Thursday, July 17, 2008

कविता में हमेशा अपने अवसाद को उड़ेलने वाले अशोक वाजपेयी.



पिछले सप्ताहांत में देश के जाने माने कवि,आलोचक,संस्कृतिकर्मीं और ललित कला अकादमी के अध्यक्ष श्री अशोक वाजपेयी माँडू प्रवास पर मालवा में थे.संस्कृति प्रशासक के रूप में अशोकजी ने अपनी एक विशिष्ट पहचान बनाई है.उनकी कार्यशैली को लेकर हमेशा विलाप होता रहा है लेकिन वे हैं अपने तरीक़े से काम किये जाते हैं.लोकोक्ति सी बन गई है कि जिस दिन अशोक वाजपेयी का एक आलोचक पैदा होता है उसी दिन उनके चार प्रशंसक भी पैदा हो जाते हैं.अलमस्त तबियत के अशोक वाजपेयी तनाव के क्षणों में भी ठहाका लगाते देखे जा सकते हैं जो उनकी देहभाषा का
स्थायी भाव बन गया है.

एक समर्थ कवि के अलावा रंगकर्मे,शास्त्रीय संगीत,चित्रकारी,विश्व-कविता और नृत्य पर उनकी गहरी सूझ हमेशा चौंकाती है. यहाँ माँडू में भी उन्होने देश के जाने माने चित्रकारों के साथ तीन दिन बिताए और भीगते माँडू के शिल्प (माँडू के चित्र भी इसी ब्लॉग पर आप शीघ्र ही देखेंगे.इसी दौरान राज एक्सप्रेस के कला संवादताता और मित्र पत्रकार चंद्रशेखर शर्मा ने अशोक जी से मुख़्तसर सी बातचीत की;यहाँ जस की तस रख रहा हूँ उसे.-संप.




बात भारत भवन से शुरू करेंगे। बताइए, आपकी निगाह में उसकी दुर्दशा के लिए कौन ज़िम्मेदार है?

मेरे हिसाब से इसके लिए तीन शक्तियॉं ज़िम्मेदार हैं। एक, मध्यप्रदेश की राजनीति। चाहे वो कांग्रेसी हों या भाजपाई, दोनों इस मामले में राजनीति से ऊपर उठकर सोचने की हिम्मत नहीं कर पाए। दूसरी है नौकरशाही, जो कला एवं संस्कृति के प्रति असंवेदनशील सिद्ध हुई और तीसरी है व्यापक समाज का निर्लिप्त भाव। इस मामले में समाज को आवाज़ उठाने की ज़रूरत थी, जो कि नहीं उठाई गई। (ठीक फुहारों की तरह उनके शब्द भी हौले-हौले और झूलते-से कानों में उतर रहे थे, भ्रम में डालने वाले अंदाज़ में कि कहीं कविता तो नहीं?)

क्या कारण है कि कवि को कविता छोड़कर आलोचना का रुख करना पड़ा?

नहीं, नहीं, कविता को मैंने छोड़ा नहीं है। मेरा ताज़ा वाला काव्य संग्रह तो अभी कुछ समय पहले ही आया है। इसके अलावा मेरे अभी तक कुल १३ काव्य संग्रह आ चुके हैं और जितने भी मेरे हम उम्र कवि हैं, उनमें से किसी के भी इतने काव्य संग्रह नहीं आए। रही बात आलोचना की, तो वे शुरू से कर रहा हूँ। छियासठ में मेरा पहला काव्य संग्रह आया था और सत्तर में आलोचना की मेरी पहली पुस्तक आ गई थी। सो, मैं ४५ साल से आलोचक और ५० साल से कवि हूँ, केवल पांच साल का तो फ़र्क है। फिर मैंने केवल साहित्य की आलोचना नहीं की, संगीत, नृत्य और कला की आलोचना भी की और जिस पैमाने पर की, उस पैमाने पर किसी और ने नहीं की। उसी का प्रतिफल है कि बुनियादी तौर पर साहित्यकार होने के बावजूद मुझे ललित कला अकादमी का अध्यक्ष नियुक्त किया गया। (तर्क एकदम से चितेरा हो जाता है।)

अच्छा ये बताइए कि आप तो बड़े सरकारी अफ़सर भी रहे, क्या कभी आपके अफ़सर ने आपके कवि को कोई नफ़ा-नुकसान पहुँचाया या वाइसेवरसा ?

