बजट आया ...बजट आया...लो साहब आया और गया।
मेरी ज़िंदगी क्या फर्क पड़ा !
वही सुबह है ...वही शाम है
काम ही काम है
बड़ी बड़ी रपटें ....
रंगीन पन्ने
विश्लेषण ....बहसें...
चिंताएं
समीक्षाएं
वही नून...लकड़ी है
वही जवान होती लड़की है
उसके हाथ पीले करने की चिंताएं हैं
लड़का लग जाए काम पर तो समझो ...
गंगा नहाए हैं
बड़े-बडों के चोचले हैं
राजनेताओं के वादे बड़े पोपले हैं
ये लिखते हुए शाम हो गयी
फ़िर ज़िंदगी तमाम हो गई
खटते रहो .....पिसते रहो
नई सुबह की उम्मीद में
खदबदाते रहो
जिनके वारे - न्यारे हैं
उनका है बजट...उनकी है बचत
हमारे लिये तो बस यही एक आस है
बजट के चार रंगीन पन्नों की
रद्दी हमारे पास है
2 comments:
बिल्कुल सही...बेहतरीन, संजय भाई.
जीवन संघर्ष का एक और आध्याय जुड़ गया
जीवन आगे बढ़ा गया है ना संजय भाई ?
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