Thursday, July 3, 2008

अपने दिल से पूछिये! क्या जनरल मानेकशॉ के साथ ठीक किया हमने ?


सेना का एक ज़ाँबाज़ महानायक था वह.उसके परिदृष्य पर आने के बाद
भारतीय सेना की प्रतिष्ठा पूरे विश्व में फ़ैली. जनरल मानेकशा ने सन 1971
के युध्द में देशवासियों के आत्मविश्वास और स्वाभिमान में अविश्वसनीय
इज़ाफ़ा किया. एक प्रश्न छोड़ रहा हूँ आप तक.ज़रा अपने दिल से पूछियेगा.
छोटा मोटा राजनेता गुज़र जाता है ; प्रदेश सरकार राजकीय शोक की घोषणा
कर देती है.राजनीतिक पार्टी के प्रमुख का निधन हो जाए राष्ट्रीय शोक हो जाता
है.
फ़ील्ड मार्शल मानेकशा के निधन पर उनके
सम्मान में राष्ट्रीय शोक क्यों नहीं घोषित किया गया ?


कोई राष्ट्रीय स्तर का नेता उनकी अंत्येष्टी में नहीं पहुँचा.
समाचार पत्रों में ख़बरें छपीं,चैनल्स पर पुरानी फ़िल्मों की रील चली...
चलो हो गई इतिश्री.

दु:ख होता है सोचकर..मेरे शहर में एक फ़िल्म को प्रोमो के लिये
बिग-बी कहे जाने वाले अमिताभ बच्चन नहीं पहुँच पाते तो युवक/युवतियाँ
रोने लगतीं हैं....अख़बार रोते हुए बिग-बी प्रेमियों की तस्वीरें छापते हैं.
जनरल मानेकशा ने इस देश की सरहद को सुरक्षित रखने के लिये
जो किया ; क्या किसी को बताने की ज़रूरत है ?

हद है एक सच्चे
महानायक के लिये हमारी आँखों की कोर नहीं भीगती.क्या हम एक
ढोंगी और दोगले समय में नहीं जी रहे
?

17 comments:

मैथिली गुप्त said...

संजय पटेल जी, सहमत हूं आपसे
मैं भी यही प्रश्न पूछना चाहता था.

Sandeep Singh said...

संजय जी, राष्ट्रीय शोक और मृत्यु पर राजनेताओं की प्रतिक्रिया की ओर तो ध्यान नहीं गया। लेकिन उस दिन सुबह जब कुछ समाचार चैनेल पर जांबाज जनरल को भूत, प्रेत के बीच श्रद्धांजलि पाते देखा तो गैरत बची होने का थोड़ा इत्मीनान जरूर हुआ था।....पर आपके सवालों ने एक बार फिर से सोचने को विवश कर दिया।

Manvinder said...

आपके सवाल ऐसे हैं कि जिनका जवाब राजनेता तो देना नहीं चाहेंगे लेकिन आपने ध्यान दिलाया तो मैं बताना चाहती हूं कि मेरठ एक बहुत बड़ी एवं पुरानी छावनी है। यहां वे 1971 में आये थे उस दौरान जब इंदिरा जी ने उन्हें युद्ध के लिये समय दे दिया था। फिर वे वार प्रिजनर कैंप में आये तीन साल के बाद। यहां सब एरिया में आये दिन कार्यक्रम होते रहते हैं फौजियों को ले कर लेकिन उनके निधन पर किसी बड़े सैन्य अधिकारी ने उन्हें याद नहीं किया। मैंने जब खबर लिखने के लिये सब एरिया के मीडिया प्रभारी से प्रतिक्रिया जाननी चाही तो उनके पास कोई जवाब नहीं था। आपके द्वारा उठाये गये सवाल का भी किसी के बाद जवाब नहीं है।
मनविंदर भिंभर

रंजू भाटिया said...

इन सवालों का जवाब कोई नही देना चाहता है ...पर सुरक्षा हर कोई चाहता है

समय said...

...वाकई।

अवधेश प्रताप सिंह
इंदौर

Udan Tashtari said...

बिल्कुल सहमत हूँ आपसे.

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

भारत मेँ बस सीमाओँ पर ही युध्ध हुए हैँ वो भी बस थोडे समय के लिये .
आज़ादी भी मिली तो अहिँसा से !
भारत के लोगोँ को स्वदेशाभिमान है पर जो सीमा सुरक्षित रखते हैँ उनकी कीमत नहीँ -
- लावण्या

Harshad Jangla said...

