Sunday, September 28, 2008

इठलाइये उन गीतों के लिये जिनमें लता की आत्मा का वास है.



कभी कभी गंगा घर चल कर आ जाती है. हुआ यूँ कि 27 सितम्बर की शाम को इन्दौर में लता दीनानाथ ग्रामोफ़ोन रेकार्ड
संग्रहालय का शुभारंभ था.इसी आयोजन में सम्मानित किये ऐसे क़लमकार जिन्होंने अपने लेखन से संगीत के सुरीलेपन में निरंतर इज़ाफ़ा किया है. रविराज प्रणामी का नाम भी इस सूची में शरीक था.अनायास कामकाजी व्यस्तता के चलते ख़बर आई कि रविराजजी इन्दौर नहीं आ पा रहे हैं.उन्होंने अपनी विवशता व्यक्त करते हुए आयोजन में पढ़े जाने के लिये एक वक्तव्य ई-मेल किया.लता मंगेशकर पर लिखे गए इस भावपूर्ण आलेख आप सब लता प्रेमी भी पढ़ सकें इसके लिये मैंने रविराज भाई से इजाज़त माँगी जो उन्होंने सहर्ष दी. बताता चलूँ कि रविराज प्रणामी ने अपने कैरियर का आग़ाज़ बतौर खेल-पत्रकार किया था लेकिन मन हमेशा से चित्रपट संगीत की बारीक़ियों को समझने में रूचि लेता रहा. इन्दौर में लम्बे समय तक पत्रकारिता करने के बाद रविराज जी मुम्बई चले गए और जनसत्ता की साप्ताहिक पत्रिका सबरंग में कई शानदार परिशिष्ट निकाले.विविध भारती के लिये भी चित्रपट संगीत के कई शोध-परक कार्यक्रम किये.आलेख रचे और निरंतर कई पत्र-पत्रिकाओं में लिखते रहे हैं.आजकल मुंबई में ही है और रिलायंस समूह में कार्यरत हैं.संगीत रविराजजी का पहला प्यार है और अपनी गूढ़ विवेचना से वे हमेशा एक नया नज़रिया पेश करते हैं.

लता मंगेशकर के जन्मदिवस पर रविराज प्रणामी का ये आलेख आपको ज़रूर पसंद आएगा इस कामना के साथ लता मंगेशकर
को हम-आप संगीतप्रेमियों की अनंत शुभेच्छाएँ.




हमारी पांचो इन्द्रियों के अपने अपने अमृत सुख हैं. कर्णेंदीय अमृत है — लता मंगेशकर का गन्धर्व गायन. धन्य हो विज्ञान का कि लता कालखंड से गुज़रने के अहोभाग्य के बाद भी इस कालजयी सुरगंगा की स्वरलहरियों से हम और हमारी आने वाली पीढ़ियां वंचित नहीं रहेंगी. जैसे कि तानसेन की आवाज़ को लेकर आज हम अफसोस में जीते हैं, आने वाला कल कभी ये अफसोस लिये नहीं होगा कि लता मंगेशकर की आवाज़ और उनका गायन कैसा था.


आज ना वो संगीतकार रहे, ना गीतकार या शायर, ना सुकून और धैर्य भरा वो दौर कि तन्मयता के साथ लता के हर नए गायन का रसास्वादन हो और उस नए लता गीत का विश्लेषण हो, सम्प्रेषण हो, आत्मतृप्ति का बोध हो. तो ऐसे में लता जी की कंठगंगा से नया कुछ ना आना, समयोचित है. कोई अफसोस नहीं कि लताजी आज नहीं गा रही हैं. उनके ना गाने की कसक अब नहीं रही. उनका गाया इतना है हमारे पास कि इस लोक में तो तर गये. अफसोस तब होता जब मदन मोहन, नौशाद साहब, बर्मन दा, शंकर जयकिशन, रोशन साहब, याकि लक्षमीकांत प्यारेलाल या पंचम दा जैसे गुणवंत संगीतकारों का वजूद होता और लता ना गातीं . "कितने अजीब रिश्ते हैं यहां के" जैसे गीत अब जो बनते भी रहे हैं उनके लिये, तो वो सिर्फ संगीतकार विशेष की उस इच्छा की पूर्ति के लिए कि लता ने भी गाया है उनके लिए. वरना तो लता के आखिरी स्वर प्रसाद के लिए हमें कहीं पंचम दा या लक्ष्मीप्यारे के ज़माने में ही झांकना पड़ता है. मेरे लिए उनका दिया आखिरी स्वर प्रसाद है "ऊपर खुदा आसमां नीचे ज़मीं " जो नुसरत फतेह अली खान के लिए उन्होने गाया था.
जब तक लताजी पेशेवर दौर में रहीं मानो टेक्नॉलॉजी भी विकसित नहीं होना चाहती थी. और जब अघोषित तौर पर ही उन्होने भैरवी गाने का निर्णय लिया, उनके नशे में डूबी टैक्नॉलॉजी को भी जैसे होश आया.


