Monday, December 31, 2007
कैलेण्डर की मुस्कुराहट के लिये !
Thursday, December 20, 2007
हरिओम शरण के बिन....सूनी भजनों की भोर
विविध भारती के लोकप्रिय कार्यक्रम रंग-तरंग जिसके प्रस्तोता अशोक आज़ाद हुआ करते थी ने सत्तर और अस्सी के दशक में हरिओम शरण के कई भक्ति पद प्रसारित किये। वह एक ऐसा दौर था जब कैसेट्स और सीडीज़ परिदृष्य पर उभर ही रहे थे लेकिन संगीतप्रेमियों का सच्चा आसरा तो रेडियो ही था। दोपहर दो बजे प्रसारित होने वाले रंग-तरंग ने ही हरिओम शरण,शर्मा बंधु, जगजीत सिंह,पंकज उधास,अनूप जलोटा,युनूस मलिक,मुबारक़ बेगम,मन्ना डे,महेन्द्र कपूर,सुमन कल्याणपुर,अहमद हुसैन-मोहम्म हुसैन,राजेन्द्र मेहता-नीना मेहता,राजकुमार रिज़वी की सुगम संगीत में पगी रचनाओं को देश के कोने कोने तक पहुँचाया। हरिओम शरण जी भी इस कार्यक्रम के नियमित गायक हुआ करते थे। मुरलीमनोहर स्वरूप जिन्होने बेगम अख़्तर के साथ हारमोनिय संगति की और अनेक सुगम संगीत रचनाओं की ध्वनि-मुद्रिकाएँ कंपोज़ की हरिओम शरण जी की रचनाओं को धुनो में बांधते थे।
मुझे दो बार इन्दौर में हरिओम शरण के कार्यक्रमों के सूत्र - संचालन का सौभाग्य हासिल हुआ। आखिरी बार वे लता अलंकरण में कार्यक्रम प्रस्तुत करने आए थे। मैने उन्हे बहुत ही सादा तबियत और भक्ति कें रंग में डूबा पाया। वे भगवा वस्त्र पहनते ही नहीं थे वैसी साधुता भी अपने स्वभाव में रखते से। हनुमान चालिसा उनका सबसे ज़्यादा बिकने वाला कैसेट रहा लेकिन प्रेमांजली और पुष्पांजली नाम के एलबम भी बहुत लोकप्रिय हुए। कबीर उनके चहेते कवि थे । जिन भजनों के अंतिम पद में आपको शरण शब्द सुनाई दे तो सजझ लीजियेगा कि ये हरिओम शरण जी का ही लिखा हुआ है।
दाता एक राम भिखारी सारी दुनिया,मैली चादर ओढ के कैसे द्वार तिहारे आऊँ,निरगुन रंगी चादरिया ओढे संत-सुजान, ये गर्व भरा मस्तक मेरा प्रभु चरण धूल तक झुकने दे,श्री राधे गोविंदा मन भज ले हरि का प्यारा नाम है और जगदंबिके जय जय जग जननि माँ जैसे भजन दुनिया भर में उतने ही लोकप्रिय हैं जैसे ओम जय जगदीश हरे या हनुमान चालीसा । कविता और चित्रकारी में मन का आनंद ढूँढने वाले हरिओम शरण ऐसे गायक के रूप में याद किये जाएँगे जिन्होंने भक्ति संगीत को आदर दिलवाया।
पंचतत्व में विलीन हो जाने वाले हरिओम शरण का आत्म-तत्व आज भी शायद यही गुनगुना रहा होगा...
क्या है तेरा ...क्या हे मेरा
सब कुछ है भगवान का
धरती उसकी,अंबर उसका
सब कुछ उसी महान का।
हरि की शरण में जा चुके इस महान गायक को विनम्र भावांजली.
Wednesday, November 14, 2007
सबसे ख़तरनाक होता है मुर्दा शांति से मर जाना !
मेहनत की लूट सबसे ख़तरनाक नहीं होती
पुलिस की मार सबसे ख़तरनाक नहीं होती
ग़द्दारी , लोभ की मुठ्ठी सबसे ख़तरनाक नहीं होती
सबसे ख़तरनाक होता है
मुर्दा शांति से मर जाना
न होना तड़प का
सब सहन कर जाना
घर से निकलना काम पर
और काम से लौटकर घर आ जाना
सबसे ख़तरनाक होता है
हमारे सपनों का मर जाना.
Tuesday, November 13, 2007
कुमार गंधर्व को मालवा में बसाने वाले मामा साहेब.
Wednesday, November 7, 2007
कुछ ऐसे भी मन सकती है दीवाली....मन तो बनाइये !
Tuesday, November 6, 2007
जीवन में बरसे कुछ और धन....
Saturday, November 3, 2007
देखना दीवाली पर इस बार ....नहीं मिलेंगे संस्कार !
मिलेगा लैपटाप
कपड़े टीपटाप
हज़ारों की ज्वैलरी के वारे न्यारे
नये फ़र्नीचर के नज़ारे
ग्रीटिंग कार्ड के डिज़ाइन
ड्रायफ़्रूट्स,मिठाईयाँ,नमकीन ढ़ेर सारे
मिलेगी रोशनी चमकदार
गिफ़्टस का पारावार
जगमगाते घर
भीतर....बाहर
नहीं मिलेंगे
रिश्तों के दमकते कलेवर
प्यार का इज़हार
आत्मीयता के बंधनवार
बस सारा खेल होगा कमाई का
बड़ा दिख जाने में भलाई का
नदारद होंगे आदर के भाव
माँ-बाप अकेले होंगे गाँव
मनाएंगे रईस बेटे
दीवाली मिलन सामारोह
दिखाई देंगे होड़ के अवरोह
खु़लूस और गर्मजोशी होगी ख़ारिज
सोचिये ...
कहाँ जा रहे हैं हम
दीवाली की बनावटी उजास
में कहाँ गुम हो गई
प्रेम की सुवास
सब हो चला है औपचारिक
दिखावे का ताना बाना
सौहार्द हो गया बेगाना
किससे क्या कहें...बेहतर ही चुप ही रहें
क्या इसी को कहते हैं ज़माने का बदल जाना
रहने दीजिये हुज़ूर....बोलकर
अपनी ही औक़ात को उघाड़ कर दिखाना.
Thursday, October 25, 2007
प्रिय शरद की झिलमिलाती रात ; पूरा चाँद पहली बार ऊगा !
Thursday, October 18, 2007
बताइये अमेरिकी होशियार हैं या भारतीय ?
कहते हैं अमेरिकी बहुत होशियार होते हैं ; अच्छे बिज़नेसमेन भी। विगत दिनो एक भारतीय ने इस बात को झुठला दिया। हुआ ये कि हमारी परिचित और अमेरिका में कार्यरत मित्र की माँ गुज़र गईं।शव पेटिका (कॉफ़िन) में माताजी का शव भारत भेजा गया। पेटिका एकदम खचाखच बंद। भारत पहुँचने पर परिजनों ने ध्यान से देखा तो शव पेटिका पर एक लिफ़ाफ़ा चिपका हुआ था। खोला गया तो एक चिट्ठी निकली ज़रा ग़ौर से पढ़ लीजिये आप भी।नितांत हल्के फ़ुल्के अंदाज़ में इस चिट्ठी को दिल पर मत लीजियेगा.
बडे़ भैया,मझले भैया,छोटू भैया,भाभी...जै श्रीकृष्ण।
आख़िर माँ चली ही गईं... सो उनका शव इस पेटिका में भेज रही हूँ।सम्हाल लेना और हमारे पारिवारिक स्मशान गृह में ही उनका अंतिम संस्कार करना। ऐसी माँ की ख़ास इच्छा थी। मैं भी इस अवसर पर भारत आना चाहती थी लेकिन पेड छुट्टियाँ ख़त्म होने से ऐसा संभव न हो पाया।
माँ के शव के साथ कुछ ज़रूरी सामना सम्हाल लेना जिसका विवरण इस प्रकार है...
माँ ने जो छह टी शर्ट पहन रखी है उसमें से सबसे बडी़ वाली बड़े भैया के लिये है...
