Saturday, May 10, 2008
पं फ़िरोज़ दस्तूर : ढह गया किराना घराने का एक और स्तंभ
देश के जाने माने गायक और संगीतविद पं फ़िरोज़ द्स्तूर का नौ मई
को रात नौ बजे मुंबई में देहांत हो गया। 89 वर्ष के पं दस्तूर किराना घराने
के रौशन चिराग़ थे। आज जब मेरे हारमोनियम वादक मित्र श्री सुधीर नाईक
ने जब ये जानकारी मुम्बई से फ़ोन पर दी तो मन ने कहा कि किराना घराने
की परम्परा का एक और गुणी साधक हमारे बीच से उठ गया। पं दस्तूर महान
सवाई गंधर्व और उस्ताद अब्दुल क़रीम ख़ॉ साहब मरहूम के शाग़िर्द थे.
1952 में प्रारंभ हुए पुणे के विश्व-विख्यात सवाई गंधर्व समारोह में लगातार
शिरक़त करने वाले पं दस्तूर का संगीतजगत में बड़ा आदर था. वे मुबंई
विश्व-विद्यालय के संगीत विभाग से वर्षों संबद्ध रहे जो सन 1969 में
प्रारंभ किया गया था. उन्हें संगीत की अनन्य सेवाओं के लिये संगीत नाटक
अकादमी के प्रतिष्ठित सम्मान और मध्य-प्रदेश सरकार के राष्ट्रीय अलंकरण
तानसेन सम्मान से नवाज़ा गया था. ये सम्मान उस्ताद बिसमिल्ला ख़ॉ,
पं.भीमसेन जोशी ,विदूषी एम.एस.सुब्बुलक्ष्मी और विदूषी मालिनी राजुरकर जैसे
महान स्वर-साधकों को दिया जा चुका है.महाराष्ट्र गौरव पुरस्कार से सम्मानित
किये जा चुके पं.दस्तूर पं.भीमसेन जोशी और विदूषी गंगूबाई हंगल के गुरूभाई
है. दुर्भाग्य से ये दोनो कलाकार भी गंभीर रूप से बीमार हैं और संभवत:
अपने गुरू-सखा के देहावसान का समाचार सुनने की स्थिति में भी नहीं हैं
एक परफ़ॉरमिंग आर्टिस्ट के रूप में पं.फ़िरोज़ दस्तूर नये ज़माने के लिये
कोई बड़ा चमकदार नाम नहीं हो सकता है लेकिन शास्त्रीय संगीत के इतिहास
का थोड़ी जानकारी रखने वाले लोग पं.दस्तूर के अवदान से वाक़िफ़ हैं.अभी हाल
में ही पं.किशन महाराज के जाने की ख़बर भी आई थी और अब पं.दस्तूर के
जाने से क्लासिक मूसीक़ी का एक और तारा अस्त हो गया है. पं.दस्तूर ने
गुज़रे ज़माने की कुछ फ़िल्मों में भी काम किया था . और पीनाज़ मसानी जैसे
कई गुलूकारों को बाक़ायदा शास्त्रीय संगीत की तालीम दी.इस गुणी स्वर साधक
को संगीतप्रेमियों की विनम्र श्रध्दांजली.
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2 comments:
हार्दिक विनम्र श्रृद्धांजलि.
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आप हिन्दी में लिखते हैं. अच्छा लगता है. मेरी शुभकामनाऐं आपके साथ हैं, इस निवेदन के साथ कि नये लोगों को जोड़ें, पुरानों को प्रोत्साहित करें-यही हिन्दी चिट्ठाजगत की सच्ची सेवा है.
एक नया हिन्दी चिट्ठा किसी नये व्यक्ति से भी शुरु करवायें और हिन्दी चिट्ठों की संख्या बढ़ाने और विविधता प्रदान करने में योगदान करें.
यह एक अभियान है. इस संदेश को अधिकाधिक प्रसार देकर आप भी इस अभियान का हिस्सा बनें.
शुभकामनाऐं.
समीर लाल
(उड़न तश्तरी)
समीर दादा,
आपके मन का ई मेल तो शायद पहले ही मिल चुका होगा. www.sarokarparyavaranse.blogspot.com मेरे द्वारा ही शुरू करवाया गया है ; धीरे धीरे परवाज़ पर चढ़ रहा है .. . फ़िर भी आपका आग्रह मेरे लिये आदेश है...सर माथे.
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