सिंथेसाइज़र के आ जाने के बाद और न्यूएंडो जैसे म्यूज़िक रिकॉर्डिंग सिस्टम के चलन के बाद फिल्मी गीतों का स्वरूप पूरी तरह बदलता चला गया है. अब सिंथेसाइज़र ने तमाम साज़िन्दों को निकम्मा कर दिया है और जिस तरह ये साज़िन्दे अपनी आत्मा अपने वालों से गीतों में उंडेला करते थे उसका अभाव गीतों में साफ नज़र आने लगा है. अब गायक—गायिकाओं के लिए भी गाना रियाज़ का नहीं बल्कि संगीतकारों से सम्बन्ध बनाने का काम हो गया है. अब गाना कब बनता है, कब उसका ट्रैक तैयार हो जाता है, कब सिंगर उसे गा देता है, पता ही नहीं चलता बस पता चलता है तो सिर्फ इतना कि गीत अब दिल को सुकून पहुंचाने या दिल को बहलाने का ज़रिया नहीं रह गये बल्कि धूम मचाने का आधार बन गये हैं और अब युवा पीढ़ी के शगल के लिये ज़्यादा से ज़्यादा आउटपुट भरे म्यूज़िक सिस्टम बाज़ार में मिलने लगे हैं जिससे इन म्यूज़िक सिस्टम को सुहाते गीतों की रचना करना संगीतकारों की मजबूरी भी बन गयी और सहूलियत भी.


जब तक कोई धरा हीरे उगलती है उसके उत्खनन और दोहन का दौर बना रहता है. हीरों का उत्सर्जन जब वहां बन्द हो जाता है तो ख्याल आता है उन हीरों की विवेचना का उनके मोल लगाने का और उन्हें सहेजने का. ऐसे हज़ारों बेशकीमती अनमोल रत्न देने के बाद और पार्श्व गायन की अपनी षष्ठिपूर्ति के बाद ये समय है लता गीतों की जुगाली का और खुद पर इस बात के लिए इठलाने का कि हमें उन गीतों की समझ है जिनमें लता नाम की आत्मा का वास है.

6 comments:

Ashok Pande said...

लता मंगेशकर को जनमदिन मुबारक.

रंजन राजन said...

लता दीदी को जन्म दिन पर अनंत शुभकामनाएं।

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

लता दीदी को
"शतम्` जीवेन शरद: "
ये आलेख श्री प्रणामी जी ने बहुत ही उम्दा लिखा है इसे यहाम प्रस्तुत करने के लिये आपका आभार सँजय भाई
सस्नेह्, सादर,
-लावण्या

siddheshwar singh said...

आलेख सुंदर-अच्छा है.
अभी इसे पढ़ते हुए लता जी को सुन रहा हूं
आंखे कुछ देख रही हैं,कान कुछ सुन रहे हैं
बहुत बढ़िया मेरे भाई!

कडुवासच said...

शानदार लेख है।

दिलीप कवठेकर said...

पूरे ब्लोग दुनिया पर देखा, आपके लेख हर सू दिखाई दिये. लता प्रेम का सुन्दर इज़हार..