बाक़ी बराबर बाँट लेना।
माँ ने दो जींस की पेंट पहन रखी है एक मेरे भतीजे अमरीश और दूसरी मेरी भांजी श्वेता के लिये है।
शांता मासी बहुत दिनो से माँ से स्विस वॉच लाने को कह रहीं थीं सो उनके दाएँ हाथ पर पहना दी है।
बाएँ हाथ पर जो ब्रेसलेट है वह मझली भाभी के लिये है।
बड़ी भाभी , छोटी भाभी और मेरी प्यारी शकु बहन के लिये माँ को गले में तीन नेकलेस पहना दिये हैं।
मेरे प्रिय भानजे संजय के लिये माँ ने रीबॉक शूज़ पहने हुए है... नम्बर दस है ...देख लेना साइज़ ठीक ही होगा।
माँ के नीचे बादाम,काजू और चॉकलेट फ़्लेवर के शानदार कुकीज़(बिस्किट) रखे हुए हैं ....एहतियात से निकाल कर मिलजुल कर खाना।
बाक़ी सब ठीक ही है...सबको मेरा प्यार ...
आपकी बहन
स्मिता।
पुन:श्च > वैसे मैने सब ठीक से याद रख कर पैक किया है लेकिन फ़िर भी कुछ रह गया तो बताना ;
बापूजी की तबियत भी ठीक नहीं रहती है.
Wednesday, October 17, 2007
मेरे शहर में गरबा इन दिनों चौंका रहा है
चौराहों पर लगे प्लास्टिक के बेतहाशा फ़्लैक्स।
गर्ल फ़्रैण्डस को चणिया-चोली की ख़रीददारी करवाते नौजवान
देर रात को गरबे के बाद (तक़रीबन एक से दो बजे के बीच) मोटरसायकलों की आवाज़ों
के साथ जुगलबंदी करते चिल्लाते नौजवान
घर में माँ-बाप से गरबे में जाने की ज़िद करती जवान लड़की
गरबे के नाम पर लाखों रूपयों की चंदा वसूली
इवेंट मैनेजमेंट के चोचले
रोज़ अख़बारों में छपती गरबा कर रही लड़के-लड़कियों की रंगीन तस्वीरें
देर रात गरबे से लौटी नौजवान पीढी न कॉलेज जा रही,न दफ़्तर,न बाप की दुकान
कानफ़ोडू आवाज़ें जिनसे गुजराती लोकगीतों की मधुरता गुम
फ़िल्मी स्टाइल का संगीत,हाइफ़ाई या यूँ कहे बेसुरा संगीत
आयोजनों के नाम पर बेतहाशा भीड़...शरीफ़ आदमी की दुर्दशा
रिहायशी इलाक़ों के मजमें धुल,ध्वनि और प्रकाश का प्रदूषण
बीमारों,शिशुओं,नव-प्रसूताओं को तकलीफ़
नेतागिरी के जलवे ।मानों जनसमर्थन के लिये एक नई दुकान खुल गई
नहीं हो पा रही है तो बस:
वह आराधना ...वह भक्ति जिसके लिये गरबा पर्व गुजरात से चल कर पूरे देश में अपनी पहचान बना रहा है। देवी माँ उदास हैं कि उसके बच्चों को ये क्या हो गया है....गुम हो रही है गरिमा,मर्यादा,अपनापन,लोक-संगीत।
माँ तुम ही कुछ करो तो करो...बाक़ी हम सब तो बेबस हैं !
Monday, October 15, 2007
देह और दायित्व से कहीं कुछ अधिक है पत्नी.
दायित्व की याद दिलाते रहना मूर्खता है
पत्नी में पाई है मैने एक सखी
आत्मीयता को जिसने आचरण में ढ़ाला है
ज़िम्मेदारियों को जिसने आदत बना डाला है
वह उठती है तो सूरज को याद आता है
कि उसे भी काम पर जाना है
भोर से उसका रिश्ता क्योंकि सूरज से भी पुराना है
घर के और लोग जब बाँचते हैं अख़बार
तब तक वह सँवार चुकी होती है अपना घर-संसार
वह है तो न जाने क्यों ये आश्वासन है
कि सब कुछ निर्बाध है हमारे जीवन में
उसका होना उसके वजूद से भी बड़ा है
वह इसका मोल नहीं मागती
कभी जताती नहीं की उसी से सब कुछ
निश्चिंत होकर है चलायमान हमारे जीवन में
पत्नी लिखने में चाहे इ की मात्रा भले ही बड़ी लगती हो
वह मेरी ज़िन्दगी में हमेशा अपने को छोटा बनाए रखती है
उसने घर-आँगन और मेरे प्यारे बच्चों को दिया है
एक अपनापन,परम्परा और संस्कार
वह होती है हर वक़्त मेरे आसपास हवा की तरह
लेकिन उसका कोई रंग , आकार नही होता
मैं हूँ यदि सफ़ल
तो उसमें उसका मौन त्याग
और प्रार्थना है प्रबल
वह मधुरता और सरसता की है बानी
उसी से कुछ तसल्ली भरी है ज़िन्दगानी
(आज जीवन संगीनी के जन्म दिन पर )
Thursday, October 11, 2007
क्या कल से आपकी बेटी भी गरबा खेलने जाने वाली है
Wednesday, October 10, 2007
महानायक के जन्मदिवस की पूर्वसंध्या पर आपसे साझा कर रहा हूँ ये प्रसंग
Tuesday, October 9, 2007
अपनी आवाज़ से जगत जीतने वाले जगजीत जल्द लौटेंगे माइक्रोफ़ोन पर
पूरी श्रोता-बिरादरी जगजीत सिंह के शीघ्र स्वास्थ्य लाभ की कामना करती है . और एक मन की बात बता दूँ आपको ...मैने जगजीत सिंह को जितना जाना है ; दावे से कह सकता हूँ जगत को जीतने वाले जगजीत सिंह मंच पर लौटेंगे...और मज़बूती से लौटेगे...उनका अदम्य आत्म-विश्वास उन्हें एक बार फ़िर उनकी खरज भरी आवाज़ के साथ करोडों चाहनेवालों से रूबरू करवाएगा.
जगजीत सिंह जैसे कलाकार बिस्तर पर लेट कर ये दुनिया नहीं छो़ड़ने वाले.
वे हैं सुरीले गुलूकार... लाडले फ़नकार
माइक्रोफ़ोन पर है आपका इंतजार
मुझे आपकी दुआओं पर पूरा यक़ीन है...इंशाअल्ला !
Saturday, October 6, 2007
कलाम को नहीं मिला कोई सलाम !
पूर्व राष्ट्रपति होने के नाते शहर को उम्मीद थी कि उनका ज़ोरदार ख़ैरमकदम होगा.
वे आए थे आई.आई.एम और एक स्कूल के आयोजन मे. पद की महिमा कहिये या राजनेताओं की देख कर टीका लगाने की आदत, एक भी राजनैतिक व्यक्ति एयरपोर्ट कलाम साहब का स्वागत करने नहीं पहुँचा.यहाँ तक की भाजपा शासित नगर पालिक निगम की महापौर भी नहीं . वही भाजपा जिसने डॉ कलाम को उम्मीदवार बना कर राष्ट्रपति पद तक पहुँचाया था. डॉ.कलाम को कोई फ़र्क नहीं पड़ा.वे तो निस्पृह भाव से एक साधारण सी एम्बेसेडर गाड़ी में घूमते हुए आयोजनों में शरीक होते रहे. जिस स्कूल के कार्यक्रम में उन्होने शिरक़त की उसमें दस हज़ार बच्चे जुटे.भारत के भावी नागरिकों के बीच चाचा कलाम खूब घुले-मिले , बात की, ठहाके लगाए , बच्चों के सवालों का जवाब दिये.मंच पर चाँदी की कुर्सी लगाई गई थी जिसे डॉ.कलाम ने ह्टवाया और साधारण सी मोल्डेड चेयर पर बैठ कर पूरे आयोजन का मज़ा लिया.
जिन साधारण से नेताओं के सम्मान में शहर के नेता रैलियों से सड़को और कामकाजी इलाक़ों को लगभग हाईजैक ही कर लेते हैं उनका अंतरराष्ट्रीय ख्याति के सांइटिस्ट और भारत रत्न अलंकरण से नवाज़े जा चुकी शख़्सियत से इस तरह का असम्मानजनक व्यवहार मन को असीम कष्ट देता है.
मैं संभवत: पहली बार अपने ब्लॉग की इस प्रविष्टि में इस विषय शब्द नहीं ख़र्चना चाहता. मै चाहता हूँ कि ब्लॉगर बिरादरी के संजीदा लेखक - पाठक अपनी ओर से इस ह्र्दयहीनता पर कुछ लिखें.
Tuesday, October 2, 2007
बापू आज होते तो क्या कहते ?
20 x 20 क्रिकेट में भारत जीत गया बापू !
