Tuesday, May 20, 2008

यदि पुनर्जन्म है तो मैं मुकेश का बेटा बनकर ही जन्म लेना चाहूँगा !


गोरे - चिट्टे नितिन मुकेश ने काले रंग का कुर्ता पहन रखा था. उनके चेहरे के रंग और परिधान का ये काँट्रास्ट कहर सा ढा रहा था. 18 मई की रात नितिन ने मुकेश जी के गीतों की झड़ी सी लगा दी. मौक़ा था सुगम संगीत के क्षेत्र में मध्य-प्रदेश सरकार द्वारा दिया जाने वाला प्रतिष्ठित
राष्ट्रीय अलंकरण..... लता पुरस्कार. इन्दौर गान सरस्वती लता मंगेशकर की जन्म-भूमि है और यहीं ये आयोजन आरंभ से ही होता रहा है. नितिन मुकेश इस सम्मान से नवाज़े जाने वाले २४ वें कलाकार थे.
पिछले वर्ष यह पं.ह्र्दयनाथ मंगेशकर को प्रदान किया गया था.

हर वर्ष सम्मानित कलाकार अलंकरण के पश्चात अपनी संगीत प्रस्तुति देते हैं एक - डेढ़ घंटे में यह प्रस्तुति समाप्त हो जाती है लेकिन तारीफ़ करना होगी नितिन मुकेश की वे रात 8.30 से 12.30 तक लगातार गाते रहे. मुझे मंच पर एंकरिंग करते हुए तक़रीबन पच्चीस बरस हो गए ; किसी भी शो में मैने इतनी फ़रमाइशी पर्चियाँ मंच पर आते नहीं देखी. इन्दौर के नेहरू स्टेडियम में दस हज़ार से ज़्यादा संगीत प्रेमियों की मौजूदगी इस बात की गवाह थी कि आज भी गायक मुकेश के चाहने वालों की संख्या में कमीं नहीं आई है. उनके सैकड़ों गीत श्रोताओं को मुँहज़बानी याद हैं.

नितिन मुकेश ने भी बड़ी विनम्रता से स्वीकारा कि यह सम्मान मेरे महान पिता की स्मृति को ही समर्पित है. उन्होने कहा कि मेरे गीतों की संख्या मुकेशजी से कहीं कम है . आज जो भी गाया जा रहा है वह हक़ीकत में रफ़ी , किशोर और मुकेश गायन परम्परा का दोहराव ही तो है. इस लिहाज़
से नितिन मुकेश को तो अपने पिता के गीतों को गाने का ज़्यादा बड़ा हक़ बनता है.

नितिन मुकेश की गायकी के पहलुओं के बारे में ये ज़रूर कहना चाहूँगा कि ये कलाकार लाइव स्टेज शो की दुनिया का जादूगर है. नितिन जिस तरह से श्रोता के साथ जीवंत राब्ता बनाते हैं वह वाक़ई किसी करिश्मे से कम नहीं उन्हें मुकेश जी के सैकड़ों गीत याद हैं . वे अपनी प्रस्तुति के
दौरान कभी डायरी या काग़ज़ का आसरा नहीं लेते . वे मानते हैं कि ऐसा करने से गायकी कमज़ोर पड़ती है. जब मैने कार्यक्रम से पहले गीतों की फ़ेहरिस्त माँगी तो वे बोले दोस्त जैसे जैसे लोग सुनते जाएँगे ; मै गाता
जाऊँगा. वे मंच पर नंगे पैर आए ; उन्होंने कहा जहाँ साज़ रखे रहते हों वहाँ जूते पहनना अदब के विरूध्द होता है.
(लता जी भी गाते वक़्त नंगे पैर ही रहती है; उन्होंने आज तक कोई रिकॉर्डंग चप्पल पहन कर नहीं की है)

नितिन मुकेश अदभुत प्रतिभा के फ़नकार हैं लेकिन यह भी सच है कि हमारी फ़िल्म इंडस्ट्री ने इस हुनरमंद कलाकार के साथ न्याय नहीं किया है. उनकी आवाज़ में एक वैशिष्ट्य है जो ख़ास तरह के
गीतों के लिये बना है . मैं अपनी तरफ़ से ये जोड़ना चाहूँगा (कृपया इसे अतिरेक न मानें) कि नितिन में भी अपने पिता जैसी क़ाबिलियत है लेकिन उसे तराशने वाले या सही इस्तेमाल करने के लिये अब अनिल विश्वास, शंकर-जयकिशन,रौशन,कल्याणजी-आनन्दजी,ख़ैयाम, हसरत जयपुरी,शैलेन्द्र और इंदीवर की बलन के संगीतकार और गीतकार कहाँ ?