बात ये है कि अव्वल तो मैंने दोनों को हमेशा भरसक अलग-अलग रखा, फिर कवि तो अफ़सर का क्या नुकसान करता, उलटे अफ़सर ज़रूर कवि का नुकसान कर सकता था, लेकिन मैं इस मामले में सतर्क और चौकन्ना रहता था। दरअसल ये मेरे निंदकों की उड़ाई हुई है कि मैं अफ़सर-कवि रहा, जबकि हक़ीक़त इससे ठीक उलटी है। (सहजता बरक़रार है)

ये भी कहा जाता है आप अभी मुख्यधारा के कवियों में शुमार नहीं हैं।



मुख्धारा में न रहे न सही, अपनी धारा में तो रहे। इसका न कोई क्लेश है, न संताप है और सही बात तो यह है ऐसी आकांक्षा कभी रही भी नहीं।

एक कवि होने के लिए सबसे ज़रूरी चीज़ या चीज़ें क्या होती हैं?


इसके लिए तीन चीज़ें चाहिए होती हैं। एक, भाषा से खेलने का उत्साह। दूसरा, अकेले पड़ जाने से घबराहट का अभाव, यानी एकांत चाहिए होता है और तीसरा, है कविता कोई आवरण नहीं है कि उसे ओढ़कर सच्चाई को उससे ढांप लें।

ख़ुद को कविता में कैसे व्यक्त करना चाहेंगे?


मैं बाहर से हंसमुख, अंदर से उदास और कविता में हमेशा अपने अवसाद को उड़ेलता हुआ व्यक्ति हूँ।

9 comments:

अंगूठा छाप said...

वापसी पर आपका स्वागत है!

अंगूठा छाप said...

हां चंदू ने बातचीत तो अच्छी की थी उस दिन!

लिखने के लिए संवाददाता की और बिन एडीटिंग छापने के लिए संपादक की तारीफ होनी चाहिए...

वैसे आप इतने रोज थे कहां ...?

डॉ .अनुराग said...

जी हाँ भले ही वे कई विवादो से घिरे हो पर उनकी कई कविता मुझे पसंद है....जैसे मेरा इमानदार होना कुछ ऐसा है जैसा लाशो के पर्वत पर किसी बच्चे का रोना........उनकी कवितायों का एक खास अंदाज है ,मुझे पसंद है......

sanjay patel said...

चंदू भाई के इस कारनामें में सबकुछ अच्छा था
और अशोक की जवाब भी लाजवाब;इसीलिये तो इसे यहाँ जारी किया वरना अशोकजी पर सामग्री की कमी कहाँ है अवधेश भाई...कंप्यूटर अब स्वस्थ है सो मैं हाज़िर हूँ.

Udan Tashtari said...

अच्छा रहा यह साक्षात्कार पढना. आभार.

anurag vats said...

ashokji atyant kushal sangathankarta aur sanskritikarmi hain...aalochna men idhar shithil ho gaye...anyatha bahut achhe aalochak the...kavita me uttarotar girawat ke wabzood mujhe unki kavitayen ab tk pasand hain...lalit kala akadmi gaye hain to wahan se umeed hai kuch achha hi karenge...

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

सँजय भाई बहुत बधाईयाँ और स्नेह,
उम्दा पेशकश लाते रहने के लिये ..
- लावण्या

अजित वडनेरकर said...

अच्छी प्रस्तुति। शुक्रिया इसे पढ़वाने और सूचना के लिए :)

Asha Joglekar said...

bahut achcha laga.