Thursday, May 15, 2008
मेरी सौं वीं पोस्ट ....और जी चाहता है !
एक बरस पहले ब्लॉग बिरादरी में शामिल हुआ था.
इस दौरान ये महसूस हुआ कि चिट्ठाकारी ने
ज़िन्दगी को एक सकारात्मक विस्तार और
लिखने-पढ़ने को एक नेक-नशा दे दिया.
आभार; पूरी ब्लॉग-बिरादरी का;आप सब जुड़कर
एक बड़े क़ुनबे जैसा प्यार भरा राब्ता बना.
बहरहाल ; सौ पोस्ट जारी कर देना कोई कारनामा नहीं है;
लेकिन सौं वीं पोस्ट के रूप में जो रचना जारी करना चाहूँगा
वह पिता श्री नरहरि पटेल की है जिनसे बोलने,लिखने और पढ़ने
का शऊर मिला. मैंने उन्हें ही अपना आदर्श माना क्योंकि ज़िन्दगी
की दीगर तरबियतें और सलाहियते उनसे ही मिलीं .
ये मेरा उनके प्रति एक आदर भरा शुक्राना भी है , उस सब के लिये
जो उनसे मिला संस्कारों,नसीहतों और मशवरों के रूप में.
बरसों पहले लिखी गई पिताश्री की यह कविता मन को बहुत छूती है और
हमेशा कुछ करने का जज़्बा देती है.मुलाहिज़ा फ़रमाएँ.......
जी चाहता है !
जी चाहता है
कि जीवन हर क्षण जी लूँ
वह भी ऐसा जीऊँ
कि जीवन का हर क्षण
सार्थक हो जाए
मुझसे किसी को
कोई शिकायत न रह जाए
जी चाहता है
जी चाहता है
कि जीवन का हर घूँट पी लूँ
कड़वा,मीठा,खारा,
और वह भी ऐसा पीऊँ
कि जीवन का हर घूँट
तृप्त हो जाए
बस ! तिश्नगी मिट जाए
जी चाहता है
जी चाहता है
कि जीवन की फटी चादर सी लूँ
और वह भी ऐसी सिऊँ
के उसके तार तार चमके
उसकी हर किनार दमके
उसके बूँटों में ख़ुशबू भर जाए
पता नहीं ये चादर
किसी के काम आ जाए
जी चाहता है.
(टीप:जी यह भी चाहता है कि फ़िर से बच्चा बन जाऊँ;ज़िन्दगी के उस दौर में लौट जाऊं जो सबसे सुहावन और सुनहरा था;लेकिन अब ऐसा मुमकिन नहीं; तो चलिये ऐसा ही सही कि अपने बचपन की तस्वीर ख़ुद निहारूँ और आप सबको भी दिखलाऊँ...देख लें ऊपर छापी है)
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25 comments:
बहुत मार्मिक चिट्ठा !
सौ वीं पोस्ट की बधाई।
जी चाहता है
कि जीवन की फटी चादर सी लूँ
और वह भी ऐसी सिऊँ
के उसके तार तार चमके
उसकी हर किनार दमके
उसके बूँटों में ख़ुशबू भर जाए
पता नहीं ये चादर
किसी के काम आ जाए
जी चाहता है.
आपके पिता को मेरा प्रणाम ,रचनाशीलता ही हमे बस इस भाग दौड़ भरे जीवन मे कुछ oxygen दे देती है.... एक बात ओर आपके पिता बहुत अच्छा लिखते है.....
बधाई!!!
जी चाहता है चूम लूँ अपनी नजर को मैं,
आयी है उनके चाँद से ब्लॉग को चूम कर,
जी चाहता है चूम लूँ अपनी नजर को मैं....:-)
आपकी सारी तमन्नाएँ पूरी हों हमारी आकांक्षा है ...
बाकी आपका संगीत का ज्ञान तो नायाब है, उसे अवश्य बांटते रहे ....
सौवी पोस्ट पर शुभकामनाएं..:-)
बधाई, जल्द यह संख्या १००० पहुंचे।
सौंवी पोस्ट की बहुत-बहुत बधाई
और पिताजी की सुन्दर कविता ब्लॉग पर छापने के लिए शुक्रिया। ।
बहुत उम्दा पोस्ट. कमाल की कविता ...... बहुत अच्छा लग रहा है पढ़कर ....
संजयजी चिट्ठालोक की यात्रा की इस मंजिल पर हार्दिक बधाई । आपका योगदान अविस्मरणीय रहेगा।
बहुत खूब! आप तो बस लिखते रहें....सौवीं पोस्ट के लिये हमारी भी बधाई स्वीकार करें,और हाँ वो जो आपने ऊपर तस्वीर जो लगा रखी है...वो भी बहुत खूब लग रही है,पिताजी की बहुत अच्छा लिखते हैं..ऐसे ही पढ़वाते रहें.....
great century.jame rahiye.bahut bahut badhaai sanjay bhaai.
बधाई!
घुघूती बासूती
मुबारक हो ।
आपकी लेखनी के कायल हैं ।
सौंवी पोस्ट की बधाई
100th post ke liye is se achchha vikalpa koi ho hi nahi sakta tha.
badhai
सँजय भाई,
ह्र्दय ऐसा ही रहे, जैसे तस्वीर मेँ आप दीख रहे हो !:)
आदरणीय नरहरि जी को यूँ ही, याद करते रहेँ..और हमेँ
सँगीत के बारे मेँ आपकी बेहतरीन बातेँ, सुनने के लिये मिलती रहेँ
यही कामना है - Happy 100th Post !!& many more ...
-- लावण्या
bahut hi marm hai is kavita ke shabdon me, apko century marne ke lie badhai,
सेंचुरी मारने की बधाई
100वीं पोस्ट के लिये बधाई स्वीकार करें...
वाह जी, शतक की बधाई. इस शुभ मौके पर पिता जी की इतनी बेहतरीन कविता के लिए आभार. बचपन की तस्वीर-वाह, कम से कम दिल से हमेशा यूँ ही बनें रहें. पुनः बधाई.
ओह हम तो बिना गिने ही सौ पार कर गए।...
सौंवी पोस्ट पर ढेर सारी बधाई संजय भाई।..आपके भीतर की मासूमियत को भी सलाम..आप की लेखनी से निकले हर्फों का ये कुनबा यूं ही फलता फूलता रहे.ज्ञान की रोशनी फैलाता रहे.यही हमारी शुभकामना है...
आपकी शुभकामनाओं ने बच्चा ही बना दिया. श्ब्द और स्वर की जो भी ख़िदमत हो सकेगी करूंगा. और सीखता रहूँगा आप सब से सह्र्दय बने रहने की कला.आभार मन की गहराई से.
अपना भी जी चाहता है, फटी चादर को सी लेने का. ख़ुशबू भर लेने का. झीनी झीनी ये चदरिया किसी के काम आ सके, इसका.
आपको सौवीं पोस्ट की ढेर सारी बधाइयां. और पिताश्री के लिए हार्दिक सम्मान.
देर से ही सही लेकिन दुआ करते हैं कि जल्दी ही हज़ारवीं पोस्ट पर सबसे पहले हम बधाई दें. नन्हें बालक संजय तो अभी भी वैसे ही हैं.. पिताजी की कविता तो बहुत गहरी बातें कह गई.
जी चाहता है
कुनबे जैसा प्यार भरा
ये राब्ता हर एक की
ज़िंदगी को रौशन करे.
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यादगारों को आपने इस
शतकीय पायदान पर
बड़ी रोचक अभिव्यक्ति दी है.
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शुभकामनाएँ
डा.चंद्रकुमार जैन
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