तो क्या हुआ ऐसा खेल तो कर्नल सी.के.नायडू तीस के दशक में खेल चुके हैं
इतना इतराने की क्या ज़रूरत है.देश का नाम हुआ है ..चलो अब फ़िर जुट जाओ मेहनत में !
बापूजी ..हिन्दी सप्ताह आ गया ..आपको शुभारंभ करना है !
हिन्दी को बढ़ाने के लिये भी सप्ताह मनाने की ज़रूरत पड़ रही है ? आश्वर्य है.
पहले ठीक से बोलना और लिखना तो सीख लो.पब्लिक स्कूलों के नाम पर क्या धांधली
मचा रखी है आपने ? बच्चे अड़तीस,रेजगारी,आधा किलो,तरकारी जैसे शब्द भूल चुके हैं
पहले माता-पिता बच्चों को मम्मी डैडी बुलवाना तो छुड़वाएँ..फ़िर हिन्दी सप्ताह मनाएँ.
बापूजी..इंटरनेट पर खूब फ़लफ़ूल रही है हिन्दी . क्या आप कंप्यूटर सीखना चाहेंगे ?
हाँ...हाँ...चलो चलो अभी देखूंगा...सुना है ब्लॉग्स के ज़रिये अच्छी हिन्दी लिखी जा रही है...चलो नवजीवन के नाम से मेरा ब्लॉग बनाओ.
मज़हब के नाम पर दुकानदारियाँ चल रहीं हैं बापूजी...क्या करें ?
देखो बच्चों...मज़हब,धर्म ये सब नितांत निजी आस्थाओं के विषय हैं.जो करना चाहते हो
अपने घर में करों..देश को मज़हबी आँधी से बचाना चाहते हो तो सार्वजनिक रूप से ऐसी गतिविधियों
पर प्रतिबंध लगाओं जिससे किसी भी दूसरे धर्म के मानने वाले भाई-बहन की भावना को ठेस पहुँचे.
बापूजी आपने तो अपना काम पोस्ट कार्ड से चलाया..अब हम तो मोबाईल से चिपके हैं..आपकी प्रतिक्रिया ?
मोबाइल लेकर तुम लोगों ने अपनी चलायमान ताक़त को ख़त्म कर लिया है; अब भी वक़्त है...बचो इससे...कितना बोलते हो...अच्छा मोबाइल पर बात करते हो वह तो ठीक है...सुनते सुनते खु़द क्यों मोबाइल होने लगते हो.चिठ्ठी का अपना मज़ा है...लिखी...पोस्ट की....चिठ्ठी चली...पहुँची..बँटी...बाँची...सबकुछ कितना लयबध्द है इसमें...त्वरित के चक्कर मे भटक गए हो तुम.
बात तो कर रहे हो...पहुँच कहीं नहीं रहे हो ...ये सत्य जान लो.
बच्चे नहीं सुनते हमारी..क्या करें ?
तुमने कहाँ सुनी तुम्हारे अपने पिता की.सुनो चिल्लाने से कुछ नहीं होगा...उन्हे अपने मित्र बनाओ..देखो कैसे मानते हैं तुम्हारी बात.
परिवार टूट रहे हैं...कैसे बचाएँ इसे ?
परिवार नाम की संस्था भारतीय दर्शन की शक्ति है.बिखरो मत...जुड़े रहने में ही सार है.
त्याग का भाव मन में रखो...देखना कभी नहीं बिखरोगे.बडे़ का किया अच्छा मानो और छोटे का किया अपना ही किया जानो ..देखो कैसे टलते हैं परिवारों के विभाजन.
परमाणु संधि पर आपके क्या विचार हैं बापू ?
बम से मानवता अपने लिये समाप्ति का साज़ोसामान जुटा रही है.ये आत्मघाती है .बचो इनसे.भारतीय दृष्टिकोण से ही बचेगा विश्व..सबको अहिंसा के रास्ते पर आना होगा.
कल मै न रहूँगा पर मेंरी बात याद रखना...आतंक..आक्रमण और अपराध आपके ज़माने के विषधर हैं...अपनी अगली पीढियों को बचाना चाहते हो तो पूरे विश्व को अस्त्र विहीन करना होगा.इसी से बचेगी मानवता ...इसी से बचेगा भारत.
गाँधीजी यानी आप जैसी लोकप्रियता के लिये क्या करें ?
जो बोलते हो वैसा पहले कर के दिखाओ..ये है सच्ची गाँधीगिरी.
Thursday, September 27, 2007
दुनिया की सबसे सुरीली आवाज़ को समर्पित अदभुत कविता
आइये लताजी के चिरायु होने की कामना के साथ इस सर्वकालिक महान गुलूकारा को ये शब्द - गुलदस्ता भेंट करें
तुम स्वर हो, तुम स्वर का स्वर हो
सरल - सहज हो पर दुश्कर हो
हो प्रात: की सरस भैरवी
तुम बिहाग का निर्झर हो
चरण तुम्हारे मंद्र सप्तकी
मध्य सप्तकी उर तेरा
मस्तक तार - स्वरों में झंकृत
गौरवांन्वित देश मेरा
तुमसे जीवन , जीवन पाये
तुम्ही सत्य-शिव-सुंदर हो
मेघ-मल्हार केश में बाँधे
भृकुटी ज्यों केदार सारंग
नयन फ़ागुनी काफ़ी डोले
अधर बसंत-बहार सुसंग
कंठ शारदा की वीणा सा
सप्त स्वरों का सागर हो
सोलह कला पूर्ण गांधर्वी
लगती हो त्रिताल जेसी
दोनों कर जैसे दो ताली
सम जैसा है भाल साखी
माथे की बिंदिया ख़ाली सी
दुत लय हो गति मंथर हो
राग मित्र रागिनियाँ सखियाँ
ध्रुपद धमार तेरे संबंधी
ख़्याल तराने तेरे सहोदर
तान तेरी बहनें बहुरंगी
भजन पिता जननी गीतांजली
बस स्वर ही तेरा वर हो
ये संसार वृक्ष श्रुतियों का
तुम सरगम की लता सरीखी
कोमल शुध्द तीव्र पुष्पों सी
छंद डोर में स्वर माला सी
तेरे गान वंदना जैसे
ईश्वर में ज्यों ईश्वर हो
इस कविता पर अपनी प्रशंसाएँ ज़रूर भेजियेगा. मायाजी आजकल अस्वस्थ रहतीं सो आपकी प्रतिक्रियाएँ उन्हें बहुत आनंदित करेंगी. आपकी टिप्पणियाँ हिन्दी मंच की इस गरिमामयी काव्य हस्ताक्षर तक ज़रूर पहुँचाउंगा.आपका प्रतिसाद हमारी लता दीदी (इन्दौर उनकी जन्म-स्थली है सो उन्हें दीदी कहने का हक़ तो बनता ही है हमारा) के लिये दीर्घायु होने का भाव तो बनेगा ही. क्या ये हमारा भी सौभाग्य नहीं कि हम उस कालखंड में जी रहे हैं जिसमे स्वर-कोकिला लता मंगेशकर ने जन्म लिया है.
शब्दों के विलक्षण जादूगर और ख़ाकसार के उस्ताद श्री अजातशत्रुजी के वक्तव्य से इस प्रविष्टि को विराम देते हूँ...इसे पढ़े...गुने...और कल दिन भर प्रकृति के सबसे पवित्र स्वर को कानों के आसपास ही रखें और देखें दिन कितना सुखमय गुज़रता है.....
ओ लता के गवाहों ! गंगा के नीर सा निर्मल स्वर , मोगरे के फ़ूलों सी ताज़गी आने वाली सदियों को भला कहाँ नसीब होगी.ध्यान रखना क़ुदरत ने लता की टेर फ़िल्मों के लिये,निर्माता के नोटों के लिये,पात्र या सिचुएशन के लिये नहीं....ज़माने को राहत बख्शने के लिये बनाई है.जब तक टिमटिमाते तारों की रात होगी,झील की हवाओं में उदास गुमसुमी रहेगी,बादलों के पीछे चाँद धुंधलाता रहेगा,चिर-किशोरी लता की निष्पाप आवाज़ हम पर सुखभरी बदली बरसाती रहेगी.आमीन.
