दोस्तो...,मध्य-प्रदेश के पौराणिक शहर उज्जैन के शायर थे भाई अहमद कमाल परवाज़ी.विगत दिनो उनका इंतेक़ाल हो गया. साठ के आसपास के थे और बैंक मेंनौकरी किया करते थे. विगत दस - पन्द्रह बरसों में जो नाम म.प्र. केशायरी के परिदृष्य पर उभर कर आए हैं उनमें कमाल भाई वाक़ई कमाल के थे.जुदा अंदाज़ और लाजवाब कहन के उस्ताद अहमद कमाल परवाज़ी ने थोड़े हीसमय में मंच और अदब की दुनिया में एक आदरणीय मुकाम हासिल कर लिया था.आज मुशायरों में जिस तरह से फ़िरक़ापरस्ती की बात की जा रही है वे उससे ख़ासीदूरी रखते थे और ऊर्दू की ईमानदार ख़िदमत को इबादत का दर्जा देते थे.अहमद कमाल परवाज़ी के जाने से ग़ज़ल के मेयार से एक दमदार आवाज़ गुमहो गई है.उन्हें ख़िराजे अक़ीदत पेश करते हुए अपने संकलने से उनके अशआर आपकेलिये पेश कर रहा हूँ .....मुझे यक़ीन है कि उनका क़लाम पढ़कर आपखु़द ब ख़ुद इस बात का अंदाज़ा लगा लेंगे कि हमने किस पाये का शायर खोया है.
उनकी एक ग़ज़ल के दो शे'र:
छत पे सूरज को बुझाने के लिये मत आना
छत पे सूरज को बुझाने के लिये मत आना
मैं तो तेरे ही तसव्वुर की महक में गुम हूँ
तू मेरा ध्यान बँटाने के लिये मत आना
ये रंग देखिये.......
एक ही तीर है तरकश में तो उजलत न करो
ऐसे वक़्तों में निशाना भी ग़लत लगता है
(उजलत: जल्दबाज़ी)
एक ग़ज़ल के दो शे'र कुछ यूँ हैं.....
कहर गुज़रा तो अज़ाब आएंगे
नींद आई तो ख़्वाब आएंगे
क़त्ल कर देंगी नेकियाँ इक दिन
ख़ून पीने सवाब आएंगे
और ये अंदाज़ देखें कमाल भाई का.....
वो साफ़ बोलने वालों की जान ले लेंगे
मुकाम देने से पहले ज़ुबान ले लेंगे
मेरा सवाल है जो चार सौ कमाते हैं
वो कितने दिन में घर का मकान ले लेंगे
ये शे'र देखिये.......
रोशनी को और गहरा कर के देखा जाएगा
अब तेरा चेहरा अंधेरा कर के देखा
और अब आख़िर में..... अहमद कमाल परवाज़ी
की बेहद लोकप्रिय ग़ज़ल के अशाअर मुलाहिज़ा फ़रमाइये....
फ़कीरों से खुशामद की कोई उम्मीद मत रखना
अमीरे शहर तुम हो ये ज़हमत तुमको करना है
तुम्हारे फ़ैसले पर फ़ैसले सब छोड़ रख्खे हैं
अगर नफ़रत भी करना है तो नफ़रत तुमको करना है
हम अपना काम करते चले जाएंगे महफ़िल से
फ़िर इसके बाद ऊर्दू की हिफ़ाज़त तुमको करना है.
6 comments:
संजय पटेल शुक्रिया एक बहुत जज्बाती नर्म नाजुक और तल्ख शायर से ताअर्रूफ कराने का । मैं इनको पहले नहीं जानता था, आपने एक नाम और जोड़ दिया ज़ेहन में । अल्लाह उनकी रूह को जन्नत बख्शे । मुमकिन हो तो और अशआर पेश करें ।
सही कहा यूनुस भाई, अल्लाह उस कमाल की रूह को जन्नत बख़्शे. जिस कमाल की साफगोई से बन्दे इतने मुतअस्सिर हैं ......
बेहद ख़ूबसूरत अशआर. परिचय करवाने के लिए शुक्रिया.
संजय भाई आपको शुक्रिया और कमाल साहब तो सचमुच कमाल के शायर हैं. उन्हें श्रद्धांजलि.
शुक्रिया आप सभी का. कमाल भाई वाक़ई ऐसे क़लमकार थे जिनसे बहुत सारी उम्मीदें थीं.उनकी शायरी की गरिमा और कविता के सुलझे तेवरों की शिनाख़्त करती थी. बस शाम को सीने में दर्द उठा और दो एक घंटे में कमाल भाई ने ज़िन्दगी की ग़ज़ल का मक़ता पढ़ दिया. कोशिश करूंगा के उनके मजमुए से कुछ अशआर पेश कर सकूँ
संजय भाई ..उस्ताद अहमद कमाल परवाज़ी के सभी शेर बहुत सलीके से , बहुत गहरी बात रखा रहे हैं जिन्हें सभी तक पहुन्च्वाने का शुक्रिया -- ईश्वर उन्हें अपने फ्लू में जगह दे ..आमीन !
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