Saturday, July 14, 2007

टू मिनिट रिपोर्टिंग के चोचले

कभी बतौर एंकर या आयोजक कई आयोजनों से जुड़्ने का सुअवसर मिलता रहा है इन बरसों में.पिछ्ले दिनों पत्रकार मित्र दीपक असीम ने आजकल अख़बारों में उभर कर आई प्रतिस्पर्धा के चलते रिपोर्टरों के कामकाज और व्यवहार में आई एक विचित्र क़िस्म की हड़बड़ी को खा़सी मज़म्मत की थी.दीपकजी ने मुख़्तसर में अपनी बात कह दी लेकिन उसे पढ़ने के बाद मैने उन कार्यक्रमों को अपने मानस में उभारा तो उनकी बात में दम नज़र ही नहीं आया बल्कि मुझे लगा कि इन बरसों में जब तकनीक बढ़ चली है तब तो मनुष्य के जीवन में ठहराव आना चाहिये लेकिन हो उल्टा रहा है.आज अख़बारों ने शहरी गतिविधियों के बढ़ते एक ऐसी फ़ौज को दफ़्तर में नियुक्त कर लिया है जो या तो पार्ट-टाइमर या बत्तौर ट्रेनी काम कर रहे हैं.ये शुभारंभ या संगीत के जल्सों या फ़ैशन शोज़ में नामज़द किये जाते हैं .आप इनका पहनावा देखिये लगता नहीं कि आप किसी युवा रिपोर्टर से रूबरू हैं...बिखरे बिखरे बाल...लड़कियों को देखिये तो नाभि के ऊपर पहना हुआ टाँप..लड़के जीन्स पहने..शर्ट आधा बाहर आधा भीतर...हाथ में एक राइटिंग पैड है , गले में मोबाइल के हेड्फ़ोन के तार लटके हुए.कैमरा भी इन्ही ने लाद लिया है कंधे पर.

आयोजक के पास आन पहुँचे हैं.वो बेचारा कलाकार और श्रोता-दर्शक के वक़्त पर सभागार में नहीं पहुँचने के कारण पहले ही विचलित है.आप (रिपोर्टर महोदय/महोदया) ने उसे घेर लिया है.सर ! कब शुरू करेंगे क्रियाकर्म (कार्यक्रम)? अब आप इनकी बातचीत पर भी ग़ौर करियेगा..सोचियेगा क्या ये हिन्दी अख़बार के नुमाइन्द हैं ? सर एक्च्युली मुझे प्रेस जल्दी पहुँचना है .हमारे यहाँ डेड-लाइन ही सिक्स थर्टी की है.कब शुरू हो जाएगा आज का कंसर्ट ? आयोजक : पौने छह तक कोशिश करते हैं.कार्यक्रम निर्धारित समय से पौन घंटा पीछे चल रहा हैं. सर पौने छह यानी सेवेन फ़ोर्टी फ़ाइव ? नहीं मैडम फ़ाइव फ़ोर्टी फ़ाइव. ओह ! साँरी ...सर ये मदनमोहनजी कब तक आ जाएंगे..आयोजक माथा फ़ोड लेता है..कार्यक्रम संगीतकार स्वर्गीय मदनमोहन की बरसी पर आयोजित है और उन्हे याद करते हुए शीर्षक दिया गया है”फ़िर वही शाम’ आयोजक सोच रहा है कि कैसे इस बालिका को समझाए कि मदनमोहन को गुज़रे दो दशक से ज़्यादा हो चुके हैं.मदनजी स्वर्ग से तो लौटने से रहे.आयोजक ने जब समझा दिया है तो वह कह रही है अच्छा तो सर ये जो कलाकार हैं ये मदनमोहनजी की रचनाए गाएंगे ? आयोजक: जी.तो सर टाइम पर तो प्रोग्राम स्टार्ट नहीं हो रहा है तो आप मुझे बता दीजिये न कि आज के कलाकार क्या क्या गाने वाले हैं..अरे मैडम वे आ तो जाएं..फ़िर आप ही पूछ लीजियेगा उनसे.

बात चल ही रही है कि कलाकार आ गए..रिपोर्टर का चेहरा खिल उठा है..वो बेचारा रास्ते में ट्राफ़िक जाम से निकलकर आया है और चाहता है कि साउंड सिस्ट्म की पड़ताल कर ले.. अपने प्रतीक्षारत साज़िंदों से चर्चा कर ले..इतने में रिपोर्टर वीर बालिका प्रकट हो गई है...

