Thursday, May 29, 2008
प्यार के आगे नतमस्तक है क्रोध !
आज ही शाम को एक पत्रकार मित्र ने प्यारी से मेल प्रेषित की.
भाव बहुत ही मार्मिक था ..सोचा आपके साथ बाँटा जाए.
एक व्यक्ति अपनी कार धो रहा था. पास में उसका बेटा खेल
रहा था. अनायास बेटे को क्या सूझी कि उसने एक पत्थर उठा कर
कार के दरवाज़े पर कई चिरकट्टे (स्क्रैच) कर दिये. व्यक्ति ने
आव देखा न ताव गाड़ी के पास पड़े औज़ार से बच्चे की उंगलियाँ
मरोड़ दीं.टूटी उंगलियों से बहता ख़ून देखकर पिता घबराया और बच्चे को
नज़दीक ही स्थित अपने डॉक्टर मित्र की डिस्पैंसरी ले आया.
मरहम-पट्टी के दौरान मासूम बेटे ने बाप से पूछा
..डैड मेरी उंगलियाँ कब तक ठीक हो जाएँगी.
बच्चे का प्रश्न सुनकर को पिता को अपने कृत्य पर
क्रोध आया और वह तत्काल डिस्पैंसरी के बाहर
खड़ी कार के दरवाज़े के पास आकर पश्चातापस्वरूप
लातें मारने लगा. इसी दौरान उसकी नज़र कार के दरवाज़े
पर किये गए अपने बेटे के चिरकट्टों पर गई
बच्चे ने दरवाज़े पर पत्थर से उकेर रखा था.....
आय लव यू माय डैड !
क्या इसके बाद कुछ कहने को रह जाता है ?
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11 comments:
सचमुच मार्मिक.
क्या बात बताई सर.
बहुत ही प्यारी पर मार्मिक.
क्रोध>विभ्रम>बुद्धिनाश; इन से उबारने को आता है सहज प्यार! आपने बहुत सुन्दर तरीके से समझाया!
नहीं इसके बाद कहने को कुछ नहीं रह जाता. आवेश में आ कर बिना सोचे समझे काम करने से सब को तकलीफ होती है. कभी कभी जवाब भी देना पड़ जाता है जिस से शर्मिंदगी भी उठानी पड़ जाती है.
मेरे एक मित्र ने अपने बच्चे को शरारत करने पर कहा. 'निकल जाओ घर से'. बच्चा घर से निकल गया. मित्र और उनकी पत्नी में तकरार हो गई. बच्चे तो शरारत करते ही हैं. क्या इतनी से बात पर बच्चों को घर निकाल देंगे? पिता को भी बुरा महसूस होने लगा. वह बाहर निकले और बाहर बैठे बच्चे से कहा, 'चलो अन्दर, 'आइन्दा ऐसी हरकत मत करना'. बच्चे ने कहा, 'घर के अन्दर बाद में जाऊगा, पहले यह बताओ घर से निकाला क्यों था'. मित्र के पास कोई उत्तर नहीं था इसका.
बेहद मार्मिक. आभार इसे बांटने का.
दिल को छू जाने वाली रचना,
आभार इसे पेश करने के लिये ।
एक बार मेरे मित्र की बेटी ने अपने दादा का चश्मा तोड़ दिया. दादा को मालूम पड़ा ..आए और एक चाँटा मासूम के गाल पर जड़ दिया. बिटिया थोड़ी देर रोती रही..फ़िर कुछ देर बाद अपने दादा के पाँवों में लिपटकर मुस्कुराते हुए बोली ...दादा ये चश्मा आपसे टूट जाता तो ?
दादा क्या बोलते...झट बेटी को गोद में उठा कर चूम लिया...लेकिन बेटी का प्रश्न अभी तक अनुत्तरित है.
आपने मेरी बात को संजीदगी से लिया
साधुवाद.
प्रणाम आपके मन में बैठे परमात्मा को
वही हमें अच्छी बातों को सराहने का
शऊर देता है.
मार्मिक.= very touching.
Hope we all have our inocence kept intact for a long time.
दिल को छू लेने वाले लेख है यह .
:)
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