माया गोविंद का नाम लेते ही मन में श्रृंगार गीतिकाव्य की उजली परम्परा का स्मरण हो आता है. मायाजी ने हिन्दी काव्य मंच परलम्बी पारी खेली है. उनका मधुर स्वर गीत की कहन का आकर्षण बढ़ाता आया है. हिन्दी चित्रपट गीतों के लिये भी मायाजी ने बेहतरीन गीत लिखे हैं. आईये होली की रंगत में पढ़ लीजिये मायाजी का ये मीठा गीत.
चोरी चोरी आये सॅंवरिया
पिचकारी मारी सर र र र र।
राधे रानी रोक न पाई
कहती रह गई अर र र र र।
निकट आये जब श्याम सलोने
पीछे-पीछे ग्वालों की टोली,
डार दियो नैनन से जादू
चतुर कन्हाई, राधे भोली।
चतुर कन्हाई, राधे भोली।
चुरियॉं बोलीं कर र र र र।
कान्ह बजावन लागे मुरली
राधा जैसी हो गई पगली,
उमड़ी जैसे उमड़ी बदली
लागे राधे, बदली-बदली।
झूम के नाची, खुल गई पायल
घुँघरू बिखरे छर र र र र ।
"लाल' चुनरिया खींची "लाल' ने
"लाली' "लाली' हो गई "लाली'
"लाल' गुलाल या लाल गाल हैं
किसने चुराई किसकी लाली।
प्रेम पगे राधा के नैना
रस बरसावें झर र र र र ।
2 comments:
कहती रह गई अर र र र र।
चुरियॉं बोलीं कर र र र र।
घुँघरू बिखरे छर र र र र ।
रस बरसावें झर र र र र ।
आज कविता-गीत में ये रंग गुम सा हो चला है.
किस लाजवाब वज़न के साथ मायाजी अपने गीत के
हर अंतरे को ख़त्म कर रही हैं देखिये तो ! ईश्वर उन्हें चिरायु करे !
संजय भैया अपने ब्लोग पर आपकी नसीहत तो लगा ली थी मगर कल बधाई दे नही पाई सभी लोगो को... घर मेहमानो से भर गया था...:)
होली मुबारक हो!इसी आशा और विश्वास के साथ की होली आपके जीवन को रंगों से भर दे...
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