Monday, July 16, 2007

पं.कुमार गंधर्व बोले...गाना तो बाहर क्या देखना ?


मालवा और कुमार गंधर्व जैसे दूध में मिश्री.हमारा मालवा दूध जैसा पावन और हमारे कुमारजी का गाना मिश्री जैसा मीठा.धारावाहिक रामायण की लोकप्रियता शबाब पर थी.मुंबई में किसी म्युज़िकल सर्कल में सुबह की महफ़िल जमी है.रामायण के कारण खचाखच रहने वाली महफ़िल पर भी असर है आज.फ़िर भी सुनने वालों में कुमारजी के स्थायी मुरीद तो हैं हीं.लाजवाब गाया है आज कुमार जी. सभा समाप्त हुई है..मिलने जुलने वाले,शिष्य परिवार,और हाँ रेलेजी,पंढरीनाथ कोल्हापुरे और सबसे विशिष्ट हैं मराठी के जाने-माने साहित्यकार और कुमारजी के अनन्य सखा पु.ल.देशपांडे.ग्रीन रूम में आकर मराठी में पूछ रहे हैं ..कुमार आपने तो यहाँ जब भी गाया है तब सैकड़ों श्रोता रहे हैं..आज मामला ख़ाली ख़ाली था तब भी आपका गाना तो अदभुत था...कैसे?...दिल थाम कर पढ़ लीजिये दोस्तो पं.कुमार गंधर्व का जवाब..और ये भी ध्यान रहे कि ऐसे जवाब में काफ़ी कुछ अव्यक्त है...कृपया उसे पकड़्ने की कोशिश करियेगा.कुमार जी बोले:
जब गाना तो बाहर क्या देखना...मै गाने को अपने भीतर को सुनाता हूं..किसी और को सुनाने आया ही नहीं कभी .

7 comments:

निशा मधुलिका said...

काश हम कुमार गंधर्व साहब को सुन पाते.
हम तो उन्हें बस कैसेट पर सुन लेते हैं. उनका "सुनता है गुरु ज्ञानी" और "निरभय निरगुन गुन में गाऊं" बहोत पसन्द है.
"जब गाना तो बाहर क्या देखना...मै गाने को अपने भीतर को सुनाता हूं..किसी और को सुनाने आया ही नहीं कभी . "
वो वाकई किसी और को सुनाने के लिये नहीं गाते थे. चाहे तो उनका कोई भी गायन सुन लो!

VIMAL VERMA said...

कुमार गंधर्वजी को मैने इलाहाबाद में सुना था, तोड़-तोड कर स्वरों मे बह से जाते थे, सुना था दमें कि बीमारी की वजह से उन्होंने जो शैली अपनाई वो सभी को भा गयी, मुझे उनकी आवाज़ बहुत पसन्द है उनमें झीनी झीनी बीनी चदरिया, उड़ जायेगा हंस अकेला पसन्द है "जब गाना तो बाहर क्या देखना...मै गाने को अपने भीतर को सुनाता हूं..किसी और को सुनाने आया ही नहीं कभी . " वैसे ये बात हर जगह लागू हो सकती है

इष्ट देव सांकृत्यायन said...

वह मजा आ गया. पढ़ते-पढ़ते ही लगा जैसे कुमार जी को सुनाने लगा होऊं.

sanjay patel said...

आप सभी कुमारप्रेमियों को धन्यवाद और एक ख़ास गुज़ारिश.मौसम भीगा भीगा है,आसमान में बादल घुमड़ रहे हैं.बजट इजाज़त देता हो (और संकलन में मौजूद न हो तो)तो कुमारजी और उनकी संगीत-जीवन सहचरी वसुंधराजी (पिचहत्तर पार हैं;देवास में रहती हैं और माश्शाअल्लाह! अभी भी गा रही हैं) के स्वरों में निबध्द लाइव कंसर्ट ’वर्षा-मंगल’ज़रूर ख़रीदें;दो कैसेट्स का सेट है;इसमेंआपको कुमारजी के कुछ अलौकिक स्वराघात सुनने को मिलेंगे ;मालवा की लोक धुनें भी है जैसे किसी स्वर-चूनर में सलमे-सितारे जड़ दिये हैं कुमारजी ने.सनद रहे ये वर्षा-मंगल का कमर्शियल प्रोमो नहीं है(एड्वरटाइज़िंग प्रोफ़ेशन से जुड़ा होने से ये सफ़ाई ज़रूरी है) महज़ आप संगीत-प्रेमियों के लिये एक छोटी सी जानकारी है.

Sagar Chand Nahar said...

मैने कुमार गंधर्व को बहुत कम सुना पर जितना सुना है उसी से उनका मुरीद हो गया हूँ।
नैट पर बहुत खोजने पर एकाद गाना कुमार साहब की आवाज में गाया हुआ मिला है जो मैं आप सबके लिये पेश कर रहा हूँ।
प्रस्तुत गाना राग भैरवी में है और इसे सुनकर आप आनंदित हो जायेंगे। सुनने के लिये नीचे लिखे शब्द राग भैरवी पर क्लिक करें। ( अगर आपके कम्प्यूटर पर रियल प्लेयर है तो ही सुन सकते हैं। )
राग भैरवी

Yunus Khan said...

कुमार गंधर्व साक्षात स्‍वर गंधर्व थे । मुझे उन्‍हें सुनने की आदत आकाशवाणी सुनने से ही लगी । संझवाती जैसे कार्यक्रमों के ज़रिये । जिनमें उनके गाये ‘कबीर भजन’ होते थे । आप इंदौर वाले भाग्‍यशाली हैं जिन्‍हें उन्‍हें साक्षात सुनने का मौक़ा मिला । कुमार गंधर्व का स्‍वर हमारे जीवन का सौभाग्‍य है और इस सौभाग्‍य को नमन है । कहीं नेट पर कुछ‍ मिला उनका गाया तो चढ़ाया जायेगा अपने ब्‍लॉग पर । उनके छोटे बेटे से तीन साल पहले विविध भारती में भेंट हुई और फिर तो हमने इतनी बातें कीं मानों सालों साल से परिचित हैं ।

Sanjeet Tripathi said...

शुक्रिया!!
मालवांचल पर आधारित नरेश मेहता जी के उपन्यास "उत्तर कथा" खंड एक व दो पुर्नपठन का मौका पिछले दिनो मिला।
अविस्मरणीय