Wednesday, September 26, 2007
फ़ब्तियाँ कसने वाले भूल जाते हैं कि जीत दिलाने वाला एक मुसलमान भी है
वक़्त रहते हमें इन छोटी मानसिकताओं से उबरना पड़ेगा. उस्ताद बिसमिल्लाह ख़ान साहब मुसलमान बाद में थे..सबसे पहले इस देश और उसकी तहज़ीब के नुमाइंदे थे. पं.रविशंकर हिन्दू बाद में हैं सबसे पहले भारत के सर्वकालिक महान सितारवादक हैं . जिस हिन्दू लता मंगेशकर को हम जानते हैं उन्होने नौशाद , गु़लाम मोहम्म्द, सज्जाद हुसैन,ख़ैयाम के संगीतबध्द और शकील बदायूँनी,मजरूह सुल्तानपुरी,राजा मेहंदी अली ख़ाँ,साहिर लुधियानपुरी,हसरत जयपुरी जैसे मुसलमान गीतकारों के साथ गाये है. मन रे तू काहे न धीर धरे,वृंदावन का कृष्ण कन्हैया सबकी आँखों का तारा,मन तरपत हरि दरशन को आज,बड़ी देर भई , कब लोगे ख़बर मोरे राम जैसे भक्ति पद मुसलमान मोहम्मद रफ़ी से बेहतर कौन हिन्दू गा सकता था. उस्ताद विलायत ख़ाँ के साथ पं.किशन महाराज तबला संगति देते है और पं हरिप्रसाद चौरसिया के साथ उस्ताद ज़ाकिर हुसैन जैसा महान तबलानवाज़ छा जाता है. कैसी अदभुत गंगा जमनी तहज़ीब है हमारी जो सारी मान्यताओं को आत्मसात करती है.
ये सारे उदाहरण साबित करते हैं कि हमारी धर्म-निरपेक्ष छवि ही भारत की पहचान है. दुनिया अचरज करती है कि कैसे जुदा जुदा धर्म ओ मज़हब यहाँ साथ साथ रह लेते हैं. कैसे इस देश मीरा,गोरख,ग़ालिब,मीर,नज़ीर अकबराबादी,तुलसीदास,कबीर का निबाह एक साथ हो जाता है.
मैं यह नहीं कहता कि फ़िज़ाँ बिगाड़ने वाले एक ही तरफ़ हैं.दोनो मुहानो पर मौक़े को भुनाने वाले लोग हैं लेकिन एक नये सोच के साथ सभी को आगे आना होगा. दुनिया करवट ले रही है जनाब..बड़ी उम्मीद से भारत की ओर पूरा विश्व देख रहा है. साठ साल पहले बँटे थे....फ़िर भी जैसे तैसे चल गये....अब बँटे तो कहीं के नहीं रहेंगे.
ट्वेंटी 20 विश्व कप में जीत दिलाने वाले सिर्फ़ महेंद्रसिंह धोनी या युवराज अकेले नहीं ...मत भूलिये फ़ायनल में आपको महत्वपूर्ण विकेट दिलाने वाला खिलाड़ी इरफ़ान पठान है जो एक सच्चा मुसलमान है जो सामने वाली टीम को सिर्फ़ और सिर्फ़ अपना प्रतिद्वंदी मान कर अपना 100% प्रदर्शन दे रहा है और तीन महत्वपूर्ण विकेट्स लेकर मैन आँफ़ द मैच बन रहा है.थूँक डालनी चाहिये हमें ये नफ़रत.होना तो ये चाहिए कि हम हिन्दू भाई मुसलमान बस्तियों में जाकर इरफ़ान पठान ज़िन्दाबाद ! के नारे बुलंद करें और साबित करें कि हम कितने सह्र्दय हैं...ज़ोर ज़ोर से चिल्लाएँ धोनी तुम्हारा है...इरफ़ान हमारा है ये सब हैं भारत माता के लाल....इन्होने मान बढ़ाया है पूरी खिलाड़ी बिरादरी का. अब भी समय है हम चेतें....ऐसे मंज़र बनने लगे तो फ़िरक़ापरस्ती के लिये कोई जगह नहीं रह जाएगी दोस्तो.खेल,संगीत,कविता और साहित्य इस महान देश को जोड़ कर ही दम लें तो ठीक है वरना इसकी विरासत अपने पर आँसू बहाती नज़र आएगी.
Monday, September 24, 2007
इसलिये हारा पाकिस्तान
-युनिस ख़ान द्वारा मिसटाइम किया गया शॉट जिस पर वे कैच आउट हुए
-रॉबिन उथप्पा द्वारा इमरान नज़ीर को शानदार डायरेक्ट थ्रो द्वारा आउट किया जाना
-इमरान पठान का बहुत सधा हुआ बॉलिंग स्पैल.
-आख़िरी ओवर हरभजन सिंह के स्थान पर जोगिंदर शर्मा द्वार फ़ैंका जाना
-मिसबाह द्वारा बेहद लापरवाही से खेला गया शॉट जिस पर वे श्रीसंथ द्वारा कैच किये गए.
-और सबसे महत्वपूर्ण बात.....
एक ठंडे दिमाग़ के कप्तान के रूप में महेन्द्रसिंह धोनी द्वारा अपने पत्ते न खोलना,अपने गेंदबाज़ों को सही समय पर काम पर लगाना और अपनी देहभाषा से विरोधी टीम को ये ज़ाहिर न होने देना कि हम किसी तरह के तनाव में हैं. भारत को एक लम्बे समय के बाद विचारवान कप्तान मिला है.अच्छी बात ये है कि धोनी की टीम के ज़्यादातर खिलाड़ी भारत के छोटे शहरों से आए हैं और मध्यमवर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं.
आइये तहेदिल से देश की इस शूरवीर टीम का भाव-अभिषेक करे....
भारत जीत जाएगा....यदि ?
- वाइड बॉल्स पर नियंत्रण रखा जाए.
- कप्तान गेंदबाज़ों का चतुराई से इस्तेमाल करे.
- भारत के कम से कम तीन बल्लेबाज़ टिक कर खेलें
- पाकिस्तान के दो बल्लेबाज़ों मिसबाह और युनिस खा़न पर चैक रखा जाए.
- यदि भारत पहले बैटिंग करे तो रन औसत सात से दस प्रति ओवर रखे.
-यदि अतिरिक्त गेंदबाज़ के रूप में युवराजसिंह का इस्तेमाल किया जाए तो बहुत अच्छा.
- प्रत्येक ओवर के बाद कप्तान धोनी अपने गेंदबाज़ों से बात करें
- और आख़िर में सबसे महत्वपूर्ण बात.....
सारे खिलाड़ी अपना सहज खेल खेलें,विरोधी टीम की ताक़त और कमज़ोरी पर नज़दीकी निगाह रखे
और अपने ऊपर फ़ानयल मैच जैसा कोई अतिरिक्त तनाव न ओढ़े.
जीतेगा वही जो आज अच्छा खेलेगा.भाग्य उसी का साथ देता है जो अदम्स साहस का परिचय देते हैं
-
Sunday, September 23, 2007
बेटियों के लिये मुनव्वर राना के अ श आ र
घरों में यूँ सयानी लड़कियाँ बेचैन रहती है
कि जैसे साहिलों पर कश्तियाँ बेचैन रहती हैं
ये चिड़िया भी मेरी बेटी से कितनी मिलती जुलती है
कहीं भी शाख़े-गुल देखे तो झूला डाल देती है
रो रहे थे सब तो मै भी फ़ूटकर रोने लगा
वरना मुझको बेटियों की रूख़सती अच्छी लगी
बड़ी होने लगी हैं मूरतें आँगन में मिट्टी की
बहुत से काम बाक़ी हैं सम्हाला ले लिया जाए
तो फ़िर जाकर कहीं माँ-बाप को कुछ चैन पड़ता है
कि जब ससुराल से घर आ के बेटी मुस्कुराती है
ऐसा लगता है कि जैसे ख़त्म मेला हो गया
उड़ गईं आँगन की चिड़िया घर अकेला हो गया.
बेटी दुनिया का सबसे पाक़ रिश्ता है. आज जब ज़माने की तस्वीर बदल रही है बेटियों ने भी अपने वजूद और हुनर की साख मनवा ली है. सानिया मिर्ज़ा,कल्पना चावला, सुनीता विलियम्स,बेछेंद्री पाल,किरन बेदी,पी.टी.उषा,अंजू बॉबी जॉर्ज , आदि कई नाम ऐसे हैं जिन्होने बदलती दुनिया में लड़की की पहचान को नई इज़्ज़्त बख्शी है.आइये हमारे आपके आँगन की तमाम बेटियों की ख़ुशहाली की दुआ करें क्योंकि स्वामी विवेकानंद ने कहा थी कि बेटा सिर्फ़ एक कुल को तारता है बेटी जहाँ जन्म लेती है वहाँ भी सबसे ज़्यादा समर्पित रहती है और जहाँ उसका घर बसाया जाता है वहाँ जाकर भी अपनी रचनात्मक भूमिका निभाती है.दुनिया भर की बेटियों को सलाम !
