Friday, July 18, 2008

मिश्री सी मीठी आवाज़ की पुण्यतिथि है कल


दुनिया में कुछ चीज़ों की तुलना ही नहीं की जा सकती। तुलना तो ठीक, उनके लिए उपमाएँ ढूँढना भी एक मुश्किल काम हो जाता है। भारतीय फ़िल्म संगीत में गीता दत्त का नाम भी कुछ ऐसा ही है। गीताजी की आवाज़ की रिक्तता आज भी जस की तस है। संगीत के सात सुरों में भी ऐसा ही होता है। आप गंधार की जगह पंचम नहीं लगा सकते। गीता दत्त ख़ालिस गीता दत्त ही हैं, इस "ख़ालिस' ल़फ़्ज़ को गीता ने अपने हर गीत में साबित किया।

गीता दत्त की आवाज़ में भाव पक्ष मधुरता पर हमेशा रहा। उनके वॉइस कल्चर में शास्त्रीय संगीत का अनुशासन कतई नहीं था, किंतु उसमें शब्दों के अनुरूप भावनाओं का ऐसा सैलाब उमड़ता कि सुनने वाला ठगा-सा रह जाता। गीताजी के गानों की फ़ेहरिस्त बहुत लंबी नहीं, किंतु इन चुनिंदा गीतों में हर रंग, मूड, सिचुएशन की तर्जुमानी सुनाई देती है । शायद यही वजह है कि अपने कम काम के बाद भी गीता दत्त मकबूल हैं, विलक्षण हैं, अपवाद भी हैं। जैसे दाल में हींग की ज़रा-सी चुटकी उसके पूरे स्वाद में नयापन रच देती है, गीताजी ने भी गीतों में एक नया स्वाद गढ़ा।

पूर्वी बंगाल के एक रईस ज़मीदार के घर में जन्मीं गीता रॉय (अभिनेता-निर्देशक गुरु दत्त से विवाह के बाद दत्त हुईं) का परिवार विभाजन के व़क़्त मुंबई आया। बंगाल में लड़की को गाना आना उतना ही ज़रूरी होता है जितना खाना बनाना। इन्हीं संस्कारों में रमी हुई किशोरी गीता भी गाती थी, जिन्हें फ़िल्म "भक्त प्रहलाद' के एक कोरस गीत में प्रमुख स्वर के रूप में गाने का मौक़ा मिला। फ़िल्मों में लोक संगीत को प्रमुखता देने वाले स्वर्गीय सचिन देव बर्मन ने गीत सुना और गीताजी से अपनी फ़िल्म "दो भाई' में एक गीत गवाया। बोल थे ...मेरा सुंदर सपना बीत गया। महज़ पन्द्रह बरस की गीता को जैसे अपने सपनों को बुनने का पूरा बहाना दे गया यह गीत। गीत को याद कर आप ख़ुद ही अंदाज़ लगा लें कि गीताजी ने अपने पहले ही गीत में किस आत्मविश्वास से शब्द में दबे दर्द को उभारा है। क्या वह कोई और गायिका कर सकती थी?

सन् १९५१ में फ़िल्म "बाज़ी' में गीताजी के एक गीत की रेकार्डिंग चल रही है - तदबीर से बिगड़ी हुई तक़दीर बना ले। निर्देशक गुरुदत्त आवाज़ सुनकर ठिठक गए और पता लगाया कि कौन है ये गायिका ; परिचय होता है, बढ़ता है और १९५३ में दोनों परिणय-सूत्र में बॅंध जाते हैं।गीता और गुरु दोनो तुनकमिज़ाज थे। गीता विवाह के वक़्त एक परिचित नाम हो चुकी थीं, जबकि गुरदत्त को अभी नाम कमाना बाकी था। बस, यहीं कलाकार का अहं आड़े आ गया। एक बीते सपने की तरह हॅंसी-ख़ुशी और आत्मीयता गुम होती गई। पीड़ा और ख़लिश घर की बिन-बुलाई मेहमान बनकर एक कलात्मक संबंध को द्वंद्व में तब्दील कर देती है। लगता है यही ख़लिश इन जैसे जीनियस कलाकारों की "रचनात्मकता' की पैरहन है। शायद त्रासदी से ही उभरती है"क्रिएटीविटी', लेकिन क्या समन्वय से सर्जकता को ज़्यादा माकूल माहौल मुहैया नहीं करवाया जा सकता ? शायद गुरु-गीता की अपनी मजबूरियॉं हों। वैसे गीताजी ने
गुरुदत्त की तकरीबन सभी फ़िल्मों में गाया। बल्कि कुछ फ़िल्मों में से गीता और इन गीतों को निकाल देने से फ़िल्म के माने ही बदल सकते हैं। इसके लिए एक फ़िल्म साहब, बीबी और ग़ुलाम का ज़िक्र ही काफ़ी होगा। न जाओ सैंया छुड़ा के बैंया इस गीत में जो पीड़ा भरे इसरार का तक़ाज़ा है, वह गीता दत्त और मीना कुमारी की ज़िंदगी का दर्द भरा वास्तविक सफ़ा भी है