Sanjaybhai
Your question will remain un answered in todays atmosphere.
Your comments are very true.

-Harshad Jangla
Atlanta, USA

Unknown said...

शर्मनाक जरूर है लेकिन यह कोई पहली बार नहीं है, वीर सेनानियों के प्रति हमारी उदासीनता बहुत पुरानी है… शहीदों की विधवाओं को पेट्रोल पंप के लिये गंदे नेताओं के आगे गिड़गिड़ाना पड़ता है, सियाचिन में जवानों के लिये जूते पाने के लिये मंत्रालय के चक्कर लगाने पड़ते हैं, कारगिल युद्ध के समय देशप्रेम की बासी कढ़ी में जो उबाल आया था वह काफ़ी हद तक बुलबुला था, जब तक देश में हर नागरिक के लिये तीन साल की मिलेट्री ट्रेनिंग अनिवार्य नहीं की जाती तब तक इन "अहसानफ़रामोशों" को अक्ल आने वाली नहीं…

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

Aap sahi kah rahen ye sab kritghnata ki nishani hai.

pallavi trivedi said...

poori tarah aapse sahmat...

राकेश जैन said...

nishchit hee vicharneeya to hai...!!

डॉ .अनुराग said...

सही कह रहे है सर जी...किसी राजनैतिक पार्टी का नेता होता तो तीन दिन तक जलूस ओर निकालते .....

Ashok Pande said...

खु़द बिग बी ने कहीं कुछ नहीं कहा. फ़ील्ड मार्शल और ये तथाकथित महानायक दोनों मेरे शहर नैनीताल के एक ही स्कूल शेरवुड कॉलेज से पढ़े थे. आबादी के इतने बड़े हिस्से के दिलों पर जैसे भी हो राज कर रहे इस आदमी की चुप्पी मुझे बहुत खली. नेताओं और टटपुंजिये मंत्री-फंत्रियों से क्या उम्मीद करते थे आप भी संजय भाई?

मेरे बचपन ने फ़ील्ड मार्शल मॉनेकशा की जो तस्वीर बना कर संजोई थी, वह आज भी जस की तस है.

ख़ास आभार मैथिली जी का कि उन्होंने उस पूरे दिन ब्लॉगवाणी के मास्ट पर इस वास्तविक महानायक की तस्वीर लगाए रखी.

दिलीप कवठेकर said...

सन्जु,

क्या बात लिख गये तुम, दिमाग खराब हो गया .

हम सब क्या करे ?
राज नेता , मीडिया , और हम मे से अधिकतर बुध्हिजीवी एक रियलीटी शो मे तब्दील हो गये है, जहा मेलोड्रामा भी स्क्रिप्ट की डिमान्ड के अनुसार परोसा जा रहा है.य़ही रियलीटी है.

आम आदमी का क्या कहे?

स्र की कलम said...

sir,
ek taraf
dard ki bat ,
dusri taraf
band ki baat

dono sacchai hai,
hum kanha ja rahe hai ,
shayad hume nahi malum

aapko padhan
aur padhka baithjana
accha lagta hai........

विभास said...

ek angreji lekhak ne likha hai ki is desh ke log aur yaha ka madhyam warg sabse bada 'hypocrate' yani dhongi hai...aapki baat bhi bilkul sahi hai... manekshaw se juda ek wakya hai.. jab purvi pakistan me logo per atyachar ho raha tha tab indira ji ne cabinet ki baithak bulayi thi... tab manekshaw ne unse bebaki se kaha tha ki ''waha k logo ko pakistan k khilaf khada karne me jab aapne raw aur intelligence agency ki madad li thi tab to mujhse salah nahi li... fir aaj aapko zaroorat hai to mujhe yaad kar rahi hain...'' aaj hamare ye sochna mushkil hai koi bhi vyakti pradhan mantri se itni bebaki se baat kar sakta hai...
fir jab manekshaw se ladayi ke bare me kaha gaya to unhone tamam pareshaniyo ko ginane ke baad kaha, ''sachai batana mera farz hai... jang ladna aur jitne ke liye us jang ko ladna bhi mera farz aur mai ise puri shiddat se nibhaunga... mera ek bhi jawan front se wapas nahi lautega...'' manekshaw k isi zajbe ko hamara salaam...