ओस की बूँद होती है बेटियाँ
स्पर्श खुरदुरा हो तो रोती है बेटियाँ
रोशन करेगा बेटा तो बस एक ही कुल को
दो दो कुलों की लाज होती हैं बेटियाँ
कोई नहीं एक दूसरे से कम
हीरा अगर है बेटा
सच्चा मोती है बेटियाँ
विधि का विधान है यही
दुनिया की रस्म है
मुठ्ठी भर नीर सी होती है बेटियाँ
Thursday, September 20, 2007
एक क्षमा पर्व हमें भी मनाना चाहिये !
मुझे लगता है ब्लागर बिरादरी में भी इस तरह का क्षमा पर्व मनाना चाहिए . साल भर में एक बार मनाए जाने इस पर्व में दिल की सफ़ाई भी हो जाएगी और मन भी हल्का हो जाएगा.जो यह मानता है कि उससे कोई ग़लती हो ही नहीं सकती उसके लिये तो मेरे सुझाव फ़िजूल ही हैं लेकिन जो विनयशील हैं और संजीदगी से अपनी ग़लतियों का अहसास करते हैं उनका ध्यान नीचे लिखी बातों की ओर ले जाना चाहूंगा. निम्नांकित बातो के लिये हम ब्लाग बिरादरी से क्षमा मांग सकते हैं....
-किसी का ब्लाग पढ़ा ...अच्छा भी लगा लेकिन मैने ऐसा क्यों नहीं लिखा ऐसा ईर्ष्या भाव मन में आए तो क्षमा मांगना चाहिये.
- किसी को बताए बिना किसी की सामग्री का उपयोग किया ..ऐसा करने के लिये क्षमा मांगना चाहिये.
- किसी ने आपके लिखे की प्रशंसा की लेकिन आपने ई-मेल के ज़रिये या अपने ब्लाग पर टिप्प्णीकारों के प्रति साधुवाद नहीं प्रकट किया ...इस बात के लिये क्षमा प्रार्थना करना चाहिये.
- किसी के लिखे पर अर्नगल टिप्पणी की और उससे किसी का दिल दुखा और यदि हमें इस बात का भान बाद में भी आया है तो हमें उसके लिये विनम्रतापूर्वक मुआफ़ी मांग लेनी चाहिये.
हो सकता है मेरा सुझाव भावुकता भरा हो लेकिन ब्लागर बिरादरी में मेरे संपर्क में आए ऐसे कई संजीदा मित्र हैं जो मेरी इस बात को तवज्जो देंगे. इस काम के लिये किसी मुहूर्त , पंचांग और चोघडिये की ज़रूरत नहीं . मै स्वयं जाने अगजाने में हुई त्रुटी के लिये मेरी इस पोस्ट से आप सभी से करबध्द क्षमा याचना करता हूँ...हाल फ़िलहाल ऐसी कोई त्रुटी ध्यान तो नहीं आ रही लेकिन अवचेतन मन भी तो कई तरह की चोरी और अपराध करता है.अंग्रेज़ी में कहा भी तो है...चैरिटी बिगिन्स एट होम !.
(ब्लाग शब्द लिखते समय ब्ला के उपर चंद्र लगना चाहिये लेकिन ये कैसे होता है मुझे मालूम नहीं
विग्यापन में ग्य भी लिखना नहीं आता ...इसलिये कई बार इश्तिहार या एडवरटाइज़मेंट लिखता हूँ..ऐसा न कर पाने के लिये भी क्षमा करें..और हाँ कोई ब्लागर मित्र ऐसा कर पाना बता सकें तो बड़ी मेहरबानी...कृपया sanjaypatel1961@gmail.com पर एक ई-मेल भेजने की कृपा करें.
Tuesday, September 18, 2007
लिखने वाले का ख़ामोश रहना भी है ज़रूरी !
जितना बोलना,लिखना और गुनना
ब्लॉगर को चाहिये की वह अंतराल का मान करे
वाचालता को विराम दे
चुप रहे कुछ निहारे अपने आसपास को
ब्लॉगर का दत्तचित्त होना है लाज़मी
वाजिब बात है ये कि जब लिख चुके बहुत
तो चलो कुछ सुस्ता लो
सफे पर उभरे हाशिये की भी अहमियत है
चुप रहना सुस्त रहना नहीं है
चुप्पी में चैतन्य रहो
अपने आप से बतियाओ
नज़र रखो उस पर जो लिखा जा रहा है
सराहने का जज़्बा जगाओ
पढ़ो उसे जो तुमने लिखा
दमकता दिखाई दे अपना लिखा
तो सोचो और कैसे दमकें तुम्हारे शब्द
पढ़ो उसे जो तुमने लिखा
दिखना चाहिये वह नये पत्तों सा दमकता
कुछ सुनहरी दिखें तुम्हारे शब्द
तो अपने में ढूँढो कुछ और कमियाँ
कमज़ोर नज़र आए अपने हरूफ़
सोचो मन में क्या ऐसा था जो जो गुना नहीं
आत्मा ने क्या कहा जो ठीक से सुना नहीं
विचारो कि कहाँ हुई चूक,कहाँ कुछ गए भूल
क्या अपने लिखे शब्दों से ठीक से नहीं मिले थे तुम
ब्लॉगर बनना आसान नहीं
लिखे का सच होना है ज़रूरी
वरना कोशिश है अधूरी
कविता नहीं है ये ; है अपने मन से हुई बात
बहुत दिनों बाद अपने से मुलाक़ात
Friday, August 17, 2007
मालवा की काव्य सुरभि को समृद्ध करने वाले सुमन का जन्मदिन
मैं शिप्रा सा ही तरल सरल बहता हूँ
मैं कालीदास की शेष कथा कहता हूँ
मुझको न मौत भी भय दिखला सकती है
मैं महाकाल की नगरी में रहता हूँ
हिमगिरि के उर का दाह दूर करना है
मुझको सर,सरिता,नद,निर्झर भरना है
मैं बैठूं कब तक केवल कलम सम्हाले
मुझको इस युग का नमक अदा करना है
मेरी श्वासों में मलय - पवन लहराए
धमनी - धमनी में गंगा-जमुना लहराए
जिन उपकरणों से मेरी देह बनी है
उनका अणु-अणु धरती की लाज बचाए
Wednesday, August 15, 2007
एक प्यारी नीति कथा....पिल्लू का हमदर्द
बहुत सुस्त था मेरे शहर का मंज़र...आपके ?
जानबूझकर भुला दिए जा रहे हैं सुभाष बाबू
http://www.youtube.com/watch?v=uSyGjun_tgc
जय हिन्द .....नेताजी ज़िंदाबाद !
Tuesday, August 14, 2007
हैलो हाय न बोलिये...वंदेमातरम फ़िज़ाँ में घोलिये !
तो चलिये शुरूआत आप और मैं ही करते हैं...अभी से....नेक काम में देरी कैसी...
वं दे मा त र म !
Monday, August 13, 2007
अच्छा हुआ भगतसिंह..राजगुरू..सुखदेव तुम चले गए
तुम आज़ाद भारत के आम आदमी को देखकर क्या करते
किसे देखते ?