सिसक, माधुर्य, प्रलाप, उल्लास, दर्द और मादकता को समानाधिकार से व्यक्त करती गीता दत्त ने इन सभी भावों को व्यक्तिगत ज़िंदगी में भी ख़ूब भोगा। रिश्तों की टूटन, शोहरत, फिर काम का न मिलना। तपस्या और भाग्य से सितारा बना जा सकता है लेकिन सितारे की अस्ताचल बेला न जाने कितने दर्द,अवसाद और क्लेश को आमंत्रित करती है.गुरु दत्त के जाने के बाद गीता ज़बरदस्त "डिप्रेशन' का शिकार रहीं। गर्दिश ने अलग आ घेरा। तीन बच्चों की परवरिश के लिए स्टेज शो करने शुरू किए। बेदर्द फ़िल्मी दुनिया ने गीता दत्त जैसी ख़ुशबूदार आवाज़ को बिसरा देना शुरू कर दिया। १९७१ आते-आते गीता दत्त ने अपने आपको शराब में डुबो लिया और २० जुलाई को आँखे मूँद लीं। पंद्रह बरस की उम्र में शुरू हुआ "सुदर सपना' वाकई बीत गया।

सेहरा में आती ठंडी हवा की तरह गीता दत्त की आवाज़ संगीतप्रेमियों को आज भी झकझोरती है। मैं मानता हूँ कि तलत साहब की तरह गीता दत्त की आवाज़ एक ख़ास मकसद से गढ़ी गई थी। इसीलिए हज़ारों गीतों के गुलदस्ते में तलत और गीता दत्त रूपी फूलों की ख़ुशबू बेमिसाल है, बेशकीमती है। पाठक मित्र मुझसे सहमत होंगे कि मन्ना डे की ही तरह गीता दत्त को जो भी मान दिया जाना था, नहीं दिया गया, वरना ज़रा इन गीतों पर गौर करें तो आप ख़ुद-ब-ख़ुद अंदाज़ लगा लेंगे कि गीता की रुह, आवाज़ और तासीर किस चीज़ की बनी थी –

जय जगदीश हरे (आनंद मठ), दे भी चुके हम दिल नज़राना (जाल), जाने क्या तूने कही (प्यासा), कोई दूर से आवाज़ दे चले आओ (साहब बीबी और ग़ुलाम) मेरा नाम चिन चिन चू (हावड़ा ब्रिज), जा जा जा, जा बेवफ़ा (आर-पार) जोगी मत जा (जोगन) मुझे जॉं न कहो मेरी जान(अनुभव) आदि ऐसे नायाब नगीने हैं जिन पर आज भी गीता दत्त का नाम हमारे दिलों में महफ़ूज़ है। गीता दत्त अपने नाम की तरह एक पवित्र स्वर है। संगीत का कारोबार फलता-फूलता रहेगा, गायक-गायिका आएँगे-गाएँगे, गीत रचे जाएँगे, लेकिन गीता दत्त की आवाज़, उनका फ़न, उनकी शख़्सियत सुबह के सच होने वाले सपने की ख़ुशी देती रहेगी।

आइये इस मिश्री सी मीठी आवाज़ को भी सुनते चलें.

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21 comments:

Udan Tashtari said...

गीता दत्त जी को हार्दिक श्रृद्धांजलि. नमन!!!

Gyan Dutt Pandey said...

ओह, वास्तव में मैं गीता दत्त के बारे में सिवाय नाम और फिल्मों से जुड़े होने के और कुछ नहीं जानता था। आपकी पोस्ट में मिली जानकारी के लिये धन्यवाद।
श्रद्धांजलि।

Prabhakar Pandey said...

