमानों का ये शहर सियासत से मुक्त हो कर अपने रंग
में आ जाए.मेरी बात पढ़ते पढ़ते आपको लगे मैं कि मैं ठीक कह
रहा हूँ तो गुज़ारिश है आपसे कि अपनी तमाम प्रार्थनाओं
में मेरे दुलारे शहर को भी शरीक कर लें.


ख़ून चलेगा ,पत्थर चलेगा
सियासत न चलाओ

गोली चलेगी,ज़ख़्म चलेंगे
सियासत न चलाओ

इन्तज़ार चलेगा,भूख चलेगी
सियासत न चलाओ

कर्फ़्यू चलेगा,पुलिस चलेगी
सियासत न चलाओ

रोना चलेगा,आँसू चलेंगे
सियासत न चलाओ

कड़वा चलेगा,तल्ख़ी चलेगी
सियासत न चलाओ

दूरी चलेगी,तनाव चलेगा
सियासत न चलाओ

ख़ामोशी चलेगी,भाषण चलेंगे
सियासत न चलाओ

झूठे वादे चलेंगे,आहें चलेंगी
सियासत न चलाओ

शहर चलेगा,सियासत न चलेगी
रहम खाओ, सियासत न चलाओ

इन्दौरनामा और मोहल्ला पर भी देखें मेरे शहर और मेरे दु:ख के शब्द चित्र

इन्दौरनामा में जारी 'ये सिर्फ़ एक शहर नहीं ; इंसानियत की आवाज़ है' शीर्षक की कविता को नईदुनिया और
मोहल्ला मे जारी 'ये किसका लहू है कौन गिरा' शीर्षक की कविता को दैनिक भास्कर ने प्रमुखता से प्रकाशित किया है।
इस प्रकाशन के लिये दोनो प्रकाशनों और मोहल्ला के अविनाश भाई का शुक्रिया अदा करता हूँ।

3 comments:

Gyan Dutt Pandey said...

पता नहीं कौन करवा रहा है दंगे इन्दौर में। मुझे तो बाला बेग (यही नाम था शायद) के ऑर्गनाइज्ड दंगे याद हैं। बहुत समय बाद खराब हुआ है वहां का माहौल। आसन्न लोक सभा चुनाव की छाया लगती है। किसे होना है फायदा दंगों का?

राकेश जैन said...

झूठे वादे चलेंगे,आहें चलेंगी
सियासत न चलाओ
satyavat.

Sanjay G meri print media me koi pahchan nahi hai, agar meri posts ki kavitayen is mahol me kuchh sahajta de sakti hain, to aap apne pryatna se inhe prakashit karva de, main abhari rahunga..

Shishir Shah said...

aap ka khayal umda hain...par meri soch to ye hi kehti hai ki reham mangna nahi...haq chheen na padega...