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शहनाईनवाज़ उस्ताद बिसमिल्लाह खा़न साहब न केवल महान संगीतकार थे बल्कि एक सूफ़ियाना तबियत के इंसान भी थे . उनका फ़क्कड़्पन और सादगी उनके संगीत से कहीं ऊंची थी .उनके इन्तेक़ाल के ठीक बाद इक शब्द-चित्र लिखने का मौक़ा मिला था.छपने के बाद कई प्रतिक्रियाएँ मिलीं जिनमें से एक थी मध्य-प्रदेश के जाने वैद्यराज पं.रामनारायण शास्त्री के सुपुत्र शी महेशचंद्र शास्त्री की.यह प्रतिक्रिया इसलिये विशिष्ट थी क्योंकि उसमें महेशजी के पूज्य पिता से जुड़ा़ एक सच्चा वाक़या था.संगीतप्रेमियों और ख़ाँ साहब के मुरीदों के लिये उस पत्र से वह संस्मरण जस का तस यहाँ....
इन्दौरी के भंडारी मिल में उस्ताद का शहनाई वादन चल रहा था.पू.पिताजी (पं.रामनारायणजी शास्त्री) ने कार्यक्रम समापन के बाद् ख़ाँ साहब से कहा...आपके वादन से श्रोता को तो अलौकिक अनुभूति होती है...आपको कैसा लगता है?
उस्ताद बोले: खुदा की खु़दाई दिखाई देती है
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