सुंदरतम जानकारी। सटीक एवं ज्ञानवर्धक।

गीता दत्त जी को हार्दिक श्रृद्धांजलि एवं सादर नमन।

अंगूठा छाप said...

sadiyon goonjegi
ye sada...

geetadatta ko iss tarah log kam hee jaante hain...

badhai!!

रंजू भाटिया said...

गीता दत्त अपनी आवाज़ से सदा हमारे बीच हैं .

siddheshwar singh said...

achchhee jaankaaree!

मैथिली गुप्त said...

वाह संजय भाई, एक से बढ़कर एक.
सुबह घर पर सुनने की कोशिश की लेकिन वहां कुछ समस्या थी, यहां बहुत प्यारा बज रहा है.

Sajeev said...

गुरु गीता के बच्चों का आजकल कोई जिक्र नही मिलता, कोई जानकारी है क्या संजय जी ? क्या गाने चुने हैं आपने, excellent post once again मैं तो आपका फैन हो चुका हूँ

अफ़लातून said...

अत्यन्त सुन्दर पोस्ट और चयन ।

anurag vats said...

i am impressed the way you commented on geeta dutt...i am an admirer of her voice...she was one and unique...

डॉ .अनुराग said...

गीता दत्त जी को हार्दिक श्रृद्धांजलि एवं सादर नमन।

मीनाक्षी said...

गीतादत्त के गीतों का संग्रह हमारे पास भी है जो आए दिन कानों में मिश्री घोलता ही रहता है... सच में ऐसी आवाज़ फिर नही आई... उन्हे हार्दिक श्रद्धाजँलि...

Ashok Pande said...

बेहतरीन चयन, संजय भाई. और जानकारी बढ़ाने वाली पोस्ट.

गीता दत्त के बहाने कितनी सारी ब्लैक-एन्ड-व्हाइट यादों में रंगों का सैलाब आ गया. शुक्रिया साहब!

Unknown said...

संजय दा,
गीता दत्त की आवाज़ मुझे बहुत बहुत पसंद है | आपका अनंत धन्यवाद इस सुंदर जानकार लेख के लिए |

राकेश जैन said...

sadar shradhanjali !!

दिलीप कवठेकर said...

मिश्री सी मीठी आवाज़ मे साथ साथ मादकता, शोख चन्चल अल्हड्पन, sensuousness और काफ़ी कुछ....

जैसे निम्बु के मीठे शरबत मे थोडा सा नमक, ज़िन्दगी के यथार्थ का.

अपने आप मे पूर्ण मुकम्मिल, आपके पोस्ट की तरह. कुछ भी नही छोडा , जो सोचा , उससे भी आगे आपके लेख मे पाया.

लिखते रहो सन्जय भाई---

मैथिली गुप्त said...

संजय जी, बहुत प्यारा तोहफा है ये.
अब तो घर पर भी बहुत प्यारा बज रहा है.
बहुत बहुत धन्यवाद

ताऊ रामपुरिया said...

इतनी सुंदर जानकारी दी है ! वाकई बहुत लोगो को पता नही है ! आपका ये कहना भी सौ % सही है की गीता जी को भी उचित मान नही मिला है ! आपसे निवेदन करूंगा की कभी तलत महमूद
के बारे में भी ऐसी ही जानकारी देने की कृपा करे ! आपको बहुत बहुत धन्यवाद और शुभकामनाए !

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

खुशबु से भरी भरी कली मानोँ झुलस झुलस के आग मेँ जल गई ,
वैसी हमारी गीता दत्त जी की कला और गायकी को,
आपने श्रध्धा सुमन चढायेँ हैँ
सँजय भाई ..
ईश्वर गीता जी की आत्मा को सुकुन देँ और उनके गीतोँ को अमरता -
- लावण्या

Neeraj Rohilla said...

संजयभाई,
गीता दत्त, गुरुदत्त और सहगल साहब जैसे कलाकार अगर असमय काल के गाल में न समा जाते तो सोचिये कि फ़िल्म संगीत और फ़िल्मी दुनिया कितनी समृद्ध होती । आपके लेख ने बहुत से पुराने गीत ताजा कर दिये हैं, बहुत शुक्रिया ।

इस टिप्पणी को लिखते लिखते "न ये चाँद होगा" सुन रहा हूँ और परम आनन्द का अनुभव कर रहा हूँ ।

Manish Kumar said...

बिलकुल सही ढंग से याद किया आपने। बेहतरीन पोस्ट !