उस हिन्दुस्तानी को जो भ्रष्टाचार में धँसा हुआ है
जो बहन-बेटियों की अस्मत पर हाथ डाल रहा है
जो बेरोजगारी और भुखमरी से जूझ रहा है
जो अपनी तहज़ीब को भूल कर अफ़ीमची बन बैठा है
जो पडौसी का दर्द नहीं बाँटता
जिसने ज़ुबान को हल्का बना रखा है
उसे जो लोन लेकर चादर के बाहर पैर निकालना सीख गया है
जिसे दूसरों के आँसू देखकर पीड़ा नहीं होती
क्या अपने मुल्क के उन नौनिहालों को देखना पसंद करते जों
कंधे पर बस्ते बोझ उठा कर मज़दूर की तरह घर लौटते हैं
या उन्हें जों बरतन मांज रहे हैं
और धो रहे हैं कप-बसी और लगा रहे हैं ढा़बे में झाड़ू
क्या उन बूढ़े माँ-बाप को देखकर खु़श होते
जो दो दो बेटों के होने के बावजूद वृध्दाश्रम में रहने को मजबूर हैं
मिलना चाहते उस मास्टर से जो हर लम्हा अपमानित हो रहा है
ये हिन्दुस्तानी बेशर्म हो गए मेरे प्यारे भगत,राजगुरू,सुखदेव
ये महान भारतवासी सैंसेक्स के उतार-चढाव पर घंटों बतिया लेंगे
लेकिन शहीदों की दास्तान सुनने - सुनाने में शर्माएंगे
शराब और शबाब में डूबी पार्टियों में पूरी पूरी रात नाचते रहेंगे
लेकिन तिरंगे और राष्ट्रगीत के सम्मान में तीन मिनट खडे नहीं रह सकेंगे
क्या देखना चाहते उन शहरों को जो माँल कल्चर में बौरा गए हैं
देखना चाहोगे उन नौजवानों से जो क्लब्स में बैठे शराबख़ोरी कर रहे हैं
चाहते हो उन बेटियों से मिलना जो देह उघाड़ने को अपना सौभाग्य मान रहीं
देखना चाहते उन सड़कों को जिन पर से हज़ारों पेड़ विकास के नाम पर काट दिये गये हैं
क्या देखना चाहते हो इस देश की उस व्यवस्था को जो ग़रीब के लिये फ़राहम नहीं
देखना चाहते उन योजनाओं को जो बनती ग़रीबों के लिये हैं और जिनके फ़ायदे उठाते हैं रईस
अच्छा हुआ भगतसिंह...राजगुरू ...सुखदेव
हँसते हँसते तुम झूल गए फ़ाँसी के फ़ंदे पर
भारत का सूरते हाल देखकर तुम जीते जी मर जाते
साठ साल का बूढा़ होकर ये चिट्ठी लिखने को मजबूर हूँ..
ये वही भारत है जिसके लिये तुम सब ने भरी जवानी में दीं शहादतें,क़ुरबानियाँ
मिला क्या तुम्हे ...तुम्हारे घर वालों को
अच्छा हुआ ये दिन देखने को नहीं रहे भगतसिंह...राजगुरू...सुखदेव
ना कोई पद्मभूषण...ना कोई भारत-रत्न
अब तो आँखों का पानी भी सूख गया है
क्योंकि नज़रों के लिहाज़ ही मर गए
अच्छा हुआ तुम चले गए...
भगतसिंह..राजगुरू...ु
Wednesday, August 8, 2007
बामुलाहिज़ा होशियार...महान राष्ट्रीय प्रसंगों के लिये नेताजी तैयार
सबसे पहले तो उन्होने अपने ड्रेस डिज़ाइनर को काम पर लगा दिया है कि वह जल्द से जल्द उनके लिये सादे मगर ड्रेस डिज़ाइनर कुर्ते पज़ामे तैयार कर रखे.अपने सेकेट्री को ताकीद भी कर दिया है कि भले ही ये कहने को ड्रेस डिज़ाइनर हो गए हों पर समय की फ़ितरत तो वही अपने टेलर माड़्साब वाली है सो फ़ैब इण्डिया से भी चार पाँच रेडीमेड जोड़ी भी लाकर तैयार रखे.
नेताजी ने अपने इवेंट मैनेजर को इस काम पर लगा रखा है कि वह तलाशे कि कौन कौन से प्रीमियम आयोजक हैं जो अपने आयोजनों में भीड़ और मीडिया का लाजवाब जमघट कर लेते हैं। नेताजी चाहते हैं ऐतिहासिक होने जा रहे प्रसंग का अपना महत्व है और सारा देश इसका ध्यानपूर्वक नोटिस लेने वाला है. पार्टी हाइकमान भी नज़र रखे कि है कि किस कार्यकर्ता ने अपने आपको इन आयोजनों में सक्रिय रखा है. तो इवेंट मैनेजर इज़ आँल सैट ...फ़ेहरिस्त लगभग तैयार है कि नेताजी कहाँ-कहाँ जाने वाले हैं.
नेताजी ने समय रहते एक दक्ष फ़ोटोग्राफ़र भी बुक कर लिया है क्योंकि मालूम है कि ऐन वक़्त पर ये धोका देगा और पैसा भी ज़्यादा लेगा.नख़रा करेगा सो अलग.उसे अभी से एक लम्बी मीटिंग कर के समझा दिया गया है कि वह किस किस एंगल का ध्यान रखे और किस किस हाईप्रोफ़ाइल नेता के तस्वीरें ले....विशेष रूप से ये भी बता दिया गया है कि जिन आयोजनों में फ़िल्म स्टार शिरकत करने वाले हैं उनमें फ़ोटो अविस्मरणीय आना चाहिये ..स्पेशली तारिकाओं के साथ।
नेताजी की बिटिया पिताश्री की बाँडी लैंग्वेज पर काम कर रही है। बता रही है कि आप इन दिनों बस मुस्कुराते तब तो ज़्यादा ही जब पार्टी के बड़े नेता कार्यक्रमों में मौजूद हों . बिटिया ने ये भी बताया है और टिप दी है कि विपक्ष के नेता की मौजूदगी में तनाव लाने की ज़रूरत नहीं है. बल्कि उस समय तो ज़्यादा खु़शनुमा माहौल क्रिएट कीजिये डैड..इस मामले मे नेताजी को लालूजी को रोल-माँडल बनाने की सीख भी दी है बॆटी ने.
नेताजी की टास्कफ़ोर्स ने मीडिया मैनेजमेंट पर विशेष सतर्कता बरती है इस बार.मीडियाकर्मियों को आयोजन तक आने-जाने और आयोजनों को बेहतर और इत्मीनान से कवर करने के लिये वाहन,लैपटाँप और कालांतर में आ रहे त्योहारों के लिये स्पेशल गिफ़्ट वाउचर्स का इन्तज़ाम अभी से कर दिया है. मीडिया को बता दिया गया है कि यह राष्ट्रीय पर्व अपनी जगह है लेकिन असली टारगेट हैं आनेवाले चुनाव.आज़ादी की साठवीं और प्रथम स्वातंत्र्य पर्व की डेढ़ सौं वीं जयंती सब चोचले हैं भावनात्मक रूप से भारतीय जनमानस को भुनाने के..मुद्दा इतना भर है कि इस बडे़ इवेंट के ज़रिये नेताजी की साख और प्रोफ़ाइल में इज़ाफ़ा होना चाहिये.
झण्डे,डंडे,तिरंगे,बैनर,बैजेज़,पोस्टर्स,होर्डिंग्स,टीवी एड्स,इंटरव्यूज़,बुकलेटस की आकर्षक छपाई और उसके वितरण के प्रबंध को समझदार लोगों को सौंपा गया है जिससे कुछ इस तरह की बात बने कि रानी लक्ष्मीबाई,तात्या टोपे,भगतसिंह,सरदार पटेल या आज़ाद से बड़ा योगदान नेताजी का दिखाई दे।निष्णांत और नामचीन इश्तिहार प्रबंध एजेंसी को सारा काम दिया गया है कि वह अपने हुनर का ध्यान रखते हुए बस इस इवेट मे जान डाल दे.लोग भूल जाएं कि अमर सेनानी कौन जो कुछ हो रहा है ..या होने वाला है वह नेताजी के कर-कमलों से ही संभव है..वे ही हैं सुनहरे भविष्य के कर्णधार.
भाषणों की तैयारी के लिये एक राष्ट्रीय ख्याति के साहित्यकार और कवि को इंगेज कर लिया गया है। ये श्रीमान भी खादी पहनते हैं और फ़ाइव स्टार होटलों में विचरते है... और जैसा चाहिये वैसा भाषण नेताजी के लिये मौके और दस्तूर को मन मस्तिष्क में रखते हुए रचते। हैं ...इलाक़ा,श्रोता और आयोजन का प्रोफ़ाइल देखकर भाषा रचना करने में इनका कोई सानी नहीं कविराज ने अपना काम लगभग पूरा कर लिया ..और आजकल नेताजी की स्कूलिंग कर रहे हैं कि किस जगह कौन सा शब्द किस वज़न के साथ बोला जाना चाहिये.
नेताजी के भाषणों के दस्तावेज़ीकरण के लिये एक अलग टीम बनाई गई है जिसमें दो वीडियोग्राफ़र और दो आँडियो रेकाँर्डिंग करने वाले एक्सपर्ट्स हैं।सारे भाषणों को अविकल रेकाँर्ड करने का निर्देश जारी किया गया है. बाद में सक्षम एडीटर की मदद लेकर एक सीडी जारी करने का मानस बना है जिसे अंतत: चुनाव में इस्तेमाल किया जा सके.