सर एक्स्क्यूज़ मी प्लीज़... आज आप क्या क्या सुनाने वाले हैं ?

कलाकार : मैडम प्लीज़ आप कंसर्ट में बैठिये न. आपको मज़ा आएगा..सुनिये तो सही हमारी पेशकश

रिपोर्टर : सर क्या बताऊं हमारे सर (उनके सीनियर)हैं न उनके दो बार फ़ोन आ चुके हैं और अगले पंद्रह मिनट में मुझे यहाँ से निकलकर प्रेस पहुँचना है और ये रिपोर्ट फ़ाइल करना है. सर आप तो मुझे गानों की सूची दे दीजिये..संगतकार कलाकार के नाम नोट करवा दीजिये..मेरा काम हो जाएगा.

कलाकार : पर मैडम मैंने कैसा गाया है वह आप कैसे जानेंगीं..

रिपोर्टर :यहाँ मेरे एक मित्र बैठे हैं वे मुझे प्रेस मे मुझे मोबाइल पर नोट करवा देंगे. एक बात और ज़रा मंच पर बैठ कर एक एक्शन दे दीजिये न ..हमारा फ़ोटोग्राफ़र भी निकलना चाहता है आपकी एक तस्वीर ले कर ...वह भी फ़्री सर !

कलाकार बैठ गया है मंच पर...एक्शन चल रहा ..बनावटी सा. बालिका प्रसन्न है ..वह आज टाइम पर रिपोर्ट फ़ाइल कर देगी.जल्दी से जल्दी की ये जो स्थितियाँ हैं; ये क्या संदेश दे रहीं है...रपटकार ने कार्यक्रम सुना नहीं है..जाना नहीं है कि क्या कुछ घटेगा ..लाइव कंसर्ट के फ़ील से बाबस्ता नहीं होना चाहता आज का युवा अख़बारनवीस.ये कैसी प्रतिस्पर्धा...इसे मजबूरी कहना बेहतर होगा.अख़बार का प्रतिनिधि याचक की मुद्रा में नज़र आए ; अच्छा नहीं लगता.अव्वल तो उसे मालूम ही नहीं पड़ने देना चाहिये कि वह मौजूद है..वरना वह कैसे किसी इवेंट का अंडर-करंट ले पाएगा....लेकिन ये सब चल रहा है..शास्त्रीय संगीत के कार्यक्रम में तो हालत और भी ज़्यादा ख़राब है ..एक कलाकार बजा रहा है ...दूसरा रात को ग्यारह बजे बैठेगा ..गाने ..तब तक कैसे रूका जाए...राग का नाम पूछ लिया आर्टिस्ट से..और कहा है सर ज़रा तानपूरा लेकर ग्रीनरूम में ही एक पोज़ दे दीजिये..हम निकल लेते है..घोर हड़बडी़ मची है..राग मारवा गाया गया था..छपा है मालकौंस..तबला बजा था...ढोलक छप रहा है...तानपूरे पर संगत दी फ़लाँ साहब ने तो लिखा जा रहा है सितार पर थे..श्री... अब मज़ा ये है कि तानपूरा संगति देने का वाद्य है जबकि सितार एकल वादन का एक स्वतंत्र वाद्य..शास्त्रीय गायन के साथ तानपूरा बजता है इन्होने छाप मारा है सितार.मजमे को पूरा ही तान दिया है.मेंडोलियन को गिटार और की बोर्ड को केसियो लिख मारेंगे..जबकि केसियो एक ब्रांडनेम भर है...

तो हुज़ूर सब चल रहा है क्योंकि वक़्त बहुत तेज़ चल रहा है...लेकिन बात ग़लत है..वक़्त नहीं मनुष्य बहुत तेज़ चल रहा है...तकनीक बहुत तेज़ चल रही है. या अल्लाह ! ये सारा तामझाम न जाने हमें कहाँ ले जाकर कर छोडे़गा ?
या यूं भी कह सकते हैं..कहीं का भी नहीं छोडे़गा.मिनिट्स में अपने काम को निपटा लेने के ये क़ायदे हैं या चोचले ? आप ही तय करिये.

2 comments:

Tarun said...

लगता है एक ओर संजय आये हैं जोगलिखी लेकर, बस इक गुजारिश है कि पैराग्राफ बनाकर लिखियेगा तो पढ़ने में आसानी रहती है।

Nitin Bagla said...

खूब खबर ली है संजय आपने।
वैसे डेड्लाइन का पंगा तो आजकर हर क्षेत्र में है...