Friday, July 6, 2007

ठूंठ से उभरते शिल्प क्या कहते हैं




हमने न जाने कितनी बेरहमी से पेड़ों से बरताव किया है.स्वयंसेवी संस्थाओं के आव्हान,सरकारी फ़रमान और पर्यावरण पर काम करने वाले हमारे सेवियों के आग्रह के बावजूद हम सबक़ नहीं ले रहे और नि:सर्ग को बेतहाशा नुकसान पहुँचा रहे हैं.एक समय था मनुष्य और प्रकृति का बडा़ प्रेमपूर्ण संग-साथ था.ग्रीन पीस द्वारा जारी ये तस्वीरें आपको कहीं भीतर तक छुएगी.क्या हम वाक़ई संवेदनशील हैं...या ऐसा करने का ढोंग कर रहे हैं ? सवाल मैने नहीं पूछा प्रकृति पूछ रही है और जवाब तो देना ही पडे़गा हमें..

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