तैयारियाँ पूरी है ..जोश पूरा है और पूरी तरह से नेताजी तैयार हैं. बस ऐतिहासिक तथ्यों ,तिथियों और महापुरूषों के नाम आदि को याद करने में थोड़ा वक़्त लग रहा है.आपसे निवेदन है कि यदि आपके मोहल्ले , काँलोनी,नगर या कार्यालय में स्वाधीनता दिवस की साठवीं वर्षगाँठ और प्रथम स्वातंत्र्य संग्राम को लेकर किसी आयोजन की भावभूमि बन रही हो तो कृपापूर्वक मुझे सूचित करें (हाँ हाँ बंदे ने भी नेताजी को प्रमोट करने की फ़ेंचाइज़ी ले ली है..आप भी इंटरेस्टेड हैं क्या ?) आपसी समझबूझ से नेताजी को आपके यहाँ ले आएंगे जनाब...देखिये तो सही एक प्रोफ़ेशनली मैनेज्ड नेता को राष्ट्रीय कलेवर और मूड के आयोजन में बुलाने का क्या मज़ा है.आप तो मेरे ब्लाँग पर टिप्पणी लिख दें ..मै समझ जाऊंगा कि आपसे संपर्क करना है.
Sunday, August 5, 2007
दोस्त ज़िन्दगी का नमक है
Saturday, August 4, 2007
टेलीफोन/मोबाइल पर ...बोलिये सुरीली बोलियाँ
सुमधुर संवाद के
मधुर टिप्स ....
-जिस व्यक्ति का फ़ोन आया हो या जिसे फ़ोन कर रहे हों उसके परिवार में यदि कोई दुखद घटना हुई हो तो सबसे पहले अपनी सहानुभूति प्रकट करें.
-जन्म दिवस एवं विवाह वर्षगॉंठ दो ऐसे प्रसंग हें
जिन पर संवाद स्थापित कर आप संबंधों का नवीनीकरण कर सकते
आपको यदि किसी तनाव का पूर्वानुमान हो तो कृपया
आपको कभी भी कड़वा सुनने को नहीं मिलेगा !
Friday, August 3, 2007
आइये ...शहादत देने वालों को सेलीब्रिटी बनाएं
दोस्तो ! वक़्त कुछ ऐसा चल रहा है कि हर माँ-बाप अपने बेटे-बेटी को सचिन - सानिया बनाना चाह रहे हैं और यदि देश के लिये क़ुरबान होने वाले भगतसिंह की ज़रूरत हो तो कहने लगते हैं हमारे पडौसी का बेटा है न पींटू उसे देख कर लगता है कि जन्मजात फ़ौजी है.दोहरे मानदंण्डों की हमारी भारतीयता कहाँ खडी़ है सोचिये.मुझे ब्लाँगर बिरादरी की संजीदगी पर अपने से ज़्यादा विश्वास है..भारत माता की जय !
Monday, July 30, 2007
दिल की तिज़ोरी में सहेज लें रफ़ी साहब पर अजातशत्रुजी के वक्तव्य
-यह कमाल रफ़ी को जन्म से हासिल था कि वे अहिन्दू और अमुसलमान होकर भजन तथा नात ऐसी गा जाएँ कि मुस्लिम भजन सुनकर पिघल उठे, हिन्दू नात सुनकर बह जाए और आदमी का आँसू जाति-धर्म भूलकर ज़मीन पर टपक उठे।
-रफ़ी के भजन सुनकर आपको याद आता चला जाएगा कि एक हिन्दू मोहम्मद रफ़ी था कोई... जो प्रभाती और संध्या-वंदन बन कर हमारे गुज़रे जीवन में आया था और गौ की रोटी के आटे-सा हमें नर्म-नर्म सानकर चला गया।
-काश ! ऐसा होता कि लिखे हुए अक्षर गाने लगते तो मैं आपसे क़ुबूल करवा लेता कि रफ़ी इस दुनिया के लिए कितना बड़ा तोहफ़ा थे !
-अपने में मसरूफ़ रफ़ी प्रेम-गीत को इतनी बुलंदी और मिठास से गाते हैं कि उनके बजाए ख़ुद मोहब्बत पुकार करती महसूस होती है !
-रफ़ी ? उनके बारे में तो अल्फ़ाज़ पीछे छूट जाते हैं। अपनी प्रणय-पुकार में वे ऐसी मेलडी रचते हैं कि मिश्री के पहाड़ सर झुकाते जाते हैं और कानों की वादी में फूल झरते जाते हैं।
-रफ़ी साहब शब्दों की आत्मा में उतरकर गाते थे। अर्थों को वे सब तरफ़ से बरसाती की तरह ओढ़ लेते हैं और फिर ख़ुद ग़ायब हो जाते हैं। तब शून्य गाता है, भाव ख़ुद अपने को गाता है। एक-एक ल़फ़्ज़ ख़ुशी में, दु:ख में, इबादत में, भक्ति में, कातरता में डूबकर रस की चाशनी टपकाता हुआ आता है। रफ़ी ख़ूब जानते हैं कि गाने का अर्थ है भाव। शब्द अर्थ में घुल जाए और भाव सीधे गायक की "एब्सेंस' में से निकलकर फ़िज़ॉं को तरबतर कर दे। यही वजह है कि रफ़ी साहब की आवाज़ और आवाज़ के पीछे की ख़ामोशी पाकर, गीत ज़िंदा हो उठते हैं।
-मंच पर रफ़ी को गाने वाले शौकिया अक्सर भूल जाते हैं कि रफ़ी शब्द गाते हुए भी शब्दों के पार रहते थे और तभी शब्द को चा़र्ज़्ड कर उसे नई आग से वापस भेजते थे। मात्र ल़फ़्ज़ों को गाने वालों को समझना चाहिए कि गाना लौटता तो ल़फ़्ज़ों में है, पर वह जाता ल़फ़्ज़ों के पार मौन में है। यही गायन के भीतर गायक का मौजूद रहना है और उसी गायन के भीतर ग़ायब रहना भी !
-रफ़ी हमें हैरान करते हैं। हैरान इसलिए कि वे किस सादगी से गाते हैं और किस अधिकार से भाव को ज़िंदा करते हैं। कुछ इस तरह कि संगमरमर पिघलकर हवा होता जा रहा है और हवा वापस फूल में तब्दील होकर सुगंध का ताजमहल खड़ा कर रही हो।
-रफ़ी साहब की तारीफ़ में कुछ भी कहना ल़फ़्जों को ल़फ़्जों की कब्र में उलटना-पुलटना है और कब्र में ही रह जाना है। एकमात्र इंसाफ़ या ढंग की बात यही है कि हम गीत को सुनें और चुप रह जाएँ। ऐसा चुप रह जाना सबसे बोल पड़ना और सबसे जुड़ जाना भी है।
(इस ब्लाँग के साथ जारी किया गया चित्र भारतीय डाक तार विभाग द्वारा मों.रफ़ी साहब मरहूम की याद में जारी किया डाक टिकिट है)
Sunday, July 29, 2007
ग्रामोफ़ोन रेकाँर्डस के नयानाभिराम आवरण
अब जबकि सीडीज़,एम.पी. थ्री,आईपाँड्स और कैसेट्स का दौर पूरे शबाब पर है ग्रामोफ़ोन रेकाँर्डस हैं कि परिदृश्य से बाहर होते जा रहे हैं.जिनके पास ये रेकाँर्डस हैं वे जानते हैं कि इनके आवरण या कवर कितने आकर्षक आते रहे है. इनको सुनने के लिये लिये छोटे रेकाँर्ड प्लेयर्स के अलावा रेडियोग्राम्स का फ़ैशन भी चला था.जिनके ड्राइंगरूम्स में रेडियोग्राम्स रखे होते थे वे वाक़ई अभिजात्य वर्ग के लोग होते थे गोया रेडियोग्राम स्टेटस सिंबल हुआ करता था.अभी हाल ही मे मैने 78 आरपीएम रेकाँर्डों (जिन्हें चूडी़ वाले बाजे पर बजाया जाता था) के और दुर्लभ रेकाँर्ड्स के संकलनकर्ता सुमन चौरसिया से आग्रह किया कि वे समय समय पर कुछ आवरण देते रहें जिन्हे हम संगीतप्रेमी मित्रों के लिये इस ब्लाँग पर प्रस्तुत करते रहें.सुमन भाई तुरंत तैयार हो गए.दे गए मुझे चंद रेकाँर्ड्स.देखिये इन्हे आँखों को कितना सुकून देते हैं . ग़ौरतलब है कि जिन वर्षों में ये आवरण छपे हैं तब हमारे देश में आँफ़सेट और बहुरंगी मुद्रण की तकनीक लोकप्रिय नहीं हुई थी.ब्लाँक से ही होती थी छपाई लेकिन फ़िर भी ख़ूबसूरती बला की सी होती थी.आवरण दर-असल एक तरह का लिफ़ाफ़ा होता था..मोट ग़त्ते या कार्डबोर्ड पर छपा हुआ.एकतरफ़ एलबम का नाम..अमूमन कलाकार का चित्र और दूसरी ओर कलाकार का परिचय..एलबम में प्रकाशित गीतों की सूची और अन्य तकनीकी डिटेल्स यानी..संगीतकार,गीतकार,एलबम की थीम का विवरण और जारी करने वाली कम्पनी का नाम, पता , रेकाँर्ड नम्बर आदि..कभी कभी सामने की ओर कोई कलात्मक डिज़ाइन या पेंटिग की रंगत होती थी (यथा बच्चन जी की मधुशाला..गायक मन्ना डे, संगीतकार: जयदेव)