और आख़िर में एक भावनात्मक बात ; नितिन मुकेश ने अपनी प्रस्तुति के दौरान कहा कि यदि पुनर्जन्म है तो मैं फ़िर नितिन मुकेश ही कहलाना ही पसंद करूंगा.उनके नाम ने ही मुझे सम्मान दिया है ; उनके गीत
ही मेरी पहचान है. रात साढ़े बारह बजे जब चाँद आसमान में मुस्कुरा रहा था तब नितिन मुकेश ने रमैया वस्ता वैया...मैने दिल तुझको दिया गाकर इस अविस्मरणीय महफ़िल को विराम दिया. इस गीत की पंक्तियों की तरह इन्दौर के हज़ारों प्रेमियों ने अपना दिल इस लाजवाब कलाकार को दे दिया. मैने अपनी देखा और कानों कि स्टेडियम से बाहर जाते कई श्रोताओं की आँखों की कोर भीगी हुई थी और वे महान गायक मुकेश जी के इस भावुक बेटे को दुआएं देते हुए अपने बसेरों को लौट रहे थे

11 comments:

mamta said...

नितिन मुकेश जब मुकेश का गाया हुआ पतली कमर है गाते है तो इतनी जोर-जोर से अपनी कमर हिलाते है की देख कर आश्चर्य होता है पर मजा भी खूब आता है।
आपने सही कहा कि वो श्रोताओं को बाँध लेते है।

VIMAL VERMA said...

नितिन में भी अपने पिता जैसी क़ाबिलियत है लेकिन उसे तराशने वाले या सही इस्तेमाल करने के लिये अब अनिल विश्वास, शंकर-जयकिशन,रौशन,कल्याणजी-आनन्दजी,ख़ैयाम, हसरत जयपुरी,शैलेन्द्र और इंदीवर की बलन के संगीतकार और गीतकार कहाँ ? आपकी बात से इत्तेफ़ाक करता हूँ..गज़ब का समा होगा जब आप स्टेज़ पर कार्यक्रम का संचालित कर रहे होंगे.नूरी का शीर्षक गीत आजा रे बहुत अच्छा लगता है...और तेज़ाब फ़िल्म का गीत खो गया ये जहाँ .......खो गाया है रस्ता....नितिन जी ने वाकई बहुत अच्छा गाया था...बहुत अच्छी प्रस्तुति के लिये बहुत बहुत शुक्रिया।

सागर नाहर said...

इन पंक्तियो से मैं भी सहमत हूँ..
नितिन में भी अपने पिता जैसी क़ाबिलियत है लेकिन......
आज भी सुरेश वाडेकर, येशुदास, शेलेन्द्र सिंह, मो. अजीज, जसपाल सिंह, हेमलता और इन जैसे कई बढ़िया गायक हैं (शब्बीर कुमार नहीं) परन्तु उनकी गायकी के हिसाब से और बढ़िया संगीत रचने वाले अनिल दा..और उन जैसे संगीतकार ही नहीं है अब।
नितिन मुकेशजी का गाया हुआ.. गीत वो कहते हैं हमसे.. एक जमाने में मेरे सबसे पसंदीदा गीतों में से एक हुआ करता था।
ममता जी कह रही है वैसा एकाद बार मैने भी देखा है नितिन जी अपनी कमर बड़ी जोर जोर से हिलाते हैं।

सागर नाहर said...

हिला कर हंसाते हैं*

Abhishek Ojha said...

अच्छी प्रस्तुति. सागर जी से पूर्ण सहमत !

Udan Tashtari said...

बहुत उम्दा रपट पेश की. आनन्द आया. आभार आपका.

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

नितिन भाई से मिले अर्सा हो गया है
याद है मुझे जब वे अपने पिता के साथ पहली बार अमरीका आये थे -
उन्होँने अपने पिता के प्रति
श्रध्धाभाव सम्हाले रखा है,
उसकी खुशी है ...
स्नेह्,
-लावण्या

Dr. Chandra Kumar Jain said...

अच्छी रपट....आकर्षक तस्वीर.
नितिन जी को हमने अपने शहर
छत्तीसगढ़ के राजनान्दगाँव में भी
आमंत्रित किया था. उसकी याद आज
आपकी यह पोस्ट पढ़कर ताज़ा हो गई.
लेकिन आपने बेशक़ीमती जानकारी दी है.
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शुभकामनाएँ
डा.चंद्रकुमार जैन

Yunus Khan said...

अच्‍छी और मार्मिक पोस्‍ट

Yunus Khan said...

सोचा यहीं फरमाईश कर दें ।
कार्टूनिस्‍ट देवेंद्र से मिलवाईये ।
और उनके कार्टून दिखवाईये ।
और उनकी जीवन कथा सुनाईये ।
हम इंतज़ार कर रहे हैं । :P

sanjay patel said...

आप सभी का तहेदिल से आभार.
नितिन भाई में वाक़ई मुकेशजी वाली सज्जनता के दीदार होते हैं . श्रोता के साथ उनका जीवंत संवाद और उसमे समोई विनम्रना तो सीखने वाली चीज़ है.चकाचौंध के बीच उनकी सादगी और संस्कार-प्रेम ओढ़ा हुआ नहीं लगता.यह भी समझ में आता है कि नये ज़माने के कलाकार कितने ढीठ हैं.