नन्हे का ख़त
भूले बिसरे लिखते
सिलसिले तमाम
नन्हे को ख़त
बड़के भइया के नाम !
इस चिट्ठी को जैसे
तार बाँचना
बहना को पालकी ओहार बाँचना
बापू की झूकी हुई मुछों का काँपना
अम्मा की आँखों की
हार बाँचना
सुबह शाम की लीकों
लिपटे भीतर-बाहर
हारे मनमारे से
सेहन - दालान
बौरायीं आँगन के आम की टहनियाँ
चढ़ते फागुन के
दिन चार बाँचना
गुमसुम बैठीं भाभी
टेक कर कुहनियाँ
कंधों पर उतरा अंधियार बाँचना
देखो जी !
यह ख़त भी अनदेखा मत करना
घर भर का राम - राम
गाँव का सलाम !
2 comments:
सुन्दर रचना प्रेषित की है।बधाई।
सुन्दर रचना। आभार सहित,
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