और कलाकार का चित्र पीछे की या दूसरी ओर होता था.रेकाँड संग्रहकर्ताओं की की दुनिया बड़ी निराली होती है दोस्तो..जल्द ही सुमन भाई के बारे में एक ब्लाँग आप तक पहुँचेगा.फ़िलहाल तो रेकाँर्ड के आकर्षक आवरणों को देखने का आनन्द लीजिये.मुझे पूरा यक़ीन है कि इन रेकाँर्ड्स के चित्र देखकर आप में से कई यादों के उन गलियारों के सैर कर लेंगे जब दिल और दुनिया बडे़ सुकून से रहती थी.ज़िन्दगी में बड़ी तसल्ली थी..इंसान की सबसे बडी़ दौलत थी शांति.आज जिस तरह से नये मोबाइल हैण्डसेट ख़रीदने का क्रेज़ बढ़ चला है तब रेकाँर्ड ख़रीदना भी एक जुनून हुआ करता था.हालाँकि ये रेकाँर्ड जीवन में वैसा अतिरेक और अतिक्रमण नहीं करते थे जैसे मोबाइल कर रहा है.दोस्तो रेकाँर्डस के ये चित्र हो सकता है बिना संगीत आपको ज़्यादा मज़ा न दे सकें लेकिन कोशिश करियेगा कि इन कवर्स में दस्तेयाब सुरीले संगीत की खु़शबू आपके मन की गहराई तक पहुँच सके . हो सका तो आगे भी श्री सुमन चौरसिया के हस्ते ये सिलसिला जारी रखेंगे..इंशाअल्लाह !
Friday, July 27, 2007
हिन्दी प्रेमी ब्लाँग लेखकों और पाठकों के लिये एक ख़ास ख़बर !
अस्सी बरस पुरानी हिन्दी पत्रिका वीणा अब नये कलेवर में
हँस और सरस्वती के साथ जिस महत्वपूर्ण हिन्दी पत्रिका को विशेष आदर की दृष्टि से देखा / पढा़ जा रहा है उसमें से एक है इन्दौर से श्री मध्य भारत हिन्दी साहित्य समिति द्वारा प्रकाशित मासिक पत्रिका वीणा.हिन्दी साहित्य समिति की गतिविधियों से हिन्दी जगत बाख़बर है फ़िर भी यहाँ यह दोहराने में कोई हर्ज नहींझोगा कि महात्मा गाँधी के पावन चरण दो बार(1918 और 1935) इस संस्था के परिसर में पडे़.अस्सी बरस की इस पत्रिका ने कई वित्तीय और प्रकाशकीय उतार चढ़ाव देखे हैं फ़िर भी यह इसका पुण्य और हिन्दी सेवियों की लगन है कि यह नियमित रूप से प्रकाशित होती रही है.वरिष्ठ साहित्यकार डाँ श्यामसुंदर व्यास स्वास्थ्यगत कारणों से इसके संपादक पद से अभी अभी निवृत्त हुए है और डाँ राजेंद्र मिश्र ने यह ज़िम्मेदारी बख़ूबी सम्हाल ली है. उनके साथ पदेन संपादक के रूप में पं.गणेशदत्त ओझा,उप-संपादक के रूप में श्री सूर्यकांत नागर और राकेश शर्मा,प्रबंध संपादक के रूप में प्रो.चन्द्रशेखर पाठक की ऐसी टीम है जो पूरी लगन और निष्ठा से हिन्दी के इस पावन प्रकल्प में अपना सहयोग दे रही है.संपादक डाँ.राजेन्द्र मिश्र ने आते ही अपनी योग्यता को साबित किया है और वीणा को नया कलेवर देकर इसके पन्नों मे जैसे नई रागिनी छेड़ दी है..
अपने ब्लाँग पर ये ख़बर जारी करने का निमित्त ये भी है कि हमारे हिन्दी ब्लाँगर बिरादरी वीणा जैसे प्रतिष्ठित प्रकाशन के बारे में जाने.बडे़ सादा परिवेश में प्रकाशित होने वाली वीणा के पास इस काँर्पोरेट परिदृष्य में ऐसा कोई तामझाम या प्रमोशन कैम्पेन हे नहीं जिससे वह अपने आपको व्यक्त कर सके. ब्लाँग की दुनिया निश्चित रूप से हिन्दी प्रेमियों की एक ताक़त बन कर उभरी है और वीणा के शहर का एक साधारण सा ब्लाँगर होने के नाते मेरा नैतिक कर्तव्य है कि मै और आप ..हम सब वीणा के लिये जो कुछ कर सकते हों करें.
आपसे ये भी गुज़ारिश कर रहा हूं कि मेरी इस प्रविष्टि को बाक़ायदा काँपी कर अपने ब्लाँग पर भी सूचना(और बेझिझक आपकी अपनी प्रविष्टि या सूचना बज़रिये ई-मेल) के रूप में जारी करें.
इसमें हमारे एग्रीगेटर और चर्चाओं में रहने वाले और लोकप्रिय चिट्ठाकार खा़सी मदद कर सकते हैं .
सदस्य बनकर भी सहयोग किया जा सकता है.नीचे इसके बारे में विवरण दे रहा हूँ:
वीणा के जुलाई अंक के आवरण का चित्र ऊपर दे दिया है.
प्रकाशित सामग्री में से कुछ बानगियाँ भी दे रहा हूं
जुलाई अंक के संपादकीय से एक अंश
(भावभूमि :हाल ही में न्यूयार्क में सम्पन्न हुआ विश्व हिन्दी सम्मेलन)
अगर हिन्दी को आना है तो सबसे पहले उसे स्कूलों में एक शिक्षा माध्यम के रूप में अपनाना होगा नहीं तो विश्व भाषा के लिये किए जाने वाले प्रयास एक तमाशा बन कर रह जाएंगे.हिन्दी विश्व की भाषा बन जाएगी , भारत की भाषा नहीं और जब तक वह भारत की भाषा नहीं बनती,तब तक उसके विश्व भाषा बनने का कोई भी अर्थ नहीं है.जब तक हिन्दी दिल्ली में नही होगी तब तक उसका लंदन या न्यूयार्क में होना प्रासंगिक नहीं है.
- राजेन्द्र मिश्र.
लघुकथा : सनकी
ब्रीफ़केस बंद करता हुआ वह जैसे ही बाहर निकला, अर्दली ने झुककर सलाम किया.
अर्दली को उसने इशारे से बुलाया तथा बीस रूपये का नोट बतौर बख्शीश देते हुए बोला...चाय पानी के लिये.
साहब ये तो बहुत ज़्यादा है...!
उसके ईमानदार चेहरे की ओर उसने मुग्धभाव से देखा तथा बीस का नोट लेकर
बदले में पचास का थमाते हुए गाडी़ स्टार्ट कर दी.
स्टेयरिंग घुमाते हुए वह सोचने लगा...'काश ! अंदर की कुर्सी पर अर्दली जैसा आदमी होता !
और अर्दली सोचने लगा ...काश ! ख़ुदा ने हर आदमी को इस जैसा बनाया होता.
-सतीश दुबे
इसी अंक के अन्य ह्स्ताक्षर : गुरूदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर,स्वामी वाहिद क़ाज़मी,
डाँ.माधवराव रेगुलपाटी,सूर्यकांत नागर,जवाहर चौधरी,पदमा सिंह.
हिन्दी मासिक पत्रिका : वींणा
संपादक:डाँ राजेन्द्